टीआरपी रेटिंग में फ़र्ज़ीवाड़ा का आरोप झेल रहे रिपब्लिक टीवी पर हमलावर हिंदी चैनल आज तक इन दिनों लगातार पत्रकारिता की शुचिता की बात कर रहा है। लेकिन अर्णव गोस्वमी के रिपब्लिक से पिटकर नंबर एक की कुर्सी से लुढ़के आज तक की यह मुद्रा महज़ फ़िसल गये तो हर गंगा वाली है। सच्चाई यह है कि झूठ और फ़रेब फैलाने में वह किसी से पीछे नहीं है।
16 अक्टूबर की शाम ‘आज तक’ के डिबेट शो दंगल में दरभंगा के जाले से कांग्रेस प्रत्याशी मस्कूर उस्मानी पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्याल छात्रसंघ अध्यक्ष रहते छात्रसंघ भवन पर जिन्ना की तस्वीर लगाने की तोहमत जड़ी गयी। ऐसी बातें अगर बीजेपी करे तो समझ में आता है। लेकिन खुद आज तक ने इसे एक तथ्य की तरह पेश किया। इस कार्यक्रम के प्रचार के लिए भी यही बात ट्वीट की गयी। दंगल के ऐंकर रोहित सरदाना बार-बार यह झूठ दोहराते रहे।
सच्चाई ये है कि यह तस्वीर 1938 से ही छात्रसंघ भवन में लगी है और यह मुद्दा बीजेपी 2018 में भी इस मुद्दे को उठा चुकी है। तब इस मुद्दे पर भारी विवाद हुआ था और आज तक पर भी इससे जुड़ी ख़बरें चली थीं। सच्चाई उसे तभी पता चल गयी थी, फिर भी 2020 में ‘आज तक’ बड़ी सी ग्राफिक्स प्लेट चला रहा है जिसमें लिखा है कि ‘उस्मानी ने 2018 में पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर लगवाई थी।’
साफ़ है कि बिहार में 15 साल के ‘सुशासन’ पर पर बात से बचने के लिए अगर बीजेपी हार में जिन्ना का मुद्दा उठा रही है तो ‘आज तक’ इस आग में घी डालने में जुटा है। दंगल के ऐंकर रोहित सरदाना और बीजेपी के प्रवक्ता इस मुद्दे पर एक सुर में बोलते नज़र आये। आल्ट न्यूज़ ने अपनी पड़ताल में बताया है कि जिन्ना की तस्वीर एएमयू ही नहीं मुंबई हाईकोर्ट और साबरमती आश्रम में भी लगी है। जिन्ना से तमाम असहमति के बावजूद वो भारतीय इतिहास का एक हिस्सा हैं।
मौजूदा हाल को देखते हुए आज तक से ऐसे विवेक की उम्मीद करना बेमानी है, पर कम से कम तथ्य तो पता कर ही सकता है। मस्कूर कांग्रेस प्रत्याशी हैं, महज़ इसलिए तो बीजेपी के आरोपों को वह सच नहीं कह सकता। उसका काम पड़ताल करना है जिसे वह भूल चुका है।
कुछ लोगों का कहना है कि टीवी चैनल, यह सारी गंदगी टीआरपी के लिए फैलाते हैं। लेकिन ‘आज तक’ का ‘दंगल’ बता रहा है कि सांप्रदायिक नफ़रत मीडिया के डीएनए का हिस्सा बन चुका है। सत्ता की धुन में नाचने की उसे आदत पड़ गयी है। अगर देश की सत्ता सांप्रदायिक उन्माद को अपनी शक्ति बना रही है तो उसकी सच्चाई बताने के बजाय वह खुद इसका हिस्सा बन रहा है। और यह सब राज़ी ख़ुशी से किया जा रहा है।
मत भूलिये कि टीआरपी रेटिंग मापने वाली संस्था बार्क ने तीन महीने के लिए साप्ताहिक रेटिंग की घोषणा रोक दी है। लेकिन चैनलों के रुख़ में कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा है। दरअसल, वे जो कर रहे हैं, वही कर सकते हैं और वही करने का हुक़्म उनके कॉरपोरेट मालिकों का है भी।