सोनिया गांधी को बेइज्‍जत करने के लिए शेखर गुप्‍ता ने पत्रकारिता के मूल्‍यों से धोखा किया?


लेख के बाद दिए परिचय या बाइलाइन में कहीं भी पुरी के मंत्रिपद का जिक्र नहीं है, जो पत्रकारीय बेमानी की मिसाल है


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द प्रिंट ने केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी की किताब ‘डिलिजयूनल पोलिटिक्स’ का एक अंश छापा है, जिसमें कांग्रेस नेता सोनिया गांधी को सामंतवादी बताया गया है. बेहद पूर्वाग्रह और घृणा से भरा अंश है, लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह है कि इस लेख में कहीं भी यह नहीं बताया गया है कि इसका लेखक मोदी सरकार में मंत्री है. लेखक की सबसे अहम पहचान को छिपाना यह दर्शाता है कि द प्रिंट और उसके संपादक की दिलचस्पी सोनिया गांधी को निशाना बनाने में है. यह पत्रकारिता के मूल्यों के ख़िलाफ़ है. 

हरदीप पुरी 2001 में लंदन में भारत के डिप्‍टी हाइ कमिश्‍नर थे जब सोनिया गांधी कांग्रेस के कई नेताओं के साथ आइसलैंड और अमेरिका के दौरे के बीच तन घंटे के लिए लंदन में रुकी थीं। द प्रिंट ने जो अंश छापा है वह इन्‍हीं तीन घंटों के दौरान दो अलग-अलग अवसरों का हरदीप पुरी का अनुभव है जो बेहद भद्दा, अपमानजनक और अतार्किक है।

हरदीप पुरी दो मौके गिनवाते हैं और उसके सहारे सोनिया गांधी के दौर की कांग्रेस को सामतवादी करार देते हैं। पहला मौका कमरे का है जब उन्‍होंने देखा कि सोनिया गांधी जिस सोफे पर बैठी हैं उस पर कोई और नेता नहीं बैठा। इसी से द प्रिंट ने पुस्‍तक अंश का शीर्षक तैयार किया है – ‘’वाइ नोबेडी सैट ऑन द सेम सोफा ऐज सोनिया गांधी’’ यानी सोनिया गांधी के सोफे पर कोई और क्‍यों नहीं बैठा। एकबारगी पढ़ने में यह शीर्षक कई अटकलबाजियों और बुरी कल्‍पनाओं को जन्‍म देता है लेकिन अंश के अंत तक आते-आते यह केवल लेखक के दिमाग का फितूर और छापने वाले की खुराफात साबित होता है।

दूसरा मौका पुरी गिनाते हैं जब एयरपोर्ट जाते वक्‍त सोनिया गांधी की गाड़ी में उनके पीछे कोई और नहीं बैठा। इसके सहारे वे निष्‍कर्ष निकालते हैं कि सोनिया को ‘’राजाओं वाला दैवीय अधिकार’’ प्राप्‍त है।

सबसे बुरी बात यह है कि द प्रिंट ने पुरी की किताब से वही अंश छापा है जो सबसे ज्‍यादा अतार्किक और अपमानजनक है। इससे समझ में आता है कि इसे छापने में वेबसाइट की मंशा क्‍या थी। यह आशंका तब नहीं होती जब वेबसाइट ने बताया होता कि जिस लेखक की किताब का अंश वे छाप रहे हैं वह मोदी सरकार की कैबिनेट में मंत्री हैं। लेख के बाद दिए परिचय या बाइलाइन में कहीं भी पुरी के मंत्रिपद का जिक्र नहीं है, जो पत्रकारीय बेमानी की मिसाल है।