विशेष सत्र से हेडलाइन मैनेजमेंट, कनाडा से खराब होते संबंध को महत्व नहीं

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


 

शीर्षक से पता चलता है कि अखबार सच बताने की जगह सरकार की ही बात करते हैं 

 

आज ज्यादातर अखबारों में महिला आरक्षण विधेयक लोक सभी में पेश किये जाने की खबर प्रमुखता से है। संसद के नए भवन में प्रवेश और इस मौके पर यह विधेयक (गणेश चतुर्थी के दिन) पेश किये जाने के कई मतलब हैं लेकिन इन्हें प्रमुखता से बताने की जरूरत नहीं समझी गई है। वह भी तब जब विधेयक पास होने से भी कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला है। ऐसे में विशेष सत्र की कोई जरूरत नहीं थी लेकिन …. सब हुआ। 

द टेलीग्राफ में इसीलिए यह खबर लीड नहीं है और शीर्षक है, “महिलाओं के लिए कोटा तारीख की प्रतिबद्धता के बिना।” द टेलीग्राफ की लीड पर आने से पहले बता दूं कि महिला आरक्षण विधेयक की खबर सभी अखबारों में पहले पन्ने पर है और जो लीड द टेलीग्राफ में है वह दूसरे कई अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है। इसीलिए मैं इसे हेडलाइन मैनेजमेंट कहता हूं। इस में पहले पन्ने की खबर इधर-उदर हो जाती है और पहले पन्ने पर वही खबरें रहती हैं जो सरकार चाहती है। 

टाइम्स ऑफ इंडिया में महिला आरक्षण की खबर पहले पन्ने पर लीड तो है ही शीर्षक की दूसरी लाइन है, मोदी ने कहा कि वे इसका पास होना सुनिश्चित करेंगे। इस तरह महिला विधेयक संसद में पास कराने का श्रेय मोदी लेंगे या उन्हें मिल जाएगा। यह तैयारी है और यही विशेष सत्र का उद्देश्य। विधेयक पास नहीं हो पाया तो जो खबर लीड बननी चाहिये थी वह पहले पन्ने पर नहीं है। इसलिए विशेष सत्र बुलाकर यह सब करने का फायदा न हो तो नुकसान भी नहीं है। अघोषित लक्ष्य पूरा हो रहा है सो अलग।  

द टेलीग्राफ को छोड़कर मेरे ज्यादातर अखबारों में महिला आरक्षण विधेयक पेश किये जाने की खबर लीड है बताने के बाद यह भी बता दूं कि हिन्दी के अखबारों, अमर उजाला और नवोदय टाइम्स में वह खबर पहले पन्ने पर है जो द टेलीग्राफ में लीड है जबकि अंग्रेजी के अखबारों टाइम्स ऑफ इंडिया और हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर लीड है। इसलिए आप कह सकते हैं कि सरकार की कोशिश (इस समय) कामयाब नहीं हुई पर उसका असर तो है ही। 

अमर उजाला में गणेश चतुर्थी के मौके पर नई संसद की शुरुआत को भारत के उज्ज्वल भविष्य का श्रीगणेश कहा गया है और पहले ही दिन रचा इतिहास फ्लैग शीर्षक के साथ महिला आरक्षण विधेयक की खबर का शीर्षक है, महिला आरक्षण के लिए नारी शक्ति वंदन विधेयक पेश। कहने की जरूरत नहीं है कि खबर के साथ नहीं बताया गया है कि पास होने के बाद भी इसके लागू होने में क्या अड़चन है और अभी ही तय है कि ना नौ मन तेल होगा ना राधा नाचेंगी। फिर भी यह सब किया जा रहा है और हो रहा है। 

नवोदय टाइम्स ने महिला आरक्षण की खबर को आधी आबादी को आजादी शीर्षक से छह कॉलम में छापा है और दो कॉलम विज्ञापन है। इस खबर के चक्कर में आज जो खबर पिट गई वह नवोदय टाइम्स में पहले पन्ने पर दो कॉलम में है। शीर्षक है, कनाडा भारत आमने-सामने। फ्लैग शीर्षक है, खालिस्तानी आतंकवादी निज्जर की हत्या का मामला। ट्रूडो बोले – हत्या में भारत का हाथ; भारतीय राजनयिक को निकाला, भारत ने भी कनाडाई राजनयिक को घर भेजा। कहने की जरूरत नहीं है कि जी20 की कथित सफलता और उसका श्रेय लेने के बाद यह खबर है और यह लीड नहीं है। कुछ अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है। 

