बिहार: आँसुओं से जलते चिराग़ के ‘शोक-शो’ में झिलमिलाता बीजेपी का सपना!


बीजेपी तिकड़मबाज़ी से बिहार में अपनी सरकार बनाने का सपना पूरा करना चाहती है। तमाम दिग्गज बीजेपी नेता यूँ ही चिराग़ पासवान की पार्टी से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। भविष्य में किसी भी संभावना को देखकर उन्हें बीजेपी के साथ जाने में एक पल नहीं लगेगा। यानी चुनाव बाद नीतीश को छोड़कर एक ऐसा गठबंधन बनाने की कोशिश होगी जिसका नेतृत्व बीजेपी के हाथ हो। कई छोटी पार्टियों को समझौते में बीजेपी सीट ही नहीं, प्रत्याशी भी दे रही है।


जगन्नाथ
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बिहार में चुनाव की घोषणा के साथ ही एलजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग़ पासवान, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ हमलावर होने लगे थे। फिर गठबंधन से अलग हो गये। जेडीयू के नेता कहते रहे कि रामविलास पासवान बीमार हैं, वरना ये नौबत न आती। और फिर रामविलास पासवान का निधन हो गया। सारे रिश्ते बुझ गये।

एक बेटे का पिता के न रहने पर दुखी होना स्वाभाविक है। कई बार ऐसी स्थिति में वैराग्य की अनुभूति होती है। लेकिन चिराग़ की निगाह मछली की आँख पर है। बतौर चिराग़, ‘वे अभी नहीं, चुनाव बाद जमकर पिता को याद करेंगे।’ एक चैनल पर उन्होंने कहा-‘अभी कुछ ही दिन हुए है उनके निधन को। इतना समय भी उन्होंने नहीं दिया कि बैठकर मैं उन्हें अच्छी तरीकें से याद कर सकूं। चूँकि अभी चुनाव सर पर है और तिथि भी नहीं टाली जा सकती।’

कल यानी 15 अक्टूबर को चिराग का लगभग एक-सा इंटरव्यू पूरे दिन विभिन्न टीवी चैनलों का मान-सम्मान बढ़ाता रहा। बैक टू बैट पाँच से ज़्यादा चैनलों पर चिराग़ आँसुओं में जल रहे थे। बैकग्राउंड में रामविलास पासवान की बड़ी सी तस्वीर, और सामने सफेद धोती लपेटे चिराग़- पूरा दृश्य़ ही शोकाकुल करने वाला था। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक स्थानीय मीडिया लाइव सिटीज, फर्स्ट बिहार, बिहार तक आदि के साथ राष्ट्रीय चैनल न्यूज़ 24, एबीपी न्यूज़, एनडीटीवी आदि पर इंटरव्यू प्रसारित किये जा चुके थे। कई सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म पर अलग। न्यूज़ 24 के भावुकतापूर्ण इंटरव्यू के दौरान तो चिराग पासवान पिता की याद करते हुए फूट-फूट कर रोने भी लगे। पिता चिराग़ की सबसे बड़ी राजनीतिक पूँजी हैं और अब इसमें सहानुभूति की गठरी भी बंध गयी है। चिराग़ चुनाव में इसे ही दाँव पर लगाकर कोई चमत्कार करना चाहते हैं। मीडिया इस पूर्व फ़िल्म अभिनेता पर बलिहारी है और यह यूँ ही नहीं है। चिराग़ उस बीजेपी का काम आसान करने उतरे हैं जिसकी गोद में इस मीडिया के बैठे होने का आरोप है।

गठबंधन से अलग होने के बावजूद चिराग़ ने भाजपा के खिलाफ़ कैंडिडेट नहीं उतारने की घोषणा की है सिवाय एक सीट के। वह सीट समस्तीपुर का रोसड़ा विधानसभा क्षेत्र, जहाँ से भाजपा के कैंडिडेट वीरेंद्र कुमार पासवान के खिलाफ़ चिराग पासवान ने अपने चचेरे भाई कृष्ण राज को मैदान में उतारा है। चिराग पासवान के नेतृत्व में एलजेपी खुले तौर पर सिर्फ जेडीयू और नीतीश कुमार के खिलाफ़ मौर्चा खोले हिए है।

बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार की सरकार पर निशाना साधते हुए श्री पासवान कहते हैं- “मैं इस बात को यकीनी तौर पर मानता हूँ कि मौजूदा मुख्यमंत्री के नेतृत्व में बिहार का विकास होना या बिहार का विकसित होना संभव नहीं है। 15 साल प्रदेश के जनता ने उन्हें दिये लेकिन आज भी हमें नली-गली पर ही गर्व करना है। या इन्हीं बातों पर ही गर्व करना है कि भइया मेरे घर के आगे चापाकल गड गया। एक सड़क बन गई है। सिर्फ इन्हीं बातों पर गर्व करना है तो मुझे लगता है, हमारे मुख्यमंत्री जी को विकास का मापदंड जानने की जरूरत है।”

चिराग़ अपने लगभग सभी इंटरव्यू में दुहराते हैं कि उनकी उनकी पार्टी (लोजपा) की गठबंधन भाजपा से है, न कि नीतीश कुमार यानी जदयू से। बात भी सही है, नहीं तो बिहार में अलग चुनाव लड़ने की जरुरत ही क्या पड़ती ! वैसे भी बिहार में सरकार का मामला बस एक मंत्री बनने/बनाने के खेल से बिगड़ता है। याद कीजिएग, चिराग़ के चाचा यानी रामविलास पासवान के भाई पशुपति कुमार पारस, जो 2019 लोकसभा चुनाव से पहले बिहार सरकार में मंत्री थे, के हाजीपुर से सांसद चुने जाने के बाद बिहार सरकार में लोजपा की जो कोटा खाली हुई। नितीश कुमार उसे फिर से देने को तैयार नहीं हुए और रामविलास पासवान ने अलग राह ले ली।

जानकारों का मानना है कि चिराग़ का नीतीश विरोध बड़ी योजना का हिस्सा है। असल खेल भाजपा खेल रही है। भाजपा अब तक बिहार में अपने नेतृत्व में सरकार नहीं बना सकी है। हालाँकि लगभग 13 वर्षों तक वह नीतीश के कंधे पर सवार होकर सत्ता में शामिल रही। अब वह तिकड़मबाज़ी से बिहार में अपनी सरकार बनाने का सपना पूरा करना चाहती है। तमाम दिग्गज बीजेपी नेता यूँ ही चिराग़ पासवान की पार्टी से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। भविष्य में किसी भी संभावना को देखकर उन्हें बीजेपी के साथ जाने में एक पल नहीं लगेगा। यानी चुनाव बाद नीतीश को छोड़कर एक ऐसा गठबंधन बनाने की कोशिश होगी जिसका नेतृत्व बीजेपी के हाथ हो। कई छोटी पार्टियों को समझौते में बीजेपी सीट ही नहीं, प्रत्याशी भी दे रही है।

यानी चिराग़ के ज़रिये बीजेपी अपनी राह रोशन करना चाहती है। एक और बात पर गौर करना जरुरी है। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले जिस तरह नरेंद मोदी के लिए मीडिया मैनेजमेंट हुआ था, ठीक उसी तरह इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग़ पासवान के लिए होता नज़र आ रहा है। उनके बैक-टू-बैक टीवी इंटरव्यू इसी की बानगी है।

वैसे, चिराग़ भी खुलकर ही खेल रहे हैं। उन्होंने अपने सभी इंटरव्यू में कहा- ‘भाजपा जिसको भी मुख्यमंत्री का चेहरा बनाना चाहेगी, मुझे उससे कोई एतराज़ नहीं है। मेरी तो लड़ाई सीटों की भी नहीं थी। बार-बार मीडिया द्वारा यह कहा गया कि चिराग पासवान ज्यादा सीटों के लिए दबाव बना रहे हैं। मैं ईमानदारी से बताऊँ, गठबंधन के अंदर हम लोगों के बीच कभी भी सीटों की चर्चा नहीं हुई। भाजपा के कई वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात हुई। जे.पी. नड्डा, अमित शाह, राजनाथ सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं से भी हुई लेकिन सीटों की संख्या को लेकर कभी हम लोगों ने चर्चा नहीं किया।’

इन्हीं इंटरव्यू में चिराग़ बड़े भरोसे से बताते हैं कि केंद्र में उनके के लिए ‘रेड कार्पेट’ बिछा हुआ है। यानी बीजेपी गठबंधन के ख़िलाफ़ बिहार में चुनाव लड़कर भी वे दिल्ली में उसकी आँखों के तारे बने रहेंगे। बात ठीक भी है, चिराग़ के इस तरह से बिहार में जलने से ही बीजेपी की आँखों में अपने नेतृत्व वाली सत्ता का सपना झिलमिला रहा है।