अख़बार नहीं मानता कि जाँच में कुछ होगा संजय कुमार सिंह अचानक राष्ट्र को संबोधित करने की घोषणा और फिर यह बताना कि अब हम सैटेलाइट को भी मार गिरा सकते हैं –…
रवीश कुमार गाज़ियाबाद संस्करण। मूल्य चार रुपये। दिनांक 27 मार्च। दैनिक जागरण के कवर पर विज्ञापन वाले पेज को पलटते ही आता है महासमर 2019। अख़बार पढ़ने से अख़बार पढ़ना नहीं आता है।…
सतर्क चौकीदार, आचार संहिता उल्लंघन के मामले और अख़बार संजय कुमार सिंह आज द टेलीग्राफ में पहले पन्ने पर एक खबर छापी है कि चुनावों की इस गहमा-गहमी में विश्वविद्यालय अनुदान…
संजय कुमार सिंह राहुल गांधी की ‘न्याय योजना’ के बारे में मैं नहीं जानता। मैंने घोषणा से संबंधित प्रेस कांफ्रेंस नहीं देखी। इस योजना के बारे में मेरी राय इतनी भर है…
वीडियो जिसमें प्रसून ने मीडिया के लिहाज से खौफनाक हालात और आरएसएस के राजनीतिक दल हो जाने की चर्चा की है।
आमतौर पर प्रधानमंत्री ऐसी सूचनाएं ट्वीट करते हैं पर कल ऐसा भी नहीं था। ऐसे में क्या इमरान खान का दावा गलत हो सकता है?
यह जनसंपर्क या प्रचार की पत्रकारिता है। अच्छा पेड न्यूज हो सकता है। इसमें पाठक के लिए वह नहीं है जो होना चाहिए था
परिकर के निधन के बाद की राजनीति और सरकार बनाने के लिए हुई जोड़तोड़ को न बताना असल में भाजपा सेवा है और आज यह काम बाकायदा हुआ है।
आजतक शुद्ध कारोबारी दिमाग से संचालित होता है लेकिन इसका एक मतलब ये भी है कि उसके सुर बदलते ही न्यूज चैनलों का अंदाज बदलने लग जाता है.
'शोले' फ़िल्म में श्री रमेश सिप्पी आम के फलों वाला ‘निशानची’ सीन पहले दिखाते हैं और होली का गाना बाद में। जबकि आम तौर पर प्रकृति में होता उलटा है।
आजकल खबरें एक ही स्रोत से प्लांट की जाती हैं। इसे मैं समझ सकता हूं तो प्लांटेशन के भागीदार नहीं जानते या समझते होंगे - ऐसा आपको लगे तो मैं कुछ नहीं कर…
पद्म सम्मान का उपाधि की तरह इस्तेमाल किए जाने पर क़ानूनन रोक है। लेकिन यहाँ राष्ट्रपति के आभार के बहाने मसाले का विज्ञापन किया जा रहा है-
'सभी मुस्लिम आतंकवादी नहीं, लेकिन सभी आतंकवादी मुसलमान हैं' का भ्रम फैलाने में जुटे मीडिया की दिमाग़ी हालत ऐसी ही है।
पेड न्यूज से आगे बढ़कर सरकारी खबर जबरदस्ती लंबी और पहले पन्ने के लायक बनाई जाती है।
टेलीग्राफ ने नेहरू को असली पापी बताते हुए वांटेड का एक दिलचस्प पोस्टर भी बनाया है
भारतीय मुख्यधारा मीडिया ने गैर-सत्यापित वीडियो को ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ के रूप में चलाया।
समझ में नहीं आता है कि आतंकवादी शिविर में बच्चे औऱ परिवारी जन कैसे आ गए।
मोदी के भाषण से ऐसे शीर्षक खूब निकलते हैं पर भाजपा या मोदी के खिलाफ भाषण से ऐसे शीर्षक निकले?
आत्मघाती हमले में स्थानीय हाथ होने का संकेत मिलता है जबकि इस हमले में पाकिस्तान का हाथ होने की 'सूचना' पर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की स्थिति बन गई थी।
इन चुनावों के दौरान और चुनावों के बाद में मीडिया को लेकर विपक्ष की क्या रणनीति और नीति है?
हिन्दी अखबारों में यह सब मिलता तो मुझे टेलीग्राफ पढ़ने की जरूरत क्यों पड़ती?
प्रधानमंत्री के सुर में सुर मिलाकर विपक्ष को गाली देना एक बात है और अच्छी रिपोर्टिंग बिल्कुल अलग। वैसे भी, प्रधानमंत्री अपने पद का ख्याल न रखें हमारे तो प्रधानमंत्री हैं हम क्यों…
किसी राजनीतिक दल में यह कहने की हिम्मत नहीं कि बाबरी मस्जिद को दोबारा बनाना ही असल न्याय होगा, वरना भारत नाम के विचार की हार हो जाएगी
खबरों के आदमी को इतनी समझ तो होनी ही चाहिए कि इस एक वाक्य से यह खबर अधूरी लग रही है।
वाजपेयी ने कहना शुरू किया- “श्रीमान स्पीकर,हमें अभी-अभी यह खबर मिली है।’’ इस पर नागपुर से सांसद विलास मुत्तमवार ने टोका कि अभी नहीं ‘आधे घंटे पहले।’ टोकाटोकी से चिढ़े वाजपेयी बोले- ‘आपकी…