‘जागरण’ ने कोरोना से संबंधित खबरों में पाकिस्तान पर गुस्सा निकाला

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
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मैं हिन्दी के जो सात अखबार देखता हूं उनके पहले पन्ने की पहली यानी लीड खबरों में कुछ के शीर्षक इस प्रकार हैं, देवस्थानों पर भी कोरोना का ग्रहण (दैनिक भास्कर), जयपुर में तीन, दिल्ली में कोरोना का एक और मरीज अब ठीक (नवभारत टाइम्स), महामारी में भी पाकिस्तान को याद आया कश्मीर (दैनिक जागरण), 700 समुद्री जहाजों को नहीं दिया प्रवेश (अमर उजाला) और बड़ी कामयाबी … तीन बुजुर्ग कोरोना मुक्त (राजस्थान पत्रिका)। आप देखेंगे कि पांच में से दो अखबारों की लीड लगभग एक है और शीर्षक में ही मामूली अंतर है। दैनिक जागरण का शीर्षक सबसे अलग है और अभी मैंने दो अखबारों के लीड की चर्चा नहीं की है। वह इसलिए कि आज नवोदय टाइम्स में छह कॉलम की लीड है। आज किसी और अखबार में छह कॉलम की लीड नहीं है। जाहिर है, नवोदय टाइम्स ने इसे सबसे ज्यादा महत्व दिया है। शीर्षक है, कोरोना से मिलकर लड़ेंगे सार्क देश। सातवां शीर्षक है, (हिन्दुस्तान) संकल्प : कोरोना से सार्क देश मिलकर लड़ेंगे। यह संपादकीय स्वतंत्रता और विवेक के कारण पाठकों को मिली विविधता है। आप देखेंगे कि कोरोना से संबंधित खबरों को ही अलग-अलग अखबारों ने अलग ढंग से छापा है।

अमूमन लोग एक ही अखबार पढ़ते हैं। इसलिए एक दिन सभी अखबार क्या कह रहे हैं इसे देखने, समझने बताने का कोई खास महत्व पहली नजर में भले ना लगे पर इस तरह हम समझ सकते हैं कि अखबार कैसी खबरों को प्रमुखता देते हैं और कैसी खबरों को प्रमुख बना देते हैं। इसमें जो खबरें रह जाती हैं उनकी भी चर्चा हो जाएगी। हिन्दी अखबारों में आज जब जनहित की खबरें नहीं के बराबर हैं तो अखबार आखिर क्या परोस रहे हैं यह जानना हर पाठक के लिए जरूरी है। आज मैं इस चक्कर में नहीं पड़ूंगा कि हिन्दी अखबारों में कौन सी खबरें पहले पन्ने पर नहीं हैं। मैं जो खबरें हैं उनकी प्रस्तुति के अंतर से यह समझने की कोशिश करूंगा कि सरकार और प्रधानमंत्री की छवि बनाने या प्रचारित करने पर तो जोर नहीं दिया जाता है।
उदाहरण के लिए, नवोदय टाइम्स ने लिखा है, दक्षेस देशों ने रविवार को कोरोना वायरस से मिलकर मुकाबला करने का निश्चय किया। पहल करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक करोड़ डॉलर की प्रारंभिक पेशकश करते हुए कोविड-19 आपात कोष सृजित करने का प्रस्ताव किया। मोदी ने कहा, हम साथ मिलकर इससे बेहतर ढंग से निपट सकते हैं, दूर जाकर नहीं। दैनिक हिन्दुस्तान ने इसे और साफ लिखा है। यहां, एजेंसियों की खबर का पहला वाक्य है, कोरोना वायरस से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर शनिवार शाम (सार्क) देशों के नेता वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए एक-दूसरे से मुखातिब हुए। इस दौरान सार्क देशों ने कोरोना के साथ मिलकर लड़ने का संकल्प दोहराया (किया?)

