बीबीसी को कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया गुजरात मॉडल ने 

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
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एक समय था जब बीबीसी की खबरों से ही देसी खबरों की सत्यता की पुष्टि होती थी गोदी मीडिया के जमाने में जब गुजरात मॉडल लागू है तो बीबीसी सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करने वाला बना दिया गया है सरकार सुप्रीम कोर्ट का संरक्षक होने का दिखावा कर रही है और बीबीसी का आलोचना तो की ही जा रही है। यह इमरजेंसी और प्रेस सेंसर शिप का विरोध करने वाले देश की हालत है और इसका कारण है राम लल्ला का मंदिर और हिन्दुत्व के संरक्षण का लॉली पॉप। यह अलग बात है कि राम मंदिर बनाने या हिन्दुत्व के संरक्षण के लिए इन सबकी क्या और कितनी आवश्यकता है। वही तय नहीं है। हालांकि मेरा मुद्दा मीडिया को नियंत्रण में करने की कोशिशें और उसके प्रभाव की चर्चा करना है। 

द टेलीग्राफ के पहले पन्ने की खबरें अक्सर दूसरे अखबारों के पहले पन्ने पर नहीं होती हैं। ऐसे में आज बीबीसी की फिल्म पर रोक वाली खबर के अलावा द टेलीग्राफ ने पहले पन्ने पर बेन मैकिनटायर का कॉलम छापा है। इसके साथ उनका परिचय है, आप लेखक और द टाइम्स लंदन के कॉलम लेखक हैं और ऐसा कोई संकेत नहीं है कि अपना यह कॉलम उन्होंने भारत का ख्याल करते हुए लिखा है। जब हॉल शाहरुख खान की फिल्म दिखाने वाले हों तब वहां तोड़फोड़ और डॉक्यूमेंट्री बनाने वालों अपमानित किया जाता है तो यह मत भूलिये कि उन्हें प्रेरणा कहां से मिलती है। द टेलीग्राफ में आज और भी सरकार विरोधी खबरें हैं पर मीडिया का तेवर सरकार विरोध का है ही नहीं। ऐसे में कई खबरें नहीं छपती हैं और जो छपती हैं उनका तेवर कुछ और होता है। 

एक तरफ द टेलीग्राफ ने अगर शाहरुख खान की फिल्म के विरोध पर द टाइम्स लंदन में छपने वाला कॉलम पहले पन्ने पर छापा है तो दूसरी ओर यह भी खबर है कि शाहरुख खान ने असम के पूर्व कांग्रेसी, अब भाजपाई मुख्यमंत्री को रात दो बजे फोन किया और उनने उससे बात की जबकि पहले कह रहे थे कि वे शाहरुख खान को नहीं जानते हैं। यह बात मुख्यमंत्री ने खुद ट्वीट कर बताई है। और कांग्रेस ने इसे प्रचार पाने की कोशिश कहा है और पूरे मामले को द हिन्दू ने पहले पन्ने पर छापा है। कहने की जरूरत नहीं है कि इस पूरे मामले में शाहरुख खान ने दो बजे फोन किया और जो उन्हें नहीं जानता है उसने उससे बात की। खबर तो महत्वपूर्ण हो ही जाती है। और इन व ऐसी खबरों के बीच आज कई अखबारों में लीड है, हाईकोर्ट के एक रिटायर जज ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान को हाईजैक कर लिया है और कानून मंत्री ने उनका समर्थन किया। बीबीसी की आलोचना वाले ट्वीट के साथ-साथ। प्रधानमंत्री सुप्रीम कोर्ट के संरक्षक बन रहे हैं जबकि उनके एक मंत्री के खिलाफ अवमानना का मामला चल रहा है।  

पूरे मामले को समझने के लिए आगे पढ़िये। द टेलीग्राफ की आज की लीड का अंग्रेजी में जो शीर्षक है उसका निकटम हिन्दी अनुवाद कुछ इस तरह होगा – (फ्लैग शीर्षक है), अदालत के स्वयंभू संरक्षक ने देश की प्रतिष्ठा का हवाला दिया। मुख्य शीर्षक है, मुफ्त का एक जिज्ञासु सरकारी वकील जो बीबीसी का आलोचक है।  नई दिल्ली डेटलाइन से ब्यूरो की यह खबर इस प्रकार है, बीबीसी की बदौलत, नरेंद्र मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट के विशिष्ट दर्जे को ऐसे समय में रेखांकित करने के लिए मजबूर है जब केंद्रीय कानून मंत्री न्यायाधीशों की नियुक्ति के की व्यवस्था को लेकर विवादास्पद टिप्पणी कर रहे हैं। 

