सरकार के ख़िलाफ़ तीन ख़बरें एक साथ छापने से डर गये अख़बार!

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


खबरों के साथ पत्रकारीय न्याय करने में भी डरते हैं संपादक 

‘एक जैसी खबरें, एक साथ’ का सामान्य सा सिद्धांत है ‘

 

नोटबंदी के मामले में सुनवाई टालने की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने नाखुशी जताई – हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर यह छोटी सी खबर है। इसके साथ ही संजय राउत को जमानत मिलने की खबर है, थोड़ी सी बड़ी। अदालतों से आज एक तीसरी बड़ी खबर है, सुप्रीम कोर्ट ने एनआईए की अपील को नहीं माना कि नागरिक सुरक्षा कार्यकर्ता गौतम नवलखा राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं और कहा कि उन्हें हाउस अरेस्ट रखा जाए। तीसरी खबर हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर नहीं दिखी। कौन सी खबर किस अखबार में कहां है या नहीं है वह आज की खबरों के मामले में महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि आज गैर भाजपा राज्यों के राज्यपालों से संबंधित तीन खबरें हैं और टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में छापा है। विस्तार पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने के पीछे है। 

ऐसी खबरों के बीच हिन्दुस्तान टाइम्स ने भारत भेजे जाने के खिलाफ नीरव मोदी की अपील खारिज हो जाने की खबर को प्रमुखता दी है और वह सिंगल कॉलम में फोटो के साथ है। इंडियन एक्सप्रेस ने तो इस खबर को लीड ही बना दिया है। वही टाइम्स ऑफ इंडिया ने भी किया है। द हिन्दू में यह पहले पन्ने पर दो कॉलम में है। सबसे पहले इंडियन एक्सप्रेस – इसी अखबार में इसकी एक्सक्लूसिव (बाईलाइन वाली) खबर है जो बताती है कि दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ देकर कहा है कि अधिकारी (नौकरशाह) मंत्रियों की बात नहीं मान रहे हैं और निर्वाचित सरकार के प्रति लापरवाह हैं। अखबार ने इस खबर को कम महत्व दिया है जबकि खबर के लिहाज से अगर सच है तो बहुत गंभीर मामला है और शायद अपनी तरह का पहला। इस खबर को ऐसे देखिए कि राजा मर गया – छोटी सी खबर नहीं हो सकती है। अगर संविधान की हत्या हो ही गई है तो खबर मरीज बीमार है जैसी नहीं होनी चाहिए। 

पत्रकारिता का एक और बहुत सामान्य व जरूरी सिद्धांत है – एक जैसी खबरें एक साथ। पर सरकार के खिलाफ तीन खबरें एक साथ कैसे छापें, (मेरे अखबारों में) किसी ने नहीं छापा है और इसीलिए गोदी मीडिया कहलाता है। द टेलीग्राफ अपवाद है। अदालतों में पोल खुली शीर्षक से तीनों खबरें एक साथ छापी हैं। तीनों के तीन शीर्षक हैं और बीच में नरेन्द्र मोदी की फोटो है ताकि किसी को भ्रम न रहे कि पोल किसकी खुली है। अखबार ने अपने दैनिक कॉलम ‘कोट’ में भी अदालत की टिप्पणी, “ईडी जिस असाधारण गति से आरोपियों को गिरफ्तार करता है वह ट्रायल के मामले में कछुआ चाल भी नहीं रह जाता है” – को रखा है। संजय राउत को जमानत देते हुए एक विशेष अदालत ने यह बात कही है।

