पेगासस पर सुप्रीम जांच और उसकी ख़बर 

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


केंद्र सरकार ने जनता के पैसे से जासूसी करने वाला इजरायली सॉफ्टवेयर जो निर्माताओं के अनुसार सिर्फ सरकारों को बेचा जाता है, खरीदा या नहीं बताने से मना कर दिया तो सुप्रीम कोर्ट ने जांच कमेटी बनाई और उस कमेटी ने कहा है कि सरकार ने जांच में सहयोग नहीं किया। इस तरह बिना सरकारी सहयोग के सरकार के खिलाफ हुई जांच की रिपोर्ट स्वीकार कर ली गई है। सरकार की इस सफलता पर जनता की प्रतिक्रिया वैसी ही होगी जैसे उसे खबर बताई जाएगी। तो आइए देखें आज के अखबारों ने इस खबर को कैसे छापा है। कहने की जरूरत नहीं है कि इसमें प्रचारकों की भूमिका भी होगी और वे मोर्चा संभाल चुके हैं। 

दूसरी ओर, सरकार ने जनता की जासूसी के लिए मैलवेययर खरीदने में जनता के पैसे खर्चे या नहींयह पता नहीं है। सीएजी को भी पता नहीं चला है वरना 2जी स्कैम की तरह इसकी भी खबर आनी चाहिए थी। लेकिन 5जी की नहीं आई तो इसकी क्या आएगी। हालांकि, सरकार ने पेगासस नहीं खरीदे हैं या खरीदे भी हैं तो साफ क्यों नहीं कह रही है। परमन की बातकरने वालों से सवाल कौन करे। देश भक्ति चल रही है। हिन्दुत्व खतरे में बताया जा रहा है उसकी रक्षा ज्यादा जरूरी है। हालांकि, हिन्दुत्व की सुरक्षा के लिए लोगों को शिखा रखवाने या जनेऊ पहनाने जैसा कोई अभियान नहीं चल रहा है यह कम राहत की बात नहीं है। 

अब इस खबर को अखबारों ने कैसे छापा है वह देखिए

1.हिन्दुस्तान टाइम्स

पेगासस का कोई सबूत नहीं; सरकार ने गेंद को नहीं खेला : पैनल 

इसमें सहयोग नहीं किया कहने के खास तरीके पर गौर कीजिएसरकार ने गेंद को नहीं खेला। इस शीर्षक को पढ़कर आप मान सकते हैं कि गेंद नहीं छूने का कारणनो बॉलयावाइडयाकुछ औरहोगा। सरकार ने कुछ गलत नहीं किया। बात खत्म हो गई, क्लीन चिट मिल गया। 

2.टाइम्स ऑफ इंडिया

सुप्रीम कोर्ट के बनाए पैनल को प्राप्त 29 फोन में पेगासस का कोई सबूत नहीं मिला। 

चार कॉलम के इस खबर के शीर्षक में सरकार के सहयोग नहीं करने की बात तो नहीं ही है उसे एक कॉलम के इंट्रो में तीन लाइन में कहा गया है, “सरकार ने समिति का सहयोग नहीं किया : पीठ अखबार ने इस खबर और शीर्षक के साथ इंट्रो के बराबर में भाजपा की प्रतिक्रिया भी छापी है, कांग्रेस, विपक्ष ने दुर्भावनापूर्ण अभियान चलाया। कांग्रेस की प्रतिक्रिया इसके नीचे है, रुख से पता चलता है कि सरकार कुछ छिपा रही है। कहने की जरूरत नहीं है कि भाजपा और अखबार का यह तेवर तब है जब सरकार ना तो पेगासस खरीदने की बात मान रही है और ना यह कह रही है कि पेगासस नहीं खरीदा है और अब जांच में सहयोग नहीं करने का भी आरोप है। कुल मिलाकर इससे ज्यादा भक्ति भाव वाला शीर्षक लगाना बहुत मुश्किल है। यह खबर पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर है और बड़ा ही सात्विक किस्म का शीर्षक है। 

3.द हिन्दू

पांच फोन में मैलवेयर मिला, यह पेगासस है इसका कोई सबूत नहीं है : पैनल 

अखबार ने मुख्य न्यायाधीश की तस्वीर के साथ उनका कहा बताया है, मुझे यह कहते हुए अफसोस हो रहा है कि कमेटी की रिपोर्ट में एक लाइन है जिसमें कहा गया है कि भारत सरकार ने सहयोग नहीं किया …. आपने यहां जो भी स्टैंड लिया था वही उनके साथ लिया। अब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की यह लाचारी बताना भी खबर ही है पर दूसरे अखबारों के लिए यह बड़ी बात नहीं है। 

4.इंडियन एक्सप्रेस

सबूत नहीं, सरकार ने सहयोग नहीं किया : पेगासस पर सुप्रीम कोर्ट 

दो कॉलम की छोटी सी खबर है जैसे पहले से पता था अब बड़ी छापने से भी क्या हो जाएगा। ये वही इंडियन एक्सप्रेस है जो बोफर्स मामले में आसमान सर पर उठाये रहता था। आज की खबर से लग रहा है कि सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी से सहयोग नहीं करना सरकार का अधिकार था और उसने यही विकल्प चुना। इसमें कोई खबर नहीं है।     

