कोरोना महामारी से जूझता हुआ देश। देश की आर्थिकी बिगड़ी हुई, जगह-जगह मज़दूर भूख से बेहाल। इसी बीच देश का प्रधानमंत्री देश को संबोधित करता है। उसके देश का मीडिया टीवी पर गिनता है कि प्रधानमंत्री ने कितनी बार हाथ जोड़े। भविष्य में जब भी वर्तमान दौर की बात होगी, तो लिखा जायेगा कि सांप्रदायिक हिंसा से लेकर आसमान छूती गैर-बराबरी से बजबजाते वक़्त में जब कोरोना महामारी की आफ़त आन पड़ी थी, देश का मीडिया इतना धंस चुका था कि उसे हाथ जोड़ने की मुद्रा के सिवा और कुछ दिखना बंद हो चुका था। लिखा जायेगा कि सरकार और संघ की प्रयोगशाला में ढलकर तैयार हुआ सरकार का अगुआ जब महामारी के वक़्त देश की वंचित जनता को ससम्मान दोनों वक़्त की रोटी देने में अक्षम था, देश की मुख्यधारा की मीडिया देश के संविधान और पत्रकारिता के मूल्यों की तिलांजलि देकर 56 इंची सीने वाले सरकार बहादुर की सारी कमज़ोरियों पर पर्दा करने डालने का घृणित कार्य कर रही थी।
देश का संविधान आज जिस नाज़ुक हालत में है और उसे इस हालत में पहुंचाने के दोषियों में मीडिया को शामिल देखकर, संविधान के जनक आंबेडकर के पत्रकारीय मूल्यों की ओर लौटना ज़रूरी हो जाता है। धंधे के आगे ईमान बेच देने वाले पत्रकारों के लिए आंबेडकर ने अपने अख़बार मूकनायक की संपादकीय में आज से करीब 90 साल पहले ही लिख दिया था कि “भारत में पत्रकारिता पहले एक पेशा थी। अब वह एक व्यापार बन गयी है। अखबार चलाने वालों को नैतिकता से उतना ही मतलब रहता है जितना कि किसी साबुन बनाने वाले को। पत्रकारिता स्वयं को जनता के जिम्मेदार सलाहकार के रूप में नहीं देखती। भारत में पत्रकार यह नहीं मानते कि बिना किसी प्रयोजन के समाचार देना, निर्भयतापूर्वक उन लोगों की निंदा करना जो गलत रास्ते पर जा रहे हों– फिर चाहे वे कितने ही शक्तिशाली क्यों न हों, पूरे समुदाय के हितों की रक्षा करने वाली नीति को प्रतिपादित करना उनका पहला और प्राथमिक कर्तव्य है। व्यक्ति पूजा उनका मुख्य कर्तव्य बन गया है।”
जिस अनैतिक और जातिवादी स्वरूप वाले मीडिया का सामना आज कर रहे हैं तथा अधिनायकवादी दौर में टीवी मीडिया के जिस घिनौने स्तुतिगान को पूरा देश सुन रहा है, आंबेडकर के दौर में भी समाचार-पत्रों में ऐसे खेल जारी थे।
प्रधानमंत्री @narendramodi का सम्बोधन एक राष्ट्र के अभिभावक के रूप में था । जिस में प्रदेश से लेकर गरीब और बुजुर्ग की बात थी ।
— Amish Devgan (@AMISHDEVGAN) April 14, 2020
“भारतीय प्रेस में समाचार को सनसनीखेज बनाना, तार्किक विचारों के स्थान पर अतार्किक जुनूनी बातें लिखना और जिम्मेदार लोगों की बुद्धि को जाग्रत करने के बजाय गैर–जिम्मेदार लोगों की भावनाएं भड़काना आम बात हैं। व्यक्ति पूजा की खातिर देश के हितों की इतनी विवेकहीन बलि इसके पहले कभी नहीं दी गई। व्यक्ति पूजा कभी इतनी अंधी नहीं थी जितनी कि वह आज के भारत में है।” (आंबेडकर समग्र, खंड 1)”
1- बुजुर्गों का ज़्यादा ख़्याल रखें
2- सोशल दूरी ज़रूरी,घर में बने मास्क पहने
3- आयुष मंत्रालय की guidelines का पालन हो
4- आरोग्य सेतु एप डाउनलोड करें
5- ग़रीब परिवार की देख-रेख करें
6- किसी को नौकरी से न निकाले
7- कोरोना सेनानीयों का सम्मान करेंपीएम मोदी के 7 मंत्र।
— Rubika Liyaquat (@RubikaLiyaquat) April 14, 2020