यहां अंग्रेजी की जिन खबरों का उल्लेख है उनका हिन्दी अनुवाद गूगल और बिंग की मदद से किया गया है। हालांकि उनका संपादन करना पड़ता है और वह मैंने किया है। अंग्रेजी की इन खबर के अनुसार, केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने रविवार को ट्वीट किया, “भारत में कुछ लोग अभी भी औपनिवेशिक प्रभाव से दूर नहीं हुए हैं। वे बीबीसी को भारत की सर्वोच्च अदालत से ऊपर मानते हैं और अपने नैतिक आकाओं को खुश करने के लिए देश की प्रतिष्ठा और छवि को किसी भी हद तक गिरा देते हैं।” इसी ट्वीट से मुझे बीबीसी की याद आई और यह भी कि देश में मीडिया जब बहुत ठीक था और सरकार से संसरशिप की लड़ाई लड़ता था तब भी लोग बीबीसी की खबरों पर यकीन करते थे। 

अच्छे दिन आए तो अब सरकार चाहती है या कहती है कि बीबीसी सुप्रीम कोर्ट से ऊपर होना चाहता है या देश की (यानी सरकार की) प्रतिष्ठा खराब करता है। देश की प्रतिष्ठा खराब करने वाली अपनी प्रवक्ता से सरकारी पार्टी ने तुरंत पल्ला झाड़ लिया था।  हालांकि उन्हें संरक्षण पूरा दिया। पर वह अलग मुद्दा है। आज अखबार ने लिखा है, कानून मंत्री संभवतः बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री, इंडिया: द मोदी क्वेश्चन पर विवाद का जिक्र कर रहे थे। इसका पहला भाग गुजरात में 2002 के दंगों के दौरान मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की भूमिका से संबंधित है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दंगों की साजिश के एक मामले में विशेष जांच दल द्वारा मोदी को बरी किए जाने को बरकरार रखा था। 

ऐसे में, यूट्यूब और ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म पर बीबीसी वृत्तचित्र के कई क्लिप रोक दिए गए हैं। अनाम और अस्तित्वहीन “सूत्र” न कि भारत की बहुत ही ज्यादा दिखने वाली और शक्तिशाली सरकार ने मीडिया के साथ एक बिना हस्ताक्षर वाला बयान साझा किया है जिसमें कहा गया है कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने यूट्यूब और ट्विटर को फिल्म दिखाने वाले चैनलों तक पहुंच को अवरुद्ध करने का निर्देश दिया था। अनाधिकृत बयान में उद्धृत तीन कथित कारणों में से एक यह है कि अधिकारियों ने, न कि निर्वाचित प्रतिनिधियों ने, “डॉक्यूमेंट्री की जांच की और पाया कि यह सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार और विश्वसनीयता पर आक्षेप लगाने का प्रयास है।”

अखबार ने आगे लिखा है, केंद्रीय मंत्री रिजिजू को विषय वस्तु से परिचित होना चाहिए। अभी दो महीने भी नहीं हुए, देश के दूसरे वरिष्ठतम न्यायाधीश, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और खुद एक कॉलेजियम सदस्य, ने सुनवाई के दौरान अटॉर्नी-जनरल के रूप में केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाले शीर्ष कानून अधिकारी, आर वेंकटरमणि से कहा था, “ऊंचे पद पर बैठा कोई व्यक्ति जब कहता है कि यह (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को रद्द करने वाला निर्णय) नहीं होना चाहिए था, तो हमने मीडिया की सभी खबरों को नजरअंदाज कर दिया है। लेकिन यह किसी बहुत ही उच्च पद पर बैठे व्यक्ति ने कहा है कि उन्हें खुद करने दिया जाए, हम खुद कर लेंगे …. यह ऐसी स्थिति में पहुंचना है जो बदल नहीं सकती है… पिछले दो महीने से नाम लंबित रखने से सारा मामला ठप हो गया है।’ 

