कोरोना-काल में सवाली भूमिका छोड़ सरकार के इवेंट मैनेजर बने न्यूज़ चैनल

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प्रधानमंत्री मोदी ने जब वीडियो सन्देश के ज़रिये देशवासियों से  5 अप्रैल रविवार को रात 9 बजे 9 मिनट के लिए दीये जलाने का आह्वाहन किया तो मीडिया को कायदे से चाहिए था कि भारत की चिकित्सा व्यवस्था की ख़स्ताहालत और डॉक्टरों को ज़रूरी सुरक्षा उपकरण मुहैया न करवाने के लिए सरकार से सवाल करे. मगर राष्ट्रवाद की अंधी दौड़ में शामिल मीडिया के लिए अपने नैसर्गिक जिम्मेदारियों का पालन करना दुर्लभ बात थी. ऐसे में सरकार का कर्तव्यपरायण मीडिया इवेंट मैनेजमेंट के काम में जुट गया.

एबीपी न्यूज़ ने इसके लिए अपनी ‘एंकर सेना’ के साथ बाकायदा प्रोमो शूट किया और हर ब्रेक में उसे चलाया. “पहले देश ने बजाई ताली और थाली अब है मोमबत्ती की बारी.” जैसी काव्यात्मक पंक्तियों से भरे इस प्रोमो में एबीपी न्यूज़ के सभी एंकर देश से मोदी की अपील को पूरा करने का आग्रह किया. मोमबत्ती, फ़्लैशलाईट आदि जलाकर एकता का सन्देश देने की अपील करते हुए दिखाई दिए.

एबीपी न्यूज़ की स्टार एंकर रुबिका लियाकत ने ट्वीट करते हुए लॉकडाउन के दौरान डिप्रेशन से जूझ रहे भारत के लिए इसे ‘एक लौ ज़िन्दगी की’ करार दिया. रुबिका ने ट्वीट के ज़रिये ही सवाल पूछा कि क्या सामूहिक शक्ति से ये जंग मजबूत होगी? गोया जंग बीमारी से नहीं पाकिस्तान से हो.

वहीँ न्यूज़ नेशन के कंसल्टिंग एडिटर दीपक चौरसिया ने अपनी ज्योतिषी विशेषज्ञता दिखाते हुए ट्वीट के ज़रिये 9 बजे दिया जलाने के पीछे के अंक शास्त्र को भी समझाया. ज्योतिष विज्ञान फेल न हो इसलिए उन्होंने 9 दिए जलाने का अनुरोध भी किया.

इस पूरे तमाशे के बीच मीडिया मदारी के बन्दर की भूमिका की अदायगी पूरी ज़िम्मेदारी के साथ करता रहा. वह बिना सवाल किए सत्ता के तमाशों को प्रमोट करता रहा. यही हाल इससे पूर्व की ‘ताली और थाली’ वाली अपील पर भी था. मगर अबकी बार अश्लीलता की पराकाष्ठा पर पहुंचते हुए टीवी चैनलों ने इस इवेंट को दिवाली की संज्ञा दे दी.

जहां एक ओर एबीपी न्यूज़ अपील के दूसरे दिन से ही अपने प्रोमो के साथ ‘मिनी दिवाली’ के आयोजन में जुट गया वहीँ ज़ी न्यूज़ ने अपने दर्शकों से उसके साथ प्रकाशपर्व मनाने की अपील एक दिन पहले की. बाज़ार में सजे रंग-बिरंगे दीयों पर पैकेज बनाकर चलते हुए मानों चैनल महामारी का जश्न मना रहे हों. “5 अप्रैल को दिवाली मनाएगा देश” यह कहते हुए न्यूज़ एंकरों ने उत्सव धर्मिता के दिन और शोक की सांझ का फासला ही मिटा दिया.

मगर सत्ता के कंधे में सवार मीडिया यहीं नहीं रुका. इवेंट का समय होते ही चैनलों की खिड़कियां गीतकारों और गायकों से भर गई. इसे प्रकाशपर्व में चली सकारात्मकता की बयार ही कहेंगे कि अब तक सबसे तेज़ ख़बरें पहुंचाने वाले आजतक पर आते ही कैलाश खेर दार्शनिक हो गए. उन्होंने कहा “मैं बताना चाहता हूँ 2 तरीके के मानव हैं पृथ्वी पर, एक वो जो ज़िन्दगी काटते हैं और एक वो जो ज़िन्दगी जीते हैं.”

इसके अगले ही कार्यक्रम में स्क्रीन पर मीका सिंह मौजूद थे इसलिए एंकर ने गाने की फ़रमाइश भी कर दी. आज तक की ही तरह ज़ी न्यूज़ ने भी शान, मालिनी अवस्थी और सुनील पाल जैसे कलाकारों को सकारात्मकता फ़ैलाने का ज़िम्मा सौंप दिया.

यूं तो चैनल प्रधानमंत्री मोदी की बात को दोहराते हुए यह बताते रहे कि यह इवेंट सकारात्मकता के लिए है मगर उन्होंने विपक्ष को इस सकारात्मकता के घेरे से बाहर रखा. 5 अप्रैल को ही ज़ी न्यूज़ ने एक आधे घंटे का पूरा शो चलाया जिसका शीर्षक था ‘संकल्प दीप के खिलाफ़ सियासी संक्रमण’. इसके अतिरिक्त 5 से 6 अप्रैल के दरमियान ज़ी ने विपक्ष के खिलाफ़ 2 और पैकेज चलाए जिनके शीर्षक ‘कोरोना पर विपक्ष नहीं है साथ’ और ‘दीपोत्सव से विपक्ष को क्यों हुई आपत्ति?’ थे. साथ ही इसी दौरान 4 पैकेज ऐसे थे जिनमें तब्लीगी जमात को निशाना बनाया गया था. सकारात्मकता के नशे में चूर इस चैनल ने ऐसा कोई भी पैकेज नहीं चलाया जो सुरक्षा उपकरणों के आभाव के चलते चिकित्सकों को हो रही परेशानी की ओर इशारा करता हो.


शिशिर अग्रवाल, 

जामिया मिल्लिया इस्लामिया