एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार ने मैगसायसाय पुरस्कार समारोह में लंबा भाषण दिया। इस भाषण के एक हिस्से से दिल्ली के वे पत्रकार खासे नाराज़ हैं जिन्होंने कश्मीर के मसले पर प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के खिलाफ कुछ दिन पहले मोर्चा खोला था। वजह यह है कि प्रेस काउंसिल वाले मसले पर बोलते हुए रवीश ने ‘गलतबयानी’ की है। उन्होंने कश्मीर के मसले पर प्रेस काउंसिल के पक्ष में आए बदलाव का श्रेय एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया को दे दिया जबकि यह लड़ाई खुद काउंसिल के भीतर से सदस्य जयशंकर गुप्त और दूसरे पत्रकार संगठनों ने लड़ी थी।
प्रेस काउंसिल ने कश्मीर में मीडिया पर दमन के मसले पर पत्रकार अनुराधा भसीन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में लगायी याचिका पर प्रतिवाद करते हुए अपनी एक शिकायत दाखिल की थी। इस प्रतिवाद में काउंसिल ने मीडिया पर दमन को देश की सम्प्रभुता और अखंडता के हित में बताया था। उसके इस कदम के बाद अच्छा-खासा बवाल हुआ। पता चला कि प्रेस काउंसिल के चेयरमैन पूर्व जस्टिस चंद्रमौलि प्रसाद ने सदस्यों को सूचित किये बगैर ही सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रख दिया था।
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उनके इस एकतरफा फैसले के खिलाफ प्रेस काउंसिल के सदस्य और वरिष्ठ पत्रकार जयशंकर गुप्त ने सबसे पहले मोर्चा खोला। गुप्त, जो हाल ही में दूसरी बार प्रेस असोसिएशन के अध्यक्ष चुने गये हैं और प्रेस काउंसिल के सदस्य भी हैं, उन्होंने काउंसिल के इस मनमाने फैसले पर सवाल उठाया। इसके बाद कई और पत्रकारों ने काउंसिल के चेयरमैन पूर्व जस्टिस चंद्रमौलि प्रसाद के एकतरफा फैसले पर सवाल उठाया जिसके बाद कुछ पत्रकार यूनियनों ने काउंसिल की कार्रवाई के खिलाफ एक साझा वक्तव्य जारी किया।
अखबारों में यह बात खुलकर सामने आयी कि सुप्रीम कोर्ट में काउंसिल का जो पक्ष रखा गया है, वह काउंसिल का ”कंसिडर्ड ओपिनियन” यानी ”सुविचारित राय” नहीं है क्योंकि काउंसिल को इसके बारे में बताया ही नहीं गया है। इसी संदर्भ में 27 अगस्त को चार पत्रकार संगठनों की साझा सभा जयशंकर गुप्त की अगुवाई में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में रखी गयी थी।
दरअसल, इसी सभा के बाद प्रेस काउंसिल ने यू-टर्न लिया था और उसी शाम काउंसिल का आधिकारिक पत्र सदस्यों को भेजा गया था कि जिसमें बताया गया कि काउंसिल ने जम्मू और कश्मीर में मीडिया के परिदृश्य का अध्ययन करने के लिए एक उप-कमेटी गठित की है। पत्र में कहा गया था कि कमेटी की रिपोर्ट जब आएगी तब आएगी लेकिन अनुराधा भसीन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आगामी सुनवाई के दौरान काउंसिल से उसका पक्ष मांगा गया तो वह प्रेस की आज़ादी का पक्ष लेगा और किसी भी किस्म के प्रतिबंध को नकारेगा।
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इस पूरे प्रकरण को रवीश कुमार अपने भाषण में पचा गये। ऐसा नहीं है कि उन्हें इस प्रक्रिया की खबर नहीं रही होगी क्योंकि खबरें तो अंग्रेज़ी अखबारों में लगातार छप रही थीं। इसके बावजूद उन्होंने प्रेस काउंसिल के पक्ष में बदलाव का सारा श्रेय अकेले एडिटर्स गिल्ड को दे दिया और प्रेस काउंसिल के भीतर कश्मीर के मसले पर हुए विरोध और उसके असर पर चुप लगा गये।
दिलचस्प यह है कि 27 अगस्त को जिस दिन प्रेस संगठनों की सभा थी, गिल्ड ने पहली बार उसी दिन अपना निंदा बयान जारी किया। तब तक काउंसिल के खिलाफ माहौल बन चुका था और गिल्ड का पत्र एक औपचारिकता मात्र रह गया था। दिलचस्प यह भी है कि प्रेस क्लब में हुई सभा में गिल्ड का कोई प्रतिनिधि नहीं आया था। इस सब के बावजूद जिन्होंने संघर्ष किया, उन्हें रवीश भूल गये और सबसे अंत में आए गिल्ड के औपचारिक विरोध को ‘गनीमत’ बता गये। बीते चार दिन से चल रहे विरोध का जिक्र करना उन्हें याद नहीं रहा।
The Editors Guild of India has issued a statement pic.twitter.com/6orlXqaDz1
— Editors Guild of India (@IndEditorsGuild) August 27, 2019
नीचे दिये रवीश के भाषण में गलतबयानी का यह अंश 11:20 से 12.08 के बीच सुना जा सकता है:
जयशंकर गुप्त और अन्य पत्रकार रवीश कुमार की इस ‘गलतबयानी’ से काफी नाराज़ और दुखी हैं। उन्हें इस बात का क्षोभ है कि लड़ाई किसी और ने लड़ी लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंच पर श्रेय किसी और को चला गया।
बता दें कि प्रेस काउंसिल ने कश्मीर भेजने के लिए पांच सदस्यों की टीम बनायी थी लेकिन उक्त प्रकरण में सदस्य जयशंकर गुप्त के विरोध के चलते उन्हें इस टीम से हटा दिया गया है।