यह है कि भविष्यवाणी 12 साल पहले कर दी गई थी, दरार महीने भर पहले आई थी और तीन जनवरी को होटल झुक गया था – सब आज के अखबारों में छपा है
इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार जोशी मठ का मामला एक महीने पुराना है। आज यह कई अखबारों में प्रमुखता से छपा है। हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर लीड है और इससे आप कारण भी समझ सकते हैं। शीर्षक का अनुवाद होगा, प्रधानमंत्री कार्यालय ने जोशीमठ पर बैठक की, मोदी ने मुख्यमंत्री से बात की। इंडियन एक्सप्रेस में संबंधित मुख्य खबर से अलग एक और खबर है। उसके शीर्षक का अनुवाद होगा, हमलोगों को महीने भर पहले मामूली दरार दिखी थी … नजरअंदाज करने के लिहाज से बहुत बड़ी हो गई।
जोशीमठ डेटलाइन से 8 जनवरी की तारीख से छपी इंडियन एक्सप्रेस की यह खबर इस प्रकार है, नए साल का तीसरा दिन था जब सुबह चार बजे 65 साल के मोहन सिंह शाह को उनके किराएदारों में से एक ने जगाया जो भूतल पर एक छोटे से कमरे में रहता था। उसने शिकायत की कि दीवार पर एक बड़ी दरार पर गई है और उसका कमरा एक तरफ झुक गया है। जाहिर है यह बड़ा मामला था और मुझे नहीं पता कि इंडियन एक्सप्रेस और दूसरे अखबारों में यह खबर उसी दिन (या अगले दिन) क्यों नहीं छपी या छपी थी और उसके बाद पीएमओ अब सक्रिय हुआ है। मेरी चिन्ता वह है भी नहीं।
मेरी चिन्ता यह है कि पांच दिन बाद पीएमओ का सक्रिय होना बड़ी खबर है या जोशीमठ जैसे शहर में जमीन धंसने जैसा मामला। उसे समझना, उसकी व्यापकता का अनुमान लगाना और उसकी खबर देना। जाहिर है, वह काम समय पर नहीं हुआ। हिन्दुस्तान टाइम्स में लीड के साथ छपी एक और खबर का शीर्षक है, क्षेत्र रहने के लिए असुरक्षित घोषित, उत्तरखंड लोगों को सुरक्षित निकालने पर ध्यान दे रहा है। इन खबरों से साफ है कि एक प्राकृतिक आपदा की भी रिपोर्टिंग समय पर ढंग से नहीं की गई। अगर की जाती तो सरकार पहले सक्रिय हो जाती। सरकार खुद सक्रिय नहीं हुई, उसे सूचना नहीं मिली या देर से मिली या मिली तो भी सक्रिय होने में समय लगा- यह सब खबर नहीं है।
खबर यह है कि पीएमओ सक्रिय हो गया और तब बताया जा रहा है कि मामला क्या है। इंडियन एक्सप्रेस ने सरकार की प्राथमिकता को प्रचारित करने के साथ अपनी चूक भी बताई है और अवनीश मिश्र की उतारी एक तस्वीर भी छापी है जो दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है। लेकिन यह स्थिति थी तो उसी दिन पहले पन्ने पर छपनी चाहिए थी। नहीं छपी होगी तभी अब छप रही है। यह मीडिया की चूक है और उसकी भरपाई पीएमओ ने जो कहा (किया नहीं) उसका प्रचार करके की जा रही है। कहने की जरूरत नहीं है कि मीडिया में यह खबर पहले आई होती (या प्रमुखता मिली होती) तो जो बैठक कल हुई उसी दिन हुई होती और लोगों को उसी दिन राहत मिलने की शुरुआत हो सकती थी।
वैसे भी, अगर जमीन धंस रही थी तो उससे सरकार का कोई संबंध नहीं हो सकता है। उसकी कोई भूमिका नहीं थी। इसलिए खबर छापना सरकार का विरोध नहीं था या सरकार के खिलाफ खबर नहीं थी जिसे अगर सेंसर हो रहा होता तो कराना पड़ता। फिर भी खबर को वो महत्व नहीं मिला जो पांच दिन बाद के सरकारी बयान, जमीन धंसने से प्रभावित क्षेत्रों में लोगों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है – को मिला है। सरकार की प्राथमिकता और कथनी-करनी के साथ मीडिया की नालायकी का असर हम कोरोना के समय देख चुके हैं। पर वह पुरानी बात हुई। ताजा खबर (प्रचार) यह है कि सरकार ने यह कहा, वह कहा, ये करेगी वो करेगी। क्या किया वह लापता है।
इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर इन खबरों और उलटबांसियों के साथ एनटीपीसी का भी खंडन है कि जमीन धंसने का कारण (उसके) प्रोजेक्ट से संबंध नहीं है। अगर नहीं है तो नहीं है, होना भी नहीं चाहिए। इसमें खबर क्या है, मैं या पाठक जानकर क्या करेंगे। और एनटीपीसी को यह कहना है तो कहे, लेकिन है तो यह एनटीपीसी का प्रचार ही। शाश्वत सत्य हो तब भी। लेकिन मुद्दा यह है और इंडियन एक्सप्रेस ने वह भी बताया है कि दरार पड़ने का लंबा इतिहास है। पर तब सवाल है कि लंबा इतिहास है तो एनटीपीसी क्यों परेशान है और लंबे इतिहास के कारण क्या उसकी परियोजना इलाके के लिए उचित है। इसका जवाब भी होना चाहिए। वह भी आ जाएगा। लेकिन जनहित महत्वूपूर्ण है या प्रचार? इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार 68 परिवारों को स्थानांतरित किया गया है।
टाइम्स ऑफ इंडिया में जमीन धंसने की खबर लीड के साथ टॉप पर है और पीएम की खबर इसके साथ छोटी सी। वह भी पीएम की, पीएमओ की नहीं। शीर्षक है, प्रधानमंत्री ने धामी (मुख्यमंत्री) को फोन किया पूरे समर्थन का आश्वासन दिया। द हिन्दू में यह खबर लीड है, पीएमओ ने धंसते जोशीमठ शहर की स्थिति की समीक्षा की। निवासियों ने एनटीपीसी की तपोवन विष्णुगढ़ पावर परियोजना पर आरोप लगाए और सरकार से पुनर्वास के लिए सक्रियता से कदम उठाने की मांग की। मीडिया के इस प्रचार के बीच द टेलीग्राफ ने बताया है कि इन दरारों की भविष्यवाणी 12 साल पहले कर दी गई थी। इसका कारण भी बताया गया था और अब वही हो रहा है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।