कांग्रेस सांसद ने उठायी राज्यसभा में पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग, पढ़िए भाषण

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पत्रकारों की सुरक्षा का मामला 18 मार्च को राज्यसभा में उठा. राज्यसभा में कांग्रेस के एक सदस्य ने पत्रकारों की सुरक्षा के लिए अलग से एक कानून बनाने की मांग की. कांग्रेस के एम वी राजीव गौड़ा ने शून्यकाल में यह मांग करते हुए कहा कि पत्रकारों की सुरक्षा और प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में भारत की स्थिति अच्छी नहीं है. उन्होंने भारतीय प्रेस परिषद की एक उप-समिति की 2015 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि उसमें कहा गया है कि 1990 से 80 पत्रकारों की हत्या हुई और उनमें से कई मामले अब भी अदालतों में लंबित हैं.

राजीव गौड़ ने राज्यसभा सभापति को संबोधित करते हुए  कहा – महोदय, पत्रकारों की सुरक्षा के लिए एक राष्ट्रीय कानून की तत्काल आवश्यकता है. गौड़ा ने पत्रकारों की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय कानून बनाए जाने की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि हाल के कुछ वर्षों में भारत पत्रकारों के लिए एक खतरनाक देश बन गया है. इस पर सभापति एम वेंकैया नायडू ने उनसे कहा कि उन्हें ऐसे अपुष्ट बयान नहीं देने चाहिए क्योंकि संसद के बाहर भी यह हवाला दिया जा सकता है कि सांसद ने यह टिप्पणी की है. गौड़ा ने विशेष उल्लेख के जरिए यह विषय उठाया. उन्होंने भारतीय प्रेस परिषद की एक उप-समिति की 2015 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि उसमें कहा गया है कि 1990 से 80 पत्रकारों की हत्या हुई और उनमें से कई मामले अब भी अदालतों में लंबित हैं.

पत्रकार संगठन बहुत लंबे समय से पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग करते आ रहे हैं. ऐसे में राज्यसभा में यह मांग उठाना महत्वपूर्ण है. पत्रकारों पर हमले के विरुद्ध समिति (CAAJ) ने भी हाल ही में एक रिपोर्ट जारी कर कहा है कि दिल्ली में हुए दंगे के दौरान कई पत्रकारों पर जानलेवा हमले हुए. काज की रिपोर्ट के अनुसार बीते ढाई महीने में 36 पत्रकार हमले के शिकार हुए.

इन हमलों में गिरफ्तारी और हिरासत से लेकर गोली मारने, मारपीट, काम करने से रोके जाने, शर्मिंदा किए जाने, वाहन जलाए जाने से लेकर धमकाने और जबरन धार्मिक नारे लगवाए जाने जैसे उत्पीड़न शामिल हैं. हमलावरों में पुलिस से लेकर उन्मादी भीड़ तक बराबर शामिल हैं. रिपोर्ट में दिसंबर से लेकर फरवरी के बीच पत्रकारों पर हमले के तीन चरण गिनाए गए हैं. पहला चरण नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के संसद द्वारा पारित किए जाने के बाद जामिया के प्रोटेस्ट से शुरू होता है. इस बीच प्रेस पर सबसे ज्यादा हमले 15 दिसंबर से 20 दिसंबर के बीच हुए.

मले का दूसरा चरण 5 जनवरी को जेएनयू परिसर में नकाबपोशों के हमले के दौरान सामने आया जब जेएनयू गेट के बाहर घटना की कवरेज करने गए पत्रकारों को भीड़ द्वारा डराया धमकाया गया, धक्कामुक्की की गयी, नारे लगाने को बाध्य किया गया. प्रताड़ित पत्रकारों की गवाहियों से सामने आया कि इस समूचे प्रकरण में पुलिस मूकदर्शक बनकर खड़ी रही.

रिपोर्ट कहती है कि दिसंबर और जनवरी की ये घटनाएं ही मिलकर फरवरी में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई व्यापक हिंसा में तब्दील हो गयीं, जब खुलेआम पत्रकारों को उनकी धार्मिक पहचान साबित करने तक को बाध्य किया गया. दो दिनों 24 और 25 फरवरी के बीच ही कम से कम डेढ़ दर्जन रिपोर्टरों को कवरेज के दौरान हमलों का सामना करना पड़ा. जेके न्यूज़ 24 के आकाश नापा को तो सीधे गोली ही मार दी गयी.

काज लगातार पत्रकारों पर हमलों के विरुद्ध सक्रीय है और पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कानून की मांग कर रहा  है.