असल हादसा: रेल सुरक्षा का फंड फुट मसाजर पर खर्च हुआ!

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


पहले पन्ने के लायक खबर नहीं है पर पहलवानों की खबर नहीं छापेंगे ना मणिपुर का मामला विस्तार से बतायेंगे

द टेलीग्राफ ने बताया है कि रेल सुरक्षा में सुधार के लिए 2017 में विशेष फंड बना पर पैसे इधर-उधर खर्च दिये  

आज के अखबारों में कोई खास खबर नहीं है। लीड सभी अखबारों में अलग है और वह भी कुछ खास नहीं। फिर भी सरकारी खबरों को ही प्राथमिकता देने का उदाहरण नवोदय टाइम्स में है। यहां बताया गया है कि डिजिटल डाटा प्रोटेक्शन बिल जल्द पेश होगा और सरकार नहीं चाहती है कि सोशल मीडिया में 11 मुद्दे हों। अंग्रेजी के मेरे पांच में चार अखबारों की लीड से आप समझ सकते हैं कि इनके पीछे की असली खबर छोड़ दी गई है। इंडियन एक्सप्रेस ने आज पहले पन्ने की खबर से बताया है कि पहलवानों की शिकायत पर कार्रवाई नहीं होने, खेल मंत्री के आश्वासन के बावजूद कल पहलवानों में से एक को तथाकथित जांच और पूछताछ के लिए कुश्ती संघ के ऑफिस ले जाया गया। कुश्ती संघ के अध्यक्ष का घर उसी परिसर में है और वे उस समय घर पर अपने कमरे में सो रहे थे।

इंडियन एक्सप्रेस की इस खबर के अनुसार, इस काम के लिए पांच पुलिस वाले लगाये गए थे, इनमें दो महिलाएं थीं। इस बारे में संपर्क करने पर डीसीपी, प्रणव तायल ने टिप्पणी करने से मना कर दिया। संबंधित पहलवान का आरोप है कि दिल्ली पुलिस ने यह सुनिश्चित नहीं किया (या कर पाई) कि इसकी जानकारी मीडिया को न हो। सांसद ब्रज भूषण सिंह ने बाद में कहा कि कोई उनसे मिलने नहीं आया। इसमें दिलचस्प यह है कि दिल्ली पुलिस के डीसीपी ने ट्वीटर पोस्ट करके कहा कि महिला पहलवान को ब्रज भूषण सिंह के घर ले जाने की खबर गलत है। कहने की जरूरत नहीं है कि हाल-फिलहाल की घटनाओं और खबरों से लग रहा था कि सरकार इस मामले को निपटाने की कोशिश में है और चाहती है कि ब्रजभूषण सिंह की गिरफ्तारी के बिना बात बन जाये। साफ है कि इसमें डराना-धमकाना शामिल है। दूसरी ओर, दिल्ली पुलिस भी मीडिया से बात नहीं कर रही है और ट्वीट रूपी मन की बात कर रही है।  

इंडियन एक्सप्रेस ने आज लिखा है कि एक अवयस्क ने दो बार यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था पर बाद में उसे वापस ले लिया है। अवयस्क ने पहली बार पुलिस को बयान दिया था और बाद में फिर मजिस्ट्रेट के सामने फिर भी कार्रवाई से पहले ही उसने इसे वापस ले लिया है और कल टाइम्स ऑफ इंडिया में इसका प्रचार भी था। इस मामले में मुद्दा सिर्फ यह नहीं है कि ब्रज भूषण सिंह ने जो किया उसकी सजा मिले। वो तो पहली जरूरत है। लेकिन उसके बिना कौन अपनी बेटी को ओलंपिक भेजेगा और जो जाएंगी वो पदक लाएंगी या सांसदों / मंत्रियों / खेल संगठनों के पदाधिकारियों से शोषण करवाएंगी? कॉमनवेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार पर हंगामा याद है। पदक कम मिलने पर कटाक्ष तो याद ही होगा। पदक मिलने पर श्रेय लेना, फोटू खिंचवाना कौन भूला होगा। पर पदक के लिए माहौल अनुकूल रहे इसकी चिन्ता देशभक्त सरकार को नहीं है तो किसे होनी चाहिए? लेकिन इससे संबंधित खबर?    

