20 मई की सुबह, देश की नींद खुली तो आंखों के सामने साक्षात भय खड़ा था। कोरोना संक्रमण के 24 घंटों में नए मामलों ने नई ऊंचाई छू ली थी और हम अब वहीं खड़े दिख रहे थे – जहां 1 महीने पहले इटली, स्पेन और फ्रांस खड़े थे। 1 लाख कोरोना संक्रमण का आंकड़ा पहले ही पार कर चुके देश के लिए स्थिति हर रोज़ और चिंता जनक होती जा रही थी। 19 मई के नए मामलों की संख्या 6 हज़ार पार कर चुकी थी और ये पिछले एक दिन में अधिकतम मामलों के मुक़ाबले 20 फीसदी से भी ज़्यादा की बढ़त थी।
लेकिन इस बीच में सरकार कहां है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी – अपने अभी तक के पैटर्न के उलट लॉकडाउन 3 की अवधि ख़त्म होने के एक दिन पहले नहीं बल्कि 5 दिन पहले, राष्ट्र के नाम संदेश लेकर आए और उनके संबोधन के अहम बिंदु क्या थे? एक बार अतीत में जाकर फिर याद करते हैं;
- प्रधानमंत्री ने अपने 33 मिनट के लगभग के भाषण में देश, संस्कृति, महानता और योग से लेकर गरीबों के ‘त्याग’ की महिमा आधे घंटे के लगभग बख़ानी और अंत के 4 मिनट में उन्होंने बताया कि लॉकडाउन 4 आएगा।
- उन्होंने 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का एलान किया, जिसका विवरण बाद में वित्त मंत्री ने 5 दिनों तक रोज़ प्रेस कांफ्रेंस कर के दिया। हालांकि बाद में ये भी स्पष्ट हो गया कि ये पैकेज 20 लाख करोड़ का था ही नहीं।
- ग्लोबल इकॉनमी के समर्थक पीएम ने अचानक से स्वदेशी और स्थानीय अर्थव्यवस्था की महिमा बखानी।
- देश के लिए आत्मनिर्भर होने का संकल्प लेने की बात की।
- कोरोना के साथ जीने की आदत डालने की बात कही।
लेकिन इसके बाद और इसके पहले और भी कुछ घट रहा था, जिस पर शायद हमारा ध्यान नहीं था या फिर हमारी याद्दाश्त कमज़ोर होना अब मुहावरे की जगह तथ्य बन चुका है। पीएम के भाषण के हफ्ते भर पहले से ही एक घटना थी, जिस पर हमारा ध्यान जाना चाहिए था और वो था अचानक से कोरोना संक्रमण की स्थिति पर सरकार की जवाबदेही और प्रेस ब्रीफिंग का एक साथ ख़त्म हो जाना। ये अपने आप में एक ख़तरनाक़ इशारा था, जो समझा जाना चाहिए था।
हुआ ये कि देश के गृह मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और आईसीएमआर की रोज़ाना होने वाली प्रेस कांफ्रेंस अचानक से रोज़ होना बंद हो गई थी। पीएम के संबोधन के पिछले हफ्ते में ये प्रेस कांफ्रेंस 4 मई, 5 मई के बाद सीधे 8 मई को हुई और फिर सीधे पीएम के संबोधन के एक दिन पहले 11 मई को। पीएम के संबोधन के अगले हफ्ते में ये प्रेस कांफ्रेंस नही हुई और इसकी जगह ले ली वित्त मंत्री के 20 लाख करोड़ के एलान की प्रेस कांफ्रेंस ने। और फिर 19 मई को बंगाल और उड़ीसा में साइक्लोन के मद्देनज़र प्रेस कांफ्रेंस हुई, जो कि एनडीआरएफ और आईएमडी ने की। और कोविड 19 की स्थिति को लेकर 11 मई के बाद सीधे, 20 मई को प्रेस कांफ्रेंस हुई – जब यह लेख लिखा जा रहा था।
आख़िर इस रोज़ाना होने वाली प्रेस कांफ्रेंस के अचानक से न केवल अनियमित बल्कि न के बराबर रह जाने का क्या अर्थ हो सकता है? इसके केवल 3 ही अर्थ हो सकते हैं;
- देश में अब कोरोना संक्रमण की स्थिति बिल्कुल ठीक और नियंत्रण में है और किसी तरह की प्रेस कांफ्रेंस और चिंता की ज़रूरत ही नहीं है।
- सरकार ज़रूरी नहीं समझती कि देश की जनता तक, कोरोना संक्रमण की ताज़ा स्थिति और जानकारी रोज़ पहुंचाई जाए।
- सरकार के पास कहने के लिए कुछ नहीं है, वह समझ नहीं पा रही कि क्या किया जाए और वह जवाबदेही से भाग रही है या फिर वह कुछ छिपा रही है।
