पहलवानों से पीछा छुड़ाने का तरीका भी आज ही खबरों में है
उपाय पहले किया गया होता तो न दुर्घटना होती, न लोग मरते, न भाजपा बदनाम होती
आज के अखबारों के शीर्षक रेल दुर्घटना के मामले को निपटाते लगते हैं। नवोदय टाइम्स में यह खबर लीड भी नहीं है। जबकि अंग्रेजी के सभी अखबारों में आज यही खबर लीड है और सबके शीर्षक दुर्घटना की खबरों का उपसंहार बताते लग रहे हैं। इन्हीं में द टेलीग्राफ का शीर्षक है, “शैतानी असंबद्धता : लापता जनरल (कंपार्टमेंट के) यात्री और मोदी की उपलब्धियां”। इस खबर के अनुसार अभी भी बहुत सारे शवों की पहचान नहीं हुई है और करीब 120 यात्री लापता है। 100 से ज्यादा शव उड़ीशा के एक अस्थायी मुर्दाघर में रखे हुए हैं। बताया जाता है कि इन मृतकों में ज्यादातर प्रवासी मजदूर हैं जो जनरल टिकट पर कोरोमंडल एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे होंगे। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इन लोगों की पहचान के लिए डीएनए टेस्ट की जरूरत बताई है।
आज के अखबारों में पहलवानों का आंदोलन भी खत्म होता लगता है। हालांकि कल ही साक्षी मलिक ने आज तक के इस आशय की एक खबर को गलत बताया था। आज तक के ब्रेकिंग न्यूज के स्क्रीन शॉट को ट्वीट करते हुए साक्षी मलिक @SakshiMalik ने लिखा था, “ये खबर बिलकुल ग़लत है। इंसाफ़ की लड़ाई में ना हम में से कोई पीछे हटा है, ना हटेगा। सत्याग्रह के साथ साथ रेलवे में अपनी ज़िम्मेदारी को साथ निभा रही हूँ। इंसाफ़ मिलने तक हमारी लड़ाई जारी है। कृपया कोई ग़लत खबर ना चलाई जाए”। इस खबर में कहा गया था, नाम वापस लेने के बाद रेलवे की नौकरी ज्वाइन की। इसके साथ यह भी था, पहलवान साक्षी मलिक प्रदर्शन से हटीं। नवोदय टाइम्स में आज पहले पन्ने पर चार कॉलम की खबर का शीर्षक है, रेलवे की नौकरी पर लौटे पहलवान, जारी रहेगा आंदोलन। सत्याग्रह के साथ-साथ रेलवे में जिम्मेदारी निभा रही हूं : साक्षी। आगे दूसरे अखबारों के शीर्षक और खबरों की चर्चा करूंगा। पहले रेल दुर्घटना से संबंधित पहले पन्ने की खबरें।
द टेलीग्राफ के बाद पढ़िये हिन्दुस्तान टाइम्स के पहले पन्ने की खबर। यह लीड नहीं है पर लीड के बराबर बोल्ड फौन्ट के शीर्षक से छपी है। लीड का फौन्ट बड़ा पर हल्का है। इसके अनुसार, भारत और अमेरिका ने रक्षा क्षेत्र में सहयोग की योजना पर करार किया है। रेलवे वाली खबर का शीर्षक है, आंकड़े कहते हैं कि पटरियों के नवीकरण पर खर्च बहुत कम किया गया। खबर है कि बहनगा बाजार स्टेशन के पास सेवाएं फिर से शुरू हो गई हैं। इसके साथ छपी तस्वीर कहती है कि जो हुआ उसे, पर्दे में रहने दो, पर्दा ना हटाओ। बहुत पुराना एक गाना भी है, …. पर्दा जो हट गया तो फिर भेद खुल जाएगा। वैसे, अब मान लेना चाहिए कि सरकार बदले बिना पर्दा नहीं हटेगा। स्थिति यह है कि आरटीआई देने वाली सरकार को भ्रष्ट बताकर सत्ता में आए लोग यह नहीं बतायेंगे कि पेगासस खरीदा या नहीं और नहीं खरीदा तो जासूसी कैसे हुई। यही नहीं, पीएम केयर्स भी है जो हर तरह से सरकारी होने के बावजूद आरटीआई से मुक्त बताया जा रहा है। वैसे यह सब अभी मुद्दा नहीं है।
कुल मिलाकर, आज के अखबारों के शीर्षक रेल दुर्घटना ही नहीं, पहलवानों के आंदोलन को भी निपटाते लगते हैं। नवोदय टाइम्स में दोनों में से कोई भी खबर लीड नहीं है। अंग्रेजी के सभी अखबारों में आज रेल दुर्घटना से संबंधित खबर लीड है। हिन्दुस्तान टाइम्स अपवाद है जिसकी चर्चा ऊपर कर चुका। द टेलीग्राफ की खबर के अनुसार अभी भी बहुत सारे शवों की पहचान नहीं हुई है और करीब 120 यात्री लापता हैं। 