एक ज़रुरी अभियान की फ़िल्म
इस कठिन कठोर क्वारंटीन समय में संजय जोशी दुनिया की बेहतरीन फ़िल्मों से आपका परिचय करवा रहे हैं. यह मीडिया विजिल के लिए लिखे जा रहे उनके साप्ताहिक स्तम्भ ‘सिनेमा-सिनेमा’ की दसवीं कड़ी है। मक़सद है कि हिन्दुस्तानी सिनेमा के साथ–साथ पूरी दुनिया के सिनेमा जगत की पड़ताल हो सके और इसी बहाने हम दूसरे समाजों को भी ठीक से समझ सकें. यह स्तम्भ हर सोमवार को प्रकाशित हो रहा है -संपादक
जैसे–जैसे सिनेमा का विकास होता गया, विसुअल माध्यम हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनता गया और इस माध्यम को गंभीरता से अपनाने का चलन भी हर जगह चला.
आई आई टी कानपुर से प्रशिक्षित विलक्षण विज्ञान कार्यकर्ता अरविन्द गुप्ता की वेबसाइट इस माध्यम का एक उल्लेखनीय उदाहरण है . दो मिनट से लेकर पाँच मिनट तक के हजारों प्रयोगात्मक वीडियो बनाकर अपनी वेबसाइट arvindguptatoys.com के माध्यम से उन्होंने स्कूली स्तर के शिक्षकों का बहुत भला किया और विज्ञान की गुत्थियों को बहुत हद समझाने की एक जरुरी मुहिम चलाई है. शायद यही वजह है कि arvindguptatoys.com हिन्दुस्तान की सर्वाधिक लोकप्रिय वेबसाइटों में से एक है जिसपर अब तक लाखों लोग घूम आये हैं.
इसी तरह का एक और उदाहरण हमारे समय के प्रखर भाषाविद और राजनीतिक चिंतक नोम चोमस्की का है. उन्होंने न सिर्फ़ ‘Manufacturing Consent’ जैसी किताब लिखी बल्कि कुछ समय बाद उसपर उसी शीर्षक से कनाडा के नेशनल फ़िल्म बोर्ड से एक दस्तावेज़ी फ़िल्म भी बनाई. (Manufacturing Consent – https://www.youtube.com/
एक तीसरा उदाहरण अमरीका का है जहाँ के एक्टिविस्टों के साझा से प्रयास से ‘द स्टोरी ऑफ़ स्टफ’ प्रोजक्ट अस्तित्व में आया और कुछ ही समय में इसने लोकप्रियता के ढेरों कीर्तिमान बनाए. एनी लियोनार्ड ने 2007 में 21 मिनट की एनीमेशन फ़िल्म ‘द स्टोरी ऑफ़ स्टफ’ से यह काम शुरू किया जिसमे जल्द ही दर्जनों और जरुरी फ़िल्में इस अभियान से जुड़ गयी और नौ फ़िल्मों ने विभिन्न फेस्टिवलों में इनाम भी जीते. इन फ़िल्मों को सारी दुनिया में अब तक 5 करोड़ लोग देख चुके हैं. इस अभियान की सक्रियता से सारी दुनिया में द स्टोरी ऑफ़ स्टफ प्रोजक्ट परिवार की संख्या 10 लाख तक पहुँच गयी जो अपने –अपने महत्वपूर्ण प्रयासों से इस दुनिया को और बेहतर बनाने की मुहिम में जुटे हैं.
आज हम ‘द स्टोरी ऑफ़ स्टफ’ प्रोजक्ट की पहली फ़िल्म ‘द स्टोरी ऑफ़ स्टफ’ तक ही अपनी बात सीमित रखते हैं.
एनी लियोनार्ड ने दस साल लगाकर दुनिया के कई हिस्से घूमकर सामान या जिंस के अर्थशास्त्र को समझने की कोशिश की और उस समझदारी को पूरी दुनिया से साझा करने के लिए एक रणनीति बनाई. 2007 में जब यह 21 मिनट की फ़िल्म बनकर तैयार हुई तब तक वीडियो और सोशल मीडिया तेजी से लोकप्रिय माध्यम बनते जा रहे थे. एनी अपनी समझदारी को किसी निबंध या भाषण के जरिये भी लोगों तक साझा कर सकती थीं लेकिन उन्होंने इसका 21 मिनट का वीडियो बनाया और इसे यू ट्यूब और सोशल मीडिया के दूसरे माध्यमों द्वारा प्रचलित करने की कोशिश की. उनकी यह समझदारी काम लायी और थोड़े ही समय में यह खूब लोकप्रिय हुआ और लियोनार्ड का आईडिया चल निकला. आज उनका काम एक बड़े समूह द्वारा अमरीका के सैन फ्रांसिस्को शहर से संचालित हो रहा है और सारी दुनिया के अलग–अलग हिस्सों में काम कर रहे कार्यकर्ताओं द्वारा आगे बढ़ रहा है.
ऐसा नहीं है कि एनी ने कोई नया काम किया. उन्होंने तो बस एक जरुरी बात को उसके पूरे पेंचोंख़म के साथ बहुत आसान तरीक़े से समझाने की कोशिश की. यह कोशिश कामयाब हुई और आज लाखों लोगों द्वारा अपनाई जा रही है इसीलिए इसपर यहाँ इस कॉलम में भी चर्चा हो रही है.
