जब विपक्ष प्रधानमंत्री के बयान की मांग कर रहा है
अखबार बता रहे हैं कि अमित शाह संसद में चर्चा के लिए तैयार हैं और कह रहे हैं, विपक्ष ऐसा नहीं चाहता है
आज ये खबरें पढ़िये और तब तय कीजिये कि दोनों में कौन सही है
द टेलीग्राफ में आज पहले पन्ने पर प्रकाशित तस्वीर में एक बैनर नजर आ रहा है जिसपर लिखा साफ पढ़ा जा सकता है, इंडिया डिमांड्स पीएम स्टेटमेंट इन बोथ हाउसेज (इंडिया दोनों सदनों में प्रधानमंत्री के बयान की मांग करता है)। अखबार ने पीटीआई की इस फोटो का कैप्शन दिया है, “आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह (मेरून नेहरू जैकेट में) जिन्हें उनके ‘बेलगाम व्यवहार’ के लिए राज्यसभा अध्यक्ष जगदीप धनखड़ ने मानसून सत्र की बाकी अवधि के लिए निलंबित कर दिया है और इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस) के अन्य सदस्यों ने मणिपुर में हिंसा के खिलाफ एक प्रदर्शन किया। अखबार में इससे संबंधित खबर अंदर के पन्ने पर होने की सूचना है और पहले पन्ने पर लीड का फ्लैग शीर्षक है, मणिपुर से त्रासद विवरण निकलकर आ रहे हैं, मुख्य शीर्षक है, पुलिस वालों से छीन कर लिन्च कर दिया गया (भीड़ ने मार डाला)। दूसरी खबर मणिपुर में चल रही हिन्सा के दौरान कुकी-जो महिलाओं के खिलाफ हिंसा के 14 कथित मामलों की सूची पर आधारित खबर है। इनमें 4 मई की घटना भी है जिसमें दो महिलाओं को नंगा कर घुमाया गया और उनके साथ यौन दुर्व्यवहार किया गया था। यह सूची इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) ने जारी की है। पर दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर यह खबर नहीं है। ना ही इंडिया के इस प्रदर्शन की खबर अथवा तस्वीर पहले पन्ने पर है।
अंग्रेजी के मेरे बाकी चार अखबारों में लीड या सेकेंड लीड, अमित शाह का यह दावा है कि वे संसद में मणिपुर की चर्चा करने के लिए तैयार हैं पर विपक्ष ऐसा नहीं चाहता है (टाइम्स ऑफ इंडिया)। आप जानते हैं कि सरकार यही प्रचारित करना चाह रही है। सोशल मीडिया पर यही प्रचारित किया जा रहा है और सांसदों मंत्रियों के साथ व्हाट्सऐप्प फॉर्वार्ड भी ऐसे ही हैं। पर विपक्ष की खबर पहले पन्ने पर नहीं है। आज गनीमत यह है कि अमित शाह का यह दावा भी हिन्दी के मेरे दोनों अखबारों में नहीं है और टाइम्स ऑफ इंडिया में यह अखबार के पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर लीड है। द हिन्दू का शीर्षक भी ऐसा ही है, शाह ने संसद से कहा, सरकार मणिपुर पर चर्चा के लिए तैयार है। उपशीर्षक है, विपक्ष के सांसद इस मांग पर कायम हैं कि, मणिपुर पर चर्चा शुरू होने से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राज्य की स्थिति पर अपने स्तर पर एक बयान दें, वे संसद के बीच में आ गये, प्लेकार्ड लिये हुए थे, अध्यक्ष ने बाद में कार्यवाही की दिन भर के लिए स्थगित कर दी। मणिपुर में हिंसा की कोई खबर यहां पहले पन्ने पर नहीं है। आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह को निलंबित किये जाने की खबर जरूर सिंगल कॉलम में है।
इंडियन एक्सप्रेस का फ्लैग शीर्षक है, मणिपुर को लेकर गतिरोध कायम। मुख्य शीर्षक है, शाह ने कहा चर्चा के लिए तैयार हैं, विपक्ष प्रधानमंत्री के बयान पर दृढ़ है। इस खबर का इंट्रो है, विरोध बढ़ा क्योंकि आप सांसद संजय सिंह को राज्य सभा से निलंबित किया गया, विपक्ष आज रणनीति बनाने के लिए बैठक करेगा। एक अलग खबर का शीर्षक है, मणिपुर पर फोकस, भाजपा का शिखर नेतृत्व हडबड़ी में, असम के मुख्यमंत्री गृहमंत्री से मिले। इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर मणिपुर की एक और खबर है, (क्योंकि विज्ञापन नहीं है)। इसके अनुसार इंफाल के एक शिविर में 32 प्रसव हो चुके हैं और इस लिहाज से यह नई, भावी मांओं के लिए स्वर्ग है।
