आज के अखबारों में पहले पन्ने के कुछ शीर्षक
- मणिपुर से 140 करोड़ भारतीयों को शर्म
- दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा
- वीडियो सामने आने के बाद हंगामा
- प्रधानमंत्री को संसद में बोलना चाहिए
- मोदी ने चुप्पी तोड़ी, सुप्रीम कोर्ट ने तेवर दिखाये
- यूसीसी से संबंधित तौर–तरीकों का सवाल नहीं
- मिशन 2024 :भाजपा ने बदली रणनीति
- प्रोटोकोल का दुरुपयोग प्रदर्शन के लिए न हो
- महाराष्ट्र के रायगढ़ में भूस्खलन से 16 मरे
- गुजरात में कार भीड़ में घुसी 9 मरे
- जिम के ट्रेडमिल में करंट लगने से एक मरा
- डेरा प्रमुख को फिर पैरोल, फरवरी से पांचवां
- बृजभूषण सिंह को जमानत मिली
- ईमाम से जबरन जय श्रीराम कहलवाया गया
- गुड़गांव में भोजपुरी अभिनेत्री से बलात्कार
- चीनी मांझे से दिल्ली में बच्ची की मौत
इन ‘खबरों‘ से साफ है कि सरकार अपना काम (प्रशासन और पुलिस) कितनी अच्छी तरह कर रही है और यह भी कि भगवान को भी काम करना पड़ रहा है। बाकी शर्मसार किसको होना चाहिए और कौन है, इसपर प्रधानमंत्री की राय भी खबर है। इसके अलावा आज द टेलीग्राफ ने बताया है कि 56 ईंची का सीना कैसे 56 ईंची की खाल या चमड़ी बन गया है। वीडियो वायरल होते ही चार अपराधी पकड़े गए यह खबर तो सभी अखबारों में है पर सरकार ने कार्रवाई वीडियो वायरल होने के बाद की और ट्वीटर पर कार्रवाई के बारे में सोच रही है यह खबर पहले पन्ने पर नहीं दिखी। यह भी नहीं कि संसद में इसपर चर्चा नहीं हुई और राज्यसभा कैसे स्थगित कर दी गई। देश में दर्द और गुस्सा है तथा संसद में नारे लगे मणिपुर जल रहा है – यह शीर्षक या बड़े अक्षरों में सिर्फ नवोदय टाइम्स में है।
हिन्दुस्तान टाइम्स ने प्रधानमंत्री के कहे को लीड बनाया है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने वीडियो, दो महीने बाद कार्रवाई, गिरफ्तारी आदि की खबर को लीड बनाया है और इसके साथ के तथ्यों में बताया है कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार कार्रवाई नहीं करेगी तो हम करेंगे – इसके पांच मिनट के बाद पहली गिरफ्तारी की घोषणा हुई। कुल चार गिरफ्तार किये गये हैं। जबकि मुख्यमंत्री खुद कह चुके हैं कि ऐसी सैकड़ों घटनाएं हुई हैं और जो वीडियो वायरल हुआ उसके बारे में कहा जा चुका है कि 1000 लोगों का हुजूम था और पीड़ित लड़की ने कहा है पुलिस भीड़ के साथ थी और हमें उन लोगों के साथ छोड़ दिया।
क्या पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होनी चाहिये? पुलिस बल अगर संख्या में कम थी तो क्यों? और अतिरिक्त पुलिस बल क्यों नहीं भेजा / मांगा गया? छुड़ाने की कोशिश क्यों नहीं की गई या की गई तो खबर कहां है – यह सब खबरों से समझ नहीं आ रहा है और मैं मीडिया तथा सरकार की भूमिका से ज्यादा शर्मिन्दा हूं। मैं घटना से शर्मिन्दा इसलिए हूं कि अपराधी पुलिस को कमजोर या अपने साथ मानते थे। इसीलिए यह सब किया और इतने दिन बचे रहे। जब व्यवस्था ही नहीं रहेगी तो भीड़ क्या करेगी इसका अनुमान मुझे है। और मामला भीड़ ने क्या किया से ज्यादा व्यवस्था का है।
मणिपुर की घटना 4 मई की है और यह संभव नहीं है कि प्रधानमंत्री को इसकी जानकारी नहीं होगी। अगर नहीं थी तो यह अलग शर्म और प्रशासनिक निकम्मेपन का मामला है। उम्मीद है उसे सुप्रीम कोर्ट देख लेगा इसलिए अभी उसे रहने देते हैं। प्रधानमंत्री 78 दिन बाद जो बोले उसकी बात करूं तो द टेलीग्राफ ने आज बताया है कि अपना दर्द, गुस्सा और शर्म बयान करने से पहले वे कहां थे और क्या कर रहे थे। कल के भाषण को अखबार ने घड़ियाली आंसू की तरह प्रस्तुत किया है और लिखा है कि 56 ईंची की चमड़ी को भेदने में तकलीफ और शर्म के 79 दिन लग गये। लीड का शीर्षक है, मोदी ने चुप्पी तोड़ी, सुप्रीम कोर्ट ने तेवर दिखाये। अखबार ने यह भी लिखा है कि मणिपुर के मुख्यमंत्री ने कहा है कि ऐसे सैकड़ों मामले हुए हैं। इसके कुछ ही घंटे बाद अपमानित की गई 19 साल की लड़की ने द टेलीग्राफ से बात की और अपना दिल दहलाने वाला विवरण सुनाया।
