तीसरी लहर से पहले ही दिल्ली के अस्पतालों की 80% बेड फेल..नॉन कोविड मरीजों की संख्या बढ़ी!

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कोरोना की दूसरी लहर में दिल्ली में मरीजों से भरे छोटे – बड़े अस्पतलों से तो सभी वाकिफ ही हैं। पिछली लहर के दौरान कोरोना की चपेट में इतने लोग आए थे की अस्पतालों में बेड की कमी हो गई थी। लेकिन इस बार अगली लहर आने से पहले ही दिल्ली के सरकारी और प्राइवेट अस्पताल गंभीर चुनौतियों से जूझ रहे हैं। अभी ही अस्पतलों में 80% बेड फुल हो गई है। इन अस्पतालों में सिर्फ covid -19 के मरीज़ ही नही, बल्कि पोस्ट कोविड और नॉन कोविड मरीज भी भर्ती हो रहे हैं।

नॉन कोविड मरीजों की संख्या ज्यादा क्यों..

तमाम बड़े सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में भर्ती नॉन कोविड मरीजों में कुछ ऐसे भी मरीज़ है, जिन्हे लॉकडाउन की वजह से समय पर उपचार नही मिल पाया। जिससे उनकी हालत बिगड़ गई और अब उन्हें अस्पतालों में भर्ती करना पड़ा है। इनमे दिल्ली के बाहरी राज्यों से आने वाले मरीज़ ज्यादा है। क्योंकि लॉकडाउन के दौरान वह बार – बार इलाज कराने आ नही सके।

आईसीयू में 90 से 95 % बेड फुल..

मैक्स, अपोलो, फोर्टिस, इंडियन स्पाइन इंजरी सेंटर सहित लगभग सभी बड़े अस्पतालों से जानकारी के अनुसार, उनके यहां बेड्स की संख्या अधिकांश फुल जा रही है। कई अस्पतालों के आईसीयू में 90 से 95 % तक बिस्तरों पर मरीज भर्ती हैं।

दिल्ली में करीब 200 अस्पताल हैं जहां 20 हज़ार से भी ज्यादा बेस्ट की क्षमता है। हालांकि कोरोना मरीजों के लिए आरक्षित बेड है जिनकी संख्या 16636 हैं। दिल्ली सरकार के अनुसार इसमें से 16325 बिस्तर खाली हैं। लेकिन अस्पतालों में 80 फीसदी तक बिस्तरों को भरा बताया जा रहा है।

कोरोना को लेकर दिल्ली सरकार का आंकड़ा हर दिन 50 से 60 के बीच सामने आ रहा है। यह आंकड़े पहले की तुलना में न के बराबर हैं। कोविड मामले कम होने के चलते कोविड आरक्षित बिस्तरों की संख्या कम कर दी है लेकिन पोस्ट कोविड मामले काफी तेजी से बढ़ रहे हैं।

अस्पतालों में गंभीर बीमारी वाले मरीज़ ज़्यादा..

दिल्ली के एम्स से मिली जानकारी के अनुसार, भर्ती मरीजों की ज्यादातर संख्या हार्ट, किडनी, फेफड़े, लिवर और कैंसर इत्यादि जैसी बीमारियों में अधिक है। एम्स में मरीजों की एमआरआई,बायोप्सी,ग्लूकोमा जांच को लेकर लंबी वेटिंग चल रही है।

साकेत मैक्स अस्पताल के एक डॉक्टर के अनुसार, जिन मरीजों को गंभीर हालत में भर्ती किया जा रहा है उनमें ज्यादातर ऐसे मरीज हैं जिन्हें समय पर इलाज नहीं मिला। इन्हें दवाएं भी नहीं मिल पाईं, जिसके चलते इनकी तबियत और अधिक खराब हुई है।

तीसरी लहर में हो सकती है गंभीर परेशानियां..

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ह्रदय, किडनी, कैंसर आदि बीमारियों के मरीजों की संख्या में काफी कमी देखी गई थी। क्योंकि ज्यादातर मरीजों में कोरोनावायरस संक्रमण मिल रहा था। जिसके चलते इन बीमारियों के इलाज में भारी गिरावट आई थी। कुछ लोग कोविड के डर से, कुछ लोग लॉकडाउन की वजह से, तो कुछ लोग अस्पतालों में बेड और आईसीयू ना मिलने की वजह से एडमिट नहीं हो रहे थे। अब जब कोविड के केस काम हो गए है तो लोगो ज्यादा बीमार होने पर अस्पतालों में भर्ती होने लगे हैं। ऐसा नहीं है की कोरोना के समय इस बीमारियों में कमी आई थी बल्कि लोगों को हालत गंभीर होने पर भी बिस्तर नही मिल पा रहे थे। जिससे ऐसी बीमारियों से ग्रस्त कुछ लोगों की भी मृत्यु हो जा रही थी।

 

राज्य सरकारों को अस्पताल बनाने पर करना होगा विचार..

दिल्ली में कई बड़े अस्पताल होने के कारण दूसरे राज्यों के लोग भी यहां इलाज के लिए आते हैं कुछ राज्यों में बड़ी और गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए अस्पताल नहीं है। जिससे उन्हें दिल्ली में एम्स, अपोलो जैसे बड़े आपातलों में भेजा जाता है। इसी सब कारणों से दिल्ली के ज्यादा तर बड़े अस्पतलों में 80% तक बेड फुल है। एक तरह से इसे महामारी के बाद का साइड इफेक्ट भी कह सकते हैं। क्योंकि अब जाकर नॉन – कोविड मरीजों को बेड मिल रही है।

लेकिन यह एक गंभीर विषय है क्योंकि अगर तीसरी लहर के अंदेशे में कोरोना के मामले तेज होने लगे, तो मरीजों को बेड मिलने में दूसरी लहर की तरह ही मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। इस समस्या पर दूसरे राज्यों की सरकारों को भी गौर करने की जरूरत है। उन्हें भी अपने राज्यों में स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करने और बड़े अस्पताल बनवाने पर विचार करना होगा। जिससे लोगो को दिल्ली जा कर अपनी गंभीर बीमारियों का इलाज न करना पड़े।


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