शीर्षक से आप समझ सकते हैं कि पूरा मामला क्या है या होगा। पर अखबार मोदी सरकार के प्रचार में इतने अंधे हैं कि सरकार सेना पर सैनिक अधिकारियों के शहीद होने के बाद भी जी20 की कथित सफलता का जश्न मनाती रह सकती है और यह बात खबरों में आमतौर पर नहीं आती है। इसीलिए सरकार जश्न मनाने और प्रचार पाने का जोखिम उठा पाती है जबकि पहले की सरकारों की इसके लिए आलोचना होती या वे इस डर (या शर्म) के कारण ऐसा कुछ कर ही नहीं पातीं। अमर उजाला की इस खबर का शीर्षक है, भारत का त्रूदो को करारा जवाब, कनाडा के राजनयिक को निकाला। 

कहने की जरूरत नहीं है कि यह जवाब की खबर है या खबर के बाद की खबर है। मूल खबर तो यही होगी कि त्रूदो ने भारत के रायनयिक को निकाला होगा तब भारत ने जवाब दिया होगा और अगर भारत के राजनयिक को निकाले जाने की खबर को अमर उजाला ने कल ही छाप दिया हो तो आज यह खबर ठीक होती। देखता हूं, दूसरे अखबारों की खबरों से यह स्पष्ट हो जाएगा। फिलहाल यह याद दिला दूं कि मोदी सरकार के समर्थकों की यह मांग और दलील रहती है कि आलोचना की जाए तो प्रशंसा भी की जाए जबकि प्रशंसा करना मीडिया का काम नहीं है। मीडिया का काम यह बताना है कि सरकार जी20 की सफलता का श्रेय ले रही थी और अब एक सदस्य देश के साथ संबंध ऐसे हैं या सम्मेलन में शामिल एक देश में यह सब हो रहा है। 

वैसे, आप यह भी कह सकते हैं कि देसी अखबारों का काम इस युद्ध में सरकार का साथ देना या उसका प्रचार करना है। हालांकि यह सब वही कहेगा जो पत्रकारिता या पत्रकारों के काम नहीं समझता है। अभी वह मुद्दा नहीं है। फिर भी अमर उजाला ने, ’त्रूदो का बयान ध्यान भटकाने की कोशिश और ‘भारत विरोधियों का समर्थन चिन्ता का विषय’ जैसी खबरें छापी हैं। संतुलन बनाने के लिए, ‘त्रूदो की सफाई …. उकसाने की कोशिश नहीं’ भी छपी है। पर अभी यह सब मुद्दा नहीं है। मुद्दा यह है कि अखबारों ने महिला आरक्षण विधेयक पेश किये जाने की खबर को पूरी प्रमुखता दी है और यह नहीं बताया है कि पास होने के बाद भी इसे लागू नहीं किया जा सकेगा। 

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रवक्ता गुरदीप सिंह सप्पल ने इस बारे में ट्वीट कर कहा है, “महिला आरक्षण बिल पढ़ लिया है। 33% सीटें महिलाओं के लिए संसद में, विधान सभाओं में आरक्षित होंगी। ये आरक्षण सीटों के डीलीमिटेशन के बाद ही लागू होगा और अगली जनगणना के बाद होगा। 2021 में होने वाली जनगणना अभी शुरू नहीं हुई है, न ही अभी सरकार का ऐसा कोई प्लान है। अगली जनगणना दस साल बाद ही होगी। इसलिए, जब नौ मन तेल होगा, तभी राधा नाचेगी!” सप्पल के अनुसार, “मोदी सरकार को साफ़ तौर पर संसद में कहना होगा कि महिला आरक्षण के लिये डीलीमिटेशन जनसंख्या आधारित डीलीमिटेशन से अलग होगा, जो संविधान की धारा 81(3) से अलग होगा। 

“अगर ऐसा नहीं हुआ तो महिलाओं के लिए आरक्षण लागू होते होते 2039 का लोकसभा चुनाव आ जाएगा। जनगणना आधारित डीलीमिटेशन 1971 में हुआ था। तब से 2026 तक इसे फ्रीज़ किया हुआ है, क्योंकि उत्तर भारत की जनसंख्या दक्षिण भारत की तुलना में ज़्यादा बढ़ी है। 2001 में वाजपेयी सरकार ने 84वाँ संविधान संशोधन किया था। अब संविधान की धारा 81 (3) के अनुसार 2026 के बाद वाली जनगणना तक डीलीमिटेशन पर रोक है, यानी 2031 की जनगणना के बाद ही डीलीमिटेशन होगा। जनगणना के सारे परिणाम आने में दो से तीन साल लगते हैं, उसके बाद डीलीमिटेशन होगा। तब तक 2034 के लोकसभा चुनाव भी पार हो जाएँगे।“

