ओडिशा में 20 साल का सबसे भयंकर तूफान आया है लेकिन नुकसान सबसे कम हुआ है। दैनिक भास्कर ने इस खबर को अपने दूसरे फ्रंट पेज पर लीड बनाया है। पहले पन्ने पर आधा विज्ञापन है। आज मैं पहले पन्ने की खबरों की बात नहीं कर हिन्दी अखबारों की संपादकीय नालायकी की बात करूंगा। इसलिए इस खबर को चुना है।
कहने की जरूरत नहीं है कि हिन्दी अखबारों में इस खबर की सबसे अच्छी प्रस्तुति दैनिक भास्कर की है और इसीलिए मैं तथ्य यहीं से ले रहा हूं। पहले इस खबर की गंभीरता और महत्व की चर्चा कर लूं फिर बताता हूं कि इस तरह के समुद्री तूफान का नाम होता है। वह कैसे रखा जाता है और फिर यह कि हिन्दी अखबारों ने तूफान से निपटने तैयारियों के बीच सही नाम जानने और लिखने की भी कोशिश नहीं की। असल में ऐसी गलती की शुरुआत टेलीविजन से होती है। इंडिया टीवी ने इसे “फनि” लिखा है। आजतक और एबीपी न्यूज इसे फोनी कह रहा है। टेलीविजन पर अगर गलत बोला जा रहा है तो अखबार वाले उसके दबाव में भी रहते हैं। पर वह अलग मुद्दा है।
दैनिक भास्कर में तूफान का नाम फनी सही लिखा गया है। पर शीर्षक में नहीं है। हिन्दुस्तान में खबर पहले पन्ने पर लीड है लेकिन इसका नाम “फेनी” लिखा है। शीर्षक में ही। सवाल यह है कि जब नाम नहीं मालूम है तो शीर्षक में गलत लिखने से बचने की जरूरत भी नहीं लगती? नवभारत टाइम्स ने तूफान की खबर को पहले पन्ने से पहले के अपने अधपन्ने पर लिया है और तूफान का नाम “फोनी” लिखा है। नवोदय टाइम्स ने इस खबर को लीड बनाया है और नाम भी सही, “फनी” लिखा है। यहां यह बता दूं कि अंग्रेजी में यह एफएएनई है और हिन्दी में बिना कुछ जाने या अक्ल भिड़ाए लिखने वाला इसे फनी ही लिखेगा। इसलिए सही लिखने वाला संयोग से भी सही हो सकता है। हालांकि, गलत लिखने वालों ने क्या सोचकर गलत लिखा यह जानना ज्यादा दिलचस्प होता पर वह मुश्किल काम है। अमर उजाला में यह खबर चार कॉलम में लीड है और दो लाइन का शीर्षक है, ‘फैनी’ ने ओडिशा में मचाई भारी तबाही, आठ की मौत।
दैनिक जागरण अन्य सभी अखबारों से अलग है। खबर तो पहले पन्ने पर लीड है और शीर्षक है, ओडिशा में 245 किमी की रफ्तार से चली हवा, आठ लोगों की मौत। दैनिक हिन्दुस्तान ने इसे 175 किमी प्रति घंटा बताया है। और यह शीर्षक में नहीं है। दैनिक जागरण ने उपशीर्षक में तूफान का नाम “फणि” लिखा है। “फणि का कहर: हजारों पेड़ धराशायी, 11 लाख लोगों को प्रभावित क्षेत्रों से हटाया गया”। दैनिक जागरण की खबर है, सुबह पुरी में जहां 245 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवा चली, वहीं अन्य हिस्सों में 175 किलोमीटर की रफ्तार से तेज हवा के साथ मूसलधार बारिश हुई। अखबार ने उड़ीशा में कुछ अन्य तूफानों के नाम औऱ उनकी तारीख भी लिखी है जो इस प्रकार है : 29 अक्टूबर 1999 : महाचक्रवात; 4 अक्टूबर 2013 : फेलिन; 12 अक्टूबर 2014 : हुदहुद और 10 अक्टूबर 2018 : तितली। इनमें क्या सही है और क्या गलत – मैं नहीं जानता। राजस्थान पत्रिका में खबर तो नहीं दिखी पर अंदर के एक पन्ने पर विशेष संपादकीय जैसा कुछ दिखा – सटीक सूचना, सही प्रबंधन। यह उड़ीशा के तूफान से संबंधित है और इसे फैनी लिखा गया है।