मुझे लगता है कि ये ऐसी खबरें हैं जिन्हें छापने से मना तो नहीं ही किया गया होगा और एक साथ छाप दिया जाता तो कोई बुरा भी नहीं मानता और अगर किसी को मानना होगा तो वह छोटी सी छापने पर भी मानेगा। ऐसे में पत्रकारिता के जिन आदर्शों का पालन किया जा सकता है उनका किया जाना चाहिए और तभी गोदी मीडिया का दाग हटने की संभावना बनेगी। पर अखबारों को या किसी और को इसकी कोई परवाह नहीं है। अगर सांसद को बिना बात इतने दिनों तक जेल में रखा जा सकता है तो आप सिर्फ इसलिए बाहर हैं कि आप पर नजर नहीं गई है। इसलिए बचे रहने में ही भलाई है और खबरों के साथ पत्रकारीय अन्याय का कारण शायद यही हो।  

टाइम्स ऑफ इंडिया में राउत को जमानत मिलने की खबर पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर फोल्ड से नीचे तीन कॉलम में है। इसके साथ बाकी खबरों की जगह, जमानत के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील पर सुनवाई आज छपी है। गौतम नवलखा और नोटबंदी से संबंधित खबरें पहले पन्ने पर है। पहली डबल कॉलम में और दूसरी सिंगल कॉलम में। लेकिन उसके साथ बाकी की खबरें नहीं हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया ने अदालतों की खबरें अगर पहले पन्ने पर एक साथ नहीं छापी है तो तीन राज्यपालों से संबंधित खबरें पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है और उसका विस्तार पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने के पीछे। बेशक, यह संपादकीय विवेक का मामला है और पहले पन्ने पर जो खबरें हैं उसकी चर्चा के बिना इस चुनाव पर टिप्पणी अनुचित होगी पर तथ्य तो तथ्य हैं। वैसे यह अखबार घोषित रूप से विज्ञापनों के धंधे में है। इसलिए मुझे कोई शिकायत नहीं है। वैसे भी इसकी कीमत रद्दी से वसूल हो जाती है। 

द हिन्दू में भी संजय राउत की खबर तो बड़ी सी है, नीरव मोदी वाली खबर भी दो कॉलम में है लेकिन भारतीय अदालतों की बाकी की दो खबरें नहीं हैं। दूसरी ओर, आजम खान की एक खबर दो कॉलम में पहले पन्ने पर है। इसी के साथ द हिन्दू में आज एक सरकारी खबर है और इस सरकारी विज्ञप्ति पर दूसरे अखबारों में बाइलाइन तो है ही पहले पन्ने पर भी है। इस खबर के अनुसार केंद्र सरकार ने टीवी चैनल्स के लिए नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इसके अनुसार, सामाजिक तौर पर प्रासंगिक विषयों को दिखाना जरूरी होगा। भूत-प्रेत, ग्रहण, हिन्दू मुसलमान और गाय गोबर की खबर दिखाने वाले चैनल सामाजिक तौर पर प्रासंगिक किन मुद्दों को उठाते हैं वह देखने वाली बात होगी। वैसे भी जब प्रधानमंत्री प्रेस कांफ्रेंस नहीं करते और मन की बात करते हैं तो उनकी सरकार किस अधिकार से ऐसे नियम बना सकती है – मैं नहीं जानता। पर वह अलग मुद्दा है।  

यही नहीं, आज राज्यपालों के खिलाफ जो चार खबरें हैं उनमें तीन इंडियन एक्सप्रेस में एक साथ है। चौथी, द टाइम्स ऑफ इंडिया में बाकी दो खबरों के साथ है। यानी यहां दिल्ली वाली खबर पहले पन्ने पर नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस में तीन खबरें पहले पन्ने पर एक साथ छपी हैं भले इनमें एक उपराज्यपाल से सबंधित है और शीर्षक नौकरशाहों पर है। मामला दिल्ली का है और इसकी चर्चा ऊपर कर चुका हूं। आप जानते हैं कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की निर्वाचित सरकार को केंद्र की भाजपा सरकार उपराज्यपाल (और सीडी, ईडी) के जरिए कैसे परेशान करती रही है। वैसे तो यह कोई नया मामला नहीं है पर पश्चिम बंगाल के राज्यपाल को अपनी ऐसी ही भूमिका के लिए तरक्की मिल चुकी है और ऐसे में गैर भाजपा शासित राज्यों को जबरन डबल इंजन वाला बनाने की केंद्र की कोशिशें गौरतलब जरूर हैं। खासकर तब जब प्रधानमंत्री दबाव और अभाव की बात करते हैं और 2000 के नोट गायब है। एक देश एक चुनाव पर भी आज खबर है (टीओआई) कि केंचुआ इसके लिए प्रशासनिक तौर पर तैयार है अंतिम निर्णय विधायिका को लेना है।  

