चिन्मयानंद उर्फ कृष्णपाल सिंह के मामले में आज निम्नलिखित सूचनाएं हैं 1. चिन्मयानंद की जमानत की अर्जी खारिज हो गई 2. पीड़िता की गिरफ्तारी पर रोक के बारे में हाईकोर्ट की एक पीठ ने कहा है कि इस पीठ को इस मामले में सुनवाई का अधिकार नहीं है और छात्रा सक्षम क्षेत्राधिकार वाली अदालत में अर्जी दे सकती है। इसके बावजूद हिन्दी के जो अखबार मैं देखता हूं उनमें यह खबर ऐसे छपी है जैसे अदालत ने उसकी मांग नामंजूर कर दी, आरोप में दम है और गिरफ्तारी की अनुमति मिल गई है और गिरफ्तारी अगर हुई, हो तो सकती है, तो जायज होगी जबकि तथ्य कुछ और है। इस तरह, अखबारों ने एक बलात्कारी के ब्लैकमेल के आरोप को ज्यादा तवज्जो दी है। यह इरादतन न भी हो तो निष्पक्ष पत्रकारिता की दशा-दिशा तो बताता ही है। यही नहीं, इस मामले में तबीयत खराब होने पर भी चिन्मयानंद को जमानत नहीं मिली है। इसलिए बड़ी खबर यह है न कि गलत पीठ में याचिका दायर कर दिया जाना। पर सभी अखबार एक जैसी गलती कैसे करते हैं यह मैं नहीं समझ पाया।
नवभारत टाइम्स में यह खबर एनबीटी ब्यूरो की है और इसका फ्लैग शीर्षक है, ब्लैकमेल मामले में गिरफ्तारी से राहत नहीं मिली। मुख्य शीर्षक है, चिन्मयानंद केस में पीड़िता भी हो सकती है अरेस्ट। आप जानते हैं कि पीड़िता के आरोप लगने के बाद चिन्मयानंद को तुरंत गिरफ्तार नहीं किया गया और उसके बाद फिरौती मांगने से संबंधित वीडियो लीक हुआ। मुझे पता नहीं है और ना अखबारों की खबरों से स्पष्ट है कि बलात्कार की शिकायत पहले की गई या फिरौती मांगने की? वैसे तो शिकायत यह भी है कि पुलिस ने पीड़िता की शिकायत दर्ज नहीं की तो उसने सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट किया और उसके बाद जो सब हुआ उसके दबाव में कार्रवाई शुरू हुई। ऐसे में फिरौती वसूलने की कोशिश का आरोप गलत या बचने के लिए सोची-समझी साजिश भी हो सकती है। बाद में लगाया गया हो तो जरूर। अगर स्वामी ने बलात्कार नहीं किया और उनसे फिरौती वसूलने की कोशिश हो रही थी तो शिकायत उन्हें पहले करनी चाहिए थी। वे कोई छुई-मुई नहीं थे कि बदनाम हो जाते। उनपर पहले भी ऐसे आरोप लगे हैं और वे अभी तक बचे ही हुए थे। ना ही वे यह सब पहली बार झेल रहे हैं।
इसलिए पीड़िता को जमानत नहीं मिलने से पहली नजर में उसपर लगे आरोप की गंभीरता स्थापित होगी। संयोग से गिरफ्तारी पर रोक लगाने की अपील हाईकोर्ट की जिस पीठ में की गई उसने खुद को इसपर सुनवाई के योग्य नहीं माना। ऐसे में यह लिखना ही हाईकोर्ट ने राहत या जमानत नहीं दी तथ्य नहीं है। पीड़िता की गिरफ्तारी के पक्ष में माहौल बनाना जरूर हो सकता है। किसी भी निष्पक्ष रिपोर्टर, संपादक को इस बात का ख्याल रखना चाहिए। वैसे भी, अखबार का काम सूचना देना है, माहौल बनाना नहीं। शीर्षक की सूचना अंदर खबर के प्रतिकूल हो यह बदनीयति न भी हो तो अक्षमता जरूर है। निष्पक्षता तो नहीं ही है।
