आरटीआई कानून में संशोधन के खिलाफ राष्ट्रपति से अपील को सिर्फ टेलीग्राफ ने लीड बनाया है

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


आज के अखबारों में तरह-तरह की सरकारी और प्रचार वाली खबरें हैं। सरकारी खबरों से मेरा मतलब है बाढ़ में फंसी ट्रेन से यात्री बचा लिए गए यह सरकारी है। खबर (जनहित) की तब होती जब एक दिन पहले छपी होती कि ट्रेन फंस गई है उसमें इतने यात्री हैं और बचाव के लिए कुछ नहीं हो रहा है या क्या हो रहा है। इसी तरह, घर में घुसकर मारूंगा के बाद कारगिल में हारने वाले आतंकवाद को दे रहे बढ़ावा (दैनिक जागरण) का क्या मतलब है? वह भी तब जब, लगता है कश्मीर में कुछ बड़ा होने वाला है (नवभारत टाइम्स) जैसे शीर्षक हैं और उसका विवरण नहीं। इसके साथ खबर है, घाटी में 10 हजार सैनिकों की तैनाती का जारी हुआ आदेश और कश्मीरी नेताओं ने उठाए सवाल, केंद्र ने कहा – रुटीन तैनाती है यह। कुल मिलाकर अखबारों में भ्रम है और खबरों में भी है। हो सकता है खबर देने वालों में भी हो।

आज तो इंडियन एक्सप्रेस ने भी सरकारी प्रचार को ही लीड बनाया है। हालांकि पहले पन्ने पर एसपी ने कांवड़िये के पैर की मालिश की जैसी खबर है। पर आरटीआई वाली खबर एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर नहीं है। एक्सप्रेस ने आरटीआई से कई खबरें की हैं और इसके संवाददाता को इसके लिए पुरस्कार भी मिला है, उनने किताब भी लिखी है पर आरटीआई कानून को बचाने के लिए एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर खबर नहीं होना चौंकाता है। मुझे यकीन नहीं हुआ और लगा कि एक्सप्रेस इस मामले में दूसरों से आगे होगा और पहले ही खबर छाप दी होगी। पर कल परसों के अखबार में (पहले पन्ने पर) खबर नहीं दिखी। राज्य सभा में विधेयक पास होने की खबर शुक्रवार, 26 जुलाई को जरूर पहले पन्ने पर थी। इसमें बताया गया था कि राज्यसभा में विपक्ष में दरार, आरटीआई को कमजोर करने का विधेयक पास हो गया। मुझे लगता है कि इस मामले में शैलेष गांधी का प्रयास समर्थन (और रिपोर्ट) करने लायक है।

आपको बताऊं कि पूर्व सूचना आयुक्त शैलेष गांधी ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर ‘नागरिकों के मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए’ सूचना के अधिकार संशोधन विधेयक को पुनर्विचार के लिए संसद को लौटा देने की अपील की है – एक सार्थक खबर है। गांधी ने कहा है कि जब कभी सरकार ऐसी कोई सूचना उजागर नहीं करती है जिसे छूट प्राप्त नहीं है तब नागरिक आयोग के पास जाता है। इससे आयोग पर एक जिम्मेदारी आती है जिसे नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए निष्पक्ष फैसला करने के लिए आरटीआई कानून के तहत सृजित किया गया है। अंतिम अपीलय प्राधिकरण सूचना आयोग है। ऐसे में उन्हें अपना कर्तव्य निष्पक्ष रूप से निभाने के लिए सरकार से स्वतंत्र रहने की जरूरत है।’’

2009 से 2012 तक केंद्रीय सूचना आयोग में सूचना आयुक्त रहे शैलेष गांधी का कहना है कि इस संशोधन के ज़रिये सरकार आरटीआई क़ानून में अन्य संशोधन करने का रास्ता खोल रही है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद उस स्थायी समिति के सदस्य थे जिसने सूचना के अधिकार विधेयक, 2004 को अंतिम रूप दिया था और सूचना आयोग को चुनाव आयोग के समतुल्य रखने का सुझाव दिया था ताकि वे ‘स्वतंत्र रूप से और पूर्ण स्वायत्तता के साथ’ अपना कर्तव्य निभा सकें। लेकिन मौजूदा सरकार ने ‘सूचना का अधिकार कानून 2005’ में भारी फेरबदल करते हुए ‘आरटीआई संशोधन विधेयक’ को संसद के दोनों सदनों में पास करा लिया है। अब इस विधेयक पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने हैं। ऐसे में इस ख़बर का महत्व आप समझ सकते हैं। पर खबर कहीं छपी? आपको दिखी?