खबर यह है कि इसमें इमरान खान शामिल नहीं हुए। उनकी जगह स्वास्थ्य मामलों पर विशेष सहायक जफर मिर्जा ने भाग लिया। दैनिक जागरण में इस खबर का शीर्षक बिल्कुल अलग है। मोदी की भूमिका यहां उपशीर्षक या दूसरी लाइन में इस प्रकार बताई गई है, “सार्क कांफ्रेंस : मोदी ने किया कोरोना से साझा जंग का आगाज”। खबर का इंट्रो है, वीडियो कांफ्रेंसिंग में इमरान खान के प्रतिनिधि ने अलापा कश्मीर राग। स्पष्ट है कि अखबार के केंद्र में पाकिस्तान है। ना कोरोना, ना कोरोना से बचाव, ना मिलकर लड़ने का संकल्प, ना प्रधानमंत्री की पहल। इसमें कोई बुराई नहीं है। हर व्यक्ति, हर खबर को अलग नजरिए से देखता है। और यह सही भी है। पर आजकल हिन्दी अखबारों को देखकर मोटे तौर पर लगता है कि सब एक ही जगह से एक ही नियमों के तहत संचालित किए जा रहे हैं। मैं अलग-अलग खबरों की प्रस्तुति का अंतर बताकर यह समझने की कोशिश करता हूं कि प्रधानमंत्री के समर्थन के मामल में सब एक जैसे कैसे हो जाते हैं।

सार्क देशों की पहल या सहमति कोरोना से लड़ने के लिए है और उसमें इमरान खान भले नहीं आए पर पाकिस्तान शामिल है कि नहीं यह खबर हो सकती थी। अगर प्रतिनधि के जरिए भी पाकिस्तान इसमें शामिल और सहमत है तो बाकी चीजें गौण हैं जिसे सिर्फ जागरण ने महत्व दिया है। यही नहीं, अखबार ने लिखा है, सम्मेलन के दौरान पाकिस्तान ने कोरोना की आड़ में जम्मू-कश्मीर में जारी प्रतिबंधों का मुद्दा उठाते हुए इसे तत्काल समाप्त करने की मांग की जबकि सार्क के दूसरे सभी देशों ने मोदी की पहल का स्वागत करते हुए कोरोना के कहर से निपटने के लिए एक-दूसरे की मदद को वक्त की जरूरत बताया। मुझे लगता है कि पाकिस्तान ने मौके का फायदा उठाया और सही या गलत अपनी बात रखी। यह एक अलग खबर है कि उसने अपनी बात रखी। गलत समय पर रखी वह तो है ही। पर वैसे उसकी बात कौन सुनता? इसलिए ना तो इस खबर को दबाया जाना चाहिए या मूल खबर को छोड़कर इसे ज्यादा महत्व दिया जाना चाहिए।

दैनिक जागरण ने ऐसा किया है और दूसरे अखबारों ने शायद (कम से कम पहले पन्ने पर) इसे छोड़ दिया है। पाकिस्तान ऐसी मांग कर रहा है तो यह खबर है और भारत की जनता को मालूम होना चाहिए। रिपोर्टर या संपादक की राय में यह गलत हो सकता है पर यह वैसे ही खबर है जैसे अमेरिकी राष्ट्रपति की मध्यस्थता करने की खबर को भारत ने अंदरुनी मामले में हस्तक्षेप माना था और फिर विदेशी सांसदों को कश्मीर घुमाया गया था। अखबार या रिपोर्टर का काम सेंसर करना नहीं है। ज्यादा से ज्यादा खबरें पाठकों तक पहुंचाना होता है। निर्णय पाठक पर छोड़ना होता है। निश्चित रूप से यह निर्णय पसंद नापसंद से प्रभावित होगा पर यह प्रभाव न्यूनतम होना चाहिए। जागरण की पूरी खबर पाकिस्तान की आलोचना और भारत की प्रशंसा है जो खबर या खबर का भाग नहीं है। आलोचन या प्रशंसा का निर्णय खबर पढ़ने के बाद पाठक को करना होता है।