दैनिक जागरण में आज एक चौंकाने वाली खबर लीड है। मुझे किसी और अखबार में यह खबर पहले पन्ने पर इतनी प्रमुखता से छपी नहीं दिखी। खबर का शीर्षक है, सवा लाख अपात्र लोगों के खातों से पीएम किसान योजना का पैसा वापस। यहां सवाल उठता है कि अपात्र लोगों के खातों में पैसा गया कैसे और क्यों? क्या सरकार को यह सूचना स्वयं नहीं देना चाहिए था? इसके लिए जिम्मेदार लोगों का पता नहीं लगाया जाना चाहिए और कार्रवाई नहीं होनी चाहिए।
खबर पढ़ने से लगता है कि यह साधारण बात है और नियम ही स्पष्ट नहीं थे। खबर कहती है कि सरकार ने सख्ती की और भूस्वामी तथा और खाताधारक के नाम में अंतर के कारण हुई कार्रवाई। मुझे लगता है कि अंतर है तो भुगतान होना ही नहीं था। और कार्रवाई यह नहीं है कि पैसे वापस ले लिए गए – ये तो होना ही था। कार्रवाई यह होनी थी कि जिम्मेदार लोगों को तलाशा जाता। उन कारणों का पता लगाया जाता जिसकी वजह से नाम में अंतर होने के बावजूद भुगतान हो गए। और फिर उन कारणों को दूर किया जाता।
नई दिल्ली डेटलाइन से सुरेंद्र प्रसाद सिंह की खबर बताती है कि, करीब पौने तीन लाख किसानों के ब्योरों में मिली गड़बड़ी। यह संख्या कोई मामूली नहीं है। गलत भुगतान तो एक नहीं होना चाहिए। पौने तीन लाख गलत भुगतान हो गए – खबर ही नहीं थी। अब खबर ऐसे छप रही है जैसे वसूली हो गई तो कोई बात ही नहीं हुई या सरकार ने कोई बड़ा तीर मार लिया है। खबर में विवरण दिया गया है, “खेत बाबा के नाम और बैंक खाता पोते के नाम का। यानी दस्तावेजों में किसान तो बाबा हैं, लेकिन पोते ने पीएम-किसान निधि योजना का पैसा लेने के लिए अपने बैंक खाते का ब्योरा दर्ज करा दिया। इसी तरह खेत की मालकिन तो पत्नी हैं, लेकिन पति ने योजना में अपना बैंक खाता लिखा दिया। ज्यों ही इसकी भनक लगी, करीब सवा लाख खातों से जमा कराई गई धनराशि वापस ले ली गई। इसे लेकर कई जगहों पर हो-हल्ला मचा, लेकिन गलती का अहसास होते ही लोगों ने चुप्पी साध ली।”
खबर आगे कहती है, “कृषि मंत्रालय के वरिष्ठ अफसर ने बताया कि पीएम-किसान योजना की खामियां दूर करने की प्रक्रिया तेज कर दी गई ताकि वास्तविक किसानों को लाभ प्राप्त हो सके।” मुझे लगता है कि खबर यह है कि योजना में ऐसी खामी थी जिससे अपात्र लोगों को इसका लाभ मिल रहा था और पौने तीन लाख लोगों को गलत भुगतान के बाद सरकार की आंख खुली है और अब खामियां दूर की जा रही हैं। पर अखबार ने खबर इसे नहीं बनाया है। खबर क्या है वो आप देख रहे हैं – “उन्होंने बताया कि कई राज्यों में बड़े बुजुर्गो की मृत्यु हुए बगैर परिवार के अन्य लोगों को जमीन का मालिकाना हक नहीं मिल पाता, लेकिन परिवार के लोग आपसी सहमति से बंटवारा कर खेती करते हैं, लेकिन पीएम-किसान योजना का लाभ उन्हीं को मिलेगा, जिन्हें मालिकाना हक प्राप्त है।” कहने की जरूरत नहीं है कि इसमें एक गंभीर सामाजिक बुराई को बहुत ही चलताऊ अंदाज में निपटा दिया गया है।
