आज भी सभी अखबारों में लीड अलग है। अधपन्ने वाले दो अखबारों में अधपन्ने पर तो संसद की दो अलग खबरें हैं लेकिन मुख्य लीड संसद की खबर नहीं है। पहले पन्ने पर आधे में विज्ञापन के साथ आज टाइम्स ऑफ इंडिया हॉकी मय हुआ पड़ा है। हॉकी से संबंधित कई खबरों के साथ छोटी सी खबर तीन कॉलम में है जिसका शीर्षक है, प्रधानमंत्री ने कहा, पांच अगस्त एक ऐतिहासिक दिन है। इसमें बताया गया है कि प्रधानमंत्री ने भारतीय पुरुष हॉकी टीम के कप्तान को फोन कर बधाई दी। इसका वीडियो कल सोशल मीडिया पर वायरल था लेकिन इससे संबंधित खास बात यह है कि 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 खत्म हुआ था और 5 अगस्त 2020 को मंदिर का शिलान्यास हुआ था। दोनों ही काम प्रधानमंत्री के कर-कमलों से हुआ और ऐसा प्रचारित किया जाता रहा है कि उनके अलावा कोई और नहीं कर सकता था। फिर भी प्रधानमंत्री ने पांच अगस्त 2021 को हॉकी में जीत के बाद ‘ऐतिहासिक दिन‘ कहा और यह भी कि इसे हॉकी में भारतीय टीम की जीत के लिए याद रखा जाएगा। वह भी तब जब ना यह जीत पहली है ना ही सर्वश्रेष्ठ। हॉकी में इस जीत की राजनीति विपक्ष पर सेल्फ गोल की कोशिश के उनके आरोप से समझ में आती है। उन्होंने कहा कि विपक्ष संसद चलने नहीं दे रहा है जबकि भारत आगे बढ़ने को उत्सुक है। गाय, गोबर, गोमूत्र प्रयासों की इस राजनीति को मीडिया हवा दे रहा है।
दो साल पुरानी ‘एक्सक्लूसिव’
इंडियन एक्सप्रेस ने 5 अगस्त को ऐतिहासिक बनाने वाली एक खबर दो साल बाद पहले पन्ने पर छापी है। इससे पता चलता है कि गोदी मीडिया के जमाने में दो साल पुरानी खबर भी पहले पन्ने लायक बनी रहती है। खबर का शीर्षक है, केंद्र के 5 अगस्त के कदम से पहले की रात भाजपा राज्यसभा में कांग्रेस के प्रमुख नेता के पास पहुंची, अगली सुबह उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इस दिन राज्यसभा के तीन सदस्यों ने इस्तीफे दिए थे। ये कांग्रेस के भुवनेश्वर कलीता, समाजवादी पार्टी के सुरेन्द्र सिंह नागर और संजय सेठ। यह एक सोची समझी योजना थी ताकि अगले दिन की विधायी योजना को सहजता पूर्वक पास कराया जा सके। अखबार ने लिखा है, अब यह पता चला है कि राज्य सभा के इन तीन सदस्यों से सत्तारूढ़ दल और ‘सिस्टम‘ ने संपर्क किया था। एक सरकारी अधिकारी असम के राजनेता के साथ दिल्ली में कलीता के घर पहुंचे और उन्हें कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने के लिए मनाया। सत्ता प्रतिष्ठान ने इसके लिए कलीता के करीबी रिश्तेदारों को भी जोड़ रखा था और उन्हें मनाने के लिए इन्हें असम से दिल्ली लाया गया था।
जासूसी पर खबरें
जासूसी पर सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा वह टाइम्स ऑफ इंडिया में अधपन्ने पर भी लीड नहीं है। इसे द हिन्दू ने लीड बनाया है, “आरोप गंभीर हैं, जासूसी मामले में सच्चाई बाहर आनी चाहिए सुप्रीम कोर्ट।”टाइम्स ऑफ इंडिया में इसी खबर का शीर्षक है, पेगासुस एक गंभीर मामला है पर याचिकाकर्ता दो साल चुप क्यों रहे, सुप्रीम कोर्ट ने पूछा। कहने की जरूरत नहीं है कि किसी भी मामले में कई तरह की बातें होती हैं और यह फैसला नहीं है और ना इसका अंतिम फैसले से संबंध है। लेकिन जो खबर छपती है उससे पाठक राय बनाता है। दोनों बात सही होते हुए भी पेगासुस मामले में सुप्रीम कोर्ट की राय बिल्कुल अलग लगती है। दोनों को पढ़कर पाठक भी अलग राय बनाएगा। ऐसे में खबर को जितनी प्राथमिकता देनी हो वैसा शीर्षक चुन लीजिए। कई बार यह काम रिपोर्टर करता है और यह ‘खेल‘ डेस्क पर भी होता है। लेकिन पाठक के लिए तो वही महत्वपूर्ण है जो अखबार में छपता है और इस लिहाज से द टेलीग्राफ हमेशा अलग होता है।
…. और सम्मान में कमी में स्वर्ण
