पहला पन्ना: मोदीजी ने कहा था कि सीमा में कोई नहीं घुसा, अख़बार बता रहे हैं कि सैनिक ‘वापस’ गये!

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


आज सभी अखबारों में भारत-चीन सीमा से सैनिकों की वापसी की खबर प्रमुखता से है। इंडियन एक्सप्रेस ने इस सरकारी खबर को सरकारी अखबार की  तरह पांच कॉलम में छापा है। आज बाकी के तीन कॉलम में विज्ञापन है। कल दो ही कॉलम में विज्ञापन था। इस तरह से इंडियन एक्सप्रेस का एक मानक हो गया लगता है कि सरकार के खिलाफ खबर छापनी ही पड़े तो दो कॉलम में लीड और सरकारी खबर हो तो विज्ञापन के बाद पांच या छह कॉलम जो मिले, उसमें तान दिया जाए। इसमें कोई दो राय नहीं है कि अखबार किसी भी खबर को प्रमुखता दे सकता है और प्रमुख बना सकता है लेकिन विज्ञापनों के बीच सरकारी खबरों को बाकी जगह में फैला देना अखरता है। खासकर तब जब खबर भारत-चीन सीमा विवाद से संबंधित हो और सैनिकों के वापस जाने की  खबर अनंतवीं बार छप रही हो। 

आपको याद होगा कि 19 जून 2020 को प्रधानमंत्री ने एक मशहूर घोषणा की थी, “न वहां कोई हमारी सीमा में घुसा हुआ है, न ही हमारी कोई पोस्ट किसी दूसरे के कब्जे में है।” इससे पहले 15-16 जून की रात पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में तक़रीबन 14,000 फ़ुट ऊंचाई पर हुई चीनी और भारतीय सेना की भिड़ंत में मारे जाने वालों में अधिकतर भारतीय फ़ौजी बिहार रेजिमेंट के थे। यह अलग बात है कि बिहार चुनाव से पहले और अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद के इस हमले में शहीद हुए बिहार रेजीमेंट के कमांडिग अफसर से लेकर दूसरे सैनिकों में बिहार निवासियों या बिहार मूल के सैनिकों की संख्या ज्यादा नहीं थी। सवाल उठता है कि पुलवामा से लेकर बिहार चुनाव के समय चीन सीमा पर और बंगाल चुनाव के दौरान भी सुरक्षा बलों पर हमला कैसे हो जाता है इसपर कुछ नहीं बताने वाला हमारा मीडिया जो सेना आई नहीं उसके जाने की खबर बार-बार इतनी प्रमुखता से क्यों छापता है?   

ठीक है कि सरकारी खबर को सच मान लिया गया लेकिन जो नहीं बताया गया वह पूछा क्यों नहीं जा रहा है। कम से कम यही कि चीन विवाद का संबंध बिहार चुनाव से था या कश्मीर के बंटवारे से? इस बार खबर या शीर्षक में सावधानी जरूर बरती गई है और यह बताया गया कि सैनिक एक अन्यटकराव बिन्दु से वापस लौटे हैं। आपको याद होगा, कि चीनी सैनिक भारतीय सीमा में आए इसे स्वीकार नहीं किया गया पर उनके वापस जाने की खबर कितनी बार छप चुकी है इसका हिसाब अखबार वालों के पास भी नहीं है या हो तो बता नहीं रहे हैं। कायदे से आज जब सरकारी बयान पर खबर छपी है तो बयान में ही होना चाहिए था और नहीं था तो अखबारों को बताना चाहिए था कि इससे पहले कहां-कहां से सेना(एं) वापस हो चुकी हैं। वहां कब्जा या टकराव कब, किन परिस्थितियों में हुआ था और तब क्या खबर छपी थी या नहीं छपी थी। कब्जे (या टकराव) को स्वीकार नहीं करना और कब्जा खाली हो गया – सूचना देने का क्या मतलब है? लेकिन प्रचारकों की सरकार जो चाहे वह मीडिया को करना ही पड़ता है। जब सब छाप रहे हैं तो नहीं छापने वाला देशद्रोही हो जाएगा जबकि पहले कब्जे की सूचना देना देशद्रोहथा। गोदी वालों ने यह स्थिति खुद नहीं बनाई है बल्कि प्रचारकों ने उन्हें इस स्थिति में पहुंचा दिया है और निश्चित रूप से यह उनकी सफलता है और इस पर भी कायदे की खबर हो सकती है। पर करे कौन

