आज पढ़िये राहुल गांधी का भाषण जो सिर्फ द टेलीग्राफ में लीड है
इंडिया नाम से हैरान-परेशान मोदी कुछ भी बोल रहे हैं और अखबार उन्हें हवा दे रहे हैं
आज के मेरे सभी अखबारों की लीड अलग है। ऐसा बहुत कम होता है और खासकर उस दिन होता है जब कोई एक खबर इतनी बड़ी या महत्वपूर्ण न हो कि सभी अखबारों में लीड बन जाए। इन दिनों जब ज्यादातर अखबार सरकार के समर्थन में हैं और द टेलीग्राफ खुलकर विरोध में है तो कई बार टेलीग्राफ की लीड बाकी अखबारों से अलग होती है पर आज सभी अखबारों की लीड का शीर्षक पढ़ लें तो आज की महत्वपूर्ण खबरें जान लेंगे।
1.आज शुरुआत द टेलीग्राफ से करता हूं
– फ्लैग शीर्षक है : प्रधानमंत्री मणिपुर क्यों नहीं गये और चुप रहे
– मुख्य शीर्षक है : अगर मोदी नहीं बतायेंगे तो राहुल गांधी बता देंगे
(राहुल गांधी ने बताया भी है और वह आगे पढ़िये)
2. हिन्दुस्तान टाइम्स (अधपन्ने पर)
– सरकार चाहती है कि वायरल वीडियो मामले में सुनवाई मणिपुर से बाहर हो : शाह
– राजस्थान रैली में मोदी का विपक्ष पर हमला : ‘क्विट इंडिया’
3.टाइम्स ऑफ इंडिया
– मुख्य शीर्षक है : सुप्रीम कोर्ट ने ईडी प्रमुख को 15 सितंबर तक पद पर बने रहने की इजाजत दी, ‘और नहीं’
– इस खबर का इंट्रो है : विस्तार जनहित में ताकि एफएटीएफ की समीक्षा में मदद दी जा सके।
4.इंडियन एक्सप्रेस
– फ्लैग शीर्षक है : कुकी मैतेई चर्चा की दिशा में प्रयास बहुत उन्नत स्थिति में हैं :मंत्री
– मुख्य शीर्षक है : यौन हमले के वीडियो की जांच सीबीआई करेगी, केंद्र मणिपुर के बाहर ट्रायल की मांग करेगी : अमित शाह
5.द हिन्दू
– सुप्रीम कोर्ट ने ईडी निदेशक के रूप में मिश्रा के कार्यकाल को 15 सितंबर तक विस्तार दिया।
6.नवोदय टाइम्स
– फ्लैग शीर्षक है : ईडी निदेशक मामले में न्यायालय ने केंद्र से पूछा
– मुख्य शीर्षक है : क्या अयोग्य लोगों से भरा है विभाग
7.अमर उजाला
– मुख्य शीर्षक है : देशभक्ति दिखाने के लिए नहीं, लूटने के लिए बदला विपक्ष ने नाम : मोदी
– उपशीर्षक है : प्रधानमंत्री ने राजस्थान में कहा – देश ने इंदिरा इज इंडिया का नारा देने वालों को जड़ से उखाड़ दिया था
इसमें और भी बहुत कुछ है लेकिन मुझे नहीं लगता है कि यह खबर है और वैसे भी यह सिर्फ अमर उजाला में है और प्रधानमंत्री के प्रचार के अलावा कुछ नहीं है। पीआईबी की विज्ञप्ति पर लिख रहा होता तो अलग बात थी। मुझे लगता है कि आज की सबसे बड़ी खबर ईडी को सेवा विस्तार मिलने की खबर है। जिन परिस्थितियों में सरकार ने ईडी प्रमुख के लिए सेवा विस्तार की मांग की थी उसमें क्या हुआ यह जानना सबसे दिलचस्प और महत्वपूर्ण था। अदालत ने अपने ही आदेश के खिलाफ फैसला दिया या सरकार की जो दलील पहले नहीं मानी गई या पहले नहीं दी गई थी उसपर विचार किया जाना महत्वपूर्ण है। खासकर तब जब सोशल मीडिया पर मुख्य न्यायाधीश को ट्रोल किया जा रहा था। ऐसे में फैसला और अदालत की टिप्पणी जानना जब उत्सुकता वाली बात है लेकिन अमर उजाला में पहले पन्ने पर यह खबर ही नहीं है और नवोदय टाइम्स की खबर बताती है कि उसमें मसाला तो है।
