कोविड काल में घरेलू कामगारों की व्यथा-कथा की कहाँ सुनवाई!


गुरुग्राम से चंपा ने फॉउंडेशन को बताया, “मुझे मेरी मालकिन ने अप्रैल में ही निकाल दिया था, मैंने जब आफ़त की घड़ी में उनको फ़ोन किया तो वो मुझपर झल्ला उठीं और बोलीं कि जब हमें ज़रूरत होगी हम बुला लेंगे, हमें फ़ोन कर के परेशान मत करो।”


समीक्षा झा समीक्षा झा
ओप-एड Published On :


16 जून को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय घरेलू कामगार दिवस मनाया जाता है। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी घरेलू कामगारों की कुछ मौलिक मांगे हैं, जिनका मकसद घरेलू कामगारों को एक गरिमापूर्ण दर्जा देना और राष्ट्रीय लेबर डिपार्टमेंट में घरेलू कामगारों का रेजिस्ट्रेशन कराना है।

कोविड माहमारी के कारण लाखों घरेलू कामगारों की नौकरियां चली गई हैं। हाल ही में मार्था फॉरेल फॉउंडेशन द्वारा दिल्ली, गुरुग्राम और फरीदाबाद में किए गए सर्वे में पता चला है कि 2328 महिला घरेलू कामगारों में से 84% ने अप्रैल महीने के मध्य में अपनी नौकरी खो दी थी। आधे महीने काम करने के बाद भी 66% महिला घरेलू कामगारों को कोई वेतन नहीं मिला और न ही किसी प्रकार की आर्थिक सहायता मिली।

गुरुग्राम से चंपा ने फॉउंडेशन को बताया, “मुझे मेरी मालकिन ने अप्रैल में ही निकाल दिया था, मैंने जब आफ़त की घड़ी में उनको फ़ोन किया तो वो मुझपर झल्ला उठीं और बोलीं कि जब हमें ज़रूरत होगी हम बुला लेंगे, हमें फ़ोन कर के परेशान मत करो।”

दिल्ली, गुरुग्राम और फरीदाबाद में ज़्यादातर महिला घरेलू कामगार प्रवासी हैं, वे बिहार, बंगाल, झारखंड और ओडिशा से ताल्लुक रखती हैं। सब किराए के मकानों में रहती हैं या तो झुग्गी में – ये घरेलू कामगार मौलिक अधिकारों से भी वंचित हैं। कोविड काल में इन घरेलू कामगारों को माहमारी से तो डर कम है पर अपनी नौकरियों को हमेशा के लिए खो देने का ज़्यादा डर है। मार्था फॉरेल फॉउंडेशन से बातचीत के दौरान घरेलू कामगारों ने ये साझा किया कि उन्हें भूखमरी का डर है, उन्हें डर है कि वे बिना नौकरी के अपने घरों का किराया कैसे देंगी? हम जब संसाधनों तक पहुंच की बातें करते है तो घरेलू कामगारों का ये तबका काफ़ी पीछे छूट गया है। अगर हम कोरोना की वैक्सीन की बात करें तो 2328 महिला घरेलू कामगारों में से 94% ऐसे हैं जिन्होंने अब तक वैक्सीन नहीं लगवाई। वैक्सीनेशन प्रक्रिया में टेक्नोलॉजी का जुड़ना इन घरेलू कामगारों के लिए बेहद कठिन साबित हुआ क्योंकि सबके पास न तो स्मार्टफोन है और अगर फ़ोन है भी तो उसके बाद इन घरेलू कामगारों में डिजिटल साक्षरता की कमी हैं।

इस अंतरराष्ट्रीय घरेलू कामगार दिवस पर इनकी मांगे हैं कि इनकी पहुंच कोविड वैक्सीन तक हो, नियोक्ताओं द्वारा इन घरेलू कामगारों को अचानक नौकरी से हटाने की भरपाई 10,000 रुपए देकर हो, अंतर्राष्ट्रीय लेबर संगठन के कन्वेंशन C189 को लागू किया जाए और साथ ही कार्यस्थल पर एक उचित कार्य का माहौल हो जिसमें वो यौन उत्पीड़न से सुरक्षित हों।

मार्था फॉरेल फॉउंडेशन पिछले कई वर्षों से महिला घरेलू कामगारों के साथ काम कर रहा है। इन घरेलू कामगारों की आवश्कताओं के अनुसार फॉउंडेशन ने अब तक दिल्ली, गुरुग्राम, फरीदाबाद, सोनीपत और पानीपत में लगभग 4000 से अधिक परिवारों तक कोविड राहत- राशन और सेफ्टी किट पहुंचाई है। मार्था फॉरेल फॉउंडेशन घरेलू कामगार यूनियन (शहरी घरेलू कामगार संगठन, नेशनल डोमेस्टिक वर्कर मूवमेंट, सेवा भारत, निर्माण) के सहयोग से ज़रूरतमंद महिला घरेलू कामगारों की पहचान कर पाया है और उन तक जरूरी जानकारी समेत राशन किट पहुंचा पाया है।

 

समीक्षा झा, मार्था फार्रेल फाउंडेशन में प्रोग्राम ऑफिसर हैं।