पारदर्शिता का दावा और इसलिए पारदर्शिता की चर्चा
आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने आरोप लगाया है कि राम मंदिर ट्रस्ट ने दो करोड़ रुपए की जमीन 18.5 करोड़ में खरीदी है। असल में, अयोध्या में एक प्लॉट दो करोड़ रुपए में बेची या खरीदी गई और कुछ ही देर बाद वही जमीन 18.5 करोड़ रुपए में बेच दी गई। सब कुछ कागजों में साफ है। पूरी तरह पारदर्शी। अगर यह खबर आज पहले पन्ने पर नहीं होती तो मैं शायद इतना भर लिखकर छोड़ देता। सोशल मीडिया पर कल इस खबर की खूब चर्चा थी पर आज मेरे पांच अखबारों में से चार में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस में यह पहले पन्ने पर है और शीर्षक में नई बात यह है कि राम मंदिर ट्रस्ट ने इस आरोप से इनकार किया है। दूसरी ओर, संजय सिंह ने कहा, ‘मर्यादा पुरूषोत्तम प्रभु श्री राम के नाम पर इतना बड़ा घोटाला सुनकर आपके पैरों के नीचे जमीन खिसक जाएगी। मर्यादा पुरूषोत्तम प्रभु श्री राम के नाम पर ज़मीन खरीद में भारी घोटाला हुआ है। दो करोड़ की जमीन ट्रस्ट के चंपत राय ने 5 मिनट बाद 18.5 करोड़ में खरीदी। ये देश के करोड़ों लोगों की आस्था पर आघात है।
आमतौर पर कोई भी रामभक्त मंदिर ट्रस्ट के इनकार को स्वीकार कर लेगा और उसके विस्तार में नहीं जाएगा। चूंकि मैं इंडियन एक्सप्रेस को प्रचारक मानता हूं इसलिए मुझे इस खबर का शीर्षक ही खटका। हालांकि, अच्छी पत्रकारिता यही है कि जिसपर आरोप लगे या लगाया जाए उसका पक्ष भी छापा जाए। पर क्या इनकार करने भर से काम चल जाएगा? अगर खरीदने और भुगतान करने का तरीका पारदर्शी है तो कीमत का अंतर भी साफ है और रिकार्ड की सत्यता पर कोई संदेह नहीं है। राम मंदिर इस सरकार के लिए महत्वपूर्ण मुद्दा है। राम मंदिर ट्रस्ट पर आरोप लगना लाखों हिन्दुओं की आस्था का मामला है। ऐसे में इनकार भी दमदार होना चाहिए। पर है नहीं। आइए, इंडियन एक्सप्रेस की खबर देखें। “प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पूर्व प्रमुख सचिव नृपेन्द्र मिश्र जो अब राम मंदिर तीर्थ क्षेत्र मंदिर निर्माण ट्रस्ट की मंदिर निर्माण समिति के प्रमुख हैं, रविवार को अयोध्यों में टस्ट्रियों और विशेषज्ञों से मिले ताकि मंदिर निर्माण का जायजा ले सकें। आम आदमी पार्टी के सांसद ने ट्रस्ट द्वारा इस साल 18 मार्च को खरीदी गई जमीन के मामले में धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार का आरोप लगया है। यहां 18 मार्च खरीदने की तारीख तो है ही, यह सूचना भी कि मामला पुराना है। इसके बाद संजय सिंह के आरोप का जिक्र है। आखिर में बचाव। मैं सीधे उसी पर आता हूं। (यह पहले पन्ने पर नहीं है)
इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार, देर रात जारी एक बयान में ट्रस्ट ने कहा है कि विक्रेताओं का निश्चित कीमत पर वर्षों पुराना एक पंजीकृत करार था और उसी कारर का बैनामा होने के बाद विक्रेता या खरीदार ने जमीन ट्रस्ट को बेची। खबर में नहीं कहा गया है लेकिन तथ्य यह है कि दो बार खरीदने बेचने में दो बार स्टांप ड्यूटी लगेगी और यह पैसा सरकारी खाते में जाएगा। जब घोटाला 16 करोड़ का है तो सरकारी खाते में कुछ पैसे देकर पारदर्शी होने का दावा किया जा सकता है और भ्रष्टाचार या घोटाले का ज्यादातर मामला इसी सरकारी पैसे की चोरी का होता है। दूसरी चोरी आयकर की होती है। पर उसके लिए आय का स्रोत बताना होता है। यहां आय का स्रोत साफ है। इसलिए घोटाला किस तरह का है यह समझने की बात है। सैंया भये कोतवाल की तर्ज पर सरकार किसी को माफ कर सकती है किसी की जांच करवा सकती है और किसी की जांच सिर्फ चुनाव के समय हो – यह भी संभव है।
इस सरकार की कार्यपद्धति निराली है और वह इंडियन एक्सप्रेस जैसे प्रचारकों के दम पर भी है। सुनने में यह जायज लगता है कि बेचने वाले का वर्षों पुराना करार था उसने तब की कीमत पर बेच दिया और खरीदने वाले ने कुछ ही मिनट बाद आज की कीमत पर खरीद लिया। अब बेचने वाले ने पुरानी कीमत पर क्यों बेचा यह मत पूछिए। इसी तरह, टैक्स की चोरी रोकने के लिए सरकार ने सर्किल रेट फिक्स कर रखे हैं। इस हिसाब से एक न्यूनतम कीमत तय होती है। जो जमीन 18 या 20 करोड़ की है उसका बैनामा दो करोड़ में कैसे हुआ? यही नहीं, अगर पुराने करार के कारण दो करोड़ में बैनामा हुआ है तो सर्किल रेट का क्या हुआ? कायदे से सर्किल रेट से कम में बैनामा हो नहीं सकता। और अगर अयोध्या में अभी सर्किल रेट लागू नहीं हुआ है और दाम इस तेजी से बढ़ रहे हैं तो यह घपला सरकारी स्तर का है। इंडियन एक्सप्रेस की खबर इस मामले में पूरी तरह शांत है।
अगर सर्किल रेट का सिस्टम लागू होता तो कम कीमत में बैनामा होता ही नहीं और अगर ज्यादा कीमत में होता तो टैक्स ज्यादा लगता और बेचने वाले को लाभ नहीं होता। अगर यह सब नहीं हुआ है तो बेचने वाले की कमाई कराना मकसद हो सकता है। पर यह सब कौन देखेगा? ऐसा नहीं है कि इंडियन एक्सप्रेस को यह सब पता नहीं होगा। हालांकि, यहां भी कुछ पैसे देकर पारदर्शिता बरती जा सकती है। इस मामले में भी अगर दावा किया जा रहा है तो बरती गई होगी। लेकिन पारदर्शिता चोरी पकड़े जाने के बाद बताने के लिए नहीं होती है। पारदर्शिता रखनी हो और नीयत में खोट न हो तो कुछ खुलासे पहले किए जाने चाहिए। इस मामले में चूंकि खरीद जनता के पैसे से की जानी थी इसलिए जनता को यह सूचना दे दी जानी चाहिए थी कि ट्रस्ट इस कारण से दो करोड़ की जमीन का बैनामा अमुक तारीख को 18.5 करोड़ में कराएगा। यह ट्रस्ट की बैठक में भी तय हुआ होगा और उसके मिनट्स भी होंगे।
अब जब घोटाले की बात हो रही है तो पारदर्शिता यह होती कि उन घोषणाओं और मिनट्स को सामने रखा जाता। वरना अंदरखाने क्या हुआ कौन जानता है। और कौन कितने पैसे लेकर कितना झूठ बोल रहा है यह कैसे समझ में आएगा। सांसद संजय सिंह के आरोपों से लगता है कि सबकुछ पहले से तय था। पर यह पूर्व घोषित भी होना चाहिए और अब वही सबसे महत्वपूर्ण है। इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है, ट्रस्ट को जमीन बेचने वाले प्रोपर्टी डीलर्स में से एक, (सुलतान) अंसारी ने कॉल का जवाब नहीं दिया जबकि (रवि मोहन) तिवारी ने कहा कि वर्षों पहले दो करोड़ में सौदा हुआ था अब उसकी कीमत 20 करोड़ से ऊपर होगी लेकिन सौदा 18.5 करोड़ में ही हुआ है। अब यहां डेढ़ करोड़ रुपए का कोई मतलब नहीं है। जमीन की कीमत ऐसे ही होती है। और इसका कोई मानक फॉर्मूला तो हो नहीं सकता है। ऐसे में जनता के पैसे से कोई जमीन कितने में खरीदी जाए, यह पहले तय हुआ होगा। उसका रिकार्ड होगा। पहले अखबार में खबर छपने का मतलब होता था कि दस्तावेज रिपोर्टर ने देख लिया होगा। पर जब अखबार ही प्रचारक हो जाएं तो विवाद और खबर की स्थिति में दस्तावेज की जांच कौन करेगा और प्रचारक झूठ बोलते हैं यह स्थापित है तो भरोसा कहां रह गया कि आप खबर पर यकीन कर लें।
So here is the alleged scam. Sultan Ansari bought land valued at Rs 5.7 crores from Kusum Pathak for Rs 2 crores. Then Ram Mandir Trust bought the same land from Ansari five minutes after he bought it from Kusum for Rs 18.5 crores. pic.twitter.com/r62qbegZPz
— Rohini Singh (@rohini_sgh) June 13, 2021
यही नहीं, एक्सप्रेस ने इसी खबर में आगे लिखा है, आरोपों के जवाब में राम जन्मभूमि ट्रस्ट (जमीन खरीदने वाले को राम मंदिर ट्रस्ट कहा गया है) के सचिव चंपत राय ने कहा कि मैं मामले का अध्ययन करूंगा। मैं इस समय टिप्पणी नहीं करूंगा। आरोप मुझे कभी चिन्तित नहीं करते हैं। अयोध्या के मेयर जो दस्तावेजों में गवाह बताए गए हैं ने कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। इस खबर में खास बात यह भी है कि जमीन की मौजूदा कीमत 5 करोड़ बताई जा रही है और अंसारी व तिवारी प्रोपर्टी डीलर नहीं विक्रेता हैं। सच्चाई मैं नहीं जानता लेकिन कई बार प्रोपर्टी डीलर संपत्ति अपने नाम करवा लेता है और ज्यादा मुनाफे के चक्कर में देर से बेचता है। लेकिन तकनीकी तौर पर जो विक्रेता है उसे अखबार प्रोपर्टी डीलर क्यों लिखेगा? कुल मिलाकर मामला उतना साफ नहीं है जितना इंडियन एक्सप्रेस बता रहा है। अगर जमीन बेचने का करार पुराना था और बैनामा नहीं हुआ था जो जाहिर है मकसद कमाना ही था और कमाई करवाई गई, सरकारी पैसे से और दलाली को जमीन का दाम बताने की पारदर्शिता भी है जबकि ऐसे मामले कमाने वाले ही होते हैं। कमाई कराने का पारदर्शी तरीका भी है पर वह ट्रस्ट के मिनिट्स के रूप में होना चाहिए। ऐसा नहीं है कि ट्रस्ट के मिनिट्स में हो तो घोटाला नहीं होना सुनिश्चित हो जाएगा पर अभी इतना ही।
द टेलीग्राफ आज भी सबसे अलग है। यहां पहले पन्ने की लीड आज भी किसी अखबार में पहले पन्ने पर नहीं है। कम से कम इस अंदाज में। आज लीड दो हिस्से में है। पहला दर्द, जो बयान नहीं किया जा सके और दूसरा गर्व, जो स्पष्ट न किया जा सके। एक तरफ कोविड से हुई मौत का दुखद वर्णन है तो दूसरी तरफ जी7 देशों की बैठक में प्रधानमंक्षी के गर्व भरे दावों का जिक्र है जो जाहिर है, स्पष्ट नहीं किया जा सकता है। आम लोगों की तकलीफ का ऐसा वर्णन अंग्रेजी में पहली बार मिला है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।