FIFA से प्रेरित अश्लील, फर्जी और उधार खेल पत्रकारिता का देसी चकलाघर!

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दीपांकर पटेल / thenarcotest.com


भारतीय मीडिया जब क्रिकेट पत्रकारिता करता है तो क्या करता है ?

थोड़ा-सा खेल दिखाता है, थोड़ा सा ग्लैमर, खिलाड़ी की टेक्निक और कुछ आँकड़ों के साथ बात करते हुए क्रिटिकली मैच्योर दिखता है।
लेकिन जब यही मीडिया फुटबॉल कवर करता है, तो उसका सारा ज्ञान धड़ाम हो जाता है! प्रोफेशनलिज़्म को हांफा आ जाता है। फुटबाल के खिलाड़ी की जगह उसकी गर्लफ्रेंड दिखने लगती है, खेल के मैदान के बजाय पत्रकार की आँखें दर्शक दीर्घा में जाकर हॉट लड़कियां तलाशने लगती हैं। खेल पत्रकार किक की जगह महिला दर्शक का किस दिखने लगता है, स्ट्राइकर की जगह दर्शक की ब्रा-स्ट्रिप दिखने लगती है, पत्रकार मिडफिल्डर ना देखकर महिला दर्शक का क्लीवेज देखने लगता है। इसके बाद वो खेल-खबर न लिखकर मैच देखने आई महिलाओं का फोटो कोलॉज कर रीडरों के लिए हॉट गैलरी बनाता है।

आँकड़े छोड़िए, भारतीय पत्रकार फुटबालर के नाम तक में कन्फ्यूज़ हो जाते हैं, हेडलाइन में नाम किसी और का और फोटो किसी और की लगा देते हैं, ठीक से गूगल तक नहीं करते।

फुटबाल वर्ल्ड कप को भारतीय मीडिया कैसे कवर कर रहा है, उसकी संक्षेप में कहानी कुछ ऐसी है- हिन्दुस्तान-दैनिक मार्कस रैशफोर्ड की जगह मार्को असेंसियो की फोटो लगाता है। दैनिक जागरण पुर्तगाल के नंबर 9 आंद्रे सिल्वा को मिडफील्डर बताता है, रोनाल्डो की फ्री किक और पेनल्टी को तक कमजोर बता देता है, अल्वारो मोराटा के इस वर्ल्ड कप में खेलने की घोषणा कर देता है और फीफा के लिए तैयार हैरी केन की फोटो क्लब जर्सी में लगा देता है। यह तो वैसे ही है, जैसे CSK की जर्सी में धोनी को वर्ल्ड कप खेलते हुए दिखाया जाए!

अमर-उजाला रोनाल्डो की हेडिंग लगाकर नेमार की फोटो डाल देता है। रूस और मिस्र के 3-1 के मुकाबले को राजस्थान पत्रिका ‘गोलरहित’ घोषित कर देता है।

90min.in से जुड़े खेल पत्रकार सूरज भारतीय मीडिया के इस रवैये पर चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं- “इन अखबारों के करोड़ों पाठक हैं, ये अखबार जो झूठ और कचरा परोस रहे हैं, वो भारतीय युवाओं में फुटबाल के प्रति पनप रही समझ को बर्बाद कर देगा!”

खिलाड़ियों के गलत नाम, क्लब की जर्सी में खिलाड़ी को राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व करते हुए दिखा देना, शॉट का गलत नाम, टेक्निकल समझ का अभाव… ये तो वो चीजें हैं, जो दैनिक जागरण से लेकर राजस्थान-पत्रिका तक में बहुतायत हैं।

फिर भी…

भारतीय खेल पत्रकारिता को उसके इस गैरपेशेवर रवैये के लिए हिदायत देकर माफ किया जा सकता है। लेकिन तब क्या करेंगे जब खेल पत्रकार खिलाड़ियों के बारे में जानकारी जुटाकर रीडर/व्यूअर को बताने की जगह रीडर के लिए लिए हॉट गैलरी बनाने लगें?
और खेल पत्रकारिता को हॉट-गैलरी पत्रकारिता में तब्दील कर दें?

आजकल रीडर इंगेजमेंट पाने के लिए मेनस्ट्रीम ऑनलाइन मीडिया में हॉट गैलरी बनाने का चलन चरम पर है और इसे बनाते हुए क्यूबिकल पत्रकार चरमोत्कर्ष पर होते हैं, स्टोरी व्यूअर-कॉउन्ट देखकर एडिटर और कॉपी एडिटर दोनों को चरमसुख की प्राप्ति होती है।

लेकिन स्थिति चरमसुख तक ही नहीं है अब ये पत्रकार बीमार होने लगे हैं, दिमागी-शीघ्रपतन का शिकार हो चुके हैं।

पत्रकारिता से बदलाव लाने का दावा करने वाले संस्थानों ने अपने ऑनलाइन मीडिया प्लेटफॉर्म को चकलाघर में तब्दील कर दिया है, जहां पुरूष पाठकों को ब्रा-बटक्स-क्लीवेज (B-B-C) टेक्निक से आकर्षित किया जाता है। हॉट गैलरी बनाने वाले पत्रकारों को ब्रा, बटक्स, क्लीवेज (B-B-C) में से कुछ भी दिखा, तो आंखों में उजाला आ जाता है।
यही उजाला अमर-उजाला के खेल पत्रकार की आँखों में आया और उसने जो किया है, उससे आपको खेल पत्रकारिता के सामने का अँधेरा साफ दिखने लगेगा।
दरअसल अमर-उजाला ने 2018-फीफा वर्ल्ड कप महिला दर्शकों की हॉट गैलरी बना डाली। इस हॉट गैलरी को बनाने में B-B-C टेक्निक का पूरा ख्याल रखा गया। इस हॉट गैलरी के लिए अमर-उजाला ने फुटबाल पत्रकारिता की तरह ही गोल-मोल कुछ भी गढ़ डाला।
इस हॉट गैलरी की पहली फोटो से शुरू करते हैं-
हॉट गैलरी की हैडलाइन में दावा है कि हसीनाओं की खूबसूरती देख कर फुटबाल का रोमांच ही भूल जाएंगे!

