नया कृषि क़ानून: किसानों की आपदा, अंबानी का अवसर !

सौम्या गुप्ता सौम्या गुप्ता
ओप-एड Published On :


पिछले कुछ दिनों से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में में कृषि से जुड़े विधेयकों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हो रहे हैं। किसानो सहित, विपक्ष भी सरकार पर निशाना साध रही है। विधेयक को पास कराने में जिस तरह संसद और लोकतंत्र के गले को घोंटा गया उस पर तो मीडिया विजिल पर विस्तार से चर्चा हुई है। लेकिन कृषि सुधार विधेयक को जिस तरह पारित किया गया है उसके पीछे के विभिन्न कारणों में से एक कारण या आशंका कहीं ना कहीं रिलायंस से भी जुड़ती है। उस कारण को समझने के लिए एक भूमिका से शुरुआत करते हैं। 

अली बाबा के सीईओ डेनीयल झांग ने फ़रवरी, 2020 में अपनी कम्पनी की तिमाही आर्थिक रिपोर्ट पेश करते वक़्त कहा था कि “बेशक कोरोना कुछ चुनौतियाँ ज़रूर लाएगा, परंतु हम यह भी देखेंगे ये बदलती हुई विषम परिस्थितयाँ अपने साथ अवसर भी लाएगी।” यह बात वो किसी भविष्यवाणी की तरह नहीं क रहे थे। इस बात का सीधा ताल्लुक़ सार्स (SARS) महामारी के दौरान अली बाबा ने जो लाभ कमाया था उससे है। अली बाबा की स्थापना 1999 में हुई थी। 2003 में सार्स (SARS) के दौरान  वो चार साल पुरानी कम्पनी थी। 2003 से पहले अली बाबा, ई-बे (e-Bay) जैसी कम्पनियों से काफ़ी पीछे थी क्योंकि सार्स (SARS) फैलने के डर से अधिकतर लोग, फिर चाहे  वो उपभोक्ता हो या व्यापारी, ख़रीदने और बेचने के लिए ,इंटरनेट का इस्तेमाल करने को बाध्य हो गए थे। इसी वजह से उस साल अली बाबा का मुनाफ़ा लगभग पचास प्रतिशत तक बढ़ा था। 

वैसे आपदा को अवसर में बदलने का ज़िक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने भाषणों में किया है। लेकिन डेनीयल झांग और प्रधानमंत्री के अलावा इस बात का ज़िक्र कुछ और लोगों ने भी किया है। रिलायंस रीटेल के सीईओ दामोदर मॉल ने ट्वीट किया था कि “किसी भी आपदा के मौक़े को गँवाना नहीं चाहिए।” उन्होंने अमूल का उदाहरण देते हुए कहा कि अमूल की ही तरह, जब कोई  व्यवसाय किसी भी श्रेणी में प्रवेश लेता है तो उसे “उस श्रेणी के बाज़ार को विस्तृत करना चाहिए और उस श्रेणी के प्रोडक्टस की खपत को और भी लोकतांत्रिक करना चाहिए।” लोकतांत्रिक खपत का सरल शब्दों में मतलब उत्पाद को हर व्यक्ति तक पहुँचाना। 

रिलायंस पिछले कुछ सालों में तेल और गैस के उद्योग से आगे बढ़कर अपने आप को एक सॉफ़्टवेयर कम्पनी की तरह प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा है। रिलायंस ने अपने पिछले दशक की विकास यात्रा का ब्योरा देते वक़्त भी तीन व्यवसायों पर ज़ोर दिया था – जिओ, रिटेल और ओइल-टू- केमिकल इण्डस्ट्रीज। जिओ की सफ़तला की कहानी तो शायद किसी से भी नहीं छुपी है पर आज जब हम कृषि विधेयक पर गंभीरता से विमर्श और चर्चा कर रहे हैं तो रिटेल सेक्टर पर बात करना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।

रिलायंस इण्डस्ट्रीज, रिटेल सेक्टर में प्रमुख तौर पर फ़ैशन, इलेक्ट्रॉनिक्स और किराने (grocery) में व्यवसाय करती है। लॉकडॉउन के दौरान, जहाँ रिलायंस रिटेल ने अप्रैल-जून  के दौरान फ़ैशन और इलेक्ट्रॉनिक्स के व्यापार में पिछले सालों के मुक़ाबले गिरावट देखी, वहीं किराने के व्यापार में बढ़त दर्ज़ की। रिलायंस रिटेल को वित्तीय वर्ष 2020-2021 की पहली तिमाही में लगभग पचास प्रतिशत  से ज़्यादा का नुक़सान हुआ है। लेकिन कम्पनी द्वारा जारी एक बयान के अनुसार अप्रैल-जून के दौरान रिलायंस के किराना (grocery) व्यापार ने लगभग इक्कीस प्रतिशत का मुनाफ़ा कमाया। रिलायंस इण्डस्ट्रीज  के 11,806  रिटेल स्टोर्स का नेटवर्क सात हज़ार से भी ज़्यादा शहरों-जिलों में फैला हुआ है। लेकिन इसमें से सिर्फ़ 800 स्टोर किराना के हैं मतलब 7 प्रतिशत से भी कम फिर। भी रिलायंस की कमाई का 20 प्रतिशत हिस्सा इन किराना स्टोर्स से आता है। 

