आम चुनाव में नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी की शानदार जीत के बाद राजस्थान पत्रिका समूह के स्वामी और प्रधान संपादक भावविभोर हो गए हैं। उन्होंने आज पहले पन्ने पर एक टिप्पणी लिखी है और कहा है कि आज से ‘’पत्रिका का संकल्प भी आपके साथ सहभागी रहेगा’’। इस तरह पिछले दो साल से विज्ञापन और अन्य संकटों से जूझ रहे कोठारी ने अगले पांच साल के लिए कारोबार का रास्ता सुगम कर लिया है।
गुलाब कोठारी अपने बदलते तेवरों के लिए जाने जाते हैं। याद रहे कि जब राजस्थान की वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने उनका विज्ञापन बंद किया था और लोकसेवकों से जुड़ा एक कानून लाने की बात की थी, तो मीडिया के हलकों में ‘भाईसाहब’ के नाम से पुकारे जाने वाले कोठारी ने अपने अखबार से मोर्चा खोल दिया था। एक संपादकीय टिप्पणी में 22 अक्टूबर 2017 को उन्होंने ‘’उखाड़ फेंकेगी जनता’’ शीर्षक से नारा दिया था, ‘’जब तक काला तब तक ताला’’।
उस वक्त मीडियाविजिल ने उनके लेख की सराहना करते हुए एक टिप्पणी लिखी थी।
पत्रकारिता के भक्तिकाल में गुलाब कोठारी का यह संपादकीय वसुंधरा राजे को सोने नहीं देगा!
पत्रिका ने बाकायदे इस नारे के नाम से अभियान चलाया और वसुंधरा राजे सरकार की खबरों का लगातार बहिष्कार किया। भाजपा को उखाड़ फेंकने के आह्वान के तीन महीने बाद अचानक कोठारी के भीतर का हिंदू मन जाग गया और उन्होंने 5 जनवरी 2018 को ‘’हिन्दू एकीकरण’’ के शीर्षक से एक लेख लिख मारा। इस लेख में उन्होंने सरसंघचालक मोहन भागवत के आरक्षण समाप्त करने के आह्वान का समर्थन करते हुए हिंदुओं की एकता का नारा दिया।
मीडियाविजिल ने तब भी डॉ. कोठारी के इस लेख की आलोचना लिखी।
”हिंदू एकीकरण” पर गुलाब कोठारी के लेख की भर्त्सना में दो प्रतिक्रियाएं
अब राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है। कोठारी के अखबार की प्रादेशिक समस्याएं सुलझ गई हैं लिहाजा वे मोदी की नई सरकार के सामने दण्डवत् हैं। जनादेश के दिन भाजपा मुख्यालय में दिया नरेंद्र मोदी का भाषण सुनकर उन्हें लग रहा है कि मोदी का हृदय परिवर्तन हो गया है। नीचे पढ़ें आज का आलेख जिसका शीर्षक है, ‘’स्तुत्य संकल्प’’:
हारे हुए विपक्ष के लिए वे ‘असुर’ और मोदी के लिए ‘देव’ की संज्ञा का प्रयोग करते हुए लिखते हैं, ‘’लगता है वह समय आ गया है जब भारत के आधिदैविक धरातल को पुनर्जीवित होना है। इसके शिलान्यास का समय शुरू हो गया है। देश में फैले विषैले कंटक-विचार-चर्या-अकर्मण्यता के भाव स्वच्छता अभियान में सिमट जाने को हैं। भारत का गौरव फिर से लौटता दिखाई देने लगा है। तीनों पायों को बस जमीन से जोडऩे की जरूरत है। इनको विदेश से घर लाना है। विदेशी नकल ने विकास के नाम पर न केवल हमारी संस्कृति की हत्या की है, न केवल इंसान की कीमत घटाई है, न केवल खाने में जहर घोला है, बल्कि हमारी आस्था के धरातल को शरीर तक समेटकर तितर-बितर कर दिया है। श्रीमान! आपके ये संकल्प शरीर और बुद्धि से परे के हैं। शायद अव्यय मन-आत्मा-के धरातल से जुड़े हैं। मानो नया जनादेश आपको देवासुर संग्राम में विजयी बना गया। आपको चौदह रत्न मिल गए।‘’
यह लेख डॉ. कोठारी के ब्लॉग पर भी पढ़ा जा सकता है।
गौरतलब है कि 2018 में जब गुलाब कोठारी ने जनसत्ता से रिटायर हुए वरिष्ठ संपादक ओम थानवी को सलाहकार संपादक बनाया था, तब उनके अखबार की संपादकीय धार काफी तीखी हो गई थी। चुनाव से पहले कोई साल भर तक अखबार भाजपा और सरकार विरोधी लेख नियमित रूप से छापता रहा। चुनाव करीब आए तो अचानक सलाहकार संपादक ओम थानवी और उनके बाद संपादकीय पन्ने के प्रमुख सनी सेबास्टियन ने इस्तीफ़ा दे दिया।
वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी की ‘घर वापसी’, राजस्थान पत्रिका समूह के सलाहकार संपादक बने
पता चला कि अखबार ने करन थापर जैसे कुछ लेखकों के अनूदित लेख छापने बंद कर दिए थे और चुनाव के दौरान संपादकीय पन्ने के आलेखों को निलंबित कर दिया था। पिछले कोई दो महीने तक अखबार में वैचारिक लेखों का लगातार टोटा रहा है। जाहिर है, इस फैसले के बाद ओम थानवी की भूमिका खास बचती नहीं थी। सो उन्होंने अपना इस्तीफा सौंप दिया।
अब आज की टिप्पणी के बाद यह बात साफ़ हो गई है कि पत्रिका का भाजपा विरोध एक अवसरवादी पक्ष था, वैचारिक नहीं। वैसे भी सरसंघचालक मोहन भागवत के साथ कोठारी की नजदीकियां जगजाहिर हैं। आज का लेख इस बात की ताकीद करता है कि गुलाब कोठारी ने कर्पूर चंद्र कुलिश की पत्रकारीय धारा को मोदी के संकल्पों की गटरगंगा में समाहित कर के एक आखिरी उम्मीद को भी समाप्त कर दिया है।
हो सकता है कि डॉ. कोठारी भविष्य में निजी कारणों से फिर भाजपा व मोदी से फिरंट हो जाएं, लेकिन उनके ऊपर तब भरोसा नहीं होगा। तब उनके लेख पढ़कर टिप्पणी करने लायक भी नहीं रह जाएंगे।