Telegraph में एक पन्‍ने के शीर्षक “HE IS BACK” में अक्षरों का रंग संयोजन देखिए

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


आज के अखबारों में दिलचस्प है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फोटो। एक ही मौके की लगभग एक जैसी फोटो अलग-अलग साइज और स्टाइल में कई अखबारों में छपी है। दैनिक भास्कर और अमर उजाला में तो बिल्कुल एक जैसी। इतनी बड़ी जीत को हिन्दी अखबारों में कायदे से प्रस्तुत नहीं किया गया है। अंग्रेजी अखबारों में कोलकाता का द टेलीग्राफ आज भी अनूठा है। पहले पन्ने पर सिर्फ, “ही इज बैक” और उसमें भी ‘ही’ काफी बड़े पर गेरुआ अक्षरों में सारी बात कह देता है। इसके अलावा, अखबार ने आज पहले पन्ने पर सीटों की संख्या के अलावा सिर्फ यह लिखा है उत्तर, पूर्व और पश्चिम में पार्टी को चौंकाने वाले लाभ मिले हैं।

मैंने, हाल में छह खबरें छत्तीस डिसप्ले में लिखा था कि कैसे अखबार खबर छाप तो देते हैं पर ऐसे कि पढ़ने वाले के दिमाग में उसका असर ही न हो। आज यह शीर्षक याद रहने वाला है। खबरों के पन्ने पर सात कॉलम का शीर्षक भी जोरदार है, थंडर ऑफ मेजॉरिटी यानी बहुमत का धमाका या बहुमत की गूंज। आज हिन्दी अखबारों में ऐसा कोई शीर्षक नहीं है जो याद रहे। अंग्रेजी के अखबार एक-दो या तीन शब्द से जो खेल करते हैं वह हिन्दी अखबारों में नहीं दिखाई देता है और इस लिहाज से आज टाइम्स ऑफ इंडिया का शीर्षक हिन्दी में है और उल्लेखनीय भी – “चौकीदार का चमत्कार”। दिलचस्प यह कि हिन्दी के किसी अखबार में नहीं है।

आज के अखबारों में दूसरी खास बात यह है कि कई अखबारों में प्रधानमंत्री को जो फोटो उपयोग की गई है वह एक जैसी और एक ही मौके की है। इसी फोटो का बड़ा फ्रेम छोटे आकार में कई अखबारों में है। इनमें टाइम्स ऑफ इंडिया, नवभारत टाइम्स आदि उल्लेखनीय हैं। आज की जीत जितनी जबरदस्त है उतनी इंडियन एक्सप्रेस के शीर्षक, मोदी 2.024 से नहीं लगती है। इसके अलावा, एक्सप्रेस का उपशीर्षक है, इंदिरा गांधी के 48 साल बाद किसी और प्रधानमंत्री दोबारा बहुमत मिली। अखबार ने इसका कारण लिखा है, वोटों की संख्या 17 करोड़ से बढ़कर 22 करोड़ हो गई और भाजपा की ऐतिहासिक जीत का कारण यही है।

दूसरी ओर, टाइम्स ऑफ इंडिया ने चौकीदार का चमत्कार के तहत लिखा है, राष्ट्रवाद, हिन्दुत्व, कल्याण ने भाजपा को और बड़ी जीत की शक्ति दी है। इसके मुकाबले हिन्दुस्तान टाइम्स का शीर्षक ज्यादा सरल और सपाट है – भारत ने मोदी में विश्वास रखा। मैं जो अखबार देखता हूं उनमें किसी में भी इस जीत के कारणों पर कोई खास चर्चा पहले पन्ने पर नहीं है। अकेले दैनिक भास्कर ने लिखा है, शाह ने 120 सांसदों के टिकट काटे, उनकी जगह 100 नए जीते। इसके मुताबिक, भाजपा के सर्वे में मोदी की लोकप्रियता 50% थी। एयरस्ट्राइक के बाद यह बढ़कर 72% हो गई। इसलिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने प्रत्याशियों के बजाय सिर्फ मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने की सफल रणनीति बनाई। 120 सांसदों के टिकट काट दिए, जिनके प्रति अलग-अलग सर्वे में नाराजगी दिख रही थी। उनकी जगह उतारे गए 100 से ज्यादा प्रत्याशी जीत गए।

भाजपा की रणनीति मोदी की लोकप्रियता की लहर में उम्मीदवारों के प्रति नाराजगी को खत्म करने की थी, इसलिए उम्मीदवारों को पूरी तरह से अप्रासंगिक कर दिया गया। हर वोट मोदी के नाम पर मांगा गया। मोदी ने रैलियों में उम्मीदवारों के नाम तक नहीं लिए। इससे पहले अमित शाह ने नैनो मैनेजमेंट का सिस्टम डेवलप कर दिया था। बूथों पर 90 लाख सक्रिय कार्यकर्ता थे, जबकि सामाजिक समीकरण के लिहाज से हर बूथ पर 20-20 सदस्य (1.8 करोड़) जोड़े यानी 2 करोड़ 60 लाख कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी की गई। ये छह महीने सक्रिय रहे। इसके अलावा, अखबार ने जीत कैसे मिली के तहत गेम मेकर, गेम चेंजर और गेम ब्रेकर की भी चर्चा की है और याद दिलाया है कि आगे क्या हो सकता है या होना चाहिए। इनमें राम मंदिर का मामला, कश्मीर में धारा 370 तथा पांच लाख तक की आय पर आयकर खत्म होने जैसे मुद्दे हैं।

