अख़बारों में रेलवे सुरक्षा पर खर्च और ध्यान न देने की सीएजी रिपोर्ट का हवाला नहीं

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


जो शवों की गिनती नहीं कर पा रहा है वह दुर्घटना के कारणों की जांच करवाएगा

जांच का दायरा क्या हो और निष्कर्ष क्या निकले – यह संकेत तो दिया जा चुका है

 

गैर गोदीमीडिया ने जब यह लगभग स्पष्ट कर दिया है कि सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार रेल सुरक्षा पर खर्च और ध्यान देने का काम कम हुआ है तथा रेलवे में लाखों पद खाली हैं इस कारण सुरक्षा से संबंधित नियमत कार्रवाई कम हुई है या लगभग बंद हो गई है और इन सब कारणों से दुर्घटना हुई हो सकती है तो आज अखबारों में खबर छपी है कि सीबीआई से जांच करवाई जाएगी जबकि रेल दुर्घटना की जांच का काम सीबीआई का नहीं है। यही नहीं, आज के अखबारों की मानें तो दुर्घटना का कारण भी पता चल गया है लेकिन सीबीआई की जांच होनी चाहिए। यही नहीं, आज की खबरों में एक और खास बात है और वह है कि दुर्घटना में मृतकों की संख्या कम हो जाना। कल मैंने बताया था कि हिन्दुस्तान टाइम्स को छोड़कर सभी अखबारों में मरने वालों की संख्या 288 थी। हिन्दुस्तान टाइम्स ने कल मैंने मरने वालों की संख्या 294 बताई थी। ज्यादातर अखबारों में मरने वालों की संख्या एक होने से मुझे लगा था कि सरकार ने इस दिशा में कोई काम किया है और एक जगह से सूचना देने की कोई व्यवस्था की है। पर आज ही अखबारों में वह संख्या कम कर दी गई है और मरने वालों की संख्या को 288 से घटाकर 275 कर दिया गया है। घायलों की संख्या अभी 1175 बताई गई है। मरने वालों की संख्या कम होने का कारण यह बताया गया है कि कुछ शव दो बार गिन लिये गए थे। 

अब आप समझ सकते हैं कि कोई व्यवस्था हुई है तो कैसी है और नहीं है तो होने का क्या मतलब है। पर यह सब कोई मुद्दा ही नहीं है। पहले नहीं थी तो अब क्यों हो? कुल मिलाकर, स्थिति यह है कि मरने वालों का हिसाब ठीक से नहीं रखा जा सक रहा है और मीडिया प्रचार कर रहा है कि रेल मंत्री खुद निगरानी कर रहे हैं और सोशल मीडिया पर ट्रोल बता रहे हैं कि वे कितना पढ़े हुए हैं तथा पहले के मंत्रियों के शासन में कितनी दुर्घटनाएं हुईं तथा कितने लोग मरे थे। मरने वालों की संख्या ज्यादा बताकर कम करने का मामला मैंने पहली बार सुना है। दूसरी ओर, अभी तक यह नहीं पता चला कि रेल यात्रियों में या मरने वालों में या घायलों में कितने लोगों ने बीमा लिया था। और उन्हें बीमा का क्या लाभ मिलेगा। पहले की खबरों में बताया जा चुका है कि कौन कितना मुआवजा देगा। इसमें यह भी था कि उड़ीसा ने अभी घोषणा नहीं की है। आज छपा है कि उड़ीसा सरकार राज्य के मृतकों के लिए पांच लाख रुपये देगी जबकि आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा है कि राज्य के मृतकों के लिए 10 लाख रुपये दिये जाएंगे। लेकिन बीमा का पता अभी तक नहीं चला है।     

आज की खबरों से यही पता चलता है कि दुर्घटना सिगनल फेल होने से हुई, आधिकारिक बयान भी यही है कि कारण पता चल गया है फिर भी जांच सीबीआई से कराने की बात है जो असामान्य है। आगे इसका कारण दरअसल बहाना समझ में आएगा। इस बीच सुरक्षा पर ध्यान न दिए जाने के उच्च स्तरीय और अधिकृत कारणों की चर्चा आम तौर पर अखबारों में नहीं है। द टेलीग्राफ का शीर्षक जरूर कहता है कि रेलवे के बॉस लोगों ने जांच कराने का कारण ढूंढ़ लिया है। पूरे उलझन को समझने के लिए आइए पहले शीर्षक और हाइलाइट्स देख लें। 