राजस्थान पत्रिका में आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का इंटरव्यू है जो पहले पन्ने को लगभग 30 प्रतिशत घेरकर पूरे दूसरे पन्ने पर छाया हुआ है। इस चक्कर में तीसरा पेज भी पहले पन्ने जैसा बनाया गया है। इस पन्ने पर तूफान की एक फोटो है और यहां भी तूफान को फैनी लिखा गया है। जनसत्ता ने खबर को पहले पन्ने पर टॉप में लगाया है। शीर्षक है, चक्रवाती तूफान फानी ने मचाई ओड़ीशा में तबाही। प्रभात खबर में यह सही, फनी है। दैनिक भास्कर के अनुसार 20 साल का सबसे खतरनाक तूफान फनी उड़ीशा के 18 जिलों से होते हुए बंगाल की ओर बढ़ गया है। आठ मौतें हुई हैं। फोन और बिजली ठप है। भुवनेश्वर एयरपोर्ट बंद है, फ्लाइट व ट्रेनें बंद रहीं। भुवनेश्वर से उड़ीशा के स्पेशल रिलीफ कमिश्नर, विष्णु पद सेठी के अनुसार फनी के मद्देनजर पांच दिन पहले ही जीरो कैजुअलिटी मिशन शुरू कर दिया गया था, 1.18 करोड़ लोगों को मैसेज भेजे गए। उड़ीशा सरकार ने फनी का सामना करने के लिए 27 अप्रैल की सुबह जीरो कैजुअलिटी मिशन शुरू कर दिया था।
11.60 लाख लोगों को 879 साइक्लोनिक सेंटर पर पहुंचाया गया। संभवत: इतने कम समय में लोगों को स्थानांतरित करने का यह रिकॉर्ड होगा। अकेले गंजम जिले से तीन लाख और पुरी से 1.3 लाख लोगों को शिविरों में पहुंचाया गया। 4000 शिविरों में 5 हजार किचन शुरू किए गए। फनी शुक्रवार सुबह आठ बजे पुरी पहुंचा और थोड़ी ही देर में तबाही मचाते हुए आगे बढ़ गया। भारी बारिश के चलते पुरी से भुवनेश्वर तक जगह-जगह पानी भर गया। हजारों की संख्या में पेड़ और कच्चे घर तहस-नहस हो गए।
पुरी में तूफान का 12 बजे तक और भुवनेश्वर में 2.40 बजे तक असर रहा। कटक, खुर्दा, गंजम, गोपालपुर, जाजपुर, भद्रक, केंद्रपाड़ा, जगतसिंहपुर जिले भी प्रभावित रहे। शुरू में 180 किमी की रफ्तार से हवा चली, जो बाद में 225 किमी/घंटे तक पहुंच गई। पर अच्छी बात यह रही कि 20 साल का सबसे भीषण तूफान होने के बावजूद जनहानि न के बराबर रही। कुल मिलाकर यह सकारात्मक खबर है। सरकारी तैयारियों से नुकसान नहीं होने की खबर हमारे यहां प्राथमिकता नहीं पाती हैं हालांकि सरकारी नालायकी की खबर बनाने से अलग डर लगता है। उसपर चर्चा होती रही है।