यह एक तरह व्याख्यान ही है जिसको एनी लियोनार्ड प्रस्तुत कर रहीं हैं और उसके ऊपर सरल एनीमेशन और कुछ आंकड़ें बीच –बीच में आते हैं. जैसे एक जगह वो जब आम लोगों की प्रतिनिधि के रूप में सरकार की बात करती हैं तो अपने एक दोस्त का हवाला देते हुए यह कहतीं हैं कि सरकार माने टैंक माने एक ऐसी संस्था जो युद्ध के लिए कटिबद्ध है. फ़िल्म की स्क्रीन पर एनीमेशन या आकंड़ों के रूप में आने वाले एनी की बात को प्रभावित नहीं करते बल्कि अकसर ही यह एनी की बात को और अर्थवान बनाते हैं जैसे जब वह अमरीकी सरकार के बारे में यह टिप्पणी करती हैं कि हमारे देश में वातावरण दूषित होने पर हम विकासशील देश में जाकर अपना प्रदूषण फैला आते हैं. इस बात को अर्थवान बनाने के लिए एनी के पीछे चल रहे एनीमेशन में प्रदूषण का एक बड़ा काला धब्बा बायें हाथ पर दिख रहे दुनिया के नक़्शे पर विकासशील देश के नक़्शे को काला कर देता है. यह आसान सी बात इस एनीमेशन के जरिये बड़े विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को बर्बाद करने की भयावहता को बहुत अच्छे तरह से समझा ले जाती है.
असल में एनी सामान के अर्थशास्त्र के जरिये इसके चार मुख्य कारकों पर चर्चा करना चाहती हैं. ये चार कारक हैं : कच्चा माल, सामान का निर्माण, सामान का इस्तेमाल और सामान को फेंकना. इस वीडियो की खास बात यह है कि एनी सामान्य अर्थशास्त्रियों की तरह जिंस के निर्माण और उसके उपयोग को सिर्फ नफा नुकसान के मूल्यांकन की तरह नहीं बल्कि उसके सामाजिक परिद्रश्य से जोड़कर अपनी बात तफ़सील से समझाती हैं इसीलिए सामान्य अर्थशास्त्र के व्याख्यान से शुरू हुआ यह वीडियो के किसी जगह के इतिहास, भूगोल, राजनीति और लोगों के संघर्ष से जुड़ता हुआ एक जरुरी पाठ बन जाता है. इस वीडियो की एक अच्छी बात यह भी है कि ठेठ अमरीकी उदहारण तक सीमित होने के बावजूद यह समूची दुनिया के बचे रहने के लिए काम का सबक बनता दिखाई देता है.
इस इक्कीस मिनट के वीडियो और उसमे शामिल एनीमेशन और आकंड़ों को समझने के बाद सामान के चक्र के बहाने हमें अपनी दुनिया की विनाशलीला के कारण अच्छी तरह से समझ में आते हैं. दूसरी क्रिटिकल दस्तावेज़ी फिल्मों की तुलना में यह वीडियो इसलिए इतने कम समय में सारी दुनिया में लोकप्रिय होता है क्योंकि इसमें अमरीकी और उपभोक्ता समाज की तीखी आलोचना के साथ–साथ क्या ठोस किया जाय इसका सुझाव भी है.
इसकी सीख बहुत काम की है. यह वीडियो प्रकृति के साथ एक समझदारी वाला संतुलन बनाने और समझदार उपभोक्ता बनने की वकालत करता है. यह सिनेमा की दुनिया का पहला वीडियो होगा जो अपने हर प्रदर्शन के साथ हम ख्याल लोगों का एक सक्रिय समूह भी बनाता चलता है. इसी वजह से स्टोरी ऑफ़ स्टफ का परिवार अब बढ़कर दस लाख लोगों के विशाल समूह में परिवर्तित हो गया है. इस समूह की ताकत की बदौलत ही इसकी वेबसाईट https://www.storyofstuff.org/ पर आपको ‘पानी की कहानी’ , ‘इलेक्ट्रॉनिक की कहानी’ ‘बदलाव की कहानी’ , ‘बोतलबंद पानी की कहानी’, ‘प्रसाधन की कहानी’ जैसे दर्जनों वीडियो मिलेंगे. अपने –अपने इलाक़े में बेहतर जीवन के लिए संघर्ष करने वाले समूहों के लिए इस समूह द्वारा 5000 डालर की आंशिक मदद भी मिलती है. यह अलबता खोज का विषय है कि एनी और उनके समूह https://www.storyofstuff.org/ को कहाँ से मदद मिलती है.
लेकिन फिर भी हम इस समूह का इस बात के लिए तो शुक्रिया अदा कर ही सकते हैं कि इस समूह की फंडिंग की जांच के लिए भी विवेक हमें इस समूह के काम को देखते हुए मिल जाता है. हो सकता है आने वाले दिनों में कोई जिज्ञासु एक नया वीडियो बना डाले और जानते हैं उसका नाम क्या होगा ? उसका नाम होगा द स्टोरी ऑफ़ ‘स्टोरी ऑफ़ स्टफ’ ?
‘स्टोरी ऑफ़ स्टफ’ का हिंदी और मराठी लिंक :
Hindi link :
https://www.youtube.com/watch?v=j_n39kTwpu0
Marathi Link :
https://www.youtube.com/watch?v=_sY9WL8W4V4&t=207s
इस शृंखला में वर्णित अधिकाँश फ़िल्में यू ट्यूब पर उपलब्ध हैं और जो आसानी से नहीं मिलेंगी उनका इंतज़ाम संजय आपके लिए करेंगे.
दुनियाभर के जरुरी सिनेमा को आम लोगों तक पहुचाने का काम संजय जोशी पिछले 15 वर्षो से लगातार ‘प्रतिरोध का सिनेमा’ अभियान के जरिये कर रहे हैं.संजय से thegroup.jsm@gmail.com या 9811577426 पर संपर्क किया जा सकता है -संपादक
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