कश्मीर को कैद किए एक महीने बीत गए। उनके सारे मानवाधिकार निलंबित हैं। मीडिया और विपक्षी नेताओं की इंट्री पूरी तरह से बैन है। बावजूद इसके कई स्त्रोतो के जरिए काफी कश्मीर का हाल निकल कर बाहर आया। क्या कुछ झेला कश्मीर के लोगों ने इस एक महीने में, औऱ क्या है कश्मीर का हाल आइए जानते हैं:
बीमार लोगों को इलाज और दवाइयाँ नहीं मिल पा रही
द इंडिपेडेंट के मुताबिक कश्मीर के लोगो को भीषण स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। संचार व्यवस्था ठप्प होने के चलते एबुंलेस सेवा बंद पड़ी है। मेडिकल स्टोर में दवाइयां नहीं है और अस्पतालों में मरीजों को भर्ती नहीं किया जा रहा है। किसी तरह लोग अस्पताल तक पहुंच भी जाते हैं तो डॉक्टर उन्हें कश्मीर में स्थिति ‘सामान्य होने पर’ आने को कहते हैं। गर्भवती स्त्रियों के लिए तो कश्मीर की स्थितियां इतनी बदतर हैं कि उन्हें लिखकर बयां नहीं किया जा सकता। गर्भवती महिलाओं को अंबुलेंस न मिलने से अस्पताल पहुंचने और दूरसंचार सेवा ठप्प होने डॉक्टर से संपर्क न कर पाने के चलते गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। एंबुलेंस न होने के चलते उन्हें अस्पताल पैदल जाना पड़ता है उस पर भी ये निश्चित नहीं है कि उन्हें भर्ती कर ही लिया जाएगा। पुलिस और सेना जिन लोगों को पैलेट गन और आंसू गैस से घायल कर रही है उन्हें अस्पताल के बजाय घर या लॉकअप में भेज दे रही है।
कश्मीर केमिस्ट एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स एसोसिएशन अध्यक्ष अरशद हुसैन भट्ट के मुताबिक श्रीनगर के लगभग 3000 दवा वितरक कश्मीर में दवाइयों की आपूर्ति नहीं कर पा रहे हैं, और इसके बुरे परिणाम के रूप में डायबिटीज, हीमोफीलिया, ह्रदय रोगों तथा दूसरे हाइपरसेंसिटिव बीमारियों की बेहद ज़रूरी दवाइयों का संकट खड़ा हो गया है। तमाम अस्पतालों पर पुलिस जम्मू कश्मीर पुलिस तैनात हैं। जो अस्पताल आने जानेवाले लोगों को पूछताछ के नाम पर तरह तरह से परेशान करते हैं। जबकि पुलिस और सेना के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान गंभीर रूप से घायल लोग अस्पताल इस डर से नहीं जा रहे कि पुलिस उन्हें उठाकर ले जाएगी। कश्मीर में स्वास्थ्य सेवाओं का गंभीर संकट है।
आपातकालीन व रोज़मर्रा की दवाइयों की कमी है।मरीज़ों का इलाज नहीं हो पा रहा है। जबकि डाईबिटीज़, मिरगी, किड़नी व हृदय की बीमारियां, कैंसर जैसे गंभीर बीमारियों के मरीज़ों को इलाज नहीं मिल पा रहा है।
एक सरकारी डॉक्टर भी जब श्रीनगर के विरोध प्रदर्शन में यह कहते हुए शामिल हुए कि इंटरनेट बंद करने से लोगों, ख़ास कर ग़रीबों को सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल रहीं क्योंकि ये डिजिटल कार्ड से जुड़ी हैं और इसका लाभ उठाने के लिए इन्हें स्वाइप करके ही पहले मेडिकल रिकॉर्ड पाया जाता है और फिर इलाज किया जाता है। इस बयान के बाद ही उस डॉक्टर को गिरफ़्तार कर लिया गया।
किन्तु सरकारी दावा है कि घाटी में दवाइयों की कोई किल्लत नहीं है.