द टेलीग्राफ का लीड का शीर्षक टाइम्स ऑफ इंडिया के करामात को धो देता है। अखबार ने जो लिखा, बताया और दिखाया है वह हॉकी में कांस्य और कुश्ती में रजत पदक को तो गौरव कहा है और बताया है कि खराब छवि बनाने की बात हो तो हमें स्वर्ण पदक मिला है। अंग्रेजी में जो कहा गया है उसका शाब्दिक अनुवाद होगा …. और सम्मान में कमी में स्वर्ण लेकिन भाव यही है कि प्रधानमंत्री ने देश की और अपनी जो छवि बनाई है वह यही है। आप इससे असहमत हो सकते हैं और यह अखबार की राय हो सकती है पर खेल उतना बुरा नहीं है जितना टाइम्स ऑफ इंडिया ने पेगासुस मामले को कमजोर दिखाने के लिए किया है। यह देर से अदालत जाने के लिए याचिकाकर्ताओं को ही दोषी ठहराने जैसी कोशिश की है। पांच अगस्त को ऐतिहासिक बताने की जेपी यादव की खबर का अपना अंदाज है और वह विज्ञापन पाने को आकुल-व्याकुल अखबार का कोई नौसिखुआ रिपोर्टर नहीं लिख सकता है। द टेलीग्राफ भी आज आधा पन्ना विज्ञापन से भरा है लेकिन संसद की टाइम्स ऑफ इंडिया की अधपन्ने की लीड और द हिन्दू की मुख्य लीड यहां पहले पन्ने पर है। इस तरह, द टेलीग्राफ ने प्रधानमंत्री के बयान को देखने का एक नजरिया दिया है तो टाइम्स ऑफ इंडिया ने सेल्फ गोल का भोंपू बजाया है। पसंद अपनी-अपनी (या मजबूरियां अपनी-अपनी) मैं तो बस रेखांकित करता हूं और चाहता हूं कि द टेलीग्राफ भी अधपन्ना शुरू करे और उसे रोज उसके लिए विज्ञापन मिले। पहला पन्ना खबरों के लिए खाली रहे।
इंडियन एक्सप्रेस आज पूरी तरह प्रचारक की भूमिका में है। खबर के साथ उसका पूरा इतिहास-भूगोल और विस्तार है जो आजकल अखबारों में कम ही होता है। टाइम्स ऑफ इंडिया में अधपन्ने पर संसद की जिस खबर को चार कॉलम में छापा गया है उसे हिन्दुस्तान टाइम्स ने पहले पन्ने पर दो कॉलम में निपटा दिया है। द टेलीग्राफ में यह सिंगल कॉलम में है और द हिन्दू में दो कॉलम में दो कॉलम में लीड के नीचे है। इसी खबर को इंडियन एक्सप्रेस ने छह कॉलम में छापा है। बाद के दो कॉलम में विज्ञापन है वरना कुछ और हो सकता था। दो लाइन के मुख्य शीर्षक के साथ दो अलग खबरें तीन-तीन कॉलम में है जिनका शीर्षक दो लाइनों में है। एक मुख्य खबर है तो दूसरा एक्सप्रेस एक्सप्लेन्ड। लाल स्याही में फ्लैग शीर्षक है, लोकसभा में कराधान कानून (संशोधन) विधेयक पेश। मुख्य शीर्षक है, वैश्विक निवेशकों को संकेत देते हुए सरकार ने विवादास्पद रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स पॉलिसी को खत्म करने की शुरुआत की।
इतना बढ़िया फैसला, इतनी देर से और इतना प्रचार
इसके साथ की खबर का शीर्षक है, वोडाफोन, केयर्न विवादों के बीच यूपीए के कानूनों को बदलने की लंबे समय से लंबित मांग पर केंद्र की प्रतिक्रिया। एक्सप्रेस एक्सप्लेन्ड का शीर्षक है, एनडीए ने इसे टैक्स टेरर कहा था; 7 साल लगे, प्रतिकूल फैसलों के मद्देनजर सुधार के लिए की गई कार्रवाई। कहने की जरूरत नहीं है कि साधारण मामला नहीं है। और बहुत ठीक या जरूरी था तो इतना समय क्यों लगा और अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिकूल फैसलों के कारण किया गया सुधार है तो विदेशी निवेशकों को कैसा संकेत? कहने की जरूरत नहीं है कि अखबार ने तमाम सवालों का जवाब दिए बगैर सरकारी कार्रवाई का अच्छा समर्थन किया है जिसकी जरूरत शायद नहीं थी। पेगासुस मामले में संसद में हंगामा जारी शीर्षक को आज अधपन्ने पर ही सही, सिर्फ हिन्दुस्तान टाइम्स ने प्रमुखता से छापा है। हिन्दुस्तान टाइम्स में अधपन्ने पर ही एक और महत्वपूर्ण खबर है, पेगासस पर सांसदों के सवालों को नामंजूर करने की केंद्र की कोशिश। सेल्फ गोल की खबर यहां ससंद में हंगामे की खबर के साथ है लेकिन टाइम्स के मुकाबले बड़ी और लंबी है। पेगासुस मामले में सुप्रीम कोर्ट वाली खबर यहां सिंगल कॉलम में है। शीर्षक है, सर्वोच्च अदालत ने कहा, अगर खबरें सही हैं तो हैकिंग का मामला बहुत गंभीर है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।