भगत सिंह के ‘बुलेट के बजाय बुलेटिन अभियान’ चलाने वाले पत्रकारों को मिलेगा शिव वर्मा सम्मान!


पीपुल्स मिशन की बैठक में तय हुआ कि क्रांतिकारी कामरेड शिव वर्मा मीडिया पुरस्कार जारी रखे जाएंगे। उसकी प्रिन्ट मीडिया, टेलीविजन समेत इलेक्ट्रॉनिक मीडिया , सोशल मीडिया , कार्टून और ग्राफिक्स , और महिला मीडिया कर्मियों की विशेष समेत कुल पाँच श्रेणियों के बरस 2021-22 के पुरस्कारों के लिए भारत के नागरिकों से एक अगस्त से 14 अगस्त की अर्धरात्रि तक नॉमिनेशन आमंत्रित किये जाएंगे। नामांकन करने वालों और नामांकित किये जाने वालों का भारत का नागरिक होना अनिवार्य है। नामाकन के आधार पर ज्यूरी स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में 15 अगस्त 2021 को अपने निर्णय घोषित करेगी। 


चन्‍द्रप्रकाश झा चन्‍द्रप्रकाश झा
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भारत में अवामी मीडिया विकसित करने के प्रयास उसकी आज़ादी की लड़ाई के दौरान से ही होते रहे हैं. क्रांतिकारी कामरेड शिव वर्मा (1904-1997) लाहौर कॉन्सपिरेसी केस-2 में शहीद भगत सिंह के साथ सहअभियुक्त थे। वे उस कथित बोगस  अपराध के लिए ब्रिटिश हुमरानी द्वारा दंडित होने पर हिन्द महासागर में अंडमान निकोबार द्वीप समूह के कुख्यात सेलुलर जेल में कालापानी की सज़ा भुगत कर जीवित बचे अंतिम स्वतन्त्रता संग्रामी थे। उन्होंने तमाम यातना के बावजूद ब्रिटिश हुमरानी से माफी नहीं मांगी। 

इसी अंडाकार सेलुलर जेल में बंद रहे विनायक सावरकर ने ब्रिटिश हुक्मरानी को कई बार लिखित माफीनामा दिया तो उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया था। ब्रिटिश हुक्मरानी ने सावरकर के माफीनामा से खुश होकर उन्हें पेंशन भी मंजूर कर दी। वह  ‘वीर’ क़तई नहीं थे और अपने नाम के आगे ये शब्द खुद जोड़ लिया था। इस बात की पुष्टि इतिहासकारों ने प्रामाणिक दातावेजों के आधार पर की है। यह भी अकाट्य प्रमाणों के आधार पर साबित हो चुका है कि विनायक सावरकर ने ही नाथुराम गोडसे को नागपुर के एक घर में बुला कर उसे भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या करने के लिए रिवाल्वर दिया था। गांधी जी की हत्या की पुलिस जांच के हवाले से अंग्रेजी दैनिक, द टाइम्स ऑफ इंडिया के नागपुर संस्करण के फ्रंट पेज पर खबर छपी थी। लेकिन इसका खुलासा नहीं किया गया कि वह घर किनका था। बहुत बाद में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी ( भाजपा ) के नेता देवेन्द्र फड़णवीस ने अपने टवीट में यह भेद खोला कि विनायक सावरकर सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के चीफ जस्टिस (अब रिटायर) जस्टिस शरद एस बोवडे के नागपुर स्थित पुस्ततैनी घर जाया करते थे। फड़णवीस जी के टवीट में नाथुराम गोडसे का कोई जिक्र नहीं है। फड़णवीस जी ने इस संभावना का न तो खंडन किया है और ना ही पुष्टि की है कि महात्मा गांधी की हत्या करने के लिए गोडसे को रिवॉल्वर सावरकर ने दी थी। लेकिन महात्मा गांधी की हत्या के मामले में सावरकर भी अभियुक्त थे इसका खंडन भाजपा की गोडसेवादी सांसद और महाराष्ट्र के मालेगाँव आतंकी बम विस्फोट मामले में अभियुक्त प्रज्ञा सिंह से लेकर कोई भी आज तक नहीं कर सका है। 

