कोरोनाबंदी में पत्रकार: बिना वेतन खटो, चूं करते ही छंटो, सरेराह पुलिस से पिटो!

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कोरोना महामारी को फैलने से रोकने के लिए 22 मार्च को लगाये गये “जनता कर्फ्यू” के दिन से लेकर अब तक लागू देशव्यापी बंदी पत्रकारों पर बहुत भारी पड़ी है. नौकरी करने के लिए आने पर और दफ्तर से लौटने पर पुलिस मार रही है। वर्क फ्रॉम होम की मांग करने पर नौकरी से निकाला जा रहा है और तमाम संस्थानों में इतने गाढ़े वक्त में भी बिना वेतन दिये खटाया जा रहा है. जो यहां वहां अटके पड़े हैं, उन्हें वेतन कटौती का डर सता रहा है। 

सोमवार से लेकर अब तक सामने आये मामलों में पुलिस ने बंद के नाम पर पांच पत्रकारों का उत्पीड़न किया है। तीन मामले हैदराबाद से हैं, एक-एक मामला दिल्ली और बनारस से है. इसके अलावा संस्थानों के भीतर कोरोना के नाम पर उत्पीड़न की कहानियां अलग हैं.

केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को मंगलवार को लिखित निर्देश दिये हैं कि अख़बार और टीवी के पत्रकारों को सहजता के साथ काम करने दिया जाए, रोका न जाए। सोमवार को प्रधानमंत्री ने टीवी चैनलों के संपादकों और मंगलवार को अखबारों के संपादकों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये बैठक भी की थी।

इसके बाद सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को मंत्रालय ने एक पत्र भेजते हुए आगाह किया कि समाचार एजेंसियों, अखबारों, टीवी चैनलों, टेलीपोर्ट आँपरेटरों, डिजिटल सैटेलाइट समाचार एकत्रकों, डीटीएच और हिट्स के एमएसओ, केबल आँपरेटरों, एफएम रेडियो और सामुदायिक रेडियो की सेवाएं बंद के दायरे में नहीं आएंगी और इनका जारी रहना “विश्वसनीय और समयबद्ध सूचना प्रसारण के लिए बहुत महत्वपूर्ण” है।

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पत्रकारों पर हमला

कुछ राज्य सरकारों ने पहले ही इस तरह काआदेश जारी किया था, तेलंगाना भी उनमें एक है। इसके बावजूद अकेले हैदराबाद में तीन पत्रकारों के साथ बदसलूकी की गयी।

दि हिंदू अखबार के तेलंगाना ब्यूरो प्रमुख रवि रेड्डी को सोमवार रात पुलिसवालों ने रास्ते में रोककर मारपीट की। इसी तरह तेलुगु दैनिक आंध्र ज्योति के राजनीतिक ब्यूरो प्रमुख मेंदु श्रीनिवास को भी हैदराबाद पुलिस ने जलील किया और पीटा। अंग्रेज़ी वेबसाइट सियासत के रिपोर्टर मोहम्मद हुसैन के साथ भी पुलिस ने यही बरताव किया।

ये तीनों रात में अपनी ड्यूटी कर के वापस घर लौट रहे थे। तेलंगाना श्रमजीवी पत्रकार यूनियन ने इस मामले में मंगलवार को पुलिस महानिदेशक के साथ मुलाकात की। यूनियन के महासचिव के. विराहत अली ने डीजीपी महेंदर रेड्डी को ज्ञापन देते हुए दोषी पुलिसवालों के खिलाफ कदम उठाने की मांग की है जिसका सकारात्मक जवाब मिला है।

चौथा मामला भी सोमवार का ही है जब बनारस में जनसंदेश टाइम्स के पत्रकार विजय कुमार सिंह दोपहर में अपने दफ्तर जा रहे थे। सिंह की एसएसपी को लिखी शिकायत के मुताबिक वे अपने घर पर अपना आइडी कार्ड और दवाओं की पोटली भूल गये थे। जब रास्ते में उन्हें रोक कर उनसे परिचय पत्र मांगा गया तो उन्होंने घर पर छूटने की बात बताते हुए संपादक से फोन पर बात करवाने को पुलिसवालों से कहा।

इस पर उन्हें गालियां दी गयीं और लात घूंसे व लाठी से पीटा गया, फिर लॉकअप में डाल कर दोबारा मारा गया और 151 के तहत चालान कर दिया गया। मेडिकल कराने के अनुरोध के बावजूद उन्हें अस्पताल नहीं भेजा गया। सिहं ने इसके बाद एसएसपी को लिखित शिकायत देते हुए दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ़ कार्यवाही की मांग की।

पांचवां मामला दिल्ली का है जहां दफ्तर के रास्ते में आजतक चैनल के पत्रकार नवीन कुमार के साथ दिल्ली पुलिस ने मारपीट की। यह केस भी सोमवार का ही है। इस मामले में अब तक शिकायत या एफआइआर नहीं की गयी है।