कॉपी एडिटर यह घोषित कर रहा है कि हम फुटबाल पर लिखकर आपमें रोमांच तो भरेंगे नहीं, इसलिए डियर फुटबाल फैंस, हॉट गैलरी देखकर फुटबॉल का फील लेते रहिए..!
पहली स्लाइड में ही यह दावा किया गया है है कि ये फोटोज 2018 फीफा वर्ल्ड में कैमरे पर स्पॉट की गईं महिला फैंस की हैं।

लेकिन अगर आप सच जानेंगे तो होश उड़ जाएंगे।
हॉट गैलरी बनाने के चक्कर में जिन 27 फोटोज का इस्तेमाल अमर-उजाला ने किया है, उसमें से ज्यादातर फोटोज पुराने फुटबॉल मैचों की हैं।
इसी हॉट गैलरी की दूसरी फोटो देखिए…

इसने क्लीवेज में मोबाइल फंसा रखा है, हॉट गैलरी के फार्मूले से भी ज्यादा हॉट फोटो, इसे अमर उजाला 2018 वर्ल्ड कप की फोटो बता रहा है, जबकि एक सिम्पल गूगल सर्च से आपको इस फोटो की हकीकत पता चल जाएगी ।
यह फोटो 2015 कोपा अमेरिका की है, जो चिली में हुआ था, ये लड़की पराग्वे की फैन थी, पराग्वे 2018 फीफा वर्ल्ड कप नहीं खेल रहा है, लेकिन अमर-उजाला ने उसे खूबसूरत महिला फैन घोषित कर दिया।

अमर-उजाला की हॉट फोटो गैलरी इमेज नम्बर 6- इसे न्यूयार्क डेली न्यूज 2014 वर्ल्ड कप की तस्वीर बता रहा है, लेकिन अमर-उजाला बोल रहा है कि यह महिला मैच के दौरान हर किसी की नज़र में छायी रही …
कैसे?
अमर उजाला के पत्रकार को किस मैच में यह दिख गई? बताया नहीं..
ये बेचारे ‘कॉपी-पेस्ट खेल पत्रकार’ फुटबॉल मैच ही नहीं देखते, तो उनमें आने वाली लड़कियां कैसे देख लेंगे ?

इसी हॉट गैलरी की फोटो संख्या 8 और 9 – ये लड़कियां अल्बानिया की हैं। फोटो 2016 यूरो कप की है, जिसे अमर उजाला स्पोर्ट डेस्क 2018 की बता रहा है।

फोटो नम्बर 10- यह 2014 वर्ल्ड कप की है, कोई भी फुटबाल का जानकार जर्सी के तीन स्टार देखकर ये बात बता सकता है!

फोटो संख्या 11- यह भी 2014 की है!

फोटो संख्या 16- चिली की फैंस हैं। चिली इस वर्ल्ड कप में खेल ही नहीं रहा है। फिर भी अमर-उजाला उसकी फैंस को 2018 वर्ल्ड कप में सपोर्ट करते हुए दिखा रहा है।

इतनी सारी गलत फोटोज एक साथ देखकर जब हमने सोर्स लिंक क्रॉस चेक करने की कोशिश की, तो पता चला एक नेपाली वेबसाइट dcnepal.com  पर ये 27 के 27 फोटो हू-ब-हू मौजूद हैं!

पाठकों को हॉट फोटो दिखाने के लिए अमर-उजाला चीट कर रहा है। इसके कॉपी एडिटर हॉट परोस कर लाइक-शेयर पाने की जल्दबाजी में गूगल पर चेक भी नहीं कर सकते।
भारतीय मीडिया में खेल पत्रकारिता की दशा इतनी खराब है कि 1982 के राष्ट्रमंडल खेल की खबर को 2018 की बताकर पब्लिश कर दिया जाता है, सैयद मोदी को गोल्ड मेडल जितवा दिया जाता है और जब गलती पकड़ में आती है, तो लिंक पर जाने वाले रीडर के लिए संदेश छोड़ा जाता है “आप गलत निकल लिए हैं”… और यह करने वाला भी कोई और नहीं, बल्कि अमर-उजाला ही था।
न्यूज रूम में अक्सर ये कहा जाता है कि स्पोर्ट्स तो कोई भी कर लेता है। जब खेल पत्रकारिता कोई भी करता है, तो क्या-क्या खेल होता है- आपके सामने है! इन स्पोर्ट्स जर्नलिस्टों में खेल का ज्ञान तो दूर की बात है, खेल भावना भी नहीं है। स्पोर्ट्स न्यूज की जगह हॉट गैलरी बनाकर क्लिक-बेट की चाहत में डूबे हुए हैं।
खेल पत्रकारिता युवाओं के दिल में उस खेल का रोमांच भरती है, उन्हें गेम-लिट्रेसी देती है और उन्हें खेल की तरफ आकर्षित करती है, भारत में फुटबाल की दुर्दशा का एक कारण भारत में फुटबाल की सेल्फ-गोल पत्रकारिता भी है।


thenarcotest.com से साभार