ऐसे में पाठकों की जानकारी के लिए बता दूं कि इस खबर को जिन अखबारों ने लीड नहीं बनाया है उनने कैसे छापा है। सबसे पहले इंडियन एक्सप्रेस की बात करूं तो यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। कहने की जरूरत नहीं है कि इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर और भी बहुत सी खबरें हैं जो दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं हैं फिर भी जो नहीं है सो नहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने लीड के साथ विवरण देने वाले अपने बॉक्स का शीर्षक रखा है, सरकार ने 15 अक्तूबर तक विस्तार मांगा था। इसके साथ न्यायमूर्ति बीआर गवई ने जो कहा वह हाईलाइट किया गया है। मोटे तौर पर हिन्दी में उसे इस प्रकार रखा जा सकता है – क्या सरकार यह संकेत नहीं दे रही है कि ईडी नाकारा लोगों से भरा हुआ है जो (एसके) मिश्रा की जगह नहीं ले सकते हैं। ऐसा लगता है जैसे अगर यह व्यक्ति वहां नहीं रहेगा तो पूरा विभाग काम नहीं कर पायेगा। क्या यह विभाग के संपूर्ण कार्यबल के लिए शर्मिन्दगी का कारण नहीं बनेगा? जस्टिस गवई ने कहा मानलीजिये मैं मुख्य न्यायाधीश हूं और मेरे साथ कुछ अनजाना हो जाता है। क्या सुप्रीम कोर्ट या देश की न्याया व्यवस्था मेरी अनुपस्थिति में ध्वस्त हो जाएगी? इसपर सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मुद्दा नेतृत्व का है। बात इसकी नहीं है कि किसी के बिना काम नहीं चलेगा लेकिन निरंतरता से देश को फायदा होगा (अगर ऐसा है तो देश में निरंतरता बनाये रखने की व्यवस्था क्यों नहीं है। हालांकि यहां तो नियुक्ति कई वर्ष पहले से गलत घोषित की जा चुकी थी। यह सब अखबार में नहीं है और ना अदालत में इसपर बात होने की खबर है) और मनी लांड्रिंग तथा टेरर फंडिंग जैसे अपराध के मामले में की गई कार्रवाई की सही तस्वीर प्रस्तुत होगी।
द हिन्दू में भी यह खबर लीड है अक्षम लोगों वाली बात यहां भी हाइलाइट की गई है। लीड का उपशीर्षक इस प्रकार है, एफएटीएफ मूल्यांकन के आलोक में केंद्र की अपील पर सर्वोच्च अदालत ‘जन और राष्ट्रहित’ में अपने पिछले फैसले से वापस गया है; हालांकि, विस्तार के लिए अब वह कोई और आग्रह स्वाकीर नहीं करेगा। द टेलीग्राफ में इस खबर का शीर्षक है, 11 जुलाई : अवैध। अब : 15 सितंबर तक प्रवर्तन निदेशालय के मुखिया। आप जानते हैं कि ऐसी नियुक्तियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश भी है और वह पत्रकार विनीत नारायण की याचिका पर दिया गया था। इस फैसले के बाद विनीत नारायण ने अंग्रेजी में ट्वीट किया है (अनुवाद मेरा), योर लॉर्डशिप ने 1997 में ‘विनीत नारायण केस’ में भारत की जांच एजेंसियों के शीर्ष अधिकारियों की नियुक्ति, कार्यकाल और कार्यप्रणाली के संबंध में विशिष्ट निर्देश दिए थे। 2014 में जब डॉ. मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ने उस निर्देश और सीवीसी अधिनियम का उल्लंघन करते हुए, श्रीमती अर्चना रामसुंदरम को सीबीआई के विशेष निदेशक के रूप में नियुक्त किया था तो आपने मेरी याचिका पर उनकी नियुक्ति रद्द कर दी थी।
एक बार फिर मुझ सहित एक सामूहिक याचिका पर, आपने हाल ही में नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा ईडी निदेशक संजय कुमार मिश्रा को दिए गए सेवा विस्तार को अवैध घोषित कर दिया था। आश्चर्यजनक ढंग से आपका कल का आदेश उन्हें 15 सितंबर 2023 तक पद पर बने रहने की अनुमति देता है जो सब के लिए एक बड़ा झटका है क्योंकि इसका मतलब ‘अवैध कृत्य को विस्तार देना’ है। एसके मिश्रा से मेरी कोई निजी खुंदक नहीं है। वैसे ही जैसे श्रीमती रामसुंदरम के खिलाफ मेरे पास कुछ निजी नहीं था पर शुद्ध रूप से ऐकेडमिक आधार पर मैं कानून के जानकारों से जानना चाहूंगा कि यह आदेश कैसे न्यायोचित है?