नवीन कुमार ने मीडियाविजिल से बातचीत में पूरा घटनाक्रम बताया और कहा कि वे मानवाधिकार आयोग और दिल्ली पुलिस प्रमुख को एक लिखित शिकायत भेजने की तैयारी कर रहे हैं।

ड्यूटी पर जा रहे Aaj Tak के पत्रकार को दिल्ली पुलिस ने दिनदहाड़े पीटा

लॉकडाउन में गयी नौकरी 

वैभव श्रीवास्तव नवतेज टीवी नामक चैनल में काम करते हैं. वे कोरोना को लेकर सतर्कता बरतते हुए लॉकडाउन का पालन कर रहे हैं, पर उनके न्यूज चैनल ने बजाय उन्हें सपोर्ट करने के नौकरी से ही चलता कर दिया. वैभव श्रीवास्तव ने चैनल के प्रबंधकों को बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह चुके हैं कि जनता कर्फ्यू की अवधि में जो कामगार जहां कार्यरत है, वहां उसकी सेलरी मिलेगी, पर आप लोग तो उल्टा नौकरी से ही निकाल रहे हैं?

इस पर प्रबंधकों ने वैभव को कह दिया कि आप जहां चाहें शिकायत कर लो. वैभव ने इसे ट्वीट भी किया हैः

दो महीने से वेतन नहीं मिला

शारीरिक हमलों से ज्यादा बड़ा संकट उन पत्रकारों के साथ है जो कुछ संस्थानों में बिना वेतन के काम कर रहे हैं। मंगलवार की रात से लॉकडाउन के बाद उनके घर परिवार की समस्या बहुत बढ़ गयी है।

वैभव श्रीवास्तव ने नवतेज चैनल में तनख्वाह न दिये जाने का मुद्दा भी अपने ट्विटर पर उठाया है।

इसी तरह इंडिया न्यूज़ टीवी चैनल के कर्मचारी बिना वेतन के दो महीने से काम कर रहे हैं। उन्हें जनवरी और फरवरी का वेतन नहीं मिला है।

नाम न छापने की शर्त पर एक पत्रकार ने बताया कि पहले नवम्बर के बाद का वेतन बाकी था लेकिन दिसंबर तक का वेतन दिया जा चुका है, अब दो महीने का बाकी रह गया है1 यह महीना खत्म होने वाला है और इंडिया न्यूज़ के पत्रकारों का वेतन तीन महीने का जल्द ही बकाया हो जाएगा।

यह स्थिति चैनल के शीर्ष संपादकीय पदों से लेकर नीचे तक की है।

जो घर पर या फील्ड में अटक गये

वेतन का डर कुछ और पत्रकारों को सता रहा है। खासकर वे पत्रकार, जो इस बीच अपने घर गये हुए हैं और उनके पास अब दिल्ली वापस आने का साधन नहीं है क्योंकि सारी परिवहन सेवाएं बंद कर दी गयी हैं।

यूपी के जिला ग़ाज़ीपुर के एक पत्रकार जो एक राष्ट्रीय चैनल में काम करते हैं, उन्होंने मीडियाविजिल से फोन पर बातचीत में बताया कि जितने दिन लॉकडाउन रहेगा और वे काम पर नहीं आ पाएंगे, उतने दिनों का वेतन काट लिये जाने का खतरा है। उन्हें 24 को वापस लौटना था लेकिन ट्रेन सेवाएं बंद होने के चलते वे गांव में ही अटके पड़े हैं।

प्रधानमंत्री ने हालांकि “जनता कर्फ्यू” की घोषणा करते वक्त नियोक्ताओं से आग्रह किया था कि वे वर्क फ्रॉम होम करवाएं और वेतन न काटें। दिक्कत यह है कि टीवी चैनल के कर्मी तकनीकी कारणों से वर्क फ्रॉम होम नहीं कर सकते। इसी वजह से टीवी और अखबार के पत्रकारों पर यह बंदी आयद नहीं मानी गयी है।

कुछ और पत्रकार हैं जो स्टोरी के सिलसिले में ग्राउंड पर थे जब लॉकडाउन की घोषणा की गयी। मीडियाविजिल के लिए रिपोर्ट करने वाले पत्रकार मनदीप पुनिया बीते रविवार राजस्थान के सुदूर हिस्से में एक स्टोरी के लिए गये हुए थे। उसके बाद से बस सेवाएं और ट्रेन सेवाएं बंद चल रही हैं।

उन्होंने फोन पर बताया कि वे किसी गांव में ठहरे हुए हैं और लौटने के साधन मौजूद नहीं हैं। इस स्थिति में उन्हें नहीं पता कि कब तक रहना पड़े। ग्राउंड पर सीमित नकदी लेकर जाने और एटीएम खाली होने के चलते वहां रुकने की दिक्कतें भी अपनी जगह हैं।