100 से ज्यादा शव उड़ीशा के एक अस्थायी मुर्दाघर में रखे हुए हैं। बताया जाता है कि इन मृतकों में ज्यादातर प्रवासी मजदूर हैं जो जनरल टिकट पर कोरोमंडल एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे होंगे। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इन लोगों की पहचान के लिए डीएनए टेस्ट की जरूरत बताई है। द टेलीग्राफ के मुख्य शीर्षक, का कारण या संबंध पहले पन्ने पर ही छपी एक और खबर से है। इसका शीर्षक है, नड्डा विवरण देने और प्रचार करने से रुक नहीं सकते हैं। नई दिल्ली से जेपी यादव की यह खबर इस प्रकार है, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सोमवार को कई रिटायर सैन्य अधिकारियों से मुलाकात की और केंद्र सरकार के नौ साल पूरे होने पर उपलब्धियों का बखान करने वाली एक किताब का विमोचन किया।
भारतीय जनता पार्टी ने सरकार की नौवीं सालगिरह मनाने के लिए महीने भर के कार्यक्रम की घोषणा की थी। गए महीने के दूसरे पखवाड़े के बाद के दिनों यह सालगिरह थी। इसके तहत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपलब्धियों और नेतृत्व की प्रशंसा की जानी थी ताकि अगले साल के लोकसभा चुनाव अभियान के लिए जमीन तैयार की जाती। हालांकि, शुक्रवार की तीन रेल गाड़ियों की भयानक दुर्घटना, जिसमें कम से कम 275 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए, ने पार्टी और प्रधान मंत्री को समारोह स्थगित करने तथा नुकसान को नियंत्रित करने तथा उसकी भरपाई की कोशिशों में लगने के लिए मजबूर किया। 72 घंटे से भी कम समय के बाद, सोमवार को, नड्डा ने ट्वीट किया: “संपर्क से समर्थन अभियान के हिस्से के रूप में, हमारे सशस्त्र बलों के दिग्गजों, जनरल (रिटायर) दलबीर सिंह सुहाग जी, लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर) एएस लांबा जी, और एयर मार्शल (रिटायर) डेन्ज़िल कीलोर जी ने आज गुरुग्राम, हरियाणा में मिलना और उन्हें पिछले नौ वर्षों में माननीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी के नेतृत्व वाली हमारी सरकार द्वारा प्राप्त उपलब्धियों और पहलों के बारे में जानकारी देने का मौका एक सम्मान की बात थी।” उन्होंने तस्वीरें भी पोस्ट कीं।
अखबार ने लिखा है, ट्रेन दुर्घटना अकेली ऐसी घटना नहीं है जिसने वर्षगांठ के विजयवाद और प्रचार को ठंडा किया हो। यदि 10 मई के कर्नाटक चुनावों में हार ने भाजपा की अखिल भारतीय महत्वाकांक्षाओं को चोट पहुंचाई, तो महिला पहलवानों ने पार्टी के एक सांसद के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायतें कीं – और सरकार की मनमानी वाली प्रतिक्रिया – ने इसे खराब प्रचार दिया। भाजपा के एक नेता ने कहा, “पहलवानों का विरोध मोदी सरकार की नौवीं वर्षगांठ के मौके पर हुआ और इसने विशेष रूप से भाजपा शासित हरियाणा में इसकी छवि को काफी नुकसान पहुंचाया।” पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि हरियाणा की भाजपा सरकार के खिलाफ पहले से ही काफी गुस्सा था और पहलवानों के विरोध ने असंतोष को और बढ़ा दिया था।
द टेलीग्राफ ने आज अपने मुख्य शीर्षक के तहत एक और खबर छापी है जिसका शीर्षक है, “2016 की ‘साजिश’ और एनआईए की जांच याद है?” नई दिल्ली डेटलाइन से संजय के झा की खबर इस प्रकार है, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सोमवार को बालासोर में तीन ट्रेनों की दुर्घटना की सीबीआई जांच के आदेश देने के केंद्र के फैसले पर सवाल उठाया और संकेत दिया कि, यह ध्यान भटकाने वाली चाल है तथा ऐसा 2016 की एक रेल दुर्घटना में भी किया गया था। तब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से जांच का दावा किया गया था और यह भी साजिश के दावों के बीच हुई थी और आखिरकार चार्जशीट दायर किये बगैर बंद कर दी गई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में खड़गे ने कहा, “दुर्भाग्य से, प्रभारी लोग- आप खुद और रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव- यह स्वीकार नहीं करना चाहते कि समस्याएं हैं।
