मीडियाविजिल प्रतिनिधि
जगदलपुर स्थित दैनिक पत्रिका के दफ्तर में बुधवार को स्थानीय पुलिस ने बिना किसी वारंट या आधिकारिक निर्देश के धावा बोलकर दो कंप्यूटर ज़ब्त कर लिए। मीडियाविजिल को मिली जानकारी के मुताबिक स्थानीय पुलिस ने यह कार्रवाई अख़बार के सरकार विरोधी तेवरों के चलते की है जिसमें एक महिला पत्रकार की खुदकुशी को बहाना बनाया गया है। इससे पहले भी राजस्थान और छत्तीसगढ़ सरकार पत्रिका समूह के विज्ञापन रोक चुकी है।
हफ्ते भर पहले पत्रिका जगदलपुर की रिपोर्टर रेणु अवस्थी ने खुदकुशी कर ली थी जिसके पीछे कुछ निजी कारण थे जिसका अख़बार से कोई लेना-देना नहीं था। ऐसा रेणु की फेसबुक टाइमलाइन से पता चलता है। अख़बार के उच्च अधिकारियों की मानें तो वह बहुत तेज़तर्रार और होनहार पत्रकार थी। पहले वह रायपुर के दफ्तर में तैनात थी लेकिन परिवार जगदलपुर होने के चलते उसका तबादला यहां कर दिया गया था। अखबार ने उसे आज तक कोई नोटिस नहीं दिया। उसके काम की काफी सराहना की जाती थी।
खुदकुशी की घटना के संबंध में दो दिन पहले तक कोई एफआइआर नहीं हुई थी लेकिन पुलिस ने पत्रिका के दफ्तर में बिना किसी सर्च वारंट या आदेश के दबिश देकर दो कंप्यूटर ज़ब्त कर लिए। बताया जाता है कि एक कंप्यूटर वह था जिस पर उक्त पत्रकार काम करती थी और दूसरा सीसीटीवी का मॉनीटर था। इस संबंध में जब हमने रायपुर से लेकर दिल्ली तक उच्च अधिकारियों से बात की तो घटना की पुष्टि हुई।
मीडियाविजिल को यह भी पता लगा है कि रायपुर क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक ने अखबार प्रबंधन से बातचीत में इस बात से साफ़ इनकार किया है कि पुलिस की दबिश किसी ऊपरी आदेश के तहत थी। उन्होंने इस घटना की जानकारी होने से ही इनकार कर दिया। मीडियाविजिल ने जब जगदलपुर पत्रिका के संपादक वीरेंद्र मिश्रा से इस संबंध में बात की तो उन्होंने कहा, ”मैं कल नहीं आया था। ऐसा कुछ नहीं हुआ। हुआ भी होगा तो मैनेजर जानते होंगे।”
पत्रिका समूह के उच्च अधिकारियों का कहना है कि अगर सुसाइड के मामले यह दबिश दी गई तो कायदे से कोई निर्देश पुलिस के पास होना चाहिए था। अखबार को पुलिस का सहयोग करने में कोई दिक्कत नहीं होती। जिस तरीके से बिना किसी वारंट या आधिकारिक निर्देश के पुलिस अख़बार के दफ्तर में घुस आई यह अलोकतांत्रिक और खतरनाक है।
ध्यान रहे कि कुछ दिनों पहले दैनिक नवभारत के रायपुर दफ्तर में इसी तरह कुछ असामाजिक तत्वों ने घुस कर हमला किया था और बवाल काटा था। वहां भी एक रिपोर्टर की खबर के संबंध में हुई बातचीत को बहाना बनाया गया था।
जगदलपुर पत्रिका पर पुलिस का हमला कोई नई बात नहीं है। इससे पहले अखबार के पत्रकार प्रभात सिंह को माओवादी कह कर फर्जी मुकदमे में जेल में डाला जा चुका है। स्थानीय पत्रकारों की मानें तो बस्तर में पत्रिका और उसके पत्रकारों के उत्पीड़न के पीछे अखबार के कुछ पूर्व पत्रकारों की आपसी राजनीति और पुलिस से साठगांठ काम कर रही है। साथ ही राज्य सरकार भी पत्रिका की खबरों से नाखुश रहती है। कुल मिलाकर अख़बार और उसके कर्मचारियों को प्रताडि़त करने के बहाने खोजे जाते हैं। मौजूदा घटना भी उसी का हिस्सा जान पड़ती है।
अखबार के उच्च अधिकारी और पत्रकार पुलिस की कार्रवाई को गलत तो मानते हैं लेकिन इस मामले को बहुत तूल देने के पक्ष में भी नहीं हैं क्योंकि बस्तर में जिस तरह से काम करने की स्थितियां हैं, ऐसे में कोई अखबार पुलिस की सीधी नाराजगी नहीं मोल सकता।