दिल्ली के अखबारों में खबरों को मिलने वाली प्राथमिकता देखने के लिहाज से आज का दिन महत्वपूर्ण है। आम दिनों से बहुत अलग क्योंकि कल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली ने रैली की और प्रियंका गांधी का रोड शो था। प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कई बातें कहीं जो आप आगे पढ़ेंगे और प्रियंका ने खुद को दिल्ली की लड़की बताया। प्रधानमंत्री को नोटबंदी-जीएसटी पर चुनाव लड़ने की चुनौती दी। इन खबरों के रहते, चुनाव के इस मौसम में कोई दूसरी खबर लीड नहीं हो सकती। कभी-कभी ऐसा होता है कि कोई खबर निर्विवाद रूप से लीड होती है और अक्सर अखबारों में उन्हें लीड बनाया भी जाता है, पर चुनाव के समय बात अलग होती है।
मेरे हिसाब से निर्विवाद लीड आज कई अखबारों में लीड नहीं है। आइए देखें किस अखबार में लीड क्या है और पहले पन्ने की कौन सी दूसरी खबरें दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है। इसमें भाजपा नेताओं पर लेह के पत्रकारों का रिश्वत देने का आरोप भी है। द टेलीग्राफ ने आज अंदर के पन्ने पर खबर छापी है कि बचाव में भाजपा नेताओं ने धर्म का सहारा लिया है। और इस तरह यह खबर रोज महत्वपूर्ण होती जा रही है देखिए आपके अखबार में है कि नहीं। आज दैनिक हिन्दुस्तान में पहले पन्ने पर एक छोटी सी खबर है, तेज बहादुर की अर्जी पर गौर करें। सवा चार लाइन की इस खबर का विस्तार अंदर के पेज पर होना बताया गया है और विज्ञापन के कारण 10 नंबर पर बताई गई खबर असल में 12वें पन्ने पर है।
अंदर दो कॉलम की छोटी सी खबर है, हालांकि इस शीर्षक से बात समझ में आती है – आयोग तेज बहादुर की याचिका पर गौर करें। आप जानते हैं कि तेज बहादुर सीमा सुरक्षा बल का जवान है जिसने खराब खाना मिलने की शिकायत की थी तो उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। उसने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए नामांकन दाखिल किया था जिसे खारिज कर दिया गया है। वही मामला सुप्रीम कोर्ट में है और सुप्रीम कोर्ट ने आज इसपर चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। यह खबर भी पहले पन्ने लायक है। हिन्दुस्तान टाइम्स में यह पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर सिंगल कॉलम में है। देखता हूं कल इसमें क्या आदेश होता है और कहां जगह मिलती है।
राहुल के माफी मांगने की खबर हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है, टाइम्स ऑफ इंडिया में आज पहले पन्ने पर आधा विज्ञापन है इसलिए प्रधानमंत्री की रैली, प्रियंका का रोड शो और राहुल की माफी – सब पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर है। इंडियन एक्सप्रेस ने इसे लीड बनाया है। हालांकि, शीर्षक में ही लिखा है कि यह सुप्रीम कोर्ट के हवाले से चौकीदार चोर है कहने के लिए है। फिर भी, मुझे लगता है कि यह इतनी बड़ी खबर नहीं है। राहुल गांधी के पास कोई विकल्प था ही नहीं। इसलिए राहुल ने जो किया वह नया नहीं है और जानी हुई या पुरानी बात सामान्य पत्रकारिता में खबर नहीं होती – इतनी प्रमुखता पाने की हकदार तो बिल्कुल नहीं।