ऐसा नहीं है कि आरटीआई कानून में संशोधन का कोई विरोध नहीं है और सब काम मीडिया को ही करना है। असल में, आरटीआई कार्यकर्ता इस संशोधन विधेयक का कड़ा विरोध कर रहे हैं। आज टेलीग्राफ में अंदर के पन्ने पर तस्वीर के साथ इसकी भी खबर है। संयोग से यह प्रदर्शन दिल्ली में हुआ है और दिल्ली के अखबारों ने पहले पन्ने पर फोटो नहीं छापी। देखिए आपके अखबार में है? दूसरी ओर, ज्यादातर अखबार पहले पन्ने पर आपको बता रहे हैं, “राष्ट्र की रक्षा के लिए किसी दबाव और प्रभाव में काम नहीं (करेंगे) : मोदी” (हिन्दुस्तान में पहले पन्ने पर टॉप, इंडियन एक्सप्रेस में लीड, दैनिक भास्कर में भी पहले पन्ने पर)। मुझे नहीं लगता कि प्रधानमंत्री के भाषण का यह कोई खास या महत्वपूर्ण अंश है जिसे इतनी प्रमुखता दी जाए। यह छवि निर्माण और बिगाड़ो अभियान का हिस्सा हो सकता है।

आरटीआई कानून के संबंध में सरकार का कहना है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त का वेतन सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर होता है। इस तरह मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्त वेतन, भत्ता और अन्य सुविधाओं के मामले में सुप्रीम कोर्ट के बराबर हो जाते हैं। लेकिन सूचना आयुक्त और चुनाव आयुक्त दोनों का काम बिल्कुल अलग है। सरकार का तर्क है, ‘चुनाव आयोग संविधान के अनुच्छेद 324 की धारा (1) के तहत एक संवैधानिक संस्था है वहीं केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोग आरटीआई एक्ट, 2005 के तहत स्थापित एक सांविधिक संस्था है। चूंकि दोनों अलग-अलग तरह की संस्थाएं हैं इसलिए इनका कद और सुविधाएं उसी आधार पर तय की जानी चाहिए।’

सवाल उठता है कि अगर ऐसा है भी तो क्या दोनों संस्थाओं को एक जैसा नहीं बनाया जाना चाहिए। क्या सूचना आयोग को चुनाव आयोग की तरह स्वतंत्र होने की जरूरत नहीं है और यह भी कि क्या चुनाव आयोग वाकई स्वतंत्रता पूर्वक काम कर रहा है, कर पा रहा है। ऐसे में आरटीआई कानून में संशोधन का विरोध और राष्ट्रपति से अपील के अपने महत्व हैं पर अखबारों ने जिन खबरों को प्राथमिकता दी है उनमें इलेक्ट्रीक कारों पर टैक्स कम किया जाना (हिन्दुस्तान टाइम्स) शामिल है। तथ्य यह है कि कारें बिक नहीं रही हैं, शोरूम बंद हो रहे हों, एंसीलरी उद्योग में 10 लाख नौकरियां जाने का खतरा है वैसे समय में केंद्र सरकार इलेक्ट्रीक कारों पर टैक्स कम कर रही है तो यह खबर जरूर है पर महत्व?

इन दिनों खबर क्या है? इसे लेकर कोई भी भ्रमित होगा। और ऐसे में अखबारों के पास दो ही विकल्प हैं – या तो भ्रम (और लाचारी) स्वीकार कर लो या फिर राजा का बाजा बजाओ। हमारे अखबार दोनों कर रहे हैं। नवभारत टाइम्स ने पहले पन्ने से पहले के अपने अधपन्ने पर (सबसे ऊपर, सबसे पहले दिखने वाली खबर का) शीर्षक लगाया है, लगता है कश्मीर में कुछ बड़ा होने वाला है। इसके साथ खबर है, घाटी में 10 हजार सैनिकों की तैनाती का जारी हुआ आदेश और कश्मीरी नेताओं ने उठाए सवाल, केंद्र ने कहा – रुटीन तैनाती है यह। इसके बाद आप क्या जानने के लिए खबर पढ़ेंगे? इसके साथ महबूबा मुफ्ती का बयान (दैनिक भास्कर, नवभारत टाइम्स) भी प्रमुखता से है, पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने कहा कि घाटी के लोगों में डर पैदा हो रहा है। कश्मीर की समस्या को सैन्य तरीके से हल नहीं हो सकती। नौकरशाही छोड़कर राजनीति में आए शाह फैसल ने कहा कि अफवाह है कि घाटी में कुछ बड़ा भयंकर होने वाला है। और लगभग यही लीड है। अखबार अफवाह खत्म करेंगे कि अफवाह को ही शीर्षक बनाएंगे?