Dept of Information&Public Relations, J&K Govt: No shortage of essential drugs & other medical products in Kashmir region. Regular survey of retail outlets being conducted by Drug& Food Control Org. Medicines worth approx ₹50 cr supplied to distributors in valley, since July 20. pic.twitter.com/X1Nv93IFm3
— ANI (@ANI) September 3, 2019
कम्युनिकेशन के बिना ज़िंदगी
पत्रकार राहुल कोटियाल एक कार्यक्रम में बताते हैं कि जब उन्होंने कश्मीर जाने के एक दिन पहले अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा कि कल मैं कश्मीर के लिए निकल रहा हूँ तो कमेंट में अपने घर का एड्रेस देते हुए सैकड़ों कश्मीरी छात्रों ने लिखा सर ये मेरे घर का पता है आप मेरे घर भी जाइएगा और वापिस लौटकर बताइएगा कि मेरे घरवाले किस हाल में हैं।
आज जिंदगी में फोन और इंटरनेट के बिना जिंदगी के एक पल की कल्पना करना भी मुश्किल लगता है जब कश्मीरी लोग बिना कॉलिंग सुविधा और इंटरनेट के जिंदगी बिताने को मजबूर हैं। इंटरनेट पर व्यापक पाबंदी कश्मीर में ज़रूरी गतिविधियों और सेवाओं को प्रभावित कर रही हैं जिसमें आपातकालीन सेवाएं, स्वास्थ्य सेवाएं, मोबाइल बैंकिंग, ई-कॉमर्स, परिवहन, स्कूल की कक्षाएं, महत्वपूर्ण घटनाओं की ख़बरें और मानवाधिकारों की पड़ताल शामिल हैं। अपने घरों में नजरबंद किये जाते समय कश्मीरी लोगों को अपने परिवार के लोगो, रिश्तेदारों दोस्तों से संबंध टूटा तो आज तक कोई नहीं जान सका कि उनके अपने लोग कहां और किस हाल में हैं। इतना ही नहीं न तो वो ऑनलाइन दवाइयां जैसी महत्वपूर्ण चीज मांगा सकते हैं। इंटरनेट प्रतिबंध उन कश्मीरियों को अपनी आजीविका से महरूम कर रहा है जो मोबाइल मैसेजिंग ऐप या ईमेल पर निर्भर हैं।
.@sighyush shares his experience of working with journalists in #Kashmir, the absurd daily press briefings in #Srinagar, why people are not sending their children to school amongst other things.
Tune in to #ReportersWithoutOrders to hear more.https://t.co/xFKLWP1xyp
— newslaundry (@newslaundry) September 3, 2019
व्यापारी ऑर्डर दे या ले नहीं सकते, टूर ऑपरेटर अपनी वेबसाइट के ज़रिए काम नहीं कर सकते, छात्र इंटरनेट के ज़रिए अपनी पढ़ाई (पाठ्यक्रम) पूरी नहीं कर सकते और पत्रकार न्यूज़ रिपोर्ट फाइल नहीं कर सकते।लोग अपना टैक्स तक नहीं भर सके हैं, टैक्स तो अब ऑनलाइन भरना होता है। तो क्या अब सरकार लोगो पर लगने वाली लेट पेमेंट पेनल्टी का वहन करेगी?
कस्टडी में लिए गए लोगों का आंकड़ा नहीं बना रही पुलिस और सेना
बीबीसी न्यूज और ज्यां द्रेज के नेतृत्व में कश्मीर से लौटीफैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट बताती है कि 10 लाख़ से अधिक सैनिक फिलहाल कश्मीर में तैनात हैं। पिछले एक महीनेमें 4000 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया जा चुका है, जिसमें 18 साल से कम उम्र के बच्चे भी शामिल हैं। हिरासत में लिए लोगों के परिजनों को सूचना व न्यायिक अधिकार से वंचित रखा जा रहा है। रात के छापों में महिलाओं के साथ छेड़खानी और यौन हिंसा की ख़बरें मिल रही हैं।
