आज के अखबारों में एक प्रमुख खबर का शीर्षक अलग-अलग इस प्रकार है
1.हिन्दुस्तान टाइम्स
(अमित) शाह स्टालिन जूनियर के “सनातन” भाषण से संबंधित विवाद पर हमले का नेतृत्व कर रहे हैं (पहले पन्ने पर तीन कॉलम)
2.टाइम्स ऑफ इंडिया
सनातन धर्म को खत्म करने की अपील करके स्टालिन जूनियर ने विवाद छेड़ दिया है
इंट्रो है, देश की संस्कृति का अपमान; नरसंहार की अपील : भाजपा (दो कॉलम, सबसे ऊपर, लीड के बराबर में)
3.इंडियन एक्सप्रेस
इंडिया ब्लॉक हमारी संस्कृति का अपमान कर रहा है: सनातन धर्म के खिलाफ स्टालिन के बेटे की टिप्पणी की शाह ने निन्दा की (दो कॉलम फोल्ड के नीचे)
4.द हिन्दू
उदयनिधि के सनातन धर्म टिप्पणी पर विवाद छिड़ गया
(संक्षिप्त खबरों में सबसे ऊपर, सिंगल कॉलम में)
5.उमर उजाला
सनातन के अपमान में जुटा विपक्षी गठबंधन : शाह
केंद्रीय गृहमंत्री बोले – सनातन लोगों के दिलों में कर रहा राज, उसे कोई नहीं हटा सकता
(चार कॉलम में बाटम)
6.नवोदय टाइम्स
सनातन पर संग्राम
उदयनिधि बोले, सनातन धर्म का हो उन्मूलन
शाह का जवाब, तुष्टिकरण के लिए अपमान
इससे संबंधित वीडियो भी व्हाट्सऐप्प पर घूम रहा है। अमूमन मैं व्हाट्सऐप्प के वीडियो बिना जाने नहीं देखता हूं। कुछ मित्र अपवाद हैं और यह वीडियो कम से कम दो ऐसे मित्रों ने भी भेजे हैं। बाद में अखबार देखकर माथा ठनका। द टेलीग्राफ में भी यह खबर लीड है और “एक चुनाव का नारा लगाने वाले जो भारत को नहीं जानते!” आज इस रिपोर्ट का शीर्षक है, मुझे लगा कि इस वीडियो पर लिखने से पहले मैं खुद भी वीडियो सुन-देख लूं। और दोनों मित्रों के वीडियो इसीलिए देखा। पता चला कि जूनियर स्टालिन यानी उदयनिधि स्टालिन ने जो कहा है और जिसपर विवाद है वह हिन्दी या अंग्रेजी में नहीं दक्षिण भारत की किसी भाषा में है जो मैं नहीं जानता। इसलिए सुनकर प्रतिक्रिया देने की गुंजाइश कम लगती है। एएनआई और इंडियन एक्सप्रेस के लोगो वाले चार मिनट के इस वीडियो में उदयनिधि के बयान पर भाजपा नेताओं की प्रतिक्रिया हिन्दी और अंग्रेजी में भी है पर संदर्भ या पृष्ठभूमि नहीं है। अखबारों में सबसे विस्तार से यह खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में है। इसका शीर्षक और इंट्रो पहले लिख चुका हूं। खबर के साथ यहां तीन कोट हैं जो उदयनिधि स्टालिन, अमित शाह और कार्ति चिदंबरम के हैं। इनसे मोटा-मोटी यह अंदाजा लग जाता है कि मामला क्या है। सबसे पहले उदयनिधि स्टालिन ने जो कहा है, सनातन धर्म एक सिद्धांत है जो लोगों को जाति और धर्म के नाम पर बांटता है। डेंगू, मलेरिया और कोरोना जैसी कुछ चीजें जड़-मूल से खत्म की जानी चाहिये न कि सिर्फ विरोध किया जाना चाहिए। इसी तरह सनातन को भी जड़ मूल से खत्म किया जाना चाहिए। यहां गौर करने वाली बात है कि उन्होंने सनातन कहा है, सनाधन धर्म नहीं। मतलब क्या है मैं नहीं जानता उनकी भाषा मैं नहीं समझता। मैं अंग्रेजी में जो छपा है उसकी बात कर रहा हूं तथा कुछ अन्य लोगों का कहना है कि उदयनिधि ने सनातन ही कहा है।
टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसके साथ अमित शाह का कोट छापा है जो इस प्रकार है, तुष्टिकरण और वोटबैंक की राजनीति के लिए आप (इंडिया अलायंस) इस देश के संस्कृति और सनातन धर्म का अपमान करते रहे हैं। तीसरा कोट कांग्रेस नेता कार्ति चिदंबरम का है, क्या कारण है कि ‘एसडी’ (सनाधन धर्म) के लिए बल्लेबाजी करने वाले सभी लोग विशेषाधिकार वर्ग से आते हैं जो ‘वर्ण क्रम’ के लाभार्थी हैं। किसी के खिलाफ किसी नरसंहार की कोई अपील नहीं थी, यह एक संदिग्ध स्पिन है।
तीनों कोट और शीर्षक से स्पष्ट है कि मामला वैसा है नहीं है जैसा बनाया जा रहा है और यह काम अमित शाह कर रहे हैं जो हिन्दुस्तान टाइम्स ने साफ-साफ लिखा है और इस कारण टाइम्स ऑफ इंडिया तथा अमर उजाला या नवोदय टाइम्स ने इस खबर को प्रमुखता दी है। प्रमुखता तो इंडियन एक्सप्रेस ने भी दी है लेकिन खबर फोल्ड के नीचे दो कॉलम में है। अंतर आप समझ सकते हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि तमिल में कुछ बोला गया उसपर हिन्दी में हंगामा है, इंडियन एक्सप्रेस ने एएनआई के क्लिप के साथ वीडियो बना दिया और लोग उसे फॉर्वार्ड भी कर रहे हैं। अखबारों की खबरों से उसकी पुष्टि हो रही है जो अमित शाह कह या कर रहे हैं और इस तरह पूरे देश में माहौल बनाया जा रहा है।
कायदे से मीडिया का काम है कि अगर कुछ गलत या आपत्तिजनक कहा भी है तो उसे जस का तस न लिखे, पुलिस प्रशासन का काम है कि गलतबयानी के लिए कार्रवाई करे, स्पष्टीकरण दे और माहौल खराब होने से बचाये। लेकिन पुलिस अभी कहीं खबर में भी नहीं है। कार्रवाई नहीं हुई है तो मामला कार्रवाई योग्य भी नहीं है। इसके बावजूद हंगामा। यह भाजपा राज में ही होता है और पहले की ऐसी कोई घटना याद नहीं है। अगर किसी ने सनातन धर्म वालों के नरसंहार की अपील की है तो उसके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए और पुलिस प्रशासन को आवश्यक सतर्कता बरतनी चाहिए पर गृह मंत्री ही आग (अगर है) में घी डालने का काम कर रहे हैं।
यही नहीं, लाइव हिन्दुस्तान की एक खबर के अनुसार, उदयनिधि के विवादित बयान पर बीजेपी के तमाम नेताओं ने आपत्ति उठाई है। साथ ही, कांग्रेस और डीएमके के जरिए पूरे इंडिया अलायंस को घेरा है। हालांकि, मुझे लगता है कि अखबार वाले ऐसी खबरों को हवा नहीं दें तो भाजपा क्या घेरेगी और सोशल मीडिया पर उसका घेरना पता चल जाता है या बेअसर होता है। फिर भी अखबार ने लिखा है कि उदयनिधि का बयान सामने आने के बाद लोग उनके और उनके पिता एमके स्टालिन के धर्म के बारे में भी सर्च कर हैं। मैंने सर्च करने पर पाया कि उदयनिधि के पिता मुथुवेल करुणानिधि (एमके) स्टालिन तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि के बेटे हैं और उनकी मां का नाम दुर्गा स्टालिन है।
