सुप्रीम कोर्ट के ई-मेल में PM मोदी की फ़ोटो, शीर्ष अदालत को आपत्ति, हटाने का निर्देश!

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‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के नारे के साथ प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की एक तस्वीर आधिकारिक ई-मेल के साथ मेल आईडी के फुटनोट पर राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को मेल किया गया। लेकिन तस्वीर पर शीर्ष अदालत द्वारा आपत्ति जताई गई, कोर्ट ने इस तस्वीर और नारे पर सवाल खड़ा कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री ने ई-मेल से जुड़ी सुविधा उपलब्ध कराने वाले नेशनल इनफॉर्मेटिक्स सेंटर को यह निर्देश दिया कि स्लोगन को हटाए और मौजूदा तस्वीर की जगह सुप्रीम कोर्ट की फोटो का इस्तेमाल करें।

22 सितंबर देर शाम कुछ वकीलों ने आपत्ति जताई..

गुरुवार 22 सितंबर की देर शाम कुछ वकीलों द्वारा आपत्ति जताए जाने के बाद, यह रजिस्ट्री के संज्ञान में आया कि सुप्रीम कोर्ट के आधिकारिक ई-मेल के साथ पीएम मोदी की एक तस्वीर और एक चुनावी नारा था। सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन के व्हाट्सएप ग्रुप पर एक संदेश में एक वकील द्वारा विज्ञापनों पर टिप्पणी करने के घंटों बाद बयान जारी किया गया था।

सर्वोच्च न्यायालय ने NIC को तस्वीर हटाने का निर्देश दिया..

शीर्ष अदालत द्वारा आपत्ति जताए जाने के बाद पीएम के फोटो वाले स्लोगन को हटा लिया गया है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कई वकीलों ने इस बात की पुष्टि की है कि फोटो को ईमेल के सिग्नेचर वाले हिस्से में शामिल किया गया था। शुक्रवार 23 सितंबर देर रात एक बयान में, सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (National Informatics Center) को ईमेल के पाद लेख में इस्तेमाल की गई छवि को हटाने का निर्देश दिया, कहा गया कि इसका न्यायपालिका से कोई संबंध नहीं है, इसे भारत के सर्वोच्च न्यायालय की तस्वीर से बदल दें। इसके बाद NIC ने निर्देशों का पालन किया और नई तस्वीर के तौर पर सुप्रीम कोर्ट की फोटो का इस्तेमाल किया जा रहा है।

एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड क्या करता है?

बता दें कि एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (एओआर) वे वकील होते हैं जो सुप्रीम कोर्ट का प्रतिनिधित्व करने के योग्य होते हैं। वहीं इस मामले पर आपत्ति दर्ज करने वाले वकील एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन के थे। केवल एओआर ही शीर्ष अदालत में मामला दायर कर सकता है। इसके अलावा रजिस्ट्री अदालत के बैक-एंड संचालन को संभालती है और मामलों की स्थिति पर एओआर के साथ संचार करती है।

अभी तक स्टेशन, पेट्रोल पंप, बस स्टॉप, वैक्सीन सर्टिफिकेट, राशन के थैलों आदि पर ही पीएम की तस्वीर थी, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के काम काज में भी इसे डाल दिया गया। हालांकि, कोर्ट ने इसे हटाने का आदेश दे दिया मगर आज तक ऐसा मामला किसी और प्रधानमंत्री को लेकर सामने नही आया है। अदालत न्यायपालिका देश में कानून को बरकारक रखती है, अपराधियों को सज़ा देती है, देश के हित में सरकारों के कामकाज पर फैसला देती है, लोग की परेशानियों को कानून के दायरे में रखकर पैसला करती है जिससे देश का लोकतंत्र बना रहे। ऐसे में चुनावी चीजों को अदालत में घुसाना कितना सही है?