हिन्दी के अखबारों में नवोदय टाइम्स में मणिपुर की एक खबर टॉप पर बॉक्स में है। इसका शीर्षक है, “मणिपुर : मंत्री के घर पथराव, मकान स्कूल फूंके”। इसके साथ सिंगल कॉलम की एक खबर कोलकाता डेट लाइन से है। इसका शीर्षक है, “पैते वेंग क्षेत्र के लोगों के लिए ‘कहर’ बनी 3 मई की शाम”। दो बुलेट प्वाइंट्स हैं : पहला, विदेश राज्य मंत्री के घर पर दो माह में दूसरा हमला और दूसरा, चुराचांदपुर में हमलावरों ने चलाई गोलियां, बम फेके। जाहिर है, अभी न शुरुआती दिनों की कहानियां पूरी हुई हैं और ना तक हिंसा थमी है। हालत यह है कि भाजपा नेताओं के घर पर भी हमले हो रहे हैं। और यह सब आतंकवाद रोकने और दंगा न होने देने के भाजपा के तमाम दावों के बावजूद हो रहा है। कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था, ‘गलती से भी कांग्रेस आई तो पूरा कर्नाटक दंगे से ग्रस्त हो जाएगा’ कर्नाटक में अभी तक ऐसा तो नहीं हुआ है पर जहां भाजपा शासन में है वहां जनजातिय हिंसा रुक ही नहीं रही है। दूसरी ओर, मामूली उद्घाटन और रेल सेवाओं की शुरुआत भी प्रधानमंत्री करते हैं ऐसे में उनसे बयान की अपेक्षा क्यों नहीं की जाए और विपक्ष की मांग ना गलत है और ना ऐसी कि उसे पहले पन्ने पर जगह तो नहीं ही दी जाए, उसके बिना अमित शाह के आरोप छाप दिये जाएं। पूर्व तड़ी पार को गृहमंत्री बनाना निश्चित रूप से सत्तारूढ़ दल और प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है। उनका कहा, गृहमंत्री का कहना भी है लेकिन उनके आरोप को बिना जवाब या दूसरे पक्ष की बात रखे बिना प्रकाशित-प्रचारित करना पत्रकारिता की दृष्टि से सही नहीं है।
वह भी तब जब आज तक डॉट इन की एक खबर के अनुसार, विपक्षी दलों ने मणिपुर के मामले पर चर्चा को लेकर लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों को नोटिस दिया है। हालांकि लोकसभा में कोई झगड़ा नहीं है, लड़ाई राज्यसभा में है, जहां नियम 176 और 267 के तहत मणिपुर के हालातों पर चर्चा के लिए नोटिस दिए गए थे। विपक्ष और सरकार अपने-अपने रुख पर अड़े हुए हैं। 22 जुलाई 2023 की इस खबर के अनुसार विपक्षी दलों ने मणिपुर के मामले पर चर्चा को लेकर लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों को नोटिस दिया है। लोकसभा में विपक्षी दलों ने नियम 193 के तहत नोटिस दिया है। इस पर सरकार बहस के लिए सहमत है। लड़ाई राज्यसभा में है, जहां नियम 176 और 267 के तहत मणिपुर की स्थिति पर बहस के लिए नोटिस दिए गए थे। विपक्ष नियम 267 के तहत लंबी चर्चा की मांग कर रहा है, जबकि सरकार ने कहा कि वह केवल नियम 176 के तहत छोटी चर्चा के लिए सहमत है। आप समझ सकते हैं कि वास्तविक स्थिति क्या है और सरकार या प्रचारक क्या प्रचारित कर रहे हैं।
हिन्दुस्तान टाइम्स में आज इस खबर का शीर्षक है, “संसद में गतिरोध के बीच अमित शाह ने कहा : मणिपुर पर बोलूंगा“। समझना मुश्किल नहीं है कि अमित शाह क्या कह रहे हैं, क्यों कह रहे हैं और अखबारों ने प्रमुखता से क्यों छापा है। बाकी कसर व्हाट्सऐप्प फॉर्वार्ड और सोशल मीडिया पोस्ट से निकल जाएगी। कहने की जरूरत नहीं है कि संसद की कार्यवाही अभी तक ऐसे ही चलती रही है और अदालतों में सरकार के इतने मामले हैं कि आम आदमी से संबंधित मामले तो लटके ही हुए हैं लोगों को लगता है कि अदालत सरकार के खिलाफ है और सोशल मीडिया ट्रोल सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ भी बोलने से नहीं हिचकते हैं। एक तरफ अदालतों के खिलाफ माहौल है, राहुल गांधी को यह पूछने के लिए सजा हो चुकी है कि सभी चोरों के नाम मोदी क्यों हैं और दूसरी ओर अपराधियों बलात्कारियों को छूट है, राहत मिल जा रही है। मणिपुर के मामले में आप जानते हैं कि अपराधियों को वीडियो लीक होने और सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद पकड़ा गया। औऱ निश्चित रूप से यह सब कोई मामूली बात नहीं है। फिर भी