दैनिक जागरण में यह खबर अखबार के संवाददाता की है। शीर्षक है, छात्र को झटका, हाई कोर्ट ने गिरफ्तारी पर रोक की मांग ठुकराई (छात्रा होना चाहिए)। खबर में कहा गया है, शाहजहांपुर की दुष्कर्म पीड़िता को ब्लैकमेलिंग के केस में इलाहाबाद हाई कोर्ट से राहत नहीं मिली। पीड़िता ने खुद की गिरफ्तारी पर रोक लगाने व कोर्ट में पहले से दर्ज बयान को दोबारा दर्ज कराने की मांग को लेकर अर्जी दाखिल की थी। अखबार ने एक गंभीर आरोप की खबर दी है, पीड़िता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रविकिरण का कहना था कि कोर्ट में पीड़िता का बयान दर्ज करते समय रिकार्डिग नहीं की गई, उसके बयान में बदलाव किया गया है। हर पृष्ठ पर हस्ताक्षर नहीं लिए गए। पेज क्रमवार नहीं हैं। हालांकि कोर्ट ने यह मांग नहीं मानी।
अमर उजाला ने इस मामले में पहले पन्ने पर सूचना छापी है और विस्तृत खबर अंदर के पन्ने पर है। अमर उजाला की खबर भी इसके ब्यूरो की है । शीर्षक है, चिन्मयानंद मामला : पीड़ित छात्रा की गिरफ्तारी पर रोक से कोर्ट का इनकार। अखबार ने इसके साथ ही पर एक अलग खबर छापी है कि चिन्मयानंद की जमानत की अर्जी भी खारिज हो गई और तबीयत खराब होने पर उन्हें लखनऊ रेफर किया गया है। अखबार ने लिखा है कि अदालत ने कहा कि वह इस मामले में सुनवाई नहीं कर सकती है इसलिए याचिका खारिज की जा रही है और गिरफ्तारी पर रोक के लिए छात्रा सक्षम क्षेत्राधिकार वाली अदालत में अर्जी दे सकती है। इसके बावजूद शीर्षक है, कोर्ट का इनकार और उपशीर्षक है, पूर्व केंद्रीय मंत्री से पांच करोड़ मांगने के केस में छात्रा की हो सकती है गिरफ्तारी। एक प्रभावशाली हस्ती पर जिस तरह का आरोप है और यह मामला जितनी चर्चा में है उसके मद्देनजर इस शीर्षक का असर यह होगा कि पुलिस छात्रा को गिरफ्तार कर भी ले तो लोगों को लगेगा कि जमानत नहीं मिलने पर उसे गिरफ्तार किया गया है जबकि जमानत मिलने का उसका विकल्प अभी खत्म नहीं है। पहले की ही तरह खुला हुआ है।
नवोदय टाइम्स और दैनिक भास्कर में यह खबर एजेंसी की है। नवोदय टाइम्स में भी इस खबर का शीर्षक है, अदालत का छात्रा की गिरफ्तारी पर रोक से इनकार। इसमें भी अंदर बताया गया है कि अदालत ने कहा, यदि पीड़ित छात्रा इस संबंध में कोई राहत चाहती है तो वह उचित पीठ के समक्ष नई याचिका दायर कर सकती है … गिरफ्तारी पर रोक लगाना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। ऐसा ही दैनिक भास्कर में है। सिर्फ दैनिक हिन्दुस्तान में यह खबर शीर्षक से संतुलित लगती है। इंटरनेट पर न्यूज18 डॉट कॉम और एबीपीन्यूज की खबरें भी ऐसी ही हैं। सबने लिखा है कि छात्रा को राहत नहीं मिली है जबकि राहत के मामले पर अभी विचार ही नहीं हुआ है। असल में हाईकोर्ट ने जमानत की अर्जी खारिज नहीं की है बल्कि सुनवाई करने वाली हाईकोर्ट की पीठ ने कहा कि यह पीठ इस मामले में केवल जांच की निगरानी करने के लिए नामित की गई है और गिरफ्तारी के मामले में रोक लगाने का कोई आदेश पारित करना उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है।