साजिश दुनिया की बड़ी घटनाओं और प्राकृतिक आपदाओं को हमेशा गिद्ध की तरह घेरे रहेंगे लेकिन कोरोना वायरस के मामले में हमने उन्हें खुद ही न्योता दिया है. कोरोना वायरस को लेकर, इसकी उत्पत्ति, इसके प्रभाव, इसके इलाज को लेकर बहुत सारी कहानियां आईं. लोग भयावह घटनाओं के लिए भी कुतर्क ढूंढने लगते हैं ताकि अपने डर को कम कर सकें. इस चिंता में झूठी सूचनाएं सोशल मीडिया के जरिये फैलायी जा रही हैं.
कोविड-19 को लेकर कई तरह की अफवाह फैलायी गयी है, जैसे ये चमगादड़ का सूप पीने से होता है, एक जैविक हथियार छोड़ा गया है, आदि. ये भी झूठ फैलाया गया कि ये कीटाणुनाशक घोल, अजवायन के तेल, ब्लीच से गरारा, आदि घटिया उपायों से ठीक हो सकता है. कोरोना वायरस को लेकर फैलायी जा रहे अफवाहों से विदेशियों के प्रति लोगों के मन में नफ़रत बढ़ रही है. इससे उन उत्पादों की मांग बढ़ रही है जिससे किसी को कोई मदद नहीं मिलने वाली है बल्कि इस अनिश्चित समय में उलझन और बढ़ जाने वाली है.
कोविड- 19 की साजिशों में सबसे बेतुकी और सबसे ताजा सवाल यह पूछा जा रहा है कि क्या सबसे पहले द सिंपसन्स ने कोरोना वायरस की आशंका व्यक्त की थी या डीन कूट्ज के डरावने उपन्यास ने या फिर डिज्नी निर्मित टैंगल्ड में सबसे पहले इसका ज़िक्र आया. इससे भी बुरी बात यह है कि गलत सूचनाओं से लोगों को बचाने के उपायों पर संदेह पैदा हो रहा है जिससे लापरवाह और विध्वंसक व्यवहार को बल मिल रहा है.
कुछ हफ्ते पहले कलर आफ चेंज नामक नागरिक अधिकार समूह की कैंपेन डायरेक्टर ब्रांडी कोलिंस डेक्सटर ने अपने परिवार में और ट्विटर पर अजीब किस्म की सूचना देखी कि काले लोगों को कोरोना वायरस से कुछ नहीं होगा और यदि हुआ भी तो जल्दी ही आसानी से ठीक हो जाएगा. ये सरासर झूठ है.
कोलिंस डेक्सटर कहती हैं- “ट्विटर के ब्लू टिक वाले एकाउंट ये अफवाह शेयर कर रहे हैं. ये आवश्यक नहीं कि ये किसी इरादे के साथ किया जा रहा है. इसकी जड़ में गलतफहमी है लेकिन ये सारी चीजें ट्विटर के नियमों का उल्लंघन है.” ट्विटर ने उन अकाउंट्स के खिलाफ कारवाई की जिन्होंने वो झूठी बात प्रसारित की थी लेकिन ब्लैक समाज इकलौता ऐसा समूह नहीं है जिसे निश्चिंत होने के लिए कहा जा रहा है, जो गलत है. यही बात यमनी यहूदियों को लेकर कही जा रही है कि वो प्राकृतिक तौर इससे बचे हैं.
आपने कुछ लोगों को बात करते सुना होगा कि कोरोना वायरस वुहान की लैब से आया. ये बात बहुत समय तक प्रचलित रही, विशेषकर जब से अमेरिकी मीडिया और जानकारों ने लगातार इस बीमारी को चीनी कोरोना वायरस या वुहान वायरस कहना शुरू किया. एक देश को कोरोना वायरस की उत्पत्ति का दोष देने जैसे राजनीतिक हथकंडों में महीनों बीत चुके हैं. दूसरी तरफ महामारी के जानकारों के कहने के बावजूद चीनी अधिकारी इस वायरस के इटली में या अमेरिकी सैन्य लैब में बनने का दावा कर रहे हैं.