ऐसे में यह कहने की जरूरत नहीं है कि इंडियन एक्सप्रेस ने इन खबरों या टाइम्स ऑफ इंडिया ने राज्यपाल वाली खबरों को वैसे नहीं छापा है जैसे द टेलीग्राफ ने छापा है। पर खबर यह है कि गैर भाजपा राज्यों के राज्यपाल सक्रिय राजनीति कर रहे हैं। इनमें तेलंगाना की राज्यपाल तमिलसाई सौंदर्यराजन का आरोप गंभीर (या दिलचस्प) है कि वे ‘महसूस करती हैं’ कि उनके फोन टैप किए जा रहे हैं और राजभवन को विधायक खरीदने के विवाद में घसीटा जा रहा है। तेलंगाना का विधायक खरीदने का मामला आप जानते ही है और डबल इंजन राज्य में भाजपा की कार्यशैली का उदाहरण। ऐसे में राज्यपाल का यह आरोप बेशक महत्वपूर्ण है लेकिन इंडियन एक्सप्रेस ने इसे बाकी खबरों के साथ क्यों नहीं छापा यह सवाल अपनी जगह है। हालांकि, जवाब में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है।  

इसमें कोई दो राय नहीं है कि भक्ति नहीं होती तो दिल्ली सरकार की इंडियन एक्सप्रेस की खबर आज दिल्ली के अखबारों में लीड होनी चाहिए थी और भले ही यह दिल्ली सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल शपथपत्र पर आधारित है – एक्सप्रेस की एक्सक्लूसिव और बाइलाइन स्टोरी है। ऐसे में यह मानना पड़ेगा कि बाकी अखबारों को यह खबर मिली ही नहीं होगी पर वह आज के समय में रिपोर्टिंग की अपनी समस्या है और अलग विषय। इसपर माथा पच्ची करने की जरूरत नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस ने एक जैसी खबरों के इस दूसरे समूह में तमिलनाडु की खबर को प्राथमिकता दी है और तीन कॉलम का शीर्षक है, “विधेयकों पर कुंडली मारे, विधायिका पर सवाल उठाने वाले राज्यपाल को बर्खास्त किया जाए :द्रमुक”। गैर भाजपा राज्य के राज्यपाल से संबंधित तीसरी खबर केरल की और वहां के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान से संबंधित है। 

इंडियन एक्सप्रेस में यह तमिलनाडु की खबर के बीच में सिंगल कॉलम में छपी है। शीर्षक है, केरल सरकार एक अध्यादेश लाकर राज्यपाल को राज्य के विश्वविद्यालयों के चांसलर (कुलाधिपति) के पद से हटाएगी। द हिन्दू में यह खबर लीड है। चार कॉलम में दो लाइन के शीर्षक के साथ और शीर्षक वही है जिसे इंडियन एक्सप्रेस ने एक कॉलम में निपटा दिया है। द हिन्दू ने उपशीर्षक से बताया है कि जाने-माने अकादमिक विशेषज्ञों को विश्वविद्यालयों का चांसलर बनाया जाएगा। अगर राज्यपाल अध्यादेश लागू करने से मना करते हैं तो राज्य सरकार उन्हें हटाने के लिए विधानसभा में विधेयक ला सकती है। इससे डबल इंजन की भिडंत का अंदाजा लगता है और शायद इसीलिए सिंगल कॉलम में है। खबर के लिए भिड़ंत का इंतजार तो करना ही चाहिए।      

 

 लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।