शायद इसीलिए द टेलीग्राफ का आज का फ्लैग शीर्षक है, सनातन विवाद से भाजपा के डिसकनेक्ट का खुलासा हुआ। हम जानते हैं कि दक्षिण भारत भाजपा से मुक्त है और पांव जमाने के लिए भाजपा हाथ-पांव मार रही है। दूसरी ओर, हिन्दी के अलावा दूसरी भाषाओं में भाजपा के हाथ वैसे ही तंग दिखते हैं और पश्चिम बंगाल के उम्मीदवारों की सूची हिन्दी में थी तो तमिल-तेलुगू और मुश्किल है। ऐसे में जो हालत है उसकी खबर हिन्दुस्तान टाइम्स के बाद द टेलीग्राफ ने ही दी है। नई दिल्ली / चेन्नई डेटलाइन से जेपी यादव और एमआर वेंकटेश की बाईलाइन वाली खबर में कहा गया है, भाजपा अब रोजगार, महंगाई और शिक्षा को नहीं सनातन धर्म को चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही हैं और इस बात पर जोर दे रही है कि भारतीय संस्कृति संकट में है।
खबर में सनातन धर्म के बारे में तो बताया ही गया है यह भी कहा गया है कि उदयनिधि कहां किस विषय में बोल रहे थे और संदर्भ क्या था। पृष्ठभूमि उपशीर्षक के तहत बताया गया है कि उदयनिधि तमिलनाडु में जातिवादियों और सुधारवादियों के बीच संघर्ष का संदर्भ दे रहे थे, खासकर पिछली सदी में, जिसमें उनके दादा और द्रविड़ आंदोलन के नेता एमके करुणानिधि ने शानदार भूमिका निभाई थी। यह बहस अब फिर से शुरू हो गई है क्योंकि भाजपा दक्षिणी राज्यों में पकड़ हासिल करने के लिए छटपटा रही है। दूसरी ओर, द्रमुक सरकार के लिए कांटा बने तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि सनातन धर्म के मुखर समर्थक हैं।
तमिलनाडु प्रोग्रेसिव राइटर्स एंड आर्टिस्ट्स एसोसिएशन द्वारा आयोजित शनिवार के सम्मेलन का विषय सनातन धर्म की अवधारणा की चर्चा करना था, जिसमें सामाजिक वर्णक्रम, भिन्न वर्ण के लोगों के बीच की दूरी और अवसरों की समानता की कमी जैसे तमाम निहितार्थ हैं। ऐसे में आलोचना एक राजनीतिक संदर्भ में निहित है जो इस आरोप से जुड़ा है कि केंद्र एक व्यापक और एकात्मक राज्य को बढ़ावा दे रहा है और संघवाद का अतिक्रमण कर रहा है, जो एक-राष्ट्र-एक-चुनाव प्रस्ताव और अखिल भारतीय मेडिकल प्रवेश परीक्षा पर मतभेदों में प्रकट होता है।
इस एक खबर के अलावा आज जो खबरें ध्यान खींचती हैं वह, अमर उजाला और इंडियन एक्सप्रेस में लीड है। इंडियन एक्सप्रेस की लीड का अनुवाद होगा, निर्णायक जनादेश के साथ स्थिर सरकार सुधार के कारण हैं, प्रधानमंत्री ने कहा। अमर उजाला में यह शीर्षक और बड़े व मोटे अक्षरों में है, स्थायी सरकार से ही आर्थिक विकास: मोदी। उपशीर्षक है, कहा – 2047 तक भारत होगा विकसित राष्ट्र, सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार की नहीं होगी जगह। आप जानते हैं कि 2014 में या उससे पहले ही प्रधानमंत्री ने कहा था कि वे 50 दिन में सपनों का भारत बना देंगे