इंडियन एक्सप्रेस में एक खबर है, मणिपुर मामले में वीडियो सार्वजनिक होने के बाद एक ही दिन में चार लोग गिरफ्तार कर लिये गये। इस खबर के अनुसार, इससे पहले एफआईआर 62 दिनों तक धूल फांकती रही। इससे आप समझ सकते हैं कि मणिपुर में इतने दिनों तक इंटरनेट बंद रहने का कारण क्या–क्या हो सकता है, ट्वीटर के खिलाफ कार्रवाई की खबरों का राज क्या है और 62 दिनों तक सरकार ने कार्रवाई क्यों नहीं की होगी। वैसे, इस खबर में मुख्यमंत्री ने कार्रवाई नहीं होने का कारण बताया है और सफाई भी दी है।
क्या आपको नहीं लगता है कि यह सब वैसा ही है जैसा गुजरात में हुआ था। तब तो क्लीन चिट मिल गई थी भले संजीव भट्ट अभी भी जेल में हैं और अब कोई संजीव भट्ट नहीं है और क्लीन चिट की जरूरत ही नहीं है। यह भी एक तरह का विकास है। आपको पसंद है तो चुनते रहिये, समर्थन कीजिये। पर जान लीजिये कि इमरजेंसी में ऐसा कुछ नहीं था। जो था वह घोषित था और तब भी जो खबर सेंसर की जाती थी उसकी जगह खाली छोड़ने की गुंजाइश थी ही। उसका विरोध हुआ ही। अब ऐसा होता नहीं है और किया नहीं जा सकता है। अखबारों ने स्वेच्छा से मणिपुर की खबर नहीं छापी या किसी ने छापी हो तो पता ही नहीं चला। अब 75 से ज्यादा दिन खबर दबी रही और जिस प्लैटफॉर्म पर लीक हुई उसके खिलाफ कार्रवाई की सोची जा रही है।
यह सब तब जब ट्वीटर के सह–संस्थापक तथा उसके पूर्व सीईओ के आरोप हम जानते हैं मामला और बीबीसी के खिलाफ कार्रवाई हम देख–सुन चुके हैं। फिर भी यह सब चल ही रहा था जब तक सरकार अपराधियों के साथ नजर नहीं आ रही थी। 62 दिनों तक कार्रवाई नहीं होने और वीडियो लीक होने पर कार्रवाई का मतलब है मजबूरी और ट्वीटर के खिलाफ कार्रवाई खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे नहीं तो और क्या है? इसमें सरकार को मीडिया का पूरा सहयोग मिला और ऐसा नहीं है तो क्या पूछे जा रहे इन सवालों का जवाब है उसके पास? सवाल हैं, तीन मई को हिंसा शुरू होने के बाद से कितने चैनलों / अखबारों ने वहाँ रिपोर्टर भेजे? चैनलों / अखबारों ने अब तक कुल कितनी खबरें कीं और यह खबर कैसे छूट गई? अगर मणिपुर में संवाददाता नहीं रखे तो उत्तर पूर्व के केंद्र गुवाहाटी में ही कितने चैनलों / अख़बारों के पूर्णकालिक रिपोर्टर हैं? मुख्यमंत्री का हाल तो सबको पता है, राज्यपाल से किसी ने संपर्क किया या और नहीं तो क्यों?
इस माहौल में एएनआई ने एक खबर से मामले में गिरफ्तार लोगों के नाम दिये और सरकार समर्थक मीडिया वालों ने तुरंत उन नामों का उपयोग अपने हित में कर लिया। जब तक तथ्य सामने आया सरकार समर्थक अपना काम कर चुके थे बाद में खबर वापस ले ली गई और माफीनामा भी जारी हो गया। और यह सब किया उसी समाचार एजेंसी ने जो सरकार का सबसे ज्यादा समर्थन करती है। सबसे दुलारी है। कुल मिलाकर, गलत खबरों से भी सरकार का समर्थन या धर्म विशेष के लोगों का विरोध करने वाला एक मीडिया समूह है जो इस बात से चिन्तित नहीं था कि अपराधी पकड़े क्यों नहीं गये वह इस बात से खुश था कि अपराधी धर्म विशेष के हैं जबकि वह खबर गलत थी। खंडन कई घंटे बाद आज सुबह 10:29 पर जारी किया गया।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।