टीके से संबंधित प्रचार और विज्ञापनों के बाद अब खबर यह है कि टीके लग नहीं रहे हैं, रफ्तार बहुत धीमी है और जुलाई अंत तक 51 करोड़ 60 लाख (516 मिलियन) टीके लगाने का लक्ष्य हासिल होने की संभावना कम है। इसके बावजूद अखबारों में यह खबर नहीं है। आज द हिन्दू में यह खबर लीड है और अकेले हिन्दू में लीड है। द टेलीग्राफ में यह खबर सिंगल कॉलम में है लेकिन बाकी के तीन अखबारों से गायब है। मतलब, पूरे प्रचार के बावजूद टीके नहीं लग रहे हैं या कम लग रहे हैं लेकिन खबर छप रही है, प्रधानमंत्री ने कहा, तीसरी लहर का इंतजार मत कीजिए, उसे टालने की कोशिश कीजिए (टाइम्स ऑफ इंडिया)। हिन्दुस्तान टाइम्स ने भी कुछ ऐसा ही प्रचारात्मक शीर्षक लगाया है, “पहाड़ों में भीड़ को मोदी ने तीसरी लहर की शुरुआत के रूप में रेखांकित किया।
कहने की जरूरत नहीं है कि इससे पहले भीड़ इतनी हो चुकी थी कि वहां से लोगों को वापस करना पड़ा। पहला पन्ना में खबर छप चुकी है। लेकिन इंडियन एक्सप्रेस में आज इस खबर का शीर्षक है, “लोग तीसरी लहर के बारे में पूछते हैं, “इसे रोकना हम पर है, जरा सा भी समझौता नहीं कर सकता : प्रधानमंत्री”। यह सब दूसरी लहर को सफलतापूर्वक नियंत्रित करने के दावों के बाद का प्रचार है। आप जानते हैं कि कल प्रधानमंत्री उत्तर पूर्वी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात कर रहे थे और कल भी इस बैठक की सूचना ऐसे ही प्रचारात्मक थी जैसे प्रधानमंत्री ने एक अनजानी लहर को रोकने पर पूरा जोर लगा रखा है। इसी क्रम में उत्तराखंड में कावड़ यात्रा रोक दी गई है और उत्तर प्रदेश में कुछ प्रतिबंधों के साथ होगी (इंडियन एक्सप्रेस)।
आप जानते हैं कि कोविड की शुरुआत से पहले तमाम चेतावनियों को नजरअंदाज करके, नमस्ते ट्रम्प आयोजित करने और फिर सारी व्यवस्था केंद्र सरकार द्वारा ले लिए जाने के बावजूद महामारी फैली। दूसरी लहर की कोई तैयारी नहीं थी और भारी नुकसान के बाद अब तीसरी लहर को रोकने की तैयारियों का दिखावा किया जा रहा है। इसमें कांवड़ यात्रा पर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के निर्णय अलग हैं। बेशक यह सब खबर है। लेकिन टीके नहीं लग रहे हैं या रफ्तार से कम है, यह खबर क्यों नहीं है? दि हिन्दू की खबर का शीर्षक है, टीकाकरण 60 प्रतिशत कम हुआ। कई क्षेत्रों में टीकों का स्टॉक खत्म होने के बाद टीकाकरण केंद्र बंद कर दिए गए।
यही नहीं, कल महंगाई के खिलाफ कांग्रेस का प्रदर्शन था। दिल्ली में भी हुआ लेकिन उसकी खबर सिर्फ टेलीग्राफ में है। इसी तरह, पूर्व नौकरशाहों के संगठन कांस्टीट्यूशनल कंडक्ट ने एक खुला पत्र लिखा है। इसमें उत्तर प्रदेश में शासन व्यवस्था के पूरी तरह खत्म हो जाने और कानून का राज के जबरदस्त उल्लंघन पर चिन्ता जताई गई है। इसकी चर्चा भी पहले पन्ने पर नहीं है। क्या आपको लगता है कि उत्तराखंड में कुम्भ के आयोजन के लिए मुख्यमंत्री बदलने और आयोजन के बाद फिर मुख्यमंत्री बदलने और नए मुख्यमंत्री का निर्णय कावड़ यात्रा नहीं करवाने और उत्तर प्रदेश में करवाने का निर्णय मामूली है और डबल इंजन सरकारें अपने निर्णय खुद कर रही है। जो भी हो, इसपर खबर नहीं होना आश्चर्य है। दूसरी ओर, सरकारी खबरें खूब होती हैं।
उदाहरण के लिए हिन्दुस्तान टाइम्स में शीर्षक है, उत्तराखंड ने चेतावनी सुनी, कांवड़ यात्रा को न कहा। लेकिन इसमें उत्तर प्रदेश का नाम नहीं है। अंदर खबर में चर्चा है। दोनों राज्य डबल इंजन वाले यानी भाजपा शासित हैं और जिस ढंग से उत्तराखंड में कुम्भ करवाया गया उससे क्या आपको लगता है कि दोनों राज्यों के अलग फैसले उनके अपने होंगे? और हैं तो साधारण हैं। लेकिन उसपर कुछ नहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया और द हिन्दू में भी सिर्फ उत्तराखंड की खबर है, उत्तर प्रदेश की नहीं। दोनों राज्य अलग क्यों हो गए और उत्तर प्रदेश पहले पेज से अंदर क्या चला गया। उत्तर प्रदेश की खबर भी तो पहले पन्ने पर हो सकती थी – तमाम सुझावों के बावजूद उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा होगी। पर ऐसा कुछ है नहीं।
यही नहीं, देश की पहली कोविड-19 की मरीज फिर से संक्रमित है। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार उसे अभी तक टीका नहीं लगा है। यह खबर सिंगल कॉलम में ही सही, कई अखबारों में है पर किसी ने यह नहीं बताया है या पता करने की कोशिश नहीं की है कि उसने टीका क्यों नहीं लगवाया। इससे सरकार द्वारा मुफ्त में लगवाए जा रहे टीके का महत्व समझ में आता या लगाने की रफ्तार कम होने का कारण भी समझाया जा सकता था। लेकिन ऐसा कुछ है नहीं। इंडियन एक्सप्रेस ने इस तथ्य का उल्लेख शीर्षक में ही किया है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।