एक शानदार ‘कंगाल’ पत्रकार का अश्लील दर्द

विष्णु नागर विष्णु नागर
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तवलीन सिंह


ब्रिटिश नागरिक मशहूर अंग्रेजी पत्रकार और लेखक आतिश तसीर के विरुद्ध बदले की कार्रवाई करते हुए उनका ‘ओवरसीज सिटीजंस ऑफ इंडिया’ कार्ड जो रद्द कर दिया गया है, उसकी मैं निंदा करता हूँ, हालांकि इस निंदा से मोदी सरकार का क्या बनता-बिगड़ता है? जाहिर है कि यह कार्ड रद्द करने के जो कारण बताए जा रहे हैं, वे फर्जी हैं, यह ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में कल और आज जो प्रकाश में आया है, उससे स्पष्ट है।

इसके विस्तार में यहां जाने की बजाय मैं इसी बहाने एक दिलचस्प चीज की ओर ध्यान दिलाना चाहता हूँ। तसीर की माँ अंग्रेजी की पत्रकार तवलीन सिंह हैं और राजनीतिक ताकत की दुनिया में एक पत्रकार के रूप में उनका जलवा रहा है और है। जलवेबाजी तभी चलती है, जब आप अपनी पत्रकारिता के जरिए एक न एक बहाने सत्ता की दुम बने रहें। तवलीन सिंह ने कांग्रेस और भाजपा के जमाने में खूब किया है और उन्हें बहुत शुभकामनाएँ कि वह अब भी ऐसा करती रहें।

खैर एक माँ के रूप में अपने प्रतिभावान बेटे के लिए उनके मन में जो दर्द है, वह समझ में आता है। हर माँ का दर्द समझना चाहिए, समझ में आना चाहिए। अपने दर्द को उन्होंने आज एक्सप्रेस के संपादकीय पृष्ठ पर व्यक्त किया है, जिसकी वह ‘कांट्रिब्यूटिंग एडीटर’ भी हैं। उसमें उन्होंने सत्ता तक अपनी गहरी पहुंच की पोल खुद खोली है।

कभी धर्मनिरपेक्षता के लिए प्राण न्यौछावर करने वाली तवलीन सिंह ने इस लेख की पहली पंक्ति में ही बताया है कि जिस मोदी का वह पाँच साल से अधिक समय तक ‘खुलेआम’ समर्थन करती रहीं, उनके काल में उनके बेटे के साथ यह क्यों हुआ? यह एक माँ का नहीं बेहद पहुंच वाली अंग्रेजी पत्रकार का दर्द है, जिसकी पहुंच अब नहीं रही। उनका फोन न गृहमंत्री ने उठाया, न प्रधानमंत्री कार्यालय के उच्च अधिकारी ने। इसमें सत्ता के समर्थन के बावजूद ‘धोखा’ होने का उनका दर्द ज्यादा बड़ा है।

उन्होंने पति से अलग होने के बाद किस ‘गरीबी’ में अपने बच्चे को पाला, इसका वर्णन भी अत्यंत ‘रोचक’ है। ब्रिटेन में किस्मत आजमाने के बाद वह 1982 में भारत लौटीं। यहाँ उन्होंने तब ‘टेलीग्राफ’ के संपादक रहे एमजे अकबर से संपर्क किया और तुरंत उन्हें नौकरी मिल गई मगर नौकरी की तनख्वाह से भी इन दो प्राणियों का गुजारा नहीं होता था। स्वाभाविक था क्योंकि साहिबा ने दिल्ली आकर यहाँ के सबसे समृद्ध इलाके ‘गोल्फ लिंक्स’ में बरसाती किराए पर ली थी।

लेकिन ठहरिए, उसका किराया भी उनकी तनख्वाह से नहीं जाता था, उनकी माँ दे देती थीं। इसके बावजूद उनका गुजारा नहीं चल पाता था। ऐसी नौबत आ जाती थी कि वह ‘कंगाल’ हो जाती थीं और ऐसे अद्भुत ‘कंगाली’ में उनकी मदद करने वालों में वसुंधरा राजे भी थीं। उनके बेटे के लिए शानदार कपड़े खरीदकर सोनिया गांधी देती थीं। ऐसी थी उनकी यह कंगाली!

आपमें से कोई इतना ‘शानदार कंगाल’ कभी रहा? कभी नहीं रहा होगा। आपकी कंगाली के दिनों में किसी सोनिया गांधी, किसी वसुंधरा राजे ने आपकी मदद की? की क्या? ये आपका नाम और अगर आप हिंदी पत्रकार रहे हैं तो आपके अखबार का नाम भी जानती थीं?

कितना अश्लील है ऐसी गरीबी पर बुक्का फाड़कर रोना, वह भी ऐसे देश में- जहाँ इसी दिल्ली में- पिछली रात न जाने कितने गरीब चुपचाप भूखे सो गये होंगे और आज भी शायद उन्हें काम नहीं मिला होगा!


लेखक हिंदी के वरिष्ठ संपादक हैं। यह टिप्पणी उनके फेसबुक पोस्ट से साभार प्रकाशित है।


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