कामरेड शिव वर्मा ने भारत की त्रिभाषी न्यूज एजेंसी यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया (यूएनआई) के पत्रकार एवं गैर-पत्रकार कर्मचारियों की देश भर की सभी यूनियनों के सर्वोच निकाय यूएनआई एम्पलोईज फेडरेशन के सातवें अखिल भारतीय सम्मेलन के उद्घाटन-सम्बोधन में लिखित रूप से भी खुलासा किया था कि उनके संगठन ने आज़ादी की लड़ाई के नए दौर में बुलेट के बजाय बुलेटिन का इस्तेमाल करने का निर्णय किया था। इसी निर्णय के तहत भगत सिंह को 1929 में दिल्ली की सेंट्रल असेम्ब्ली की दर्शक दीर्घा से बम-पर्चे फ़ेंकने के बाद नारे लगाकर आत्म-समर्पण करने का निर्देश दिया गया। इसका मकसद था भगत सिंह के कोर्ट ट्रायल से स्वतन्त्रता संग्राम के उद्देश्यों की जानकारी पूरी दुनिया को मिल सके। 

कामरेड शिव वर्मा के शब्द थे: हमारे क्रांतिकारी स्वतंत्रता संग्राम के समय हमें अपने विचार और उद्येश्य आम जनता तक पहुंचाने के लिए मीडिया के समर्थन का अभाव प्रतीत हुआ था.शहीदे आजम भगत सिंह को इसी अभाव के तहत आत्म समर्पण करने का निर्णय लिया गया था जिससे कि हमारे विचार एवं उद्देश्य आम लोगों तक पहुँच सकें. हमें 15 अगस्त 1947 को विदेशी शासकों से स्वतन्त्रता तो मिल गयी किन्तू आज भी वैचारिक स्वतंत्रा नहीं मिल सकी है. क्योंकि हमारे अख़बार तथा मीडिया पर चंद पूंजीवादी घरानों का एकाधिकार है.अब समय आ गया जबकि हमारे तरुण पत्रकारों को इसकी आज़ादी के लिए मुहीम छेड़ कर वैचारिक स्वतंत्रा प्राप्त करनी होगी. क्योंकि आज के युग में मीडिया ही कारगर शस्त्र है. किसी पत्रकार ने लिखा था कि सोविएत रूस में बोल्शेविकों नें बुल्लेट का कम तथा बुलेटीन का प्रयोग अधिक किया था.हमारे भारतीय क्रांतिकारियों ने भी भगत सिंह के बाद अपनी अपनी आजादी की लड़ाई में बुलेट का प्रयोग कम करके बुलेटीन का प्रयोग बढ़ा दिया था.अब हम जो लड़ाई लडनी है वह शारीरिक न होकर वैचारिक होगी जिसमे हमें मीडिया रूपी ब्रह्माश्त्र क़ी आवश्यकता होगी.विचारों क़ी स्वत्रंत्रता के लिए तथ्यात्मक समाचार आम जनता तक पहुंचाने का दायित्व जनसंगठनों  पर है.अखबारों को पूंजीवादी घराने से मुक्त करा कर लिए जनवादी बनाया जाये. जिससे वह आर्थिक बंधनों से मुक्त होकर जनता के प्रति अपनी वफादारी निभा सके.  

 

अवामी मीडिया  विकसित करने के प्रयास 

भारत में अवामी मीडिया विकसित करने के लिए आज़ादी के बाद भी कई प्रयास हुए जिनमें वरिष्ठ पत्रकार आनंद स्वरुप वर्मा और उनके साथ इतिहासविद लाल बहादुर वर्मा ( अब दिवंगत ) का वैकल्पिक मीडिया अभियान , प्रसिद्द पत्रकार पी साईनाथ की मुंबई में 1980 के मध्य में शुरू पत्रिका , काउंटर मीडिया , गोरखपुर के आधार से रैडिकल शशि प्रकाश , कवियत्री कत्यायिनी आदि का हमारा मीडिया   अभियान भी शामिल है.

