सूरत: अखबारों ने कैसे एक हादसे की ख़बर को राजनीतिक बना डाला

मीडिया विजिल मीडिया विजिल
मीडिया Published On :

PTI Photo


टाइम्स ऑफ इंडिया ने सूरत की खबर के शीर्षक में बताया है कि आग लगने से मरने वाले 19 बच्चों में 16 लड़कियां हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया ने ही अपनी एक खबर में बताया है कि बीजू जनता दल की 42 प्रतिशत सांसद महिलाएं हैं और इसी अखबार ने 17वीं लोक सभा की महिला सांसदों की राज्यवार सूची छापी है। नाम, आयु, पार्टी, सीट और परिसंपत्तियों के विवरण के साथ। और ये तीनों ही खबरें पहले पन्ने और उससे पहले के अधपन्नों पर है। महिला केंद्रित इन खबरों के अलावा आज टाइम्स ऑफ इंडिया में एक और महत्वपूर्ण खबर पहले पन्ने पर है जो बताती है कि भारत में पिछले चार वर्षों में एजुकेशन लोन (शिक्षा के लिए कर्ज) का संवितरण (भुगतान) 25 प्रतिशत कम हो गया है। 31 मार्च 2015 को कर्ज पाने वाले छात्रों की संख्या 3.34 लाख थी जो 31 मार्च 2019 को 2.5 लाख रह गई थी। अखबार ने लिखा है कि इस कारण बैंकों का बढ़ा हुआ एनपीए है जो पिछले चार साल में दूना हो गया है। इस दौरान सक्रिय कर्ज की संख्या भी कम हुई है पर दी गई कर्ज की राशि वित्त वर्ष 16 के मुकाबले वित्त वर्ष 19 में 34 प्रतिशत बढ़ गई है। वित्त वर्ष 16 में यह राशि 16,800 करोड़ रुपए थी जो वित्त वर्ष 19 में बढ़कर 22,550 करोड़ रुपए हो गई। इससे पता चलता है कि बैंकों की दिलचस्पी बड़े कर्जों में ही है।

मैं जो अखबार देखता हूं उनमें, दैनिक भास्कर ने मरने वालों की संख्या 21 बताई है और लिखा है कि इनमें 18 लड़कियां हैं। पर यह बात शीर्षक में नहीं है और ना कहीं हाईलाइट की गई है। खबर के मुताबिक, 21 लोग मरे हैं इनमें 20 जिन्दा जल गए और एक बच्चे की कूदने से मौत हुई। मरने वालों में 18 लड़कियां हैं। सभी की उम्र 15 से 22 साल की थी। सत्तारूढ़ दल के, “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” के नारे के बीच एक हादसे में मरने वाले 19 बच्चों में 16 (या 21 में 18) लड़कियां होना, संयोग हो सकता है पर खबर देने वाले इसे प्रमुखता दें और न दें – दोनों के अपने मायने हैं। इसलिए, सूरत की खबर को आपके अखबार ने कैसे छापा है यह आप देखिए।

मैं जो अखबार देखता हूं उनमें यह खबर कैसे छपी है इसकी चर्चा आगे करता हूं। वैसे, सूरत की घटना दिल्ली के अखबारों में पहले पन्ने पर हो – यह आम तौर पर नहीं होता है। इस मामले में मरने वाले बच्चे थे, कोचिंग के लिए गए थे, घटना सूरत जैसे शहर की है और इमारत की चौथी मंजिल कथित रूप से अवैध थी (मतलब गुजरात मॉडल में भ्रष्टाचार), अग्निशमन के उपाय (फिर भ्रष्टाचार) जैसी कई बातें हैं जिनकी वजह से दिल्ली के अखबारों ने इसे पहले पन्ने पर रखा है। ऐसे में किस बात को तवज्जो दी गई है और किसे नहीं वह सामान्य पत्रकारिता नहीं, राजनीति भी हो सकती है।