इन तथ्यों के आलोक में महिला आरक्षण की खबरें जनता की आंखों में धूल झोंकने की तरह है और यह विदेश में रखा काला धन आने पर हर किसी को 15 लाख मिलने तथा जनधन खाता खुलवाने के घोषित कारणों तथा जनता ने जो समझा उससे ज्यादा अलग नहीं है। निष्पक्ष मीडिया का काम वोट के लिए किये जाने वाले ऐसे प्रयासों से जनता को सतर्क करना है पर मीडिया जो कर रहा है वही बताने के लिए मुझे यह सब लिखना पड़ रहा है। इस क्रम में द टेलीग्राफ की आज की लीड का शीर्षक तथा जो अखबार रह गये हैं उनमें महिला आरक्षण की खबर तथा कनाडा से भारत के संबंध की ताजा स्थिति से संबंधित खबरें बता दूं तो आप भी पूरे मामले को ठीक से समझ सकेंगे। 

द टेलीग्राफ का फ्लैग शीर्षक है, कनाडा के सदन में धमाकेदार आरोप के बाद जैसे को तैसा वाले निष्कासन। इसके साथ मुख्य शीर्षक है, त्रूदेव ने हत्या के मामले से भारत को जोड़ने की कोशिश की तो संबंध नाक के बल गिरे। (नाक के बाल गिरना अंग्रेजी के नोज डाइव के लिए कहा जाता है। अंग्रेजी में विमान के अगले हिस्से को नोज कहा जाता है। इस तरह विमान के नाक के बल गिरने का मतलब बड़ी दुर्घटना होता है जानें भी ज्यादा जाएंगी। यहां नाक मनुष्य का नहीं है।) मुझे लगता है कि इस शीर्षक से मामला स्पष्ट हो जाता है। 

त्रूदेव अगर मनमानी कर रहे हैं या जो कर रहे हैं वह अनुचित है अथवा नामुमकिन को मुमकिन बनाने की कोशिश कर रहे हैं तो भी खबर यही है। आइये देखें, भारतीय अखबारों ने इसे कैसे बताया है। भारत पर टिप्पणी के साथ त्रूदेव ने राजनयिक धूम-धड़ाके की शुरुआत की। उपशीर्षक – कनाडा के साथ संबंध नहीं गहराई में (हिन्दुस्तान टाइम्स)। निज्जर की हत्या में हाथ होने के त्रूदेव के आरोप को भारत ने बेतुका कहा है। इंट्रो है, दोनों देशों ने एक-एक राजनयिक को निष्कासित किया। द हिन्दू में भी यह खबर लीड है और यहां महिला विधेयक की खबर लीड के साथ बराबर में है। 

द हिन्दू की लीड का शीर्षक है, कनाडा में निज्जर की हत्या में भारत ने कोई भूमिका होने से इनकार किया। उपशीर्षक है, त्रूदेव ने आरोप लगाया कि खालिस्तानी अलगाववादी नेता की हत्या में भारत की भागीदारी है; नई दिल्ली का कहना है कि ऐसे अपुष्ट आरोप कनाडा में आतंकवादियों को शरण देने के मामले से फोकस हटाने के लिए हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने महिला आरक्षण विधेयक की खबर को पांच कॉलम में लीड लगाया है। त्रूदेव या कनाडा की खबर तीन कॉलम में बराबर में छपी है। 

कुल मिलाकर, कहा जा सकता है कि खबरों से स्पष्ट है महिला आरक्षण विधेयक को प्रचार पाने के लिए पेश किया गया है और मीडिया ने जानते हुए नहीं बताया है कि पास होने के बावजूद इसे अभी लागू नहीं किया जा सकता है और महिला आरक्षण जल्दबाजी में किया जाने वाला काम नहीं है और मोदी सरकार जबरन कर भी दे तो सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का एक और मुद्दा हो जाएगा। आप जानते हैं कि इस सरकार के किन कामों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और सरकार ने ऐसे कौन-कौन से काम किये हैं। वह एक अलग रास्ता भले हो सकता है लेकिन सुप्रीम कोर्ट का समय खराब करने वाला तो है ही।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।


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