जो सरकार और जिसके प्रधानमंत्री ऐसे काम कर रहे हैं। जिसका दूसरा कार्यकाल खत्म होने वाला है और अगली सरकार का चुनाव होना है, उसके लिए मतदान होने हैं तब अगर जनता को सूचना अखबारों से मिलती है तो क्या यह जरूरी है नहीं है कि अखबार जनता को निष्पक्ष और सच्ची जानकारी दें। क्या चुनाव में दोनों पक्षों के लिए समान स्थितियां या लेवल प्लेइंग फील्ड होना जरूरी नहीं है? जो सत्ता में है वह वैसे ही मजबूत होता है और ऐसे में प्रधानमंत्री अगर प्रचार के लिए कुछ भी कहें तो उसे प्रचार देना जरूरी है? अगर हां तो क्या विपक्षी दल की ऐसी बातों को समान महत्व मिलना जरूरी नहीं है। खासकर मणिपुर में जो सब हुआ और हो रहा है उसके आलोक में। पर अखबार जो कर रहे हैं वह आपके सामने है। आज अमर उजाला ने अगर प्रधानमंत्री के ‘चुनावी’ भाषण को अकेले लीड बनाया है तो द टेलीग्राफ ने राहुल गांधी की बातों को लीड बनाया है। प्रधानमंत्री का भाषण तो टीवी पर भी आ जाता है मैं आपको राहुल गांधी के भाषण से संबंधित खबर का हिन्दी अनुवाद दे रहा हूं ताकि आप अखबारों के साथ-साथ सरकार और विपक्ष को समान रूप से जान सकें और वोट देने से संबंधित सही निर्णय ले सकें।
प्रधानमंत्री मणिपुर क्यों नहीं गए और क्यों चुप्पी साधे रहे
नई दिल्ली डेटलाइन से संजय के. झा की बाइलाइन वाली खबर इस प्रकार है : राहुल गांधी ने गुरुवार को विषाक्त संवेदनहीनता की तरह मंडरा रहे एक हैरान करने वाले सवाल का जवाब देने की कोशिश की। सवाल है, नरेंद्र मोदी न तो मणिपुर गए और न ही वहां हुए नरसंहार पर एक भी शब्द बोले – आखिर क्यों? “नरेंद्र मोदी जानते हैं कि विचारधारा के कारण ही मणिपुर में आग लगी हुई है … आपने देखा कि मणिपुर में क्या सब हुआ और संभव है, आप हैरान हों कि मोदी ने एक शब्द भी नहीं बोला। आप सब ने उम्मीद की होगी कि जब देश का एक राज्य जल रहा है तो देश के प्रधान मंत्री, आखिरकार कुछ न कुछ कहेंगे। आप में से कुछ लोगों ने सोचा होगा कि वह कम से कम इम्फाल जाएंगे और वहां के लोगों से बात करेंगे। कोई अन्य प्रधान मंत्री… कांग्रेस का प्रधान मंत्री होता तो वहां जाता और वहीं रहता।
राहुल ने कहा, “लेकिन आप सोच रहे होंगे कि मोदी न तो वहां गए और न ही एक शब्द बोले। क्योंकि मोदी कुछ चुनिंदा लोगों के प्रधानमंत्री हैं; वह आरएसएस के प्रधानमंत्री हैं। उन्हें मणिपुर की कोई चिंता नहीं है।” बेंगलुरु में युवा कांग्रेस के बेहतर भारत की बुनियाद कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कांग्रेस नेता ने कहा, “वो सिर्फ सत्ता चाहते हैं और सत्ता के लिए वो कुछ भी कर देंगे।” राहुल ने वीडियोकांफ्रेंसिंग के माध्यम से कार्यक्रम को संबोधित किया क्योंकि वह केरल के एक आयुर्वेद केंद्र में हैं। देश जिस वैचारिक लड़ाई को देख रहा है, उसके बारे में बताते हुए राहुल ने कहा, “वे मणिपुर और देश के बाकी हिस्सों को आग लगा देंगे। हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश… वे देश में कहीं भी परेशानी पैदा करेंगे। उन्हें केवल सत्ता में दिलचस्पी है, कुछ और में नहीं। लोगों के दर्द और पीड़ा से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। उनकी एकमात्र चाहत सत्ता है। और यही लड़ाई की प्रकृति को स्पष्ट करता है।” यह तर्क देते हुए कि हर कांग्रेस कार्यकर्ता को मणिपुर की भयावहता पर दुख और पीड़ा महसूस होती है, राहुल ने कहा: “नरेंद्र मोदी जानते हैं कि उनकी विचारधारा ने मणिपुर में आग लगाई है। लेकिन लोगों का दर्द और पीड़ा, महिलाओं पर लगी चोटें कोई मायने नहीं रखतीं।” उनके लिए फर्क है। मैं इसकी गारंटी दे सकता हूं, मोदी उनका दर्द महसूस नहीं कर सकते। उसी त्रासदी ने सम्मेलन में