5.द टेलीग्राफ

चार कॉलम के इस खबर का शीर्षक हैपेगाशस। यह पेगासस के पेगा और शस यानी चुप्पी को मिलाकर बनाया गया है। पेगासस के मामले में सरकार की चुप्पी आज की खबर की सबसे खास बात है और तथ्य यही है कि इस सुप्रीम जांच के बाद पेगासस का मामला खुदबुर्द करने की कोशिश की जाएगी जैसे तमाम मामले किए गए हैं और सुप्रीम कोर्ट की जांच का हवाला भी दिया जाएगा। जब सब पता है तो अखबारों को वैसे ही शीर्षक लगाना चाहिए था जैसे टेलीग्राफ ने लगाया और बताया है लेकिन ऐसा तभी किया जाता है जब पाठकों को सच बताना होता है। सरकार का प्रचार करके सरकारी विज्ञापन पाने की अनंत भूख हो या हिन्दुत्व की रक्षा का ठेका लिया हो तो ऐसी शीर्षक लगाने की योग्यता भी धरी रह जाती है।    

जब अंग्रेजी अखबारों का ये हाल है तो हिन्दी से क्या उम्मीद की जाए। मैं हिन्दी अखबार नहीं पढ़ता हूं लेकिन आज जो इंटरनेट पर मुफ्त में उपलब्ध हैं उनका हाल बताता हूं। यहां यह बताना जरूरी है कि इंटरनेट पर पहला पन्ना लगभग सबका मुफ्त में देखा जा सकता है। कुछ ही अखबार अपवाद हैं। इसलिए जो नहीं दिखेगा उनकी चर्चा भी नहीं होगी। बेकार किसी का नाम लिखकर क्यों प्रचार देना। 

राजस्थान पत्रिका, नवोदय टाइम्स में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। प्रभात खबर (रांची) में भी यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। लेकिन यहां आधा पेज विज्ञापन से भरा है और बाकी में राज्य के मुख्यमंत्री की विधानसभा की सदस्यता जाने के संकेत की बड़ी खबर है। वैसे यह खबर दिल्ली के अखबारों में भी है लेकिन रांची की बात अलग है। हालांकि, पहले पन्ने पर प्रकाशित अंदर की प्रमुख खबरों में इस खबर का उल्लेख नहीं है। और ये खबरें खेल, देशविदेश तथा माय माटी शीर्षक के तहत हैं।  

अमर उजाला में यह खबर लीड है। शीर्षक है, पेगासस : जासूसी के सबूत नहीं पर 29 फोन में से 5 में मिले मालवेयर। उपशीर्षक है, विशेषज्ञ समिति ने सुप्रीम कोर्ट को बताया, केंद्र ने नहीं किया जांच में सहयोग। हिन्दुस्तान में इस खबर का शीर्षक है, “खुलासा : पांच फोन में मालवेयर मिला पर पेगासस के सबूत नहीं विशेष संवाददाता की इस खबर के शीर्षक में या हाइलाइट करके यह नहीं बताया गया है कि सबूत तलाशने वाली कमेटी ने कहा है कि सरकार ने सहयोग नहीं किया। ऐसी हालत में भाजपा ने पूछा है और हिन्दुस्तान ने बताया है, अब क्या कांग्रेस माफी मांगेगी। 

टेलीग्राफ ने प्रधानमंत्री की फोटो के कैप्शन में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का ट्वीट छापा है जिसका अनुवाद कुछ इस तरह होगा, सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति से प्रधानमंत्री और उनकी सरकार का असहयोग इस बात की स्वीकारोक्ति है कि उनके पास छिपाने के लिए कुछ खास था और वे लोकतंत्र को कुचलना चाहते हैं। हिन्दुस्तान ने लिखा है, (पहले पन्ने पर) कांग्रेस ने कहा कि सरकार ने जवाब देकर लोकतंत्र को दागदार किया है। 

कहने की जरूरत नहीं है कि जब समिति ने कहा है कि सरकार ने सहयोग नहीं किया तो भाजपा के यह पूछने का कोई मतलब नहीं है कि कांग्रेस माफी मांगेगी पर मीडिया का साथ हो तो सरकार की ही बात छपेगी। विपक्ष के आरोप दबा दिए जाएंगे। 2014 से पहले ऐसी स्थिति नहीं थी या कह सकते हैं कि स्थिति उल्टी थी। कुल मिलाकर मामला यह है कि आज खबर नहीं छपी कल दावा किया जाएगा कि सुप्रीम कोर्ट की जांच में साबित नहीं हुआ और वह खबर खूब छपेगी। समर्थकों को बस वही चाहिए। वे खुश हैं कि मुल्ले टाइट हैं। हिन्दी अखबारों में आज उस रिपोर्ट की खबर खूब प्राथमिकता से छपी है कि प्रधानमंत्री के फिरोजपुर दौरे में सुरक्षा से समझौता किया गया था और उसके साथ अनुराग ठाकुर का यह आरोप भी है कि सुरक्षा में चूक सुनियोजित साजिश थी।   

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।


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