ईरान के नेता अयातुल्लाह खमैनी के और फिलीपींस के सीनेट प्रेसीडेंट विसेंट सोट्टो के पत्र कहते हैं कि अमेरिका ने अपनी चिकित्सकीय सहायता को घटाने के लिए इस वायरस का उपयोग किया है. कुछ लोग इस बात को फैलाने के पीछे रूस का हाथ बता रहे हैं जबकि रूस ने इसका खंडन किया है. इस आरोप के समर्थकों का मानना है कि अमेरिका इस वायरस से प्रभावित देशों से आमतौर पर कुछ हासिल करता है.
बहुत से अमेरिकी नागरिक ये सोचते हैं कि यह वायरस सत्ता परिवर्तन का एक बहाना है. FEMA ने मार्शल कोरोना वायरस रूमर कंट्रोल नाम की एक वेबसाइट बनायी है ताकि मार्शल लॉ लगो जाने संबंधी षडयंत्रकारी बातों को विराम दिया जा सके. रैपर कार्डी बी यह दावा कर चुके हैं कि जो मशहूर हस्तियां कोरोना वायरस पॉजिटिव पाई गईं हैं, जैसे इट्रियम एल्बा, उनको यह कहने के पैसे दिए जाते हैं कि वो ये बोलें उनको ये बीमारी किसी के द्वारा, किसी कारणवश हुई है.
एंटी वैक्सर्स सोचते हैं कि वायरस उन पर दवा के प्रयोग के लिए दबाव बनाने का प्रयास है जो बिल गेट्स द्वारा किया गया है जबकि कुछ और लोग 5जी नेटवर्क को दोष दे रहे हैं. एंटी डिफेमेशन लीग के सेंटर आन एक्सट्रीमिज्म के उपाध्यक्ष ओरेन सीगेल मानते हैं कि यहूदियों ने यह वायरस बनाया है ताकि दूसरों की जान की कीमत पर सत्ताहासिल कर सकें। पूरे विश्व में इराक से लेकर अमेरिका तक यहूदी विरोधी मीम फैलाए जा रहे हैं तथा इस तरह के संदेशों में साफ लिखा गया है कि जॉर्ज सोरोस, रोथचाइल्ड और इजरायल इस घटना के लिए जिम्मेदार हैं
इंटरनेट के सबसे स्याह कोनों में इन दिनों एक आंदोलन को भड़काने के लिए नस्लवादी साजिशें की जा रही हैं। सीगेल कहते हैं कि गोरे प्रभुत्ववादी और चरमपंथी लोग अपने समर्थकों को यहूदियों के खिलाफ उकसा रहे हैं। चरमपंथी अपने समर्थकों को अल्पसंख्यकों के ऊपर खांसने के लिए कह रहे हैं। वे दो समुदायों के बीच उपजे तनाव का उपयोग नस्ली युद्ध के लिए करना चाहते हैं जिनका नाम उन लोगों ने “द बूगालू” दिया है।
वैसे भी इन दिनों अमेरिका में एशियाई समुदाय के लोगों के खिलाफ नस्ली हिंसा तेजी से बढ़ रही है। इसको लेकर कॉलिन्स डेक्सटर चिंता जताते हुए कहती हैं कि कोरोना वायरस के कारण फैली महामारी से इन लोगों के आर्थिक और स्वास्थ्य परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। कॉलिन्स यह भी कहती हैं कि अमेरिका में एक प्रचलित मुहावरा है जिसके अनुसार अगर अमेरिका को ठंड लगती है तो यहां रहने वाले काले लोगों को फ्लू हो जाता है। सीगेल चेतावनी के तौर पर कहते हैं कि इन घृणित चर्चाओं में भाग लेने वाले की संख्या कम है लेकिन यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब उनके निशाने पर आए लोग सबसे कमजोर पड़ चुके हैं।
प्रस्तुतिः आकाश पांडे