अदालत बेंगलुरु एडवोकेट्स एसोसिएशन द्वारा दायर एक अवमानना ​​​​याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कॉलेजियम द्वारा दूसरी बार नाम भेजने के बावजूद कई नामों को मंजूरी नहीं देने के लिए केंद्र के खिलाफ कार्यवाही की मांग की गई थी। सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह ने रिजिजू द्वारा दिए गए विभिन्न बयानों का उल्लेख किया था जिसमें मंत्री ने कॉलेजियम प्रणाली के बारे में आलोचनात्मक टिप्पणी की थी। जस्टिस कौल ने कानून मंत्री का जिक्र उनके पदनाम या नाम से नहीं किया।

सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने तब न्यायपालिका पर रिजिजू की ब्लॉक टिप्पणियों को हासिल करने की पहल नहीं की थी। लेकिन रविवार की रात तक इस मामले में भी कोई स्पष्टता नहीं थी । बिना दस्तखत वाले बयान के रूप से भी नहीं कि – क्या केंद्र बीबीसी पर अपनी एजेंसियों को तैनात करेगा, जिन्हें दो-अक्षर (ईडी) और तीन-अक्षर (सीबीआई) के संक्षिप्त नाम से जाना जाता है। कांग्रेस प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने रविवार को कहा, “अगर बीबीसी का मुख्यालय दिल्ली या भारत में कहीं और होता, तो मोदी अब तक प्रवर्तन निदेशालय भेज चुके होते।”

वल्लभ ने कहा, “अगर ईडी व्यस्त होता, तो सीबीआई उन पर छापा मारती। अगर सीबीआई भी व्यस्त होती, तो आयकर (अधिकारी) और स्थानीय पुलिस कार्रवाई में जुट जाती। मोदी का दुर्भाग्य कि वे (बीबीसी) लंदन से काम कर रहे हैं।” विपक्षी दल ने महसूस किया कि मोदी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की गुजरात दंगों के बाद “राज धर्म (एक शासक के कर्तव्यों)” का पालन करने की सलाह से कुछ भी नहीं सीखा था, और अभी भी सोचा था कि वह सूचना तक पहुंच को रोककर सच्चाई को दबा सकते हैं।

वल्लभ ने कहा, “मेक इन इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया जैसी योजनाएं हैं। अब मोदीजी एक योजना लाए हैं, ब्लॉक इन इंडिया।” उन्होंने कहा, “सरकार मुश्किल सवालों को नहीं देखना चाहती। लेकिन आंखें बंद कर लेने से सच्चाई गायब नहीं हो सकती। बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री में वही दिखाया गया है, जिसने वाजपेयी को मोदी से राज धर्म का पालन करने के लिए कहने पर मजबूर किया था।” उन्होंने आगे कहा, “अपने ही नेता की सलाह पर ध्यान देने के बजाय, आप भारत में ब्लॉक पर भरोसा करते हैं। इस तरह की चालें संदेह पैदा करती हैं कि बीबीसी जो दिखा रहा है वह सच है। जब भी कुछ असहज होता है – भूख सूचकांक से (भारत की खराब रैंकिंग) गरीबी और प्रेस की आजादी के लिए — सरकार कहती है कि हम (रिपोर्ट) स्वीकार नहीं करते हैं। डॉक्यूमेंट्री को ब्लॉक करने की आपकी हताशा ने डॉक्यूमेंट्री को बल दिया है।

इस सरकार ने (उपराष्ट्रपति ने) सुप्रीम कोर्ट की सर्वोच्चता का मुद्दा भी उठाया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में अगर सांसद और केंद्रीय मंत्री के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई चल सकती है तो जाहिर है वह ऐसे लोगों से ऊपर है। यह पहले इन्हीं और ऐसे ही आधारों पर कहा गया है लेकिन जो कुछ करने में नहीं इतिहास को ही गलत ठहराता हो उसकी क्या बात की जाए। हालांकि उसके शासन में भविष्य की कल्पना की जा सकती है पर लोग वह भी नहीं कर रहे हैं। 

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।