यूरोमॉनिटर की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत के रिटेल व्यवसाय की लागत तक़रीबन 42 लाख करोड़ है। इस सेक्टर का जहाँ 41 प्रतिशत हिस्सा कपड़े, जूते और इलेक्ट्रॉनिक्स से बनता है, वहीं 59 प्रतिशत हिस्सा किराना(grocery) के व्यापार पर आधारित है। लॉकडाउन के दौरान  पड़ोस या मोहल्ले  की किराना दुकानों ने बड़े रिटेल स्टोर्स के मुक़ाबले बेहतर व्यापार किया है। इसलिए रिलायंस अपने जिओ मार्ट प्लेटफ़ार्म की मदद से तीन करोड़ से भी ज़्यादा किराना दुकानों को अपने नेटवर्क में जोड़कर उपभोक्ताओं तक पहुँचना चाहता है। इसलिए पिछले कुछ दिनो में रिलायंस ने जिओ प्लैट्फ़ॉर्म के कुछ शेयर चार वैश्विक निवेशकों  को 67,000 करोड़ में बेचे हैं। इसमें से दस प्रतिशत शेयर फ़ेसबुक ने 43,000 करोड़ में ख़रीदे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि फ़ेसबुक की मदद से रिलायंस ग्रूप अपने जिओ मार्ट प्लैट्फ़ॉर्म के ज़रिए रिटेल जगत में बदलाव और बढ़ोतरी हासिल करना चाहता है।

रिटेल जगत में अपने आपको मज़बूत तरीक़े से स्थापित करने के लिए शनिवार 30 अगस्त, 2020 को रिलायंस ग्रूप ने किशोर बियानी के फ़्यूचर ग्रूप का रिटेल, थोक, लजिस्टिक्स व्यापार ख़रीद लिया। फ़्यूचर ग्रूप के पास 1550 स्टोर्र और  बिग बाज़ार, फ़ूड हॉल, ईज़ी डे, हैरिटेज़ फ़्रेश जैसे ब्रांड हैं। काफ़ी शहरी लोग अपनी किराना की शॉपिंग बिग बाज़ार और ईज़ी डे स्टोर्ज़ से करते हैं। इसलिए इस डील के मद्देनज़र मुमकिन है कि रिलायंस अपने मौजूदा 65 करोड़ फ़ुट्फ़ॉल में 35 करोड़ की बढ़त हासिल कर ले

बात थोड़ी लम्बी  हो गयी, लेकिन रिलायंस और कृषि विधेयक का क्या सम्बंध है उसे समझने के लिए यह पृष्ठभूमि और डेटा देना बहुत ज़रूरी था। तो अब सवाल यह है कि इस भूमिका का कृषि विधेयक और किसानों के आंदोलन से क्या लेना देना? इन विधेयकों के मुताबिक़ अब किसानों और व्यापारियों को कृषि उपज बाजार समिति (APMC) द्वारा स्थापित मंडियों से बाहर फ़सल बेचने की आज़ादी होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि “किसानों को अगर बाज़ार में अच्छा दाम मिल ही रहा होता तो वो बाहर क्यों जाते?” ख़ैर, इस सबका मतलब यह है कि अब राज्य सरकारों द्वारा किसानों की फ़सलों की बिक्री विनियमित करने में ढील दे दी गयी है। मतलब अब किसान अपनी फ़सल का लेन-देन सीधे थोक और रिटेल व्यापारियों के साथ कर सकते हैं। 

रिलायंस की कहानी से एक बात तो स्पष्ट है की अब रिटेल स्टोर और मोहल्ले के किराने की दुकानों पर सबसे बड़ा नियंत्रण रिलायंस इण्डस्ट्रीज के पास होगा। इसका मतलब अधिकतर किसानों को रिलायंस से मोल-भाव करना होगा। कितना मुमकिन होगा किसानों का इन बड़े उद्योगपतियों से जूझना? क्या मिल पाएगा उन्हें अपनी फ़सल का मुनासिब दाम? राज्य सरकारों की दख़लन्दाज़ी के बिना क्या किसानों का शोषण नहीं होने लगेगा? 

सरकार के हिमायती कहते हैं कि अगर यह विधेयक अच्छे से लागू किया गया तो  भ्रष्टाचार और बिचौलिए कम हो जाएँगे। लेकिन यह तो अन्ना आंदोलन, नोटबंदी और सरकार के हर निर्णय के लिए कहा गया था! ऐसी कौन सी वजह है कि इस बार यह दलीलें मान ली जायें? हो सकता है दामोदर मॉल की चीज़ें आप सब तक सस्ते में पहुँचे, पर उन  सस्ती चीज़ों का नुक़सान आख़िर क्या किसानों को भुगतना होगा?

सवाल पूछना लोकतंत्र का पहला और आख़िरी हथियार है। देखते हैं कि इन सवालों को पूछने की आज़ादी हमारे पास कब तक मौजूद रहती है?

 



लेखिका सौम्या गुप्ता, मीडिया विजिल की असिस्टेंट एडिटर और डेटा विश्लेषण एक्सपर्ट हैं। उन्होंने भारत से इंजीनीयरिंग करने के बाद शिकागो यूनिवर्सिटी से एंथ्रोपोलॉजी में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। यूएसए और यूके में डेटा एनालिस्ट के तौर पर काम करने के बाद, अब भारत में , इसके सामाजिक अनुप्रयोग पर मीडिया विजिल के साथ काम कर रही हैं।