“कई राज्यों में बड़े बुजुर्गो की मृत्यु हुए बगैर परिवार के अन्य लोगों को जमीन का मालिकाना हक नहीं मिल पाता” – इससे तो लगता है कि भूस्वामी किसान की मृत्यु के बाद उनके परिवार रिश्तेदार या बच्चे आपस में भूमि का बंटवारा कर लेते हैं और इसे सामाजिक स्वीकृति है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह गलत है और इसमें बेटियों का हिस्सा कहां जाता है – इसकी कोई चर्चा नहीं है। और सरकारी नियम स्पष्ट होने चाहिए। भूस्वामी या संपत्ति मालिक की मृत्यु की दशा में वसीयत के आधार पर या कायदे-कानून के आधार पर बंटवारा होना चाहिए – नाम बदलने चाहिए और नहीं बदले जाते हैं तो यह मामूली बात नहीं है और इसमें सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत को उनकी उदारता मानकर नहीं छोड़ा जा सकता है। और खबर इसपर (भी) होनी चाहिए। पर खबर कुछ और है। पता नहीं, अज्ञानता के कारण या अनावश्यक भक्ति के कारण।
अज्ञानता का मामला मुझे नहीं लगता है क्योंकि खबर में आगे लिखा है, लोकसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पहले लांच हुई योजना के तहत एक करोड़ लोगों के बैंक खातों में पहली किस्त के रूप में दो-दो हजार रुपये जमा कराए गए थे। मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि कुल 2.69 लाख किसानों के बैंक खाते और खेत के मालिक के नाम में अंतर पाया गया। सत्यापन से पहले ही 1.19 लाख बैंक खातों में पहली किस्त जमा हो गई थीं। (सत्यापन से पहले ही किस्त जमा कराना दरअसल वोट खरीदने के लिए पैसे देना है और इसीलिए सत्यपन की जरूरत ही नहीं समझी गई और अब वोट मिल गए तो पैसे वापस ले लिया जाना – धोखाधड़ी नहीं तो और क्या है? स्थिति यह है कि ठगी का शिकार अब बोल भी नहीं सकता है – क्योंकि दोषी उसे ही ठहराया जा रहा है।) हालांकि, 1.50 लाख किसानों की किस्तें पहले ही रोक ली गईं। (यह अधिकारियों की सतर्कता से हुआ होगा और इसके लिए उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए)। खबर में लिखा है, आंकड़ों के सत्यापन की रफ्तार तेज कर गलती पकड़ में आ गई और जिनके खाते में पैसा भेज दिया गया, उनके बैंकों को निर्देश भेज दिए गए कि सत्यापन के बगैर पैसा रोक लिया जाए।
किसान के नाम और बैंक खाते में मिलान न होने की दशा में पहली किस्त का भेजा गया पैसा वापस ले लिया गया। यही वजह है कि योजना की पहली किस्त जहां तीन करोड़ बैंक खातों में भेजी गई, वहीं दूसरी किस्त 2.66 करोड़ खातों तक पहुंची। (खबर यह भी है पता नहीं तब की गई या नहीं) राज्यों से आ रहे आंकड़ों में कई गड़बड़ियां पकड़ी जा रही हैं। ये गड़बड़ियां क्यों हैं – समझना मुश्किल नहीं है। मेरा मानना है कि फिर भी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। तभी ऐसी मनमानी रुकेगी। इस खबर के साथ यह खबर भी महत्वपूर्ण है कि, “आयकर विभाग भी करेगा जांच। अगर मीडिया मालिकों से लेकर विपक्षी राजनेताओं के खिलाफ आयकर और ईडी जांच की खबर छपती है तो यह भी बड़ी खबर है। लेकिन यह दूसरी खबर के साथ सिर्फ बोल्ड अक्षर की सूचना से अलग की गई है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह खबर सरकार की जितनी सेवा करती है उससे ज्यादा नुकसान करती है। इसलिए भविष्य में पूरी संभावना है कि खबरों में ऐसी ‘गलती’ नहीं होगी।