कहने की जरूरत नहीं है कि आज के अखबारों को जीत की जश्न में डूबने की बजाय अपना सामान्य काम जारी रखने था पर ऐसा है नहीं। ज्यादातर विशेष प्रस्तुत जीत के चमत्कार पर है न कि उसके कारण पर। इस लिहाज से सिर्फ हिन्दुस्तान में पहले पन्ने पर विशेष टिप्पणी है। शीर्षक है, आशा और विश्वास के उफान से उपजा महाविजय। इसमें संपादक शशि शेखर ने लिखा है, नरेन्द्र मोदी के गुजरे पांच साल के कार्यकाल को देखिए। ऐसा नहीं है कि उनके सारे चुनावी वायदे पूरे हुए, फिर भी इस देश की जनता ने उन्हें दोबारा सिर-माथे पर बैठाया। वजह? वह देश के करोड़ों लोगों को समझाने में कामयाब रहे कि वे उनकी भलाई के लिए ईमानदारी से मेहनत कर रहे हैं। इसके अलावा वे आगे लिखते हैं, मोदी में दूसरी सबसे बड़ी खूबी यह है कि वह देश की विविधता और उसके बहुलतावादी रवैये को जानते हैं। यह वजह है कि चरण दर चरण उनके भाषणों का आकार प्रकार बदलता गया। …. आज यह साबित हो गया है कि वे जो कुछ बोल रहे थे, मतदाता उसको गौर से सुन रहा था, स्वीकार कर रहा था।

कुल मिलाकर, आज के अखबारों में हिन्दुस्तान ज्यादा संयमित लगा। शीर्षक से लेकर त्वरित टिप्पणी तक में। लीड का फ्लैग शीर्षक है, पहली बार कांग्रेसी सरकार को दोबारा पूर्ण बहुमत। मुख्य शीर्षक है, महाविजेता मोदी। दोनों एक गंभीर सूचना को गंभीरता से पेश करना है। पहले पन्ने पर डबल कॉलम की दो खबरें हैं, बदनीयत से काम नहीं करूंगा मोदी और दूसरा राहुल की वायनाड से प्रचंड जीत, अमेठी हार। अमर उजाला का मुख्य शीर्षक है, प्रचंड मोदी। दूसरी सूचना है भाजपा की 2014 से भी बड़ी जीत। दोनों में ना कुछ नया है ना खास। दैनिक जागरण का शीर्षक भी भाजपा का प्रचार है, फिर एक बार मोदी सरकार।

नवोदय टाइम्स का शीर्षक है, नरेन्द्र दमदार मोदी ने लगातार दूसरी बार सत्ता हासिल कर रचा इतिहास। पहले पन्ने पर जो दूसरी खास बातें हैं उनमें भाजपा पहली दफे 300 और 51 सीटों पर कांग्रेस 56 ईंच से कम है आदि। राजस्थान पत्रिका का शीर्षक है, मोदी शहंशाह और इसमें शाह पर तवज्जो अमित शाह के लिए है और इसलिए अमित शाह की फोटो भी है जो नरेन्द्र मोदी की फोटो की तुलना में काफी छोटी है। पत्रिका ने खबरों का एक पहला पन्ना और बनाया है। इसमें गुलाब कोठारी का विशेष संपादकीय, भारत भाग्य विधाता भी है।

नवभारत टाइम्स की मुख्य खबर का शीर्षक, अजेय मोदी है और अखबार ने बताया है कि महानायक नरेन्द्र मोदी की एक बार फिर महावापसी हुई और यह भी कि प्रधानमंत्री के करिश्माई नेतृत्व ने यह ऐतिहासिक जीत दिलाई है। नवभारत टाइम्स में पहले पन्ने पर, इन पांच वजहों ने बीजेपी की बड़ी जीत को आसान बना दिया है और इसके साथ, लेकिन इस विराट जीत ने तोड़ दिए पांच सपने भी है। अंदर स्पेशल कवरेज पढ़ने का निमंत्रण भी है। मेरे ख्याल से अखबारों के लिए यह रूटीन काम है और उन्हें बिना पार्टी बने सिर्फ सूचना देनी चाहिए। सूचना बड़ी और अच्छी हो सकती है। उससे खुशी, अफसोस या व्यंग दिखे पर सूचनाएं तो हों।

इस लिहाज से दैनिक भास्कर ने ही पहले पन्ने पर सूचनाएं दी हैं। इनमें यह भी महत्वपूर्ण है कि, भाजपा ने बंगाल तथा उड़ीशा में 22 सीटें जुटाईं।


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