इंडियन एक्सप्रेस ने प्रधानमंत्री की रैली की खबर का शीर्षक उन गालियों को बनाया है जो प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें कांग्रेस के नेताओं ने दिए हैं। और वैसे तो प्रधानमंत्री ने गालियों की पूरी सूची गिनाई और द टेलीग्राफ के मुताबिक कुल मिलाकर 35 गालियां बताईं पर इंडियन एक्सप्रेस ने दो – पागल कुत्ता और बंदर को शीर्षक में लिखा है। द टेलीग्राफ ने इस रैली की रिपोर्टिंग और उसका प्लेसमेंट दोनों ही अलग अंदाज में किया है। अखबार ने भस्मासुर, रावण, हिटलर आदि जैसी कथित गालियों को प्रमुखता दी है। वैसे, सोशल मीडिया पर कल ही लोगों ने ये गालियां लिख दी थीं। टेलीग्राफ की खबर देखकर लगता है कि अब वीडियो देखकर रिपोर्टिंग करने से नामुमकिन मुमकिन है।
नवोदय टाइम्स में आज पहले पन्ने पर एक खबर है जो चुनावी मौसम के कारण, “घर में घुसकर मारूंगा” के संदर्भ में दूसरे अखबारों में भी पहले पन्ने पर हो सकती थी। खबर है, लाहौर में दरगाह के बाहर विस्फोट, 10 मरे। पाकिस्तान पर आतंकवाद को शह देने का आरोप है और उसके मद्देनजर भारत में किए जा रहे चुनावी दावों के बीच अगर पाकिस्तान में विस्फोट हो जाए और 10 लोग मर जाएं तो खबर महत्वपूर्ण है और नवोदय टाइम्स ने इसे पर्याप्त महत्व दिया है पर दूसरे अखबारों में ऐसा नहीं दिखा। हालांकि, नवोदय टाइम्स में लीड है, राहुल ने मांगी सुप्रीम माफी। दो कॉलम में दो लाइन के शीर्षष के साथ वैसे तो यह छोटी लीड है और दूसरे अखबारों में भी है।
वैसे तो अखबार ने उपशीर्षक में बताया है कि यह माफी “चौकीदार चोर” में कोर्ट को घसीटने के मामले में है। पर चुनावी मौसम में इसे महत्व दिए जाने से लग रहा है कि राहुल ने चौकीदार चोर है कहने के लिए माफी मांगी है। मामला चौकीदार चोर है कहने के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का सहारा लेने का है और सुप्रीम कोर्ट में भाजपा नेता ने इसपर अवमानना याचिका दायर कर रखी है। इसलिए राहुल के पास गलती स्वीकार करने और माफी मांगने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं है। उन्होने पहले गलती मानी पर माफी नहीं मांगी। इसलिए मामला लंबा चला और अब अंततः माफी मांग ली है तो इसे लीड बनाने का आधार है पर दूसरी महत्वपूर्ण खबरों के मद्देनजर यह एक खबर भर ही है।
रैली और रोड शो को छोड़कर इसे लीड बनाना – सामान्य पत्रकारिता नहीं है। अखबार ने प्रधानमंत्री की रैली के उस आरोप को शीर्षक और सेकेंड लीड बनाया है जो कई साल पुराना है और पहले छप भी चुका है। आईएनएस विराट को टैक्सी के रूप में उपयोग करना कोई आरोप नहीं है। टैक्सी को टैक्सी के रूप में किराया देकर उपयोग करना गलत नहीं है। और मुझे नहीं लगता कि आईएनएस विराट का उपयोग करने के लिए किराया देने का कोई प्रावधान होगा। ऐसे में किराया दिया भी नहीं गया होगा और टैक्सी के रूप में उपयोग किया कहना तकनीकी तौर पर गलत है। इस तरह आरोप ही कायदे से नहीं लगाया गया है और रैली में कहने के लिए ठीक है पर शीर्षक नहीं है। यहां शीर्षक में वह बात नहीं है।