इसे इसी लिहाज से देखा जाए। मैंने भी आज इस खबर को इसीलिए चुना है। हालांकि, मुझे अग्निशमन विभाग से संबंधित अपना अनुभव भी साझा करना है। बहुमंजिली इमारतों के मामले में देश भर में अग्निशमन से संबंधित नियम हैं और भवन मालिक को यह सुनिश्चित करना होता है कि सभी बहुमंजिली इमारतों में आग से निपटने और आग बुझाने के पुख्ता इंतजाम हों। गाजियाबाद में जब तक मेरा इससे वास्ता था, मुझे बताया गया था कि हर बिल्डिंग में अग्निशमन उपायों की हर साल जांच की जाती है और हर साल संबंधित प्रमाणपत्र का नवीकरण होता है। मेरा अनुभव है कि नियम चाहे जरूरी हों, बहुत सख्त हैं और उनका पालन खर्चीला व महंगा है। इससे भ्रष्टाचार की गुंजाइश है और लोग पैसे ले-देकर प्रमाणपत्र की बाध्यता को नजरअंदाज कर देते हैं। इसका असर यह है कि आग बुझाने के लिए रसायनों वाला साधारण लाल सिलेंडर भी इमारतों में नहीं होता है।

मेरा मानना है कि अगर इतना इंतजाम भी हो तो आग पर समय रहते नियंत्रण पाया जा सकता है खासकर दिन के समय जब लोग सो नहीं रहे होते हैं और सामान्य गतिविधियां चल रही होती हैं। अक्सर ये सिलेंडर नहीं होने से शुरुआती आग पर काबू नहीं पाया जा सकता है और जब तक बाहर से सहायता आती है, स्थिति बेकाबू हो जाती है। आग लगने की किसी भी घटना की रिपोर्टिंग में यह पहली सूचना होनी चाहिए कि भवन के पास आवश्यक, वैध प्रमाणपत्र था कि नहीं। पर ना इस बारे में पूछा जाता है ना बताया जाता है और मान लिया जाता है कि नहीं ही होगा। इसीलिए आग लगी। ऐसे में कार्रवाई अग्निशमन अधिकारी के खिलाफ होनी चाहिए पर वही जांच करता है और कभी उसे दोषी पाए जाने की खबर प्रमुखता से नहीं छपती है। सूरत मामले में भी दोषारोपण की खबरें हैं।

तस्वीरों में करोड़ों रुपए के कई फायर टेंडर आग बुझाते दिख रहे हैं। यानी सरकारी इंतजाम तो थे (क्योंकि इनकी खरीदारी में कमाई है) पर इमारत में अग्निशमन के उपाय नहीं थे (क्योकि भवन मालिक से मिलीभगत होगी)। और ये मामले ऐसे ही रह जाएंगे। दिल्ली के उपहार सिनेमा में 13 जून 1997 को लगी आग का मामला अपवाद है। इसमें 59 लोगों की मौत हो गई थी। 103 लोग घायल हुए थे। दरअसल, मारे गए लोगों के परिजनों ने मिलकर संघर्ष किया और वर्षों लगे रहकर बड़े बिल्डर को जेल भिजवाया। मुआवजा लिया। लेकिन हादसे फिर न हों इसका पुख्ता बंदोबस्त नहीं हुआ है और दिल्ली समेत देश भऱ में हादसे होते रहते हैं। भ्रष्टाचार मिटाने के दावों से भी इनका कोई संबंध नहीं है। और आग दिल्ली में लगे या दमन दियू में अग्नि शमन के उपाय नहीं होने से ही फैलेगी और जान-माल का नुकसान होगा।