प्रधानमंत्री की के हाथ जोड़ने को गिनने वाला संस्थान या सामान्य बातों को मंत्र बताकर प्रस्तुत करने वाला पत्रकार कभी पलटकर सरकार से यह सवाल नहीं पूछता कि लॉकडाउन में गरीबों-मज़दूरों के लिए उनकी क्या तैयारी है। पिछले कुछ दिनों में पूरे देश में जगह-जगह फंसे हुए मज़दूरों के प्रोटेस्ट हुए, इनमें से किसी ने भी सवाल मज़दूरों के सवालों को सरकार से नहीं पूछा। आंबेडकर ने कहा था कि “पूरे भारत में प्रतिदिन हमारे लोग अधिनायकवादी लोगों के बेहरहमी और भेदभाव का शिकार होते हैं लेकिन इन सारी बातों को कोई अखबार जगह नहीं देते हैं। एक सुनियोजित षडयंत्र के तहत तमाम तरीकों से सामाजिक–राजनीतिक मसलों पर विचारों को रोकने में शामिल हैं।”
Heartbreaking scenes of hunger from across India
This one from Agra where a poor man is trying to collect milk spilled on the street😢
Is it so difficult to feed the hungry when we can plan Namaste Trump so well & spend ₹3cr on flowers for his roadshow?pic.twitter.com/4aWf9iQRpe
— Srivatsa (@srivatsayb) April 13, 2020
राष्ट्राध्यक्षों के साथ अपने ट्विटर पर तस्वीरें चमकाने वाला पत्रकार पलटकर यह भी नहीं पूछ पाता कि कोरोना के चलते देश में डॉक्टरों की जान पर बन आयी है और देश आ रहे 4 लाख किट मोदीजी के मित्र ट्रंप कैसे हड़प गये।
The most powerful selfie! It was an honour to share the frame with the two most powerful leaders in the world Prime Minister @narendramodi and President @realDonaldTrump pic.twitter.com/Cb4D4IMOnu
— Sudhir Chaudhary (@sudhirchaudhary) February 26, 2020
सुधीर चौधरी से लेकर दीपक चौरसिया जैसे पत्रकार लॉकडाउन की घोषणा के बाद आईटी सेल की तर्ज़ पर अपने ट्विटर पर समान भाषा में समान ट्वीट करते रहे कि 30 अप्रैल की जगह 3 मई तक लॉकडाउन क्यों किया गया। इसे ट्वीट करते उनकी तत्परता कुछ यूं दिखी जैसे कोरोना का वैक्सीन मिलन की ख़बर दे रहे हों।
सरकार के सम्मुख बिछ जाने को ये पत्रकार जितने आमादा दिखाई देते हैं, काश बस अपनी ही इंडस्ट्री के लोगों से यह अपील कर देते कि किसी को नौकरी से निकाला न जाये, किसी के पैसे न काटे जायें। मीडिया में 6 से से ज़्यादा संस्थानों में पत्रकारों को नौकरी से निकाला जा रहा है और वेतन में कटौती की जा रही है।
६-व्यवसाय/उधोग में किसी को नौकरी से ना निकालें
७- कोरोना योद्धाओं को सम्मान दें
सात बातों पर देश का समर्थन माँगा है पीएम @narendramodi ने- https://t.co/3GCARkmliO
— Chitra Tripathi (@chitraaum) April 14, 2020
कोरोना के दौर में जब गैरबराबरी अपने सबसे क्रूरतम रूप में सामने खड़ी है, हमारे देश की मीडिया ने गरीबों, वंचितों, मज़दूरों, निम्न आय वर्ग के लोगों की ख़बरों का एक किस्म का बहिष्कार कर रखा है। आंबेडकर के पत्रकारीय मूल्यों को याद करना समाज के इन्हीं अंधेरों की याद दिलाता है और हमें उनकी पहचान के लिए गवाही देने को प्रेरित करता है। हम जानते हैं गोदी मीडिया के इन पत्रकारों ने आंबेडकर को नहीं पढ़ा होगा, वरना उनमें इतना पत्रकारीय संस्कार तो होता कि वे देश के प्रधानमंत्री के जुड़े हाथ गिनने की जगह उनकी आंखों में आंख डालकर सवाल कर पाते।