रेल मंत्री का दावा है कि उन्हें पहले ही एक मूल कारण मालूम हो गया है, फिर भी उन्होंने सीबीआई से जांच-पड़ताल करने का अनुरोध किया है। सीबीआई अपराधों की जांच करने के लिए है, रेलवे दुर्घटनाओं की नहीं। खड़गे ने कहा: “सीबीआई, या कोई अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसी, तकनीकी, संस्थागत और राजनीतिक विफलताओं के लिए जवाबदेही तय नहीं कर सकती है। इसके अलावा, उनके पास रेलवे सुरक्षा, सिग्नलिंग और रखरखाव से संबंधित तकनीकी विशेषज्ञता की कमी है।” कांग्रेस प्रमुख, पूर्व रेल मंत्री भी हैं, ने कहा, “आवश्यक विशेषज्ञता (सीबीआई) के बिना जांच अन्य एजेंसी और 2016 की याद दिलाते हैं। इनसे पता चलता है कि आपकी सरकार व्यवस्था के दोष को दूर करने का कोई इरादा नहीं रखती है बल्कि ध्यान भटकाने वाला तरीका तलाश लिया है ताकि जिम्मेदारी तय करने की किसी भी कोशिश को पटरी से उतारा जा सके।” हिन्दुस्तान टाइम्स ने अपनी मूल खबर के साथ एक और खबर छापी है। इसका शीर्षक है, सीबीआई ने इंटरलॉकिंग सिस्टम में खराबी की जांच शुरू कर दी है।
इंडियन एक्सप्रेस की खबर का फ्लैग शीर्षक है, रेलवे ने सिगनलिंग पर सुरक्षा अभियान का आदेश दिया। मुख्य शीर्षक है, कोरोमंडल को ग्रीन सिगनल देने का आसान उपाय (क्विक फिक्स) उड़ीशा की ट्रेन दुर्घटना का संभावित कारण। इसका इंट्रो है, “ठीक से काम नहीं कर रहा लेवल क्रॉसिंग का गेट लोकेशन बॉक्स से छेड़छाड़ का कारण बना होगा।” टाइम्स ऑफ इंडिया की लीड का शीर्षक हिन्दी में कुछ इस प्रकार होता, “अधिकारियों ने कहा, सिस्टम के साथ जानबूझकर की गई छेड़छाड़ से दुर्घटना हुई”। इंट्रो है, सीबीआई की टीम मौके पर पहुंची, जांच शुरू कर दी। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक खबर के अनुसार डीएनए के खून का नमूना लेने की शुरुआत हो चुकी है।
द हिन्दू की लीड का शीर्षक है, “रेलवे सिगनलिंग उपकरण को दोहरे तालों से सुरक्षित करेगा”। कहने की जरूरत नहीं है कि दुर्घटना का कारण और उससे मिली सीख का परिणाम यही है और यह किसी निचले अधिकारी की गलती नहीं है बल्कि नीतिगत मामला है और इसपर भारी खर्च होना है और दोनों के लिए कौन जिम्मेदार है या किसे जिम्मेदार माना जाना चाहिए। पर भाजपा में इस्तीफे नहीं होते हैं, पास्को में एफआईआर नहीं होती है और हो जाए तो गिरफ्तारी नहीं होती है, अभियुक्त यह कहता है और उसे प्रचारित किया जाता है कि इस कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है और यह सब तब होता है जब लगभग ऐसे ही मामले में एमजे अकबर को पद से हटाया जा चुका है। पर वह अलग मुद्दा है।
आज द हिन्दू की मुख्य खबर का उपशीर्षक है, महीने भर चलने वाला सुरक्षा अभियान शुरू किया जाएगा जो सुनिश्चित करेगा कि ऐसे उपकरणों वाले केबिन दोहरे ताले वाली प्रणाली से सुरक्षित हों। अधिकारियों से कहा गया है कि वे निरीक्षण कर सुनिश्चित करें कि रिले रूम के खुलने और बंद होने पर एसएमएस अलर्ट जेनरेट हो। द हिन्दू में मूल खबर के साथ पहले पन्ने की एक दूसरी खबर का शीर्षक है, दुर्घटना के 51 घंटे बाद हावड़ा-चेन्नई लाइन पर सेवाएं फिर से शुरू हुईं। खबर के साथ तस्वीर तथा उसके कैप्शन के अनुसार सबसे पहले गुजरने वाली ट्रेन हावड़ा पुरी वंदे भारत ट्रेन थी।
