विश्व प्रसिद्ध मेडिकल जर्नल द लैंसेट ने अपने संपादकीय में भारत में कोरोना से हो रही तबाही के लिए सीधे प्रधानमंत्री मोदी को ज़िम्मेदार ठहराया है। लैंसेट ने लिखा है कि मोदी अपनी आलोचनाओं को दबाने पर ज़्यादा ध्यान दे रहे हैं बजाय महामारी पर काबू पाने के। उनकी यह कोशिश माफ़ी के क़ाबिल नहीं है। शुरुआती सफलताओं के बाद मोदी सरकार ने “आत्म-उकसावे वाली राष्ट्रीय तबाही” की।
लैंसेट ने लिखा है कि कोरोना के मामले में कुछ कमी आते ही सरकार यह बताने में जुट गयी कि भारत ने कोविड को हरा दिया। उसने दूसरी लहर और नये स्ट्रेन के ख़तरों से जुड़ी चेतावनियों को नज़रअंदाज़ कर दिया। चेतावनी के बावजूद कुंभ जैसे लाखों की भीड़ जुटाने वाले धार्मिक आयोजन और चुनावी रैलियाँ होती रहीं।
लैंसेट ने इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन के अनुमान के आधार पर कहा है कि भारत में एक अगस्त तक कोरोना महामारी से होने वाली मौतों की संख्या 10 लाख तक पहुंच सकती है।
लैंसेट ने लिखा है कि शुरुआती सफलता के बाद से सरकार की टास्क फ़ोर्स अप्रैल तक एक बार भी नहीं नहीं मिली। नतीजे में महामारी बढ़ी। भारत की सफलता इस बार पर निर्भर करेगी कि “मोदी सरकार अपनी ग़लती मानती है कि नहीं। देश को पारदर्शी नेतृत्व देती है या नहीं।”
जर्नल के मुताबिक, “इस फ़ैसले का नतीजा हमारे सामने है. अब महामारी बढ़ रही है और भारत को नए सिरे से क़दम उठाने होंगे. इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि सरकार अपनी ग़लतियों को मानती है और देश को पारदर्शिता के साथ नेतृत्व देती है या नहीं.”
लैंसेट ने लिखा है कि सरकार को सटीक डेटा उपलब्ध कराना चाहिए और हर 15 दिन पर लोगों को बताना चाहिए कि महामारी की रोकथाम के लिए सरकार क्या कर रही है। देशव्यापी लॉकडाउन की संभावना पर भी विचार होना चाहिए।
लैंसेट ने सरकार के टीकाकरण अभियान को भी पाखंडपूर्ण और फ़ेल बताया है। लिखा है कि बिना राज्यों की सलाह लिए 18 साल के ऊपर के लोगों के टीकाकरण की नीति घोषित कर दी गयी।इससे सप्लाई में कमी पड़ गयी और अव्यवस्था फैल गयी।
लैंसेट ने कहा है कि वैक्सीन सप्लाई बढ़ाने के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर बनाने की ज़रूरत है। भारत में 65 प्रतिशत ग्रामीण आबादी तक स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव को देखते हुए यह बहुत ज़रूरी है।
जर्नल में कहा गया है कि टीकाकरण अभियान में तेज़ी लाने की ज़रूरत है. अभी सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं वैक्सीन की सप्लाई को बढ़ाना और इसके लिए डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर बनाना जो कि ग़रीब और ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को तक पहुंचे क्योंकि ये देश की 65 प्रतिशत आबादी हैं और इन तक स्वास्थ्य सेवाएं नहीं पहुंचती। जर्नल ने कोरोना के अंत का दावा करने के लिए स्वास्थ्यमंत्री डॉ.हर्षवर्धन की भी तीखी आलोचना की है।
लैंसेट ने महामारी से लड़ने के मामले में केरल और उड़ीसा जैसे राज्यों की तारीफ़ करते हुए लिखा है कि ये राज्य दूसरी लहर का सामना करने के लिए तैयार थे जबकि महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में ऐसा नहीं हो पाया। नतीजा ये कि इन राज्यों को ऑक्सीजन, बेड, और दूसरी मेडिकल सुविधाओं, यहाँ तक कि दाह संस्कार के लिए जगह की कमी से भी जूझना पड़ा। लैंसेट ने ये भी लिखा है कि कुछ राज्यों ने बेड और ऑक्सीजन की डिमांड कर रहे लोगों के ख़िलाफ़ सुरक्षा से जुड़े कानूनों का इस्तेमाल किया।
लैंसेट की इस रिपोर्ट का हवाला देकर विपक्ष ने सरकार पर हमला शुरू कर दिया है। पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री पी.चिदंबरम ने स्वास्थ्यमंत्री से तुरंत इस्तीफ़ा देने की माँग की है।
After the Lancet editorial today, if there is a shred of shame, the government should tender a public apology to the country.
The Health Minister should resign forthwith.
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) May 8, 2021