कायदे से, अखबार को सूचना देनी चाहिए कि यह तैनाती किसी विशेष उद्देश्य के लिए है या रूटीन ही है। सरकार को भी अधिकृत सूचना देना चाहिए। पर अखबारों ने आपको सूचना दे दी आप तय कर लीजिए। डरते हैं तो डरते रहिए। आज जो खबरें प्रचार वाली नहीं हैं उनमें एक खबर सीबीआई के पूर्व अधिकारी राकेश अस्थाना के खिलाफ घूसखोरी का आरोप लगाने वाले हैदराबाद के कारोबारी सतीश बाबू सना को गिरफ्तार किया जाना भी है। सना को चार साल पुराने मनी लांडरिंग के केस में गिरफ्तर किया गया है। यह खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर है। राकेश अस्थाना शानदार तैनाती में हैं सो आप जानते ही हैं।

दैनिक जागरण शैली की खबर जानना चाहें तो अखबार में एक खबर टॉप पर है, पढ़ने लायक है इसलिए पेश कर रहा हूं, आजम खां पर कानूनी शिकंजा कसता जा रहा है। पुलिस उनके खिलाफ दायर मुकदमों में चार्जशीट लगा रही है तो अदालत में किसानों के बयान करा रही है। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी उनके खिलाफ जांच शुरू करने जा रही है। एसपी ने ईडी को रिपोर्ट भी भेज दी है। वहीं सैफनी में विवादित बोल के मामले में चार्जशीट कोर्ट में दाखिल कर दी गई है। इसके अलावा अनुसूचित जाति की जमीन बिना अनुमति खरीदने पर आजम के खिलाफ 16 नए मुकदमों की भी तैयारी चल रही है। लोकसभा चुनाव के दौरान आजम ने सात अप्रैल को सैफनी में हुई जनसभा में भड़काऊ भाषण देते हुए प्रशासन पर उनकी हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया था। संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के लिए अनर्गल शब्दों का इस्तेमाल किया था। वीडियो अवलोकन टीम के प्रभारी अनिल कुमार चौहान ने शाहबाद कोतवाली में आजम के खिलाफ तहरीर दी थी। अब पुलिस ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा-125 व 135(2) के तहत अतिरिक्त न्यायिक मजिस्ट्रेट (एसीजेएम) द्वितीय की कोर्ट में इस मामले में चार्जशीट दाखिल की है।

इससे पहले शाहबाद पुलिस द्वारा जयाप्रदा के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी के मामले में चार्जशीट लगाकर भेज चुकी है। जिलाधिकारी की कोर्ट में दर्ज होंगे 16 वाद : आजम के खिलाफ 54 आपराधिक और जमीन से जुड़े 14 मुकदमे दायर हो चुके हैं। दर्ज कुल मुकदमों में 26 तो इसी माह दर्ज हुए हैं। अब अनुसूचित जाति के लोगों की जमीन बिना अनुमति खरीदने के मामले में 16 नए वाद दायर करने की तैयारी है। अमर उजाला में लीड है, जैश का 19 वर्षीय आईईडी एक्सपर्ट लाहौरी मुठभेड़ में ढेर। देश में आतंकवाद के मामले में गिरफ्तार लोगों के संबंध में फैसला होने में वर्षों लग जाते हैं और 19 साल का लड़का ढेर कर दिया जाता है।

नवोदय टाइम्स में एजेंसी की एक खबर पहले पन्ने पर है जो दूसरे अखबारों में हो सकती थी। कर्नाटक में स्पीकर को हटाने की तैयारी। वैसे तो यह आम खबर है पर वहां स्पीकर की भूमिका की मद्देनजर महत्वपूर्ण हो गई है। कल हिन्दुस्तान टाइम्स में अंदर के पन्ने पर थी कि ऐसा किया जा सकता है। आज यह पुष्टि है। बाढ़ में फंसे ट्रेन से सैकड़ों जान बचाई हिन्दुस्तान में लीड है।


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