खबर कहती है : योजना के लाभार्थियों के आंकड़ों की जांच के लिए सरकार ने पब्लिक फाइनेंस मैनेजमेंट सिस्टम का गठन किया है। यह प्रणाली राज्यों से भेजे जा रहे किसानों के आंकड़े जांचती है। इसी प्रणाली ने इस तरह की गड़बड़ी को पकड़ा। इसके लिए राज्यों को सख्त निर्देश भेजा गया है कि उन्हीं किसानों के नाम भेजे जाएं, जिनके अपने बैंक खाते हों। कृषि मंत्रालय के आग्रह पर आयकर विभाग भी किसानों की सूची की जांच करने को राजी हो गया है। दरअसल, आयकर देने वाले किसानों को योजना का लाभ नहीं दिए जाने का प्रावधान है। राज्यों से मंगाये जा रहे आंकड़ों के साथ आधार नंबर भी दर्ज किया जा रहा है जिसके मार्फत इसका पता चल सकेगा। योजना का पैसा लाभार्थी किसान के बैंक खाते में ही जाएगा, इसके लिए बैंकों के बचत खाते और जनधन खाते ही मान्य होंगे। एक और खबर है, 14.5 करोड़ किसान पाएंगे योजना का लाभ, अधिसूचना जारी : देश के 14.5 करोड़ किसानों को अब पीएम किसान योजना का फायदा मिलेगा। केंद्र ने शनिवार को इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी। राजग-2 सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में इस बारे में फैसला हुआ था।
अमर उजाला की खबर
आज अमर उजाला में पहले पन्ने पर एक खास खबर है। वैसे तो यह एजेंसी की है और एजेंसी की ऐसी खबरें भी अब पहले पन्ने पर कभी-कभी ही दिखती हैं। यह खबर दैनिक भास्कर में भी है लेकिन अंदर के पन्ने पर। भास्कर की खबर विस्तार में है और बिहार-झारखंड की खबरों के पन्ने पर छह कॉलम में छपी है – खबर यह है कि पटना में रहन वाले पथ निर्माण विभाग में कार्यपालक इंजीनियर, सुरेश प्रसाद सिंह को 14 लाख रुपए घूस लेता पकड़ा गया, उसके घर में 2.36 करोड़ रुपए मिले। यह कहानी नोटबंदी से कालाधन खत्म होने और भ्रष्टाचार खत्म हो जाने के दावों के बाद की है। और सड़क बनाने वाले इंजीनियर की है।
दैनिक भास्कर की खबर
दैनिक भास्कर में आज एक और महत्वपूर्ण खबर है – गुजरात मानवाधिकार आयोग ने जीवित 10 महिलाओं को बना दिया सती जबकि जिन्दा हैं इनके पति भी। कहने की जरूरत नहीं है कि यह गुजरात मॉडल का मामला है और 2011 से 2018 के बीच का है। इसमें खास बात यह है कि संबंधित परिवार के लोग खबर छपवाने के लिए घूमते घूमते थक गए होंगे। और खबर नहीं छपी होगी या कहीं छोटी सी छपी होगी तो अब कार्रवाई हुई है और खबर छप रही है। आजकल सरकार के खिलाफ खबर नहीं छपना एक समस्या है और भक्ति में प्रचार वाली खबरें ही छापना दूसरी समस्या है। इन समस्याओं के बीच खबरों में आप अपने काम की खबरें पहचान और चुन सकते हैं जैसे मैंने आज किया।
पांच लाख के ईनाम की खबर
आज की खबरों की बात वायु सेना के लापता विमान का सुराग देने वाले को पांच लाख रुपए का ईनाम देने की खबर के बिना पूरी नहीं होगी। अभी तक लोग अपने खोए कुत्ते को तलाशने के लिए पुरस्कार देते थे। पुलिस नामी अपराधियों का सुराग देने वाले को ईनाम देती थी। 13 इनसानों के साथ लापता वायु सेना के विमान का सुराग देने के लिए ईनाम देने की घोषणा शायद पहली बार हुई है और इसी क्षमता पर घुस कर मारने का दावा किया जाता रहा और जनता ने भारी बहुमत दिया है। लोकतंत्र में अशिक्षा और अज्ञानता के महत्व पर भी कभी चर्चा होगी। कांग्रेस नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने आज अपने साप्ताहिक कॉलम में लिखा है, “यह देखना दिलचस्प होगा कि संसाधन संपन्न मोदी इस समंदर में बिना नक्शे के क्या रास्ता तलाशते हैं।” मुझे अखबार भी नया सेवा मार्ग तलाशते नजर आ रहे हैं।