राजनीतिक खबरों की चर्चा तो होती रहती है और राजनीतिक मामलों में संपादकीय निकम्मापन राजनीतिक झुकाव या पूर्वग्रह में ढंक जाता है। पर इस मामले में यह लापरवाही अक्षम्य है। अगर आप नाम ही गलत लिखते हैं तो उससे संबंधित सूचनाओं पर कितना भरोसा किया जाए। हालांकि, हिन्दी में अखबारों ही नहीं शहरों और रेलवे स्टेशन और व्यक्तियों के नाम का ना कोई मानकीकरण है और ना कोई आदर्श – जिसका अनुसरण किया जाए। इसलिए इसपर लिखना या चर्चा करना भी मुश्किल है। वर्षों से अखबारों में उड़ीशा, ओडिशा दोनों लिखा जाता है। हालांकि, दो नाम होना भी गलत नहीं है। व्यक्तियों के नाम गलत लिखना बेहद शर्मनाक है। पर विदेशी लोगों के नाम सही लिखना मुश्किल है। उसका रास्ता निकलने तक बाकी सब नाम ठीक लिखा जाए और उसका मानक हो यह हिन्दी वालों का ही काम है पर हमारे अखबारों को इसकी भी चिन्ता नहीं है। हिन्दी में मानक बनाने के लिए भी काम होना चाहिए। जब तक यह सब नहीं होता है अशुद्धियों से बचना – प्राथमिकताओं में नहीं आएगा और यह चिन्ताजनक है। किसने क्या लिखा है इसे जानने-देखने के बाद अब बताता हूं फनी नाम क्यों है और समुद्री तूफान के नाम कैसे रखे जाते हैं। आज मैं हिन्दी अखबारों को तो ठीक से नहीं देख पाया पर अंग्रेजी अखबारों में एक हिन्दुस्तान टाइम्स ने इस बारे में बताया है।
हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर तूफान की खबर है। इसमें सिंगल कॉलम की एक सूचना है, “तूफान के नाम पर विचार मंथन” (आप इसे माथपच्ची भी कह सकते हैं)। इसके मुताबिक वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएमए) इनके नामों की सूची रखता है। दुनिया के अलग अलग हिस्सों में उष्णकटिबंधीय तूफानों को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। सबसे पहले तूफानों का नाम रखना 1953 में शुरू हुआ ताकि उन्हें आसानी से पहचाना जा सके। इसके अलावा नाम याद रखना संख्या याद रखने के मुकाबले आसान है। सभी तूफानों का नामकरण नहीं किया जाता है। किसी भी तूफान का नाम तब रखा जाता है जब उसकी स्पीड 63 किमी प्रति घंटा हो। अगर किसी तूफान की रफ्तार 118 किमी प्रति घंटा होती है तो वो तूफान गंभीर तूफान माना जाता है। अगर किसी तूफान की रफ्तार 200 किमी प्रति घंटे से ज्यादा होती है तो उसे सुपर साइक्लोन माना जाता है।
तूफान का नामकरण वही करता है जिस क्षेत्र में वो तूफान आता है। फनी नाम बांग्लादेश ने दिया है, इसका मतलब है, “फन वाला सांप”। इससे पहले आपने नीलोफर, तितली, बिजली, कटरीना जैसे तमाम तूफानों के बारे में सुना होगा। ऐसे में फनी को फोनी, फैनी लिखने का कोई मतलब नहीं है। अमेरिकी मौसम विभाग ने 1953 में तय किया था कि अंग्रेजी के ए अक्षर से लेकर डब्ल्यू तक जितने भी महिलाओं के नाम हो सकते हैं उसी पर तूफानों का नाम रखा जाएगा। लेकिन महिला संगठनों ने इसका विरोध किया तो नया नियम बना। अब ऑड वर्षों में तूफान आएगा तो उसका नाम महिला के नाम पर होगा और अगर इवेन साल में तूफान आएगा तो उसका नाम पुरुष के नाम पर किया जाएगा। इस मामले में सूचनाएं बहुत हैं और बहुत सारे सवाल अनुत्तरित हैं, पर वह अलग मुद्दा है।