पहलवानों के मामले में आज इंडियन एक्सप्रेस में दो खबरें हैं। फ्लैग शीर्षक है, धारा 154 के तहत नया बयान दर्ज हुआ। मुख्य शीर्षक है, डब्ल्यूएफआई प्रमुख के खिलाफ दो बयानों के बाद अवयस्क ने आरोप वापस लिये। एफआईआर में अवयस्क के पिता ने कहा था कि ब्रजभूषण ने आपने हाथ से उसके स्तन सहलाए थे। इंडियन एक्सप्रेस ने इस खबर के ठीक नीचे लगभग बराबर में जो खबर छापी है उसका फ्लैग शीर्षक है, शिकायत की पुष्टि करने वाली गवाह, कॉमनवेल्थ गेम्स के पदकविजेता ने कहा, पहलवान ने मुझसे कहा कि कुछ बहुत गलत हो रहा है। खबर में इस खिलाड़ी का परिचय है और उसके हवाले से कहा गया है कि शिकायतकर्ता ने उसे विदेश में टूर्नामेंट से फोन कर कहा था कि वह एक घटना साझा करना चाहती है जो ब्रज भूषण सिंह द्वारा उसे कथित रूप से कमरे में बुलाने और जबरदस्ती गले लगने से संबंधित था। 38 साल की अनिता इस मामले में 125 से ज्यादा संभावित गवाहों में है और राष्ट्रीय स्तर के शिविर में शिकायकर्ता की रूममेट रही है।
हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर चार कॉलम की खबर का शीर्षक है, साक्षी, बजरंग, विनेश फिर से काम शुरू करेंगे, कहा संघर्ष जारी रहेगा; बीकेयू ने हाथ खींचे। टाइम्स ऑफ इंडिया ने मुख्य खबर के साथ सिंगल कॉलम की छोटी सी खबर छापी है जिसका शीर्षक है, किसान यूनियन ने जंतर मंतर का पर विरोध प्रदर्शन टाला। मुख्य खबर का शीर्षक है, पहलवानों के लिए उम्मीद की एक किरण पर ब्रजभूषण की तत्काल गिरफ्तारी की संभावना खत्म होती है। द हिन्दू में पहले पन्ने पर छोटी सी खबर है। बाकी अंदर होने की सूचना है। पहले पन्ने की खबर का शीर्षक है, पहलवानों ने सरकारी ड्यूटी शुरू की, आंदोलन जारी रहेगा।
द टेलीग्राफ की संबंधित खबर का शीर्षक है, “पहलवानों पर चिमटे का जोर”
कोलकाता / नई दिल्ली डेटलाइन से अंगशुमन रॉय और इमरान अहमद सिद्दीकी की खबर इस प्रकार है, ओलंपिक पदक विजेता साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया के साथ-साथ एशियाई खेलों की चैंपियन विनेश फोगट को उनके नियोक्ता, उत्तर रेलवे ने 27 मई को कारण बताओ नोटिस जारी किया और अपनी ड्यूटी फिर से शुरू करने के लिए कहा। मलिक ने 31 मई को नई दिल्ली स्थित बड़ौदा हाउस कार्यालय में अपना काम शुरू करने की सूचना दी और पुनिया तथा फोगट ने भी इस आदेश का पालन किया। तीनों ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी के पद पर हैं। इनमें से प्रत्येक ने सोमवार को उन मीडिया रिपोर्टों को खारिज कर दिया, जिनमें दावा किया गया था कि उनके कर्तव्यों की बहाली ने विरोध से हटने का संकेत दिया, यह कहते हुए कि इस तरह की “फर्जी खबर” का उद्देश्य उनके आंदोलन को नुकसान पहुंचाना था।
फोगट और पुनिया ने कहा कि पहलवान अपनी नौकरी छोड़ने से नहीं हिचकिचाएंगे अगर यह न्याय के लिए उनकी लड़ाई के रास्ते में आया, और उन्हें उनकी नौकरी के नाम पर “ब्लैकमेल” करने के किसी भी प्रयास के खिलाफ चेतावनी दी। कुश्ती महासंघ के प्रमुख और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह द्वारा कथित यौन उत्पीड़न किये जाने का विरोध करने वाले पहलवानों को पुलिस ने जंतर-मंतर पर जिस दिन हिरासत में लिया उसके एक दिन पहले कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था और दंगा करने के आरोप में उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। खबर में साक्षी मलिक के ट्वीट की चर्चा है जिसका जिक्र मैं ऊपर कर चुका हूं। पहलवानों के एक करीबी सूत्र ने कहा कि तीनों को काम पर लौटने की सलाह दी गई है क्योंकि लड़ाई अब अदालत में लड़ी जाएगी। सूत्र ने द टेलीग्राफ को बताया, “पहलवान समझ गए थे कि उन्हें सामान्य जीवन में लौट जाना चाहिए। असली लड़ाई कोर्ट में होगी।”
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।