पुलिस और सेना कश्मीर में जिन लोगो को हिरासत में ले रही है उनके आँकड़े तक नहीं बना रही है। उनमें से जो लोग गायब कर दिए जाते हैं पुलिस उनसे पल्ले झाड़ लेती है कि हमने तो उन्हें पकड़ा ही नहीं हमारे पास तो उनका कोई रिकॉर्ड ही नहीं। यानि लोगो को गैरकानूनी तरीके से हिरासत में रखा जा रहा है।आधी रात को छापेमारी करके सैकड़ों लड़कों व किशोरों को उठा लिया जाता है। ऐसी छापेमारियों का एकमात्र उद्देश्य डर पैदा करना ही है। महिलाओं एवं लड़कियों ने बताया के साथ इन छापेमारियों के दौरान छेड़खानी भी हुई है। उनके माता-पिता बच्चों की ‘गिरफ्तारी’ (अपहरण) के बारे में बात करने से भी डर रहे है उन्हें डर है कि कहीं पब्लिक सिक्यो़रिटी एक्टी के तहत केस न लगा दिया जाय। वे इसलिए भी डरे हुए थे कि बोलने से कहीं बच्चेै ‘गायब’ ही न हो जायं – जिसका मतलब होता है हिरासत में मौत और फिर किसी सामूहिक कब्रगाह में दफन कर दिया जाना। इसलिए अगर कोई लड़का ‘गायब’ हो जाता है, यानि हिरासत में मर जाता है, तो पुलिस/सेना आसानी से कह सकती है कि उन्हों ने तो कभी उसे गिरफ्तार ही नहीं किया था।
Among the 3,000 detained by Indian authorities in Kashmir: children
https://t.co/rjwO9tg1CV— The Washington Post (@washingtonpost) August 29, 2019
बीबीसी की ग्राउंड रिपोर्ट में ये बात निकलकर सामने आई है कि हिरासत में लोगों के साथ सेना द्वारा गंभीर टॉर्चर लिए जाने की पुष्टि हो चुकी है, जिसमें लोहे के डंडों, राइफल, रस्सी व बिजली के झटकों से प्रताड़ना की गयी हैं।
रातों को छापा मर सैंकड़ों लोगों को गिरफ्तार व प्रताड़ित किया जा रहा हैं, जिसमे 11 साल के बच्चे भी शामिल हैं। कम से कम पांच नागरिकों की मौत की खबर है, जिसमें एक 16 साल का लड़का, एक 17 साल का लड़का और एक 60 साल के बुज़ुर्ग शामिल हैं। 152 से अधिक लोग आंसू गैस और पेलेट से घायल हुए हैं जबकि विरोध प्रदर्शन के कम से कम 500 घटनाओं की ख़बर है
न घर में खाने को हैं न खरीदने को पैसे
महीने भर से परिवार के कमाने वाले लोग घरों में कैद है। ऐसे में उनकी आमद का कोई जरिया नहीं है। जो जमा पूंजी थी वो धीरे धीरे खत्म हो रही है। आय का कोई जरिया दूर दूर तक नहीं दिखता। इंटरनेट और बैंकिंग सेवा बंद होने के चलते लोग तंगहाली में जीने को विवश हैं। जीवन की निहायत ही छोटी छोटी ज़रूरतों को पूरा कर पाने में भी लोग अक्षम हो रहे हैं। यह लोगों को आर्थिक रूप से प्रताड़ित करने जैसा है।
खबरों को दबाने के लिए स्थानीय पत्रकारों पर दमन
स्थानीय पत्रकारों की गिरफ्तार करके ख़बर पहुंचाने में रोका जा रहा है, सुरक्षाबलों द्वारा पत्रकारों को पकड़करउनके मोबाइल और कैमरों से फोटो और वीडियो फुटेज ज़बरन मिटाये जा रहे हैं। इसके अलावा जो चोरी छुपे रिपोर्टिंग करते पकड़ा जाता है उसे पुलिस और सेना की कहर का शिकार होना पड़ता है।
अगस्त महीने में अपने घर के पास मांदरबाग इलाके में एक वृद्ध व्येक्ति को रास्तेा में न जाने देने पर राइजिंग कश्मीर समाचार पत्र में ग्राफिक डिजाइनर समीर अहमद ने सीआरपीएफ वालों को टोक दिया। इसके बाद उसी दिन जब समीर अहमद अपने घर का दरवाजा खोल रहे थे तो अचानक सीआरपीएफ के जवान ने उन पर पैलट गन से फायर कर दिया।जिससे उनकी बांह और चेहरे पर और आंख के पास कुल मिला कर 172पैलट के घाव लगे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि पैलट गन से जानबूझ कर चेहरे और आंखों पर निशाना लगाया जा रहा है, और निहत्थेे शांतिपूर्ण नागरिक वे चाहे अपने ही घर के दरवाजे पर खड़े हों, निशाना बन सकते हैं।