अखबारों में आज एक ही खबर इधर-उधर, अलग तरह से छपी हैं और इससे साफ है कि आज खबर नहीं है और जनहित में पहलवानों के मामले में खबर लिखी जानी चाहिए थी। खबर थी भी जो इंडियन एक्सप्रेस में छपी पर बाकी अखबारों ने भर्ती का माल छापा है। आपको याद होगा कि ब्रजभूषण सिंह ने आरोपों को झूठा कहा है और इस मामले में नार्को टेस्ट कराने की बात भी उठी थी। ब्रजभूषण सिंह ने कथित रूप से नार्को टेस्ट कराने की चुनौती दी थी और टेलीविजन मीडिया ने इसका खूब प्रचार किया। जवाब में पहलवानों ने कहा कि वे सब नार्को टेस्ट के लिए तैयार हैं। शर्त सिर्फ यह है कि यह टेलीविजन पर हो ताक जनता को पता रहे कि पहलवानों से क्या साल पूछे गए और सरकारी पार्टी के सांसद से क्या। इसके बाद से मामला ठंडे बस्ते में चला गया है। उधर अवयस्क द्वारा आरोप वापस लिये जाने का खूब प्रचार है। आज जब खबर नहीं थी तो यह खबर भी हो सकती थी। खबर नहीं थी, इसका पता शीर्षक से ही चल जाएगा। आप भी देखिये –  

  1. मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरण ने कहा है और द हिन्दू में लीड छपा है,  “अर्थव्यवस्था ऑटो पायलट पर , वर्षों ज्यादा गर्म नहीं होगी”। सवाल है कि अगर ऐसा ही है तो उनकी भूमिका क्या है। रिजर्व बैंक अपने बड़े नोट समय पूरे होने पर वापस ले लिया करेगा और छोटे नोट मैले, फटे पुराने चलते रहेंगे – ऑटो मोड में। 
  2. रक्षक बने भक्षक। टाइम्स ऑफ इंडिया की आज की लीड के अनुसार मणिपुर के एक गांव में खाकी पहने लोगों ने 67 साल की महिला और दो अन्य को मार डाला। 
  3. तीन दिन की भंगुर शांति के बाद, मणिपुर में नए हमलों की शुरुआत (हिन्दुस्तान टाइम्स)  
  4. इंडियन एक्सप्रेस की लीड है, अल निनो सात साल  बाद वापस आया, जून में आने का असर मानसून के दूसरे आघे हिस्से पर पड़ने की संभावना। 
  5. द टेलीग्राफ की लीड है, पैरों की देखभाल ने रेलवे की सुरक्षा को रौंद डाला।  आर सूर्यमूर्ति, संबित साहा और पिनाक घोष की बाईलाइन और नई दिल्ली/कलकत्ता डेटलाइन की इस खबर के अनुसार, रेल सुरक्षा में सुधार के लिए 2017 में नरेंद्र मोदी सरकार ने एक विशेष फंड तैयार किया था जिसका दुरुपयोग फुट मसाजर, क्रॉकरी, बिजली के उपकरण, फर्नीचर, विंटर जैकेट, कंप्यूटर और 

एस्केलेटर खरीदने, उद्यान विकसित करने, शौंचालय बनाने, वेतन और बोनस का भुगतान करने तथा झंडा लगाने के लिए किया गया था। यह भयानक विवरण भारतीय रेलवे में पटरी से उतरने के मामलों की एक ऑडिट रिपोर्ट में छिपा हुआ है। 2017-18 से 2020-21 तक 48 महीने की अवधि से संबंधित चार चुनिंदा महीनों – दिसंबर 2017, मार्च 2019, सितंबर 2019 और जनवरी 2021 में 11,464 वाउचरों की रैंडम ऑडिट जांच और प्रत्येक जोनल रेलवे के दो चुने हुए डिविजनों को कवर करने से सुरक्षा कोष के तहत 48.21 करोड़ रुपये के “व्यय की गलत बुकिंग” का खुलासा हुआ। यह रेलवे में धन के दुरुपयोग और सुरक्षा को नजरअंदाज करने के साथ इस कोष के निर्माण के लिए दी गई दलीलों को कमजोर करने का उदाहरण है जबकि लगता यह है कि इसकी जरूरत रेलवे सुरक्षा में सुधार के लिए समझी गई होगी। 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।