बैठे आप सभी को दर्द से भर दिया है। आरएसएस-भाजपा के लोग मणिपुर का दर्द महसूस नहीं कर सकते।” मोदी ने अब तक शांति के लिए अपील जारी करने या संसद में मणिपुर पर बोलने की मांगों को नजरअंदाज करने का विकल्प चुना है, यहां तक कि विपक्षी नेताओं के प्रतिनिधिमंडल के साथ-साथ संघर्षग्रस्त राज्य के भाजपा विधायकों से मिलने से भी इनकार कर दिया है। जब दो महिलाओं को बिना कपड़ों के घुमाने का वीडियो सार्वजनिक हुआ तब जाकर उन्होंने कुछ देर के लिए अपनी चुप्पी तोड़ी – 3 मई को मणिपुर में हिंसा शुरू होने के 79वें दिन।
आप जानते हैं कि मणिपुर को जलता छोड़कर, मिलने के लिए दिल्ली आए वहां के विधायकों से मिले बिना प्रधानमंत्री विदेश चले गए थे और दौरे से लौटने के बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में रैलियों को संबोधित करते हुए चुनाव प्रचार में जुट गए हैं। इस पृष्ठभूमि में, संकटग्रस्त लोगों की दुर्दशा को समझने के लिए मणिपुर में राहत शिविरों का दौरा कर चुके राहुल गांधी अब तक चुप रहे थे। उन्होंने गुरुवार को कहा, “कांग्रेस कार्यकर्ताओं को दर्द महसूस होता है जब मणिपुर या तमिलनाडु, जम्मू और कश्मीर या उत्तर प्रदेश में किसी को चोट लगती है। देश में किसी ने भी – हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, तमिल, बंगाली – किसी को भी नुकसान पहुंचाया, आपको दुख होगा। आपका मूड खराब हो जाएगा। लेकिन वे ऐसे नहीं बने हैं। आरएसएस-बीजेपी नेताओं को आम भारतीयों का दर्द महसूस नहीं होता क्योंकि लोगों को बांटना उनकी राजनीति है। वे लंबे समय से ऐसा कर रहे हैं। आपके लिए लड़ाई बिल्कुल स्पष्ट है।” कांग्रेस कार्यकर्ताओं को हर जगह नफरत की राजनीति से लड़ने का आह्वान करते हुए राहुल ने आश्चर्य जताया कि प्रधानमंत्री अब भारत को कैसे गाली देने लगे हैं। “यह अजीब है। विपक्षी गठबंधन ने एक सुंदर नाम चुना – इंडिया।
यह हमारे दिल की आवाज थी। लेकिन जैसे ही हमने इंडिय नाम पर फैसला किया, मोदी ने भारत को गाली देना शुरू कर दिया। उन्होंने पवित्र हिंदुस्तान को गाली देने से पहले सोचा नहीं। इतना अहंकार, ऐसा अहंकार।” उन्होंने आगे कहा: “कांग्रेस की विचारधारा संवैधानिकता में निहित है; यह सभी को साथ लेकर चलती है, यह असमान व्यवस्था से लड़ती है। आरएसएस-भाजपा चाहती है कि कुछ चुनिंदा लोग ही देश चलायें; उन्हें सभी संसाधनों और संस्थानों को नियंत्रित करना चाहिए, चाहे वह कुछ भी हो न्यायपालिका, नौकरशाही, सेना, चुनाव आयोग, स्कूल, कॉलेज… आरएसएस सब कुछ अपने नियंत्रण में चाहता है। हम चाहते हैं कि संस्थाएं हर किसी के लिए काम करें, हर किसी को, हर जाति, हर धर्म को सुरक्षा दें। हम चाहते हैं कि हर कोई सशक्त हो, हम एकता और सद्भाव चाहते हैं, जो भारत जोड़ो यात्रा की भावना है।”
कहने की जरूरत नहीं है कि आरएसएस पर कांग्रेस और राहुल गांधी के विचार तथा कांग्रेस की विचारधारा बताने वाली इस खबर को जनता तक नहीं पहुंचने देना आम आदमी को चुनाव या मतदान संबंधी निर्णय लेने के लिए आवश्यक सूचनाओं से वंचित रखना है। जनहित और राष्ट्रहित में अखबारों और मीडिया का काम है कि इसे जन-जन तक पहुंचाया जाए। पर भाजपा राज में एक तरफ तो अखबार ऐसा कर नहीं रहे हैं और दूसरी ओर सरकार ऐसे कानून बनाना चाहती है कि ऐसी खबरों को समाचार माध्यमों, पोर्टलों और सोशल मीडिया से हटवाने का अधिकार उसके पास हो जबकि वह मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ ट्वीट हटाने में दिलचस्पी नहीं ले रही है। आप आदमी की स्थिति आप समझ सकते हैं और मुझे नहीं लगता है कि राहुल गांधी ने जो बोला है उसमें कुछ गलत है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।