1990 के दशक की शुरुआत में भारत में राजसत्ता की नवउदारवादी आर्थिक नीतियों को लागू करने के समय  दिल्ली यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (डीयूडब्लयूजे) की ओर से पत्रकारों के लिए प्रकाशित अलहदा त्रिभाषी जर्नल पीपुल्स मीडिया का उल्लेख किया जा सकता है जिसके संपादक इन पंक्तियों के लेखक यही पत्रकार थे। इसका साथ देने के संकल्प के साथ छतीसगढ़ के प्रखर मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी ( अब शहीद ) ने भी  केंद्र सरकार के पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) के सामने डीयूडब्लयूजे के बने दफ्तर पहुंच कर विचार विमर्श किया था। वो पत्रिका किन्ही कारणों से बंद हो गई और वो संगठन भी निष्क्रिय पड़ गया। 

बाद में पीपुल्स मीडिया नाम से ही लखनऊ में बिन किसी देसी -विदेशी एनजीओ फंडिंग के बने एक पंजीकृत छोटे समूह की पहल पर पत्रकारिता के क्षेत्र में  नए प्रयोग के तहत श्रम और मानवाधिकार विषय पर सर्वश्रेष्ठ रिपोर्टिंग के लिए सालाना शहीद शंकर गुहा नियोगी अवार्ड प्रारंभ किया गया।  

नियोगी जी के हाल में दिवंगत हुए सहयोगी राजेंद्र सायल, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ( जेएनयू ) के छात्र नेता रहे और एक्टिविस्ट अनिल चौधरी , आनंद स्वरुप वर्मा और अन्य के प्रयासों से वह अवार्ड हाल तक कायम रहा। राजेंद्र सायल के बीते बरस गुजर जाने के बाद वह अवार्ड लगभग बंद बताया जाता है। 

अवामी मीडिया खड़ा करने के घोषित उद्देश्य से आरम्भ ये लगभग सारे अभियान व्यापक जन समर्थन के आभाव में आगे नहीं बढ़ सके। लेकिन पिछले बरस झारखंड की राजधानी रांची में प्रस्तावित विशेष कंपनी और न्यास पीपुल्स मिशन ने पीपल्स मीडिया समेत की संगठनों को एकसाथ लाकर अवामी मीडिया को आगे बढ़ाने का काम शुरू किया है। कोरोना कोविड महामारी में पीपल्स मिशन के चेयरमेन कामरेड उपेन्द्र प्रसाद सिंह के हाल में निधन से उसका काम कुछ बाधित हुआ। लेकिन प्रस्तावित न्यास के सभी न्यासियों ने पीपल्स मीडिया द्वारा पिछले बरस 15 अगस्त को शुरू किये गए ‘ क्रांतिकारी कामरेड शिव वर्मा मीडिया पुरस्कार ’  जारी रखने का संकल्प लिया है।

इस सिलसिले में नई दिल्ली में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में 12 जुलाई 2021 को माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (मध्य प्रदेश) के पूर्व प्रो वायसचांसलर और समकालीन भारत के वरिस्ठतम पत्रकार रामशरण जोशी की उपस्थिति में अनौपचारिक विचार विमर्श हुआ , जो ‘ क्रांतिकारी कामरेड शिव वर्मा मीडिया पुरस्कार ‘ ज्यूरी के चेयरपर्सन भी हैं। उस अनौपचारिक बातचीत में प्रेस क्लब अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा , वरिस्ठ पत्रकार जयशंकर गुप्त , सत्य-हिन्दी टीवी और न्यूज पोर्टल के संपादक शीतल पी सिंह और अग्रणी पत्रकार प्रशांत टंडन भी उपस्थित थे।

इस बातचीत में मिले सुझाव के आधार पर पीपल्स मिशन के न्यासियों में से हिन्दू कॉलेज, दिल्ली के रिटायर प्रोफेसर ईश मिश्र,रांची के प्रमुख चिकित्सक डाक्टर राजचंद्र झा, विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश) में बसे द इकोनोमिस्ट टाइम्स के पूर्व असोसिएट एडिटर और मौजूदा समय में उधमी जीवी रमन्ना, यूएनआई एम्पलोईज फेडरेशन के पूर्व अध्यक्ष और कृषि विषय के जाने-माने पत्रकार जसपाल सिंह सिद्धू,यूएनआई वर्कर्स यूनियन (दिल्ली ) के कई बार महासचिव रहे और अब केरल जा बसे मजदूर नेता एमवी शशीधरण और इस स्तंभकार के बीच वीडियो और फोन कॉन्फ्रेंसिंग  के बाद कुछ अहम निर्णय लिए गए हैं। 

