लोकपाल की नियुक्ति की मांग को लेकर अन्ना हजारे एक बार फिर भूख हड़ताल पर बैठे हैं। आज उनके अनशन का चौथा दिन है, लेकिन वक्त बदल चुका है। अब न अन्ना अन्ना रहे, न लोकपाल की मांग में कोई मसाला। बहुत दिन नहीं हुए जब अन्ना दिल्ली में अनशन पर बैठे थे और मीडिया ने उसे ‘अन्नांदोलन’ या ‘अन्ना आंदोलन’ के नाम से नवाज़ा था। कहा गया था कि जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के बाद देश का यह सबसे बड़ा और ऐतिहासिक आंदोलन है। अन्ना की छवि को महात्मा गांधी की तरह मीडिया ने पेश किया था। भर-भर पन्ने अन्ना के अनशन पर छपे थे।
आज तस्वीर एकदम उलट है। ट्विटर पर 2011 में अन्ना के आंदोलन और आज के उनके आंदोलन के बीच दिलचस्प तुलनाएं हो रही हैं। लोग अखबारों की कटिंग लगाकर तुलना कर रहे हैं कि कौन सा अखबार उन्हें कितनी जगह दे रहा है।
फिलहाल दो अखबरों टाइम्स ऑफ इंडिया और इंडियन एक्सप्रेस को देखिए। 2011 में जब अन्ना अनशन पर बैठे थे तब दोनों अखबारों ने पहले पन्ने पर उन्हें पूरी जगह दी थी। देखिए तस्वीरें।
आंदोलन का रस निकला, निज़ाम बदला। कांग्रेस गई। भाजपा आई। अब अखबारों के लिए आंदोलन की जरूरत खत्म हो गई जो आज की तस्वीर कुछ यूं है कि टाइम्स ऑफ इंडिया ने अन्ना को एक कॉल की जगह दी है जबकि एक्सप्रेस से अन्ना नदारद हैं।
इस बारे में दि कारवां के संपादक विनोद जोस ने एक ट्वीट करते हुए ध्यान दिलाया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने भी बदले हुए समय और माहौल पर टिप्पणी की है।