और 100 दिन में विदेश में रखा धन वापस ले आएंगे। अगर विदेश में रखा भ्रष्टाचार का धन वापस आ जाता और उनके कहे अनुसार 15 लाख बंट जाता या खर्च कर दिया जाता तो वाकई सपनों का भारत बन सकता था। पर वह सब कुछ नहीं हुआ और अब प्रधानमंत्री नए लक्ष्य और नई घोषणाएं बता रहे हैं तो अखबारों के पास कहां विकल्प है। हालांकि, अडानी मामले में गार्जियन और फाइनेंशियल टाइम्स की खबर नहीं छापने का विकल्प तो है ही। और संपादक गण अपने विवेक से फैसले कर रहे हैं। इसमें प्रचार कितना है और पत्रकारिता कितनी इसका पता इस बात से चल जाएगा कि अमित शाह जिस मुद्दे को हवा दे रहे हैं वह पहले पन्ने पर है और भारत का जो मामला विदेशों में चर्चित है उसे यहां पाठकों को बताने की जरूरत नहीं समझी जा रही है।
इसमें कांग्रेस के संचार प्रमुख जयराम रमेश का बयान भी शामिल है। द टेलीग्राफ ने आज अडानी से संबंधित चौथी खबर लगातार चार दिन पहले पन्ने पर छापी है। दूसरे अखबारों में एक भी नहीं या कुछेक में पहली खबर पहले पन्ने पर छपी है। सीएजी की रिपोर्ट पर हंगामा याद कीजिये और अब देखिये कि सीएजी की रिपोर्ट का क्या हश्र हुआ है। इसे ऐसे भी देखा जा सकता है कि पिछली बार कुछ नहीं मिला इसलिए उसे महत्व नहीं दिया जा रहा है पर सच यह भी है कि ऐसा नरेन्द्र मोदी के भाषणों और घोषणाओं के लिए नहीं है। जो भी हो, यह संपादकीय स्वतंत्रता तो है ही। यह इसलिए भी कि राहुल गांधी ने कहा है कि एक देश एक चुनाव की योजना संघ राज्य संबंध पर हमला है। लेकिन यह खबर भी पहले पन्ने पर कम नजर आई जबकि सबको पता है कि पश्चिम बंगाल का चुनाव अभी हाल में आठ बार में हुआ था और स्थानीय निकाय चुनाव के लिए अतिरिक्त केंद्रीय बलों की मांग की गई तो कोर्ट के आदेश के बावजूद केंद्रीय बल समय पर नहीं पहुंचे। ऐसे में एक देश एक चुनाव कैसे हो सकता है और उसपर सोचना क्यों जरूरी है यह अखबारों में नहीं के बराबर है। सरकार चाहती है तो सवाल कोई नहीं करेगा।
दिलचस्प यह भी है कि प्रधानमंत्री ने कहा है और नवोदय टाइम्स ने पहले पन्ने पर छापा है कि लोकलुभावन फैसलों की चुकानी होगी बड़ी कीमत : पीएम मोदी। प्रधानमंत्री के लोकलुभावन फैसलों की याद दिलाने की जरूरत नहीं है। नोटबंदी, किसान कानून, जीएसटी लागू करने और बैकों में जनधन खातों का नफा-नुकसान जानने के बावजूद प्रधानमंत्री लोकलुभावन फैसलों की बात कर रहे हैं और छापने वाले छाप भी रहे हैं। बिना किसी सवाल के। यहां यह दिलचस्प है कि नवोदय टाइम्स की इस खबर को लगभग इसी शीर्षक से द हिन्दू ने लीड बनाई है। लेकिन द हिन्दू की दूसरी खबर (लीड के साथ बराबर में) है, खड़गे ने संसद के विदेश सत्र से पहले इंडिया के फ्लोर नेताओं की एक बैठक बुलाई है। यह खबर किसी और अखबार में इतनी प्रमुखता से नहीं दिखी। अंदाजा आप लगाइये।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।