अब खबर पर आता हूं। मैं जो अखबार देखता हूं उनमें कोलकाता का द टेलीग्राफ अकेला अखबार है जिसने आज रूटीन खबरों के पहले पन्ने पर इस खबर को नहीं छापा है। अखबार में पहले पन्ने पर इस घटना की कुछ तस्वीरें हैं जिनके बारे में बताया गया है कि वे वीडियो फुटेज से ली गई हैं। फोटो कैप्शन में मुख्य सूचना के साथ बताया गया है कि खबर अंदर के पन्ने पर है। लेकिन दिल्ली के जो अंग्रेजी – हिन्दी के अखबार मैं देखता हूं उन सबमें यह खबर लीड है। इंडियन ए्क्सप्रेस ने लिखा है कि मरने वालों में सबसे छोटा चार साल का था और सबसे बड़ा 21 साल का। एक अलग खबर में बताया गया है कि ज्यादातर 12वीं के नतीजे का इंतजार कर रहे थे। हिन्दुस्तान टाइम्स ने यह खबर गुजरात के स्वास्थ्यमंत्री, कनु कनानी के हवाले से दी है।

अमर उजाला में यह खबर लीड नहीं है। लीड के साथ तीन कॉलम में टॉप पर बॉक्स है। अखबार ने खबर के साथ प्रमुखता से छापा है, पीएम ने हादसे पर जताया दुख। सूरत में आग की घटना से बेहद व्यथित हूं। मेरी संवेदना पीड़ित परिवारों के साथ है। घायलों के जल्द स्वस्थ होने की कामना करता हूं। – नरेन्द्र मोदी, प्रधानमंत्री। अखबार में इस खबर का शीर्षक है, कोचिंग सेंटर में आग, जान बचाने के लिए कई चौथी मंजिल से कूदे, 20 की मौत। इस खबर के पहले पैरे में मरने वालों के बारे में बताया गया है, 15 छात्रों समेत 20 की मौत हो गई। छात्र वहां कोचिंग के लिए आए थे।

दैनिक जागरण का शीर्षक है, सूरत की चार मंजिला इमारत में आग, कोचिंग पढ़ने वाले 20 छात्रों की मौत। जागरण संवाददाता की इस खबर के मुताबिक, कोचिंग क्लासेस में पढ़ने वाले 20 छात्रों की मौत हो गई। आग की वजह शॉर्ट सर्किट को बताया जा रहा है। राज्य सरकार ने घटना के लिए सूरत महानगरपालिका को जिम्मेदार ठहराया है और मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं। जागरण ने भी प्रधानमंत्री का शोक संदेश छापा है। इसमें अमर उजाला के अलावा एक अतिरिक्त वाक्य है, मैंने गुजरात सरकार और स्थानीय अधिकारियों को प्रभावितों को हर संभव सहायता प्रदान करने के निर्देश दिए हैं। अखबार ने मुख्यमंत्री का भी शोक संदेश छापा है और बताया है कि राहुल गांधी ने भी दुख जताया है।

राजस्थान पत्रिका ने इस खबर को पांच कॉलम में लीड बनाया है और दो लाइन का शीर्षक है, सूरत के कोचिंग कांपलेक्स में भीषण आग, जान बचाने को कूदे, 19 की मौत। इंट्रो है, घबराहट में कई छात्रों ने लगाई चौथी मंजिल से छलांग। खबर में बताया गया है दम घुटने से 19 छात्रों को अपनी जान गंवानी पड़ी। पीएम मोदी ने जताया दुख यहां भी खबर के साथ प्रमुखता से है। नवोदय टाइम्स ने मुख्यमंत्री विजय रूपानी के हवाले से खबर छापी है पर 18 लड़कियों के मरने की सूचना नहीं है। प्रधानमंत्री का शोक संदेश जरूर है। नवभारत टाइम्स ने बताया है कि दमकल की 19 गाड़ियां मौके पर भेजी गईं। दो हाइड्रॉलिक प्लैटफॉर्म भी बनाए गए। लेकिन वे ऊपरी मंजिल तक नहीं पहुंच पाए।