  1. इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग, प्वाइंट मशीन में बदलाव से हुआ हादसा। इस मुख्य शीर्षक के बाद उपशीर्षक है, आपराधिक कार्रवाई के जिम्मेदार लोगों की हुई पहचान : रेल मंत्री। इसके साथ एक बुलेट प्वाइंट है, रेलवे ने की हादसे की सीबीआई की जांच की मांग। अफसरों ने दिये सिगनल में व्यवधान के संकेत (नवोदय टाइम्स) 
  2. दुर्घटना का कारण पता चला, सीबीआई को जांच करनी चाहिए : वैष्णव। इस खबर के इंट्रो में और बातों के अलावा यह भी है, मंत्री ने कहा, तोड़फोड़ की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। इस खबर के साथ एक और खबर का शीर्षक है, इंटरलॉकिंग सिस्टम क्या है और इसका काम कैसे खराब हो सकता है। इस खबर में हाइलाइट किया गया हिस्सा है, इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम रेलवे के विशाल सिगनलिंग सिस्टम के नर्व सेंटर के रूप में काम करता है। इसी के साथ सिंगल कॉलम की एक खबर है, रेलवे बोर्ड के सदस्य का कहना है, कुछ दखलंदाजी तो थी। (हिन्दुस्तान टाइम्स)      
  3. रेलवे बोर्ड ने सिगनल में हस्तक्षेप (छेड़छाड़) का आरोप लगाया, सीबीआई जांच की मांग की। उपशीर्षक है, रेल सुरक्षा आयुक्त ने जांच पूरी की; मंत्री ने कहा कि टक्कर का कारण इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग  में समस्या को माना गया है, इस गलती के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान कर ली गई है; बोर्ड का कहना है कि तोड़-फोड़ से इनकार नहीं किया गया है। (द हिन्दू) 
  4. शुरुआती जांच में सिगनल से छेड़छाड़ का पता चला, सीबीआई बुलाई गई। इंट्रो है, रेलवे के मुताबिक ड्राइवर की गलती नहीं है, जो जिम्मेदार हैं उनकी पहचान हो गई है। रेल मंत्री ने कहा है कि प्वाइंट मशीन की सेटिंग बदली गई थी। टाइम्स ऑफ इंडिया में खबर है कि इंटरलॉकिंग सिस्टम एक कंप्यूटर आधारित सिस्टम है जो केबन स्टेशन मास्टर के पास होता है और यह नाकाम होने से भी सुरक्षित है। मोटे तौर पर इसका मतलब है कि खराब या नाकाम हुआ तो सिगनल ऑन नहीं ऑफ रहेगा। यानी सब हरा होने की बजाय सब लाल रहेगा। यहां, एक और खबर का शीर्षक है, भाजपा ने रेल मंत्री का बचाव किया, इस्तीफे की संभावना से इनकार किया। 
  5. इंडियन एक्सप्रेस ने फ्लैग शीर्षक में बताया है कि मरने वालों की संख्या उड़ीसा सरकार ने संशोधित कर 288 से 275 किया है। मुख्य शीर्षक है, रेलवे ने सीबीआई जांच की जरूरत बताई; हमलोगों ने मूल कारण और जो जिम्मेदार हैं उन्हें पहचान लिया है: वैष्णव ने कहा। खबर का इंट्रो है, ट्रैक कंफीगुरेशन में बदलाव से दुर्घटना हुई, यह कहना ठीक नहीं होगा कि इसमें असामाजिक तत्वों का हाथ है कि नहीं: मंत्री।  
  6. द टेलीग्राफ के मुख्य शीर्षक की चर्चा पहले कर चुका हूं। इसके अलावा दो शीर्षक हैं, एक की हिन्दी कुछ इस तरह होगी, “मामला ‘सुलझ गया है’, (फिर) भी सीबीआई की चाहत”। दूसरी खबर का शीर्षक बताता है कि दुर्घटनाग्रस्त ट्रेन एक समय कितनी महत्वपूर्ण थी और अब उसकी पूछ नहीं रह गई थी। इस संबंध में एक यात्री ने 5 मई को ट्वीट कर स्लीपर कोच में भीड़ की शिकायत की थी तो उसे रेलवे सेवा से सामान्य जवाब मिला था कि अपना फोन नंबर और पीएनआर दें। जबकि भीड़ के मामले में कार्रवाई के लिए इसकी कोई जरूरत नहीं है। दुर्घटना से संबंधित अपनी खबर में द टेलीग्राफ ने लिखा है, शुक्रवार को कई ट्रेन की टक्कर का एक कारण यह हो सकता है कि किसी ने इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम के पास खुदाई का काम किया था और उसे क्षतिग्रस्त कर दिया था। 

कहने की जरूरत नहीं है कि अगर ऐसा ही हुआ हो तो भी इसका कारण सुरक्षा की कमी और उसपर कम ध्यान दिया जाना ही है। भले ही निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता है कि ढील नहीं दी गई होती, पर्याप्त पैसे खर्च किए जा रहे होते और कर्मचारियों की संख्या कम नहीं होती तो ऐसा नहीं होता लेकिन नीतिगत रूप से सुरक्षा पर कम ध्यान दिया जाना, पैसे कम देना और कर्मचारी कम होना तो कारण है ही। दोनों में संबंध की पुष्टि तो तभी होगी जब जांच में सर्वोच्च स्तर को शामिल किया जाए और उसका हस्तक्षेप नहीं हो। पर अपने यहां जांच ऐसे ही होती है। और शायद इसीलिए सोशल मीडिया पर सांप्रदायिक एंगल से प्रचार भी चल रहा है। इसे रोकना और नियंत्रित करना भी सरकार का ही काम है लेकिन वह बेलगाम है। उड़ीशा में डबल इंजन की सरकार नहीं है इसलिए चेतावनी तो दी गई है पर काम भी जारी है।  

आपको याद होगा गोरखपुर के अस्पताल में ऑक्सीजन नहीं होने से कई बच्चों की मौत हो गई थी। कारण था भुगतान न होने के कारण सप्लाई रुक जाना। वह भी पूर्व सूचना देकर। पर क्या जांच हुई और किसे सजा हुई। या फिर हादसे का कितना और कैसा फॉलो अप हुआ आप सब जानते हैं। मोरबी के मामले में भी ऐसा ही था। नीचे के किसी को बलि का बकरा बना दिया जाता है। सिस्टम की नाकामी या उसमें चूक के लिए कुछ नहीं हुआ है और समर्थक भी ऐसे ही हैं। इसलिए वह जरूरी भी नहीं है। जो हो रहा है वह उनके लिए ठीक ही है। रेल दुर्घटना के मामले में आज के अखबारों में सीएजी की रिपोर्ट का जिक्र न होना और कारण पता चल जाने के बाद भी सीबीआई से जांच कराने की मांग या जरूरत और यह आंशका जताना कि किसी ने खुदाई की थी और असामाजिक तत्वों का हाथ हो सकता है। जांच का दायरा, मुद्दा और नतीजा तय करने जैसा है।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

 

 


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