प्रधानमंत्री 78 दिनों बाद जब मणिपुर पर बोले तो राजस्थान और छत्तीसगढ़ को जोड़ दिया। अब पश्चिम बंगाल में वैसी ही घटना होने के मामले बताये जा रहे हैं और आज नवोदय टाइम्स में ऐसी एक खबर पहले पन्ने पर है लेकिन इसका मतलब यह नहीं हो सकता है कि केंद्र और मणिपुर की भाजपा सरकार से यह नहीं पूछा जाए कि 4 मई की घटना के अपराधी वीडियो वायरल होने और सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद क्यों पकड़े गये? प्रचार से माहौल ऐसा बना दिया गया है कि सरकार समर्थकों को लग रहा है कि सुप्रीम कोर्ट मणिपुर के मामले में ही सख्त है पश्चिम बंगाल के मामले में नहीं। तथ्य यह है कि पश्चिम बंगाल के मामलों में कार्रवाई हो रही है और मणिपुर के मामले में नहीं हुई थी।
प्रधानमंत्री से बयान की मांग इसलिए भी है कि हिंसा शुरू होने के बाद मणिपुर के कई विधायक प्रधानमंत्री से मिलना चाहते थे, पर नहीं मिल पाये। द वायर डॉट इन की एक खबर के अनुसार, हिंसाग्रस्त मणिपुर के तीन प्रतिनिधिमंडल पीएम मोदी से मिलने में विफल रहे। मणिपुर के दो भाजपा विधायक प्रधानमंत्री से मिलने के लिए 15 जून से नई दिल्ली में डेरा डाले हुए थे। प्रधानमंत्री उनसे मिले बिना ही 20 जून को अमेरिका चल गए। उधर, मणिपुर में प्रधानमंत्री के लापता होने के पोस्टर लगे थे। ऐसे में मुझे भी नहीं लगता कि जवाबदेह गृहमंत्री हैं या अल्प अवधि की चर्चा में पूरा जवाब मिलेगा। हां, सरकार के लिए खानापूर्ति करना जरूर संभव और आसान हो जाएगा। मणिपुर पर प्रधानमंत्री से मिलना चाहने वाले तीन प्रतिनिधिमंडल में दो सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के और एक राज्य कांग्रेस का था। ऐसे में प्रधानमंत्री से यह सवाल तो बनता ही है कि उन्होंने किस व्यस्तता में, किस कारण से या क्या सोचकर मिलने की जरूरत नहीं समझी और यह जवाब कोई दूसरा कैसे और क्यों दे सकता है। किसी और को क्यों देना चाहिए जब प्रधानमंत्री ने प्रधानसेवक और चौकीदार होना भी स्वीकार किया है, पुलवामा के बाद पहली बार के मतदाताओं से वोट मांगा था।
यहां मणिपुर से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक पाओलीनलाल हाओकिप का बयान भी उल्लेखनीय है। दिल्ली के अखबारों में यह पहले पन्ने पर नहीं है लेकिन राजस्थान के एक कांग्रेस विधायक का बयान जरूर प्रमुखता से है। जाहिर है, हिन्दी पट्टी के अखबार हिन्दी पट्टी की खबर को महत्व देंगे लेकिन मणिपुर से संबंधित तथ्यों पर बात हो रही है तो हिन्दुस्तान की खबर का उल्लेख कर रहा हूं। 23 जुलाई 2023 की इस खबर का शीर्षक है, ‘मणिपुर हिंसा पर देरी से आया पीएम मोदी का बयान’, भाजपा विधायक ने मुख्यमंत्री पर भी उठाए सवाल। उन्होंने कहा है, ”हमने जनता के प्रतिनिधि के रूप में प्रधानमंत्री से मिलने का समय मांगा था, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। हम आज तक उन्हें स्थिति की गंभीरता से अवगत कराने के अवसर का इंतजार कर रहे हैं।” हाओकिप उन 10 कुकी विधायकों में शामिल हैं जिन्होंने एक पत्र में एन बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली राज्य सरकार पर आदिवासी समूह की रक्षा करने में गंभीर विफलता का आरोप लगाया था। उन्होंने प्रदेश में एक अलग प्रशासन की मांग की थी। उन्होंने आरोप लगाया कि “3 मई 2023 को चिन-कुकी-मिजो-जोमी पहाड़ी आदिवासियों के खिलाफ बहुसंख्यक मैतेई लोगों द्वारा शुरू की गई हिंसा ने राज्य को विभाजित कर दिया है। उन्हें मणिपुर सरकार का मौन समर्थन प्राप्त है।” इसके बावजूद उन्होंने पूछा है, “क्या राज्य सरकार को ऐसी अमानवीय क्रूरताओं पर कार्रवाई नहीं करनी चाहिए?” इसके बावजूद क्या आपको लगता है कि संसद में सरकार सही है और विपक्ष गलत? और अखबार जो बता रहे हैं वह सरकार का प्रचार नहीं है?
संजय कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।