ज़ाहिर है कि हम इसे थोड़ा विनम्र भाषा में लिख सकते थे, लेकिन ऐसी कोई भी बात कितनी भी विनम्र भाषा में कही जाए, उससे कोरोना का ख़तरा और सरकार की जवाबदेही कम नहीं होने वाली है। क्या आप ऊपर लिखे गए इन तीन बिंदुओं में से पहले दो से सहमत हो सकते हैं? हम और हमारी टीम, लगातार उन आंकड़ों का विश्लेषण कर रहे हैं – जिनमें कोरोना संक्रमण के मामले, नए मामले, उनका विस्तार, उनके कारण मृत्यु के अलावा लॉकडाउन, अर्थव्यवस्था, प्रवासी श्रमिकों, उनके हालात और कोरोना जनित अन्य कारणों से हो रही जान और माल की हानि से जुड़े आंकड़े शामिल हैं। हम हर रोज़ कोरोना के टेस्टिंग से लेकर नए संक्रमण के आंकड़ों पर नज़र रखे हैं। हमारी साथी सौम्या गुप्ता ने हाल ही में एक एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में अध्ययन किया कि कैसे लॉकडाउन के कारण देश में 350 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। ऐसे में हम ऊपर के दो बिंदुओं से सहमति नहीं रख सकते थे।
तो हमारे आकलनों और सरकार के रवैये के आधार पर हम ये सोचने को मजबूर हैं कि सरकार या तो जनता से कुछ छुपा रही है। इसको समझने के लिए पहले ये समझते हैं कि आख़िर क्या कारण हो सकता है कि सरकार ने रोज़ाना कोविड 19 अपडेट पर होने वाली प्रेस कांफ्रेंस को पहले अनियमित और फिर लगभग ख़त्म सा ही कर दिया। इसका जवाब का पहला हिस्सा हमको मिलेगा 24 अप्रैल की सरकार की प्रेस कांफ्रेंस में। इस प्रेस कांफ्रेंस में नीति आयोग के और सरकार की कोविड 19 टास्क फोर्स के मेंबर डॉक्टर वीके पॉल ने एक हैरतअंगेज़ ग्राफ देश के सामने रख दिया था। इस ग्राफ में एक ऐसा दावा था, जिसे विशेषज्ञ उस समय भी नहीं पचा पा रहे थे। लेकिन ये ग्राफ और दावा सरकार ने किया था, वो भी नीति आयोग के एक सदस्य ने।
इस ग्राफ के मुताबिक 23 अप्रैल के मामलों के हिसाब से, सरकार ने ये आकलन जारी किया था कि कोविड 19 के मामले, 23 तारीख के बाद 30 अप्रैल तक ऊपर जाएंगे और फिर नीचे गिरने शुरु हो जाएंगे। इसके बाद ये आंकड़ा 16 मई को घट कर शून्य हो जाएगा। ये ग्राफ कई एक्सपर्ट्स के लिए हैरानी का सबब था, क्योंकि इसके देख कर ये समझ ही नहीं आ रहा था कि आख़िर इसे किस गणितीय फॉर्मूले के आधार पर तैयार किया गया था।लेकिन इसके बाद हुआ क्या, हुआ इसका उलट।
डॉक्टर पॉल ने इस प्रेस कांफ्रेंस में कहा था, ‘हमने 4-5 अप्रैल से लॉकडाउन का प्रभाव देखना शुरू कर दिया था। मामलों की रफ्तार में कमी आती दिखी है और कोरोना कर्व फ्लैट हो रहा है। चूंकि लॉकडाउन का प्रभाव अगले 14-20 दिनों तक रहेगा, हम मई के पहले और दूसरे हफ्ते में मामलों में कमी देखेंगे। अंततः ये कर्व फ्लैट होकर मामले शून्य पर जा पहुंचेंगे।’ लेकिन हुआ ये कि 30 अप्रैल के बाद से ये मामले लगातार बढ़ने शुरु हो गए और बढ़ते ही चले गए। अंततः 16-17 मई में एक दिन में नए मामले 5000 का आंकड़ा पार कर गए और 20 मई को पिछले 24 घंटे के मामले 6000 का आंकड़ा भी पार कर गए। भारत में कोरोना के मामले 1 लाख से ज़्यादा ही नहीं हैं, बल्कि कर्व ऊपर जाने की जगह कर्व की तरह नहीं, सीधे रैखिक रूप में ऊपर जाने लगा है।
