प्रेस क्‍लब ऑफ इंडिया की साठवीं जयंती: जंगल में मोर नाचा…


पत्रकारों पर हमले हो रहे हैं और क्‍लब में हास्‍य कवि सम्‍मेलन हो रहा है


मीडिया विजिल मीडिया विजिल
मीडिया Published On :


भारत में पत्रकारों की सबसे बड़ी संस्‍था प्रेस क्‍लब ऑफ इंडिया ने 2 फरवरी, 2019 को अपनी साठवीं जयंती मनाई। यह ख़बर क्‍लब के सामान्‍य सदस्‍यों को नहीं है।

मीडियाविजिल को एक वर्मतान पदाधिकारी की ओर से आयोजन की एक तस्‍वीर प्राप्‍त हुई जिसमें साठवीं जयंती का एक विशाल बोर्ड लॉन में लगा है और उसके सामने कुछ पदाधिकारियों सहित कुछ बुजुर्गवार सदस्‍य खड़े हैं।

इसके बारे में करने पर मालूम चला कि सदस्‍यों को साठवीं जयंती के अवसर पर एक हास्‍य कवि सम्‍मेलन का न्‍योता कार्यालय की ओर से भेजा गया था। यह न्‍योता एसएमएस के माध्‍यम से भेजा गया था। मीडियाविजिल ने करीब दर्जन भी नए पुराने सदस्‍यों से इसकी तस्‍दीक की लेकिन सभी ने इस बाबत इनकार किया कि उन्‍हें ऐसा कोई संदेश प्राप्‍त नहीं हुआ है।

कार्यालय की ओर से यह भी बताया गया कि इस अवसर पर कुछ वरिष्‍ठ सदस्‍यों का अभिनंदन समारोह रखा गया था लेकिन उसमें जान बूझ कर सामान्‍य सदस्‍यों को नहीं बुलाया गया। वह कार्यक्रम केवल प्रबंधन समिति के लिए था।     

सवाल उठता है कि क्‍लब के वरिष्‍ठ सदस्‍यों के अभिनंदन समारोह के लायक सामान्‍य सदस्‍यों को क्‍यों नहीं समझा गया? उन्‍हें केवल हास्‍य कवि सम्‍मेलन के लायक ही क्‍यों समझा गया? गोकि उसकी भी सूचना सदस्‍यों तक कायदे से नहीं पहुंच सकी।

दिलचस्‍प है कि देश में पत्रकारिता से जुड़ी तमाम बड़ी-छोटी घटनाओं पर दखल देने वाले प्रेस क्‍लब ऑफ इंडिया ने अपनी साठवीं जयंती को पत्रकारिता या लेखन से जुड़े किसी आयोजन के लायक नहीं समझा बल्कि उस दिन हास्‍य कवि सम्‍मेलन रखना उचित समझा।

प्रेस क्‍लब के सांस्‍कृतिक स्‍तर में इस किस्‍म की गिरावट नई नहीं है बल्कि पिछले कुछ वर्षों से लगातार चली आ रही है। इसी तरह पिछले साल भी वसंत बहार का एक कार्यक्रम रखा गया था जिसमें सांसद मनोज तिवारी को गाना गाने के लिए बुलाया गया था।

गौरतलब है कि प्रेस क्‍लब ऑफ इंडिया में बीते 15 दिसंबर को चुनाव हुए थे यानी नई प्रबंधन समिति को कमान संभाले कोई डेढ़ महीने से ज्‍यादा का वक्‍त हो रहा है। इस बीच पत्रकारों पर हमले की तमाम घटनाएं हुई हैं। हालिया घटना रायपुर में एक पत्रकार की भाजपा नेताओं द्वारा पिटाई की है। इससे पहले कश्‍मीर में पत्रकारों को प्रताडि़त किया जा चुका है। असम के एक पत्रकार और साहित्‍यकार पर राजद्रोह का मुकदमा लगाया जा चुका है। सबरीमाला में महिला पत्रकारो को रोकने क लिए जितना दमन हुआ, वह भी क्‍लब की निगाह में नहीं आ सका जबकि क्‍लब की मौजूदा महासचिव खुद एक महिला हैं। प्रेस क्‍लब ऑफ इंडिया इन सब घटनाओं से बेखबर है और किसी भी घटना पर एक भी प्रतिरोध सभा नहीं रखी गई, न ही कोई बयान जारी किया गया।

एक वरिष्‍ठ सदस्‍य का कहना है कि प्रेस क्‍लब कुछ आपसी हितों को पूरा करने के लिए एक गिरोह की चरागाह बन कर रह गया है और यहां लोकतंत्रपूरी तरह खत्‍म हो चुका है। यह स्थिति इस बात से समझ में आती है कि शहीद पत्रकार छत्रपति राम चंदर को 17 साल बाद मिले इंसाफ के मौके पर पंजाब और हरियाणा में पत्रकाकर सुरक्षा कानून की ज़रूरत पर पिछले दिनों पत्रकारों पर हमले के विरुद्ध समिति (सीएएजे) की ओर से चंडीगढ़ में आयोजित एक सम्‍मेलन के न्‍योते का प्रेस क्‍लब ने कोई आधिकारिक जवाब तक नहीं दिया।

पिछली प्रबंधन समिति ने सीएएजे द्वारा दिल्‍ली में आयोजित पत्रकारों पर हमले के खिलाफ राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन में न केवल सक्रिय भागीदारी की थी बल्कि योगदान भी दिया था। इस बार ऐसा लगता है कि कि चुनी गई प्रबंधन समिति का पत्रकार सुरक्षा के सवाल से कोई लेना-देना नहीं रह गया है।