द टेलीग्राफ की खबर, “नई सरकार में सिंहासनों का खेल” की चर्चा करते हुए मैंने कल लिखा था, इसके साथ दो कॉलम की दो खबरें हैं। …. दूसरी खबर, नीति आयोग में मंत्री ज्यादा – किसी अखबार में नहीं दिखी। नीति आयोग की खबर तो यही है। अंदर यह बात जरूर होगी पर शीर्षक? और साफ-साफ कहना? आज द टेलीग्राफ में पहले पन्ने पर तीन कॉलम की बड़ी सी खबर है, ममता ने मोदी से कहा नीति आयोग की बैठक (में शामिल होने का) कोई मतलब नहीं है। इसके साथ अखबार ने पेज आठ देखने के लिए भी कहा है। पेज आठ पर खबर है, (ममता बनर्जी ने) कांग्रेस से अपील (की)। इसमें कहा गया है कि ममता बनर्जी चुनाव सुधार की मांग करने के लिए अखिल भारतीय आंदोलन शुरू करेंगी और लोकसभा चुनाव में कथित गड़बड़ियों का विरोध करेंगी। कहने की जरूरत नहीं है कि दोनों खबरें महत्वपूर्ण हैं और अखबारों में प्रमुखता से होनी चाहिए।
आइए, देखें आज इस खबर को अखबारों ने कैसे छापा है। हालांकि, उससे पहले पूरी खबर बता देना जरूरी है। आप देखिए कि आपके अखबार ने कितनी खबर दी, क्या दी और कैसे दी।
द टेलीग्राफ ने कल अपनी खबर, “नीति आयोग में मंत्री ज्यादा”, में लिखा था, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार को नीतियों के थिंकटैंक, नीति आयोग के पुनर्गठन को मंजूरी दे दी। इसे पुराने योजना आयोग के अवशेष पर जनवरी 2015 में बनाया गया था। गृहमंत्री अमित शाह के साथ तीन अन्य मंत्रियों को सदस्य के रूप में शामिल किया गया है और सबको पदेन सदस्य कहा गया है। नीति आयोग के अन्य पदेन सदस्य हैं, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन और कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर। परिवहन मंत्री, नितिन गडकरी, वाणिज्य और उद्योग तथा रेल मंत्री पीयूष गोयल, सामाजिक न्यायमंत्री थवर चंद गहलौत औऱ सांख्यिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) राव इंद्रजीत सिंह चर्चा में विशेष आमंत्रित होंगे।
अखबार ने आगे लिखा था, यह पहली बार हो रहा है कि पिछली मोदी सरकार के सबसे बड़े सुधारों में एक कहे जाने वाले नीति आयोग में इतने सारे केंद्रीय मंत्री सदस्य के रूप में होंगे। इससे पुनर्गठित इकाई की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं कि इतने सारे मंत्रियों के साथ यह क्या कर पाएगा। अभी तक नीति आयोग में सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले श्री मोदी अकेले थे। इसके बारे में कहा जाता है कि पुनर्गठन के बाद इसने नेहरूवादी नीति निर्माण का फर्मा ही हटा दिया है। सदस्यों के बारे में और भी जानकारी है पर मैं अभी उसके विस्तार में नहीं जा रहा। इस खबर की भाषा से पता चलता है कि इसे कितने अधिकार से किस सधे हुए अंदाज में लिखा गया है। क्या हिन्दी अखबारों की खबरों से आपको ऐसा कुछ आभास होता है?