और फिर 30 अप्रैल के बाद, जिस तरह से कोरोना के मामले बढ़े, सरकार के लिए जवाब देना दिन पर दिन मुश्किल होने लगा। यही नहीं, औरंगाबाद में रेल की पटरी पर हुए हादसे के बाद प्रवासी श्रमिकों की स्थिति पर सरकार के पास कोई स्पष्टीकरण नहीं था। सरकार ने दावा किया कि श्रमिक स्पेशल रेलगाड़ियों में कोई किराया नहीं लिया जा रहा। रेलवे ने कहा कि लिया जा रहा है। कांग्रेस ने एलान कर दिया कि किराया वो देगी और श्रमिकों ने अपने हाथ में टिकट की तस्वीरें लेकर मीडिया के पास भेज दी। ऐसे में सरकार दरअसल जवाबदेही की स्थिति में आ गई, जबकि पिछले 6 साल में नरेंद्र मोदी की सरकार, जवाबदेही की जगह ईवेंट का विकल्प चुनती रही है। लेकिन कोरोना के वक़्त में ईवेंट का विकल्प भी नहीं चुना जा सकता था। थाली, ताली और दीए का ईवेंट दोबारा नहीं रचा जा सकता था।
अब आप ग़ौर से देखिए कि रोज़ ट्वीट करने वाले पीएम, रोज़ाना ट्वीट नहीं करते हैं। सरकार की प्रेस कांफ्रेंस या तो नहीं होती है या फिर 10 दिन में एक बार, विपक्ष के साथ राजनीति तो की जाती है – लेकिन वहां भी जवाब देने के लिए अधिकारियों या छोटे नेताओं को आगे कर दिया जाता है। राहुल गांधी ने वी के पॉल के इस ग्राफ के बारे में ट्वीट किया तो नीति आयोग की तरफ से इस बात को ही झूठा बता दिया गया कि ऐसा कोई ग्राफ रिलीज़ किया गया था। लेकिन इसकी भी पोल तुरंत खुल गई।
The geniuses at Niti Aayog have done it again.
I’d like to remind you of their graph predicting the Govt’s national lockdown strategy would ensure no fresh Covid cases from tomorrow, May the 16th. pic.twitter.com/zFDJtI9IXP
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) May 15, 2020
इस बारे में मीडिया विजिल के एक सवाल का जवाब देते हुए, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि हालांकि क्लूलेस एक हल्का शब्द है-सरकार के रवैये के लिए पर हां, सरकार क्लूलेस है। उसको पता ही नहीं है कि क्या करना है।
देश भर में प्रवासी श्रमिक अभी भी सड़कों पर पैदल हज़ारों किलोमीटर की दूरी तय कर रहे हैं – कुछ बीमारी से, कुछ भूख से, कुछ हादसों में मारे जा रहे हैं। बेरोज़गारी की स्थिति सबसे भयावह ऊंचाई पर जा रही है। ऐसे में सरकार अगर दिखनी ही बंद हो जाए और गवर्नेंस जैसी चीज़ के नाम पर सड़क पर केवल पुलिस हो तो इसका अर्थ सिर्फ ये है कि सरकार समझ ही नहीं पा रही है कि उसे करना क्या है। क्या सरकार के पास केवल संसाधन की ही कमी है या फिर साथ में सोच की भी? क्या सरकार अभी भी केवल ईवेंट रचने के भरोसे बैठी है? क्या अंतर्राष्ट्रीय दुनिया ने भी हमको हमारे हाल पर छोड़ दिया है?
ऐसे में सरकार ने शायद ये तय कर लिया है कि वह जब तक संभव होगा, किसी भी जवाबदेही से बचेगी। प्रेस कांफ्रेंस नहीं करेगी, लॉकडाउन 4 के पहले पीएम राष्ट्र के नाम संदेश नहीं देंगे। कोरोना की स्थिति को संभालने की जगह, जनता को उसके हाल पर छोड़ दिया जाएगा। अर्थव्यवस्था खोलने के नाम पर ख़तरे की उपेक्षा की जाएगी। राज्यों को उनका बकाया जीएसटी से लेकर तमाम और पैसा देने की जगह उनको लोकल इकॉनमी खोलने को मजबूर कर दिया जाएगा। आगे जो होगा, देखा जाएगा – फिलहाल ज़िम्मेदारी से बचा जाएगा। 20 लाख करोड़ के सरकारी पैकेज में भी जनता से ज़्यादा बड़े उद्योगपति का ही ध्यान रखा गया है। मोदी सरकार, इस समय सीन से ही गायब हो चली है और एक गुप्त संदेश की तरह – पीएम ने अपने पिछले संदेश में कह दिया था कि हमको कोरोना के साथ जीने की आदत डालनी होगी…ज़ाहिर है कि इस गुप्त संदेश में बहुत सारे मतलब छिपे हुए हैं और सरकार तो जब चाहेगी, अपना मतलब निकाल कर आपको बहला ही लेगी..
मयंक सक्सेना, मीडिया विजिल संपादकीय टीम का हिस्सा हैं। पूर्व टीवी पत्रकार हैं और अब मुंबई में फिल्म लेखन करते हैं।
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