दैनिक जागरण में राहुल की माफी लीड है “राहुल ने सुप्रीम कोर्ट से बिना शर्त माफी मांगी।” उपशीर्षक है, “कोर्ट के हवाले से कहा था, ‘चौकीदार चोर है’, कल होगी सुनवाई”। रैली की खबर तो पहले पन्ने पर है लेकिन प्रियंका का रोडशो नहीं है। इस खबर का शीर्षक है, “राजीव गांधी ने युद्धपोत आइएनएस विराट को बना लिया था टैक्सी: पीएम मोदी”। उपशीर्षक है, “मोदी ने सेना को जागीर की तरह उपयोग करने के राहुल के आरोप का दिया करारा जवाब”। अमर उजाला में भी राहुल की माफी लीड है और प्रधानमंत्री की रैली, प्रियंका का रोड शो, चुनौती और इसपर आम आदमी पार्टी की प्रतिक्रिया सब एक साथ टॉप पर है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश में छेड़छाड़ का मामला फिर सामने आने की खबर को अखबार ने प्रमुखता से छापा है और यह सेकेंड लीड है। राजस्थान पत्रिका में दिल्ली की रैली और रोड शो की खबर लीड है। राहुल की माफी पहले पन्ने पर दो कॉलम में है पर लीड नहीं है। पत्रिका ने मोदी-शाह को चुनाव आयोग से मिल रहे क्लीन चिट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लीड बनाया है जो दूसरे अखबारों में इतनी प्रमुखता से नहीं है। शीर्षक है, “सही या गलत, फैसले हो चुके, चुनाव याचिका से दें चुनौती : सुप्रीम कोर्ट।”
हिन्दी अखबारों में दैनिक भास्कर ने रैली और रोड शो की खबर को लीड बनाया है। बिल्कुल वैसे जैसे बनना चाहिए। आदर्श पत्रकारिता। लेकिन शीर्षक वही है, युद्ध पोत को राजीव ने टैक्सी बना लिया था और टैक्सी बनाने पर कोई सवाल नहीं है। अखबार ने तस्वीरों के साथ उस छुट्टी की भी चर्चा की है जिसका जिक्र प्रधानमंत्री ने किया। आजकल छुट्टी लेने, परिवार के साथ समय गुजारने पर काफी जोर है। मध्यमवर्गीय परिवारों का घूमने जाना बढ़ा है। ऐसे समय में बिना परिवार वाले प्रधानमंत्री के इस आरोप को उसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए पर अखबार में ऐसा कुछ नहीं है। यही नहीं, प्रधानमंत्री का जब परिवार ही नहीं है, पत्नी से ही संबंध नहीं है तो ससुराल वालों के साथ क्या होगा। ऐसे में उनके आरोप को इस संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए।
प्रधानमंत्री के आरोपों के मद्देनजर पहला सवाल दिमाग में आता है कि क्या प्रधानमंत्री विदेश दौरों पर अकेले जाते हैं। परिवार है नहीं तो कौन जाता है और सरकारी खर्च पर अगर परिवार के अलावा कोई जाता है तो उसका नाम सार्वजनिक क्यों नहीं होना चाहिए। खासकर तब जब प्रधानमंत्री रिश्तेदारों के साथ छुट्टी मनाने पर 32 साल बाद एतराज कर रहे हैं तो।
इस संबंध में केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने विदेश मंत्रालय को उन गैर-सरकारी (प्राइवेट) व्यक्तियों के नाम सार्वजनिक करने का निर्देश दिया है जो विदेश दौरों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ गए थे। छह अक्टूबर 2017 को कराबी दास ने मंत्रालय से 2015-16 और 2016-17 में प्रधानमंत्री के विदेश दौरों पर हुए खर्च और उनके साथ यात्रा करने वालों की जानकारी मांगी थी। आवेदक को संतोषजनक जानकारी नहीं दी गई तो उन्होंने सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया। इसके बाद की कोई खबर नहीं है। क्या अखबारों का काम नहीं है कि इस बारे में पता करके बताते। इस संबंध में वायर की पुरानी खबर का लिंक यह रहा:
http://thewirehindi.com/56364/cic-names-of-persons-accompanying-the-prime-minister-on-foreign-visits/?fbclid=IwAR0DU41Wc982Ry8UyrCu_pOp3KjN5oOyRqo-HPb31dU2VCp5CYkferS_juM