नीति आयोग का यह पुनर्गठन 15 जून को होने वाली इसकी पांचवीं बैठक से पहले किया गया है और इसमें जलप्रबंध, कृषि तथा सुरक्षा से संबंधित विषयों पर चर्चा होनी है। नीति आयोग एक शीर्ष संस्था है और इसमें सभी मुख्यमंत्रियों के साथ केंद्र शासित प्रदेश के उपराज्यपाल (जो केंद्र द्वारा मनोनीत होते हैं), कई केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ सरकारी अधिकारी होते हैं। नई मोदी सरकार की यह पहली बैठक है। दिसंबर में नीति आयोग ने एक पंचवर्षीय रणनीति दस्तावेज पेश किया था जिसमें भारत के आर्थिक विकास की दर 2018-23 के दौरान 8 प्रतिशत करने की आवश्यकता बताई गई थी। ममता बनर्जी ने इस बैठक को निरर्थक कहा है तो यूं ही नहीं कहा होगा। आइए अब देखें उन्होंने क्या कहा है। अंग्रेजी अखबारों में यह खबर हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर है। इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर नहीं है और टाइम्स ऑफ इंडिया में टॉप पर दो कॉलम में है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस खबर का उपशीर्षक लगाया है, “(नीति आयोग के पास) राज्य की योजना का समर्थन करने के अधिकार नहीं है”।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा कि वे 15 जून को होने वाली नीति आयोग की बैठक में शामिल नहीं होंगी क्योंकि इसमें भाग लेना ‘‘निष्फल’’ होगा। इसकी वजह उन्होंने यह बताई है कि राज्य की योजनाओं में मदद के लिये आयोग के पास ना धन है और न कोई शक्ति। बाद में एक प्रेस कांफ्रेंस में मुख्यमंत्री ने कहा कि योजना आयोग ज्यादा प्रभावी था और उसे वापस लाया जाना चाहिए। तीन पन्ने के अपने पत्र में उन्होंने कहा है कि फोकस अंतर-राज्यीय परिषद (आईएससी) पर होना चाहिए न कि नीति आयोग पर। नीति आयोग के मामले में ‘‘पिछले साढ़े चार साल में जो अनुभव हमें रहा है उससे मेरे पिछले सुझाव को बल मिला है कि हमें संविधान के अनुच्छेद 263 के तहत गठित अंतरराज्यीय परिषद पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और देश की प्रमुख इकाई के तौर पर आईएससी को अपने कार्य के निष्पादन के लिये इसमें समुचित संशोधन कर इसके कामकाज का दायरा बढ़ाना चाहिए।’’
क्या मैं यह भी दोहरा सकती हूं कि राष्ट्रीय विकास परिषद, जिसे चुप-चाप दफन कर दिया गया है, को भी अंतरराज्यीय परिषद की इस विस्तृत संवैधानिक संस्था में मिलाया जा सकता है।’’ ममता ने अपनी इस चिट्ठी की प्रति कई गैर भाजपाई मुख्यमंत्रियों को भेजी है। अपने पत्र में उन्होंने नीति आयोग के अधिकारियों और एक पूर्व केंद्रीय मंत्री जो जानेमाने अर्तशास्त्री भी हैं, के बयानों का उदाहरण दिया है जिसमें उन्होंने क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने के प्रयास के तहत थिंक-टैंक को वित्तीय शक्ति देने की जरूरत बताई थी। ममता बनर्जी पहले भी नीति आयोग की बैठकों से अलग रह चुकी हैं पर तब राज्य के वित्त मंत्री अमित मित्रा को भेजा था। बैठक में भाग नहीं लेने के निर्णय से भाजपा को ममला पर हमला करने का मौका मिल गया है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने उनपर आरोप लगाया है कि वे बंगाल के विकास को लेकर गंभीर नहीं हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के आरोप अपनी जगह हैं पर ममता बनर्जी ने जो चिन्ता जताई है उसे नहीं छापना खबर देने की जिम्मेदारी से चूकना है।