द टेलीग्राफ ने इस खबर के शीर्षक से ही बता दिया है कि खबर क्या है। शीर्षक है, “एक और बिन्दु पर टकराव खत्म : सरकार।” इस खबर में कहा गया है, भारत और चीन की सेना टकराव वाले एक और बिन्दु से अलग हो गई है। इसे पैट्रोलिंग प्वाइंट 17ए के नाम से जाना जाता है। यह पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर गोगरा पोस्ट बी कहा जाता है। अखबार ने अपने सूत्रों के हवाले से लिखा है, नवीनतम डिसएंगेजमेंट करार एक बफर जोन बनाने के बाद पूरा हुआ। यह भारत के दावे वाले क्षेत्र में है और बिना सैनिकों का क्षेत्र होगा। अखबार ने लिखा है, हालांकि, रक्षा मंत्रालय के बयान में इसका जिक्र नहीं है। अखबार ने बताया है कि यह गए साल गलवान घाटी की हिंसा के बाद तीसरा घोषित डिसएंगेजमेंट है। द हिन्दू में आज यह खबर सेकेंड लीड है। वार्ता के बाद भारत चीन ने गोगरा से सैनिकों  को वापस बुलाया। 

हिन्दुस्तान टाइम्स में भी यह खबर लीड है, सेना, चीनी पीएलए ने गोगरा से जवानों को वापस बुलाया। इसमें उपशीर्षक है, यह कदम पांगोंग – त्सो से वापसी के छह महीनों बाद उठाया गया है। हॉट स्प्रिंग और देपसांग टकराव के बिन्दुओं पर मुद्दे अभी निपटाए जाने हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि, चुनावी प्रचार में घुसकर मारूंगाजैसी बात करने वाले के सत्ता में रहते हुए यह सब होना साधारण नहीं है और इस पर नहीं के बराबर चर्चा करने वाले अखबारों में सरकारी विज्ञप्ति को इतनी जगह मिलना हेडलाइन मैजमेंट का हिस्सा हो सकता है या है ही। टाइम्स ऑफ इंडिया का शीर्षक है, भारत, चीन 15 महीने बाद टकराव के एक प्रमुख बिन्दु पर अलग हुए। यहां लिखा है कि 5 किलोमीटर का एक बफर जोन बनाया। अखबार ने अपनी मुख्य खबर से संबंधित खास बिन्दुओं का शीर्षक बनाया है, पर अभी भी गोगरा – हॉट स्प्रिंग्स, देपसांग में कोई हल नहीं। 

कहने की जरूरत नहीं है कि जब कब्जा हुआ ही नहीं था तो खत्म हुआ की इतनी कहानियां बेशर्म हेडलाइन मैनेजमेंट के अलावा कुछ नहीं हैं। आपको याद होगा कि भारत ने पाकिस्तान पर हमला कर 300 आतंकवादियों को मार गिराने का दावा किया था तो भारतीय अखबार ही लिख रहे हैं कि पाकिस्तान ने पत्रकारों के दल को उस इलाके का दौरा नहीं करवाया है। अब चीन का कब्जा स्पष्ट रूप से बताना तो छोड़िए, सरकारी बयान से जो सवाल उठते हैं उनका जवाब भी नहीं है फिर भी इंडियन एक्सप्रेस ने इसे पांच कॉलम में फैला दिया है। यही नहीं, लाल स्याही में फ्लैग शीर्षक है, गोगरा पोस्ट पैट्रोलिंग प्वाइंट 17ए पर टकराव खत्म। मुख्य शीर्षक है, भारत, चीन टकराव के एक और बिन्दु से अलग हुए, सैनिक स्थायी आधार पर वापस पहुंचे। यही नहीं, अखबार ने यह भी बताया है, अस्थायी संरचनाएं तोड़ी गईं इस बात पर सहमति हुई कि कोई एकतरफा बदलाव नहीं किया जाएगा। यहां बताया गया है कि यह जानकारी भारतीय सेना ने दी।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।