पहला निर्णय ये है कि क्रांतिकारी कामरेड शिव वर्मा मीडिया पुरस्कार जारी रखे जाएंगे। उसकी प्रिन्ट मीडिया, टेलीविजन समेत इलेक्ट्रॉनिक मीडिया , सोशल मीडिया , कार्टून और ग्राफिक्स , और महिला मीडिया कर्मियों की विशेष समेत कुल पाँच श्रेणियों के बरस 2021-22 के पुरस्कारों के लिए भारत के नागरिकों से एक अगस्त से 14 अगस्त की अर्धरात्रि तक नॉमिनेशन आमंत्रित किये जाएंगे। नामांकन करने वालों और नामांकित किये जाने वालों का भारत का नागरिक होना अनिवार्य है। नामाकन के आधार पर ज्यूरी स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में 15 अगस्त 2021 को अपने निर्णय घोषित करेगी। 

कोलकाता विश्वविद्यालय के रिटायर प्रोफेसर जगदीश्वर प्रसाद चतुर्वेदी ज्यूरी के उपाध्यक्ष बने रहेंगे। ज्यूरी में पहले से शामिल, सत्य हिंदी के शीतल पी सिंह अब दिवंगत उपेन्द्र प्रसाद सिंह की जगह इसके वर्किंग   चेयरमैन होंगे । अग्रणी पत्रकार प्रशांत टंडन को ज्यूरी का विशेष अपाध्यक्ष बनाया गया है जिनकी मुख्य जिम्मेवारी ज्यूरी अध्यक्ष और अन्य सदस्यों को निर्णय लेने के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग आदि के जरिए तकनीकी रूप से मदद करना होगा। 

ज्यूरी में पहले से शामिल, जनमीडिया के संपादक अनिल चमड़िया, हिंदी न्यूज पोर्टल जनचौक के महेंद्र मिश्र, मीडिया विजिल के डाक्टर पंकज श्रीवास्तव, जनज्वार के पीयूष पंत , उर्दू न्यूज पोर्टल शहरनामा   (लखनऊ) के सय्यद हुसैन अफसर के अलावा अंग्रेजी न्यूज पोर्टल एक्सप्रेस पोस्ट (मुंबई) के रोमेल रोड्रिग्स और तक्षक पोस्ट ( एनसीआर -दिल्ली) की महिला पत्रकार श्वेता आर रश्मि को भी शामिल किया गया है। ज्यूरी के सदस्य के रूप में पूर्व, पूर्वोत्तर, मध्य और दक्षिण भारत के कुछ संपादकों के नाम उनकी सहमति मिल जाने पर बाद में घोषित किये जाएंगे। प्रत्येक पुरस्कार विजेता को शहीदे आजम भगत सिंह की प्रतिमा, कलम, शॉल और 10- 10 हजार रुपये भेंट किये जाएंगे।

पिछले बरस और इस बरस के भी पुरस्कार कोविड महामारी से उत्पन्न स्थिति में लॉक डाउन खत्म हो जाने के बाद नई दिल्ली में समारोह में भेंट किये जाएंगे। उसी समारोह में कोविड महामारी पर पीपल्स मिशन की अंग्रेजी – हिंदी की पुस्तकों का विमोचन भी किया जाएगा। 

पीपल्स मिशन का एक और अहम निर्णय इस बरस से गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान की अभिनव परिपाटी शुरू करना है। यह सम्मान पुरानी पीढ़ी के संपादकों को नई पीढ़ी के संपादको की तरफ से भेंट की जाएगी। इसके तहत सम्मानित संपादक को अवाम से एकत्रित कम से कम 80 हजार रूपये की थैली भेंट की जाएगी। इसके लिए धन एक विशेष सचित्र स्मारिका के लिए हासिल विज्ञापन से भी जुटाए जाएंगे ताकि इस  सम्मान के लिए भविष्य में भी धन सुरक्षित रखा जा सके। स्मारिका के मुख्य संपादक प्रोफेसर ईश मिश्र होंगे और उसके संपादक मंडल के समन्यवक चंद्र भूषण (नवभारत टाइम्स) होंगे।