नवभारत टाइम्स में यह खबर पहले पन्ने पर तीन लाइन के शीर्षक, “नीति आयोग को ममता बनर्जी ने बताया फिजूल” के साथ है। आधे कॉलम की फोटो के साथ सिंगल कॉलम की यह खबर कुल 13 लाइन की है। यहां बताया गया है कि खबर अंदर है। 12वें पन्ने पर यह खबर, “धमकी के 300 कॉल, कोलकाता में बीफ फूड फेस्टिवल टाला गया” शीर्षक खबर के साथ है। दो कॉलम में फिर आधे कॉलम की फोटो के साथ। पता नहीं एक खबर में दो बार फोटो लगाना क्यों जरूरी है? यहां यह खबर 14 लाइनों में है और समाप्त नहीं हुई है। वाक्य पूरा नहीं है, पूर्ण विराम नहीं है। यह खबर विशेष संवाददाता की है। बीफ फेस्टिवल वाली खबर समाचार एजेंसी आईएएनएस की है। इसे क्यों प्रमुखता मिली है, आप समझ सकते हैं। इस मामले में आप एजेंसी की प्राथमिकता समझ सकते हैं पर विशेष संवाददाता की खबर अखबार में इस तरह आधी-अधूरी छपना भी नई पत्रकारिता ही है।
दैनिक हिन्दुस्तान में पहले पन्ने पर यह खबर अंदर होने की सूचना है। अंदर मुझे यह खबर नहीं दिखी तो मैंने आगे-पीछे के पन्ने भी देख लिए। कहीं नहीं दिखी तो बताए गए पन्ने पर फिर आया तो पता चला कि दो लाइन के शीर्षक, ममता बैठक में नहीं जाएंगी के साथ सिर्फ नौ लाइन की खबर है। अभी तक मैंने नौ लाइन की खबर की सूचना पहले पन्ने पर नहीं देखी थी।
नवोदय टाइम्स में पहले पन्ने पर दो कॉलम में खबर है, चुनाव आयुक्तों के लिए भी कोलेजियम बनाएं ममता। उपशीर्षक है, नीति आयोग का एजंडा पहले से तय। इसके मुताबिक, लोकसभा चुनाव में पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए ममता बनर्जी ने चुनाव आयोग पर निशाना साधा और कहा कि चुनाव आयोग के तीन नामित सदस्यों को मतदान कराने का पूरा अधिकार नहीं होना चाहिए। ममता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में कॉलेजियम होता है जो जजों की नियुक्ति करता है। इसी तरह चुनाव आयोग में आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम होना चाहिए। बनर्जी ने सभी विपक्षी पार्टियों से ईवीएम मामले पर एकजुट होने की अपील की और मिलकर एक कमेटी बनाने की मांग करने का सुझाव दिया। वैसे तो यह खबर भी महत्वपूर्ण है और आजकल जैसे एक सी सभी खबरें एक साथ छापी जाती हैं उसमें इसे भी साथ होना चाहिए था।
अमर उजाला में यह खबर टॉप पर सिंगल कॉलम में है। ब्यूरो की इस खबर का शीर्षक है, “नीति आयोग की बैठक में आना निरर्थक : ममता” । इसमें नवोदय टाइम्स की तरह अन्य बातें नहीं हैं। यह जरूर बताया गया है कि ममता ने यह भी नहीं बताया है बैठक में कोई मंत्री उनका प्रतिनिधित्व करेगा कि नहीं। हालांकि, मुद्दा यह नहीं है कि नीति आयोग की बैठक में बंगाल का प्रतिनिधित्व होगा कि नहीं। मुद्दा नीति आयोग से संबंधित ममता बनर्जी के सवाल और एतराज हैं जिसे हिन्दी के किसी भी अखबार ने प्रमुखता नहीं दी है। एक तरफ अखबार हिन्दी के पाठकों को आवश्यक सूचनाएं नहीं देते हैं और दूसरी ओर, व्हाट्सऐप्प पर फर्जी सूचनाएं चलती रहती हैं जिसे लोग सही मान लेते हैं। इनमें ममता बनर्जी का अंध विरोध शामिल है।
दैनिक जागरण में यह खबर पहले पन्ने पर, “नीति आयोग को निरर्थक बताकर ममता ने बैठक में आने से किया इन्कार” शीर्षक से है। यहां बताया गया है कि यह खबर अंदर है। यहां भी यह खबर इसी शीर्षक से है। उपशीर्षक है, “दो टूक : बंगाल की सीएम ने पीएम को लिखा पत्र, कहा-बैठक में आना निरर्थक”। इस विस्तृत खबर में ममता के पत्र की काफी सारी बातें हैं। इसके साथ बंगाल, भाजपा और ममता बनर्जी से संबंधित दूसरी खबरें भी हैं। और यह कलकत्ता संवाददाता की खबर है। राजस्थान पत्रिका यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है और ना खबर अंदर होने की कोई सूचना। दैनिक भास्कर में यह खबर अंदर होने की सूचना है। अंदर यह खबर ठीक-ठाक है।
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नीति आयोग की बैठक में नहीं आने की खबर ऐसे छापी है जैसे दुर्गा पूजा आयोजन समिति की बैठक में नहीं आएंगी। “नीति आयोग की बैठक को निरर्थक कहा” – शीर्षक भी एक बार पढ़ने के लिए प्रेरित करता। यह शीर्षक दो लाइन की सूचना ही है और हिन्दुस्तान की पत्रकारिता।