खेलने की उम्र में बच्चे गोलियां खा रहे
जहां न टीवी है न रेडियो न संचार और मनोरंजन के कोई साधन। खेलने पढ़ने की उम्र में छोटे छोटे बच्चे जेल में तब्दील कर दिए गए घरों में कैद हैं। ज्यां द्रेज की फैक्ट फाइंडिंग टीम की एर रिपोर्ट के मुताबिक एक बच्चा घर के बगल खेल रहा था उसकी बॉल सड़क पर चली गई जहां सेना के जवान गश्त लगा रहे थे। वो बच्चा उनकी नजर बचाकर बॉल उठाने के लिए जैसे ही झुका जवानों ने उस पत्थरबाज समझकर उस पर फायर झोंक दिया।
स्कूली उम्र के लड़कों को पुलिस, सेना या अर्धसैन्य पत्थरबाज बताकर उठा ले जाती है और वे गैर कानूनी हिरासत में रखती है। पम्पो र के एक 11साल का लड़का जो 5 से 11अगस्त के बीच थाने में बंद था के मुताबिक वहां उसकी पिटाई की गई । वहां उसके अलावा उसके साथ आस पास के गांवों के उससे भी कम उम्र के लड़के भी बंद किये गये थे।
कभी भी आधी रात को छापेमारी करके लड़कों व किशोरों को उठा लिया जाता है ऐसी छापेमारियों का एकमात्र उद्देश्यह लोगो में डर पैदा करना है।
मत्यु प्रमाण-पत्र न जारी करने का अस्पतालों को आदेश
प्रदेश के पुलिस प्रमुख दिलबाग सिंह न कहा था कि‘कठोर प्रतिबंधों के नतीजतन एक भी मौत नहीं हुई है।’ वहीं एक प्रेस कांफ्रेंस में सरकारी प्रवक्ता रोहित कंसल ने भी दावा किया कि उनके पास नागरिकों की मौत की रिपोर्ट नहीं है। जबकि सच्चाई इसके बिल्कुल उलट है।
द वॉयर औऱ द इंडिपेंडेंट की ग्राउंड रिपोर्ट के मुताबिक तमाम अस्पतालों के स्टाफ को अधिकारियों से स्पष्ट मौखिक निर्देश मिले हैं कि झड़पों से सम्बंधित भर्तियों की संख्या न्यूनतम रखें और पीड़ितों को तुरंत छुट्टी दें, ताकि आंकड़े कम हों। जबकि अस्पतालों को मृत्यु प्रमाण-पत्र जारी करने की साफ मनाही है।
9 अगस्त की देर दोपहर, दो छोटे बच्चों की माँ, 35 वर्षीय फहमीदा बानो, श्रीनगर के किनारे बेमिना में अपने घर में थीं जब बाहर सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें शुरू हुईं। उनके शौहर 42 वर्षीय रफीक शगू बच्चों को एक कमरे के अन्दर ले गए तभी प्रदर्शनकारियों को तितर—बितर करने के बाद, सुरक्षा बलों ने घरों पर पत्थर फेंकने शुरू किये और खिड़कियों के शीशे तोड़ने लगे। तभी घर के बाहर पुलिस के कम से कम चार आंसू गैस के गोले दागे। उन्होंने घर को आंसू गैस और मिर्च के धुंए के बादल में ढंकते देखा।फहमीदा खिड़की पर थीं जब बड़ी मात्रा में धुंआ खिड़की से उनके घर में घुस गया। उन्हें छाती में दर्द और सांस लेने में दिक्कत की शिकायत होने लगी। दरअसल उन्होंने बड़ी मात्रा में आंसू गैस अन्दर ले लिया था।
जब एक किलोमीटर दूर स्थित झेलम वैली कॉलेज अस्पताल पहुंचे, बानो के इमरजेंसी वार्ड चार्ट के अनुसार, बड़ी मात्रा में धुआं शरीर के भीतर जाने के कारण उनके फेफड़ों को काफी क्षति पहुंची थी और वह बहुत तकलीफ में थीं। अस्पताल पहुँचने के 40 मिनट में उनकी मौत हो गयी।
चार दिन के बाद शगू अपनी पत्नी का मृत्यु प्रमाणपत्र लेने अस्पताल गए, पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने उन्हें कहा कि प्रमाणपत्र पुलिस के पास था।काफी मशक्कत के बाद प्रमाण-पत्र मिला, एक डॉक्टर और एक मित्र के हस्तक्षेप से। दस्तावेज़ पर, जो द इंडिपेंडेंट को दिखाया गया, मौत का कारण “सडन कार्डियाक पल्मोनरी अरेस्ट” लिखा था।
वहीं 55 वर्षीया तीन बेटियों के पिता अयूब खान, जो अपने परिवार के इकलौते कमाने वाल शख्स थे17 अगस्त को शाम चार बजे श्रीनगर के यारीपोरा में सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के बीच हुए झड़पों के दौरान दो गोले अयूब के पैरों के बीच फटे और उनका दम घुटने लगा। उन्हें तुरंत श्री महाराजा हरी हॉस्पिटल (एसएमएचएस) ले जाया गया।अस्पताल मेंडॉक्टरों ने बताया कि उनकी मौत हो चुकी थी। परिवार ने कहा कि रिकॉर्ड में दर्ज किया जाए कि उनकी मौत आंसू-गैस से हुई है, पर डॉक्टरों ने इनकार कर दिया।खान की मौत पर बवाल मचने की आशंका से पुलिस ने परिवार को आदेश दिया कि अंतिम यात्रा जुलूस न निकला जाए और अंत्येष्टि में 10 से ज्यादा लोग शरीक न हों।”
कुछ दिनों बाद, परिवार ने अस्पताल से मृत्यु प्रमाणपत्र के लिए संपर्क किया, तो डॉक्टरों ने उन्हें कहा कि पहले उन्हें पुलिस से एफआईआर लानी होगी, जो कि परिवार के अनुसार ऐसे माहौल में असंभव-सा कार्य है।
वहीं 17 वर्षीय ओसैब अल्ताफ के परिजनों और दोस्तों के अनुसार सुरक्षाकर्मी उत्तर पश्चिम श्रीनगर में प्रदर्शनकारियों का पीछा कर रहे थे, जब कासिब ने झेलम नदी में छलांग लगा दी।ओसैब को एसएमएचएस अस्पताल ले जाया गया, पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उसके पिता अल्ताफ अहमद मराज़ी ने बताया कि न सिर्फ डॉक्टरों ने उन्हें उनके बेटे का मृत्यु प्रमाणपत्र नहीं दिया, बल्कि उसे भर्ती किया गया था इसकी पुष्टि करते दस्तावेज़ भी नहीं दिए।”वह कहते हैं, “डॉक्टरों पर दबाव है कि मृत्यु प्रमाणपत्र न दिए जाएँ। भारत दावा करता है कि कश्मीर में हालात सामान्य हैं, जो सच नहीं है। यदि वह संचारबंदी उठाएंगे तो सच सामने आयेगा।”
कश्मीर में दमन की निंदा
कश्मीर वर्तमान हालात पर ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, ”फ़ोन और इंटरनेट के बंद होने के कारण कश्मीर के लोग परेशानी झेल रहे हैं और इसे तुरंत हटा दिया जाना चाहिए। ये प्रतिबंध वहां के लोगों में ग़ुस्सा भड़का रही है, इससे आर्थिक नुक़सान हो रहा है, और अफ़वाहें फैल रही हैं जो ख़राब मानवाधिकारों की स्थिति को और भी बदतर बना रही है।”
India: Restore Kashmir’s Internet, Phones https://t.co/P2VyQxljxu
— Human Rights Watch (@hrw) August 28, 2019
ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि मानवाधिकार के अंतरराष्ट्रीय क़ानून के मुताबिक़ लोगों की मौलिक आज़ादी पर व्यापक, अव्यवस्थित और अनिश्चित प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता। साथ ही अभिव्यक्ति के अधिकार की आज़ादी और सूचनाएं देने और प्राप्त करने पर भी रोक नहीं लगाया जा सकता।
नोट- उपरोक्त आर्टिकल द इंडिपेंडेट, बीबीसी न्यूज, द वॉयर, आर्थशास्त्री ज्यां द्रेज के नेतृत्व में कश्मीर गई फैक्ट फाइंडिंग टीम, कश्मीर से लौटे पत्रकार राहुल कोटियाल आदि के रिपोर्टों